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सोमवार, 17 जून 2013

MASESTRO बदल दें अपना विज्ञापन-लड़कों वाली बात''

 


THIS AD IS SPREADING DISCRIMINATION BETWEEN TWO GENDERS .OPPOSE THIS HERE-

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MASESTRO को बेचना है अपना उत्पाद ...चाहे उसके लिए कुछ भी करना  पड़े .ये तैयार हैं .हम भी तैयार विरोध के लिए .''लड़की वाली बात'' क्या शर्म का विषय है और ''लड़कों वाली बात'' हिम्मत ..रौब और जिन्दादिली की ?.....MASESTRO बदल दें अपना विज्ञापन यही है माँग ....पर हमारा समाज भी तो यही सोच रखता है ना .......

 
मैंने पूछा बाबू जी  से क्या है 'लडको वाली बात ',
हंसकर बोले क्या  बतलाऊँ  तू है औरत जात !



खून में गर्मी चौड़ा  सीना बाहु में हो बल ,
आसमान छू आने की जिसमे चाह प्रबल ,
तू क्या जाने दब्बू कोमल क्या तेरी औकात?
हंसकर बोले क्या  बतलाऊँ  तू है औरत जात !



खुलकर हँसना घूमना-फिरना लड़कों  के हैं शौक  ,
धूम मचाना उधम तारना लड़कों पर नहीं रोक ,
दबकर-छिपकर काटे लड़की अपने दिन और रात !
हंसकर बोले क्या  बतलाऊँ  तू है औरत जात !



सीना ताने चलते है रौबीला अंदाज़ ,
ऊँचा रुतबा है मर्दों का दुनिया के सरताज ,
पुत्र जन्म को कहते हैं रब की सब सौगात !
हंसकर बोले क्या  बतलाऊँ  तू है औरत जात !



लड़कों के ये  सारे गुण उन पर ही हैं फबते ,
लड़की नक़ल करे तो उसके नाक नकेल हैं कसते ,
मर्दों की दुनिया में औरत खाती उनसे मात !
हंसकर बोले क्या  बतलाऊँ  तू है औरत जात !



और समझ ले बिटिया रानी बोले वे समझाकर ,
अबला नारी मत मर्दों से तू अपनी तुलना कर ,
लड़की मोमबत्ती की माफिक लड़का है फौलाद !
हंसकर बोले क्या  बतलाऊँ  तू है औरत जात !



शिखा कौशिक 'नूतन '

12 टिप्‍पणियां:

  1. पर ऐसा तो स्कूटी वाले भी कहते थे "Why should boys have all the fun ??"

    माफ कीजिएगा पर मेरी समझ मे यह केवल विज्ञापन है इनको विज्ञापन ही रहने दीजिये ... इस से इस मुद्दे को जोड़ना गलत है !

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  2. बहुत खूब
    सार्थक अभिव्यक्ति
    हार्दिक शुभकामनायें

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  3. @शिवम् जी -आपने जिस विज्ञापन का जिक्र किया है उसमे एक वाक्य में स्त्री के जीवन के साथ किये जा रहे भेदभाव को अभिव्यक्ति प्रदान की गयी है .''लड़कों वाली बात '' में दंभ झलकता है पुरुष प्रधान समाज का .सोचिये क्या ये विज्ञापन उचित है ?

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  4. आपकी रचना में छिपा व्यंग और कटाक्ष वाजिब है ...

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  5. विशेषताओं के आधार पर दोनों वर्गों में भेद सम्भव है, और असल में है भी,
    क्षमता के आधार पर भेद करना मुझे तो मुश्किल काम लगता है.
    आपकी कबिता सुन्दर बन पड़ी है!

    कुँवरज जी,

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  6. बहुत सही बात कही है आपने आभार . जनता की पहली पसंद -कौंग्रेस आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN

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  7. शिवम् जी ---विज्ञापन सिर्फ सोच ही नहीं दर्शाता अपितु फैलाता भी है ...अतः उसे यूं ही नही छोड़ देना चाहिए अन्यथा विज्ञापन का अर्थ ही क्या होता है...
    ---- यद्यपि नारी-पुरुष को प्रकृति ने ही शारीरिक, मानसिक रूप से पृथक पृथक बनाया है, अपने अपने विशिष्ट कार्य व कृतित्व हेतु .....सौम्यता व कठोरता उनके क्रमश प्राकृतिक गुण हैं परन्तु इन्हें किसी की कमजोरी एवं अहं का हेतु लेना ज्यादादाती होगी ..मानवता पर...
    ---- स्त्रियाँ व पुरुष दोनों ही सोचें कि फिर क्यों आखिर प्रकृति ने उन्हें ऐसा बनाया ...और उसी मर्यादा अनुसार चलें ...

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  8. बहुत प्रभावी प्रस्तुति...केवल शारीरिक ताकत श्रेष्ठता की पहचान नहीं...

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