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रविवार, 29 जनवरी 2012

सखी री ! नव बसन्त आये ...बसन्त गीत ..डा श्याम गुप्त....

                                         ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...      


सखी री ! नव बसन्त आये ।।

जन जन में, 
जन जन, मन मन में,
यौवन यौवन छाये ।
सखी री ! नव बसंत आये ।।

पुलकि पुलकि सब अंग सखी री ,
हियरा उठे उमंग ।
आये ऋतुपति पुष्प-बान ले,
आये रतिपति काम-बान ले,
मनमथ छायो अंग ।
होय कुसुम-शर घायल जियरा ,
अंग अंग रस भर लाये ।
सखी री ! नव बसंत आये ।।

तन मन में बिजुरी की थिरकन,
 बाजे ताल-मृदंग ।
 अंचरा खोले रे भेद जिया के,
यौवन उठे तरंग ।
गलियन  गलियन झांझर बाजे ,
अंग अंग हरषाए ।
प्रेम शास्त्र का पाठ पढ़ाने....
काम शास्त्र का पाठ पढ़ाने,
ऋषि अनंग आये ।
सखी री !  नव बसंत आये ।।

शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

प्रभु नन्ही परी के जीवन को बचाएं !


ये  हैवानियत की पराकाष्ठा  है या अमर्यादित समाज की एक तस्वीर ?कई प्रश्न खड़े होते  हैं ऐसी खबर पढ़कर -[ ]से   साभार   ]-
''नई दिल्ली।। एम्स में मौत से जूझ रही दो साल की बच्ची की मदद के लिए दिल्ली सरकार आगे आई है। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कहा कि बच्ची की हरसंभव मदद की जाएगी। उन्होंने कहा, रिपोर्ट आने दीजिए। हम वह सब करेंगे, जिसकी जरूरत है।'गौरतलब है कि एम्स में भर्ती कराई गई दो साल की इस बच्ची के सिर में चोट से ब्रेन के महत्वपूर्ण हिस्से डैमेज हो चुके हैं। चेहरे पर गर्म प्रेस से दागने जैसे निशान हैं। दोनों हाथों में फ्रैक्चर है और पूरे शरीर पर इंसान के काटने के निशान हैं। बच्ची को तीन बार दिल का दौरा पड़ चुका है। उसका इलाज कर रहे डॉक्टरों का कहना है कि उसके बचने की संभावना 50% ही है। उसका इलाज कर रहे न्यूरोसर्जन डॉ. दीपक अग्रवाल ने कहा कि वह एम्स के न्यूरोसर्जरी डिपार्टमेंट की आईसीयू में ऐडमिट है और वेंटिलेटर पर है। पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि खुद को इस बच्ची का मां बताने वाली एक 15 साल की लड़की ने इसे अस्पताल में भर्ती कराया था। उसने बताया था कि बच्ची बिस्तर से गिर कर घायल हुई है। हालांकि, डॉक्टर ने उसके इस दावे को झूठा बताया है, क्योंकि बच्ची के शरीर पर गहरे जख्म हैं। इस बच्ची के पूरे शरीर पर काटने के निशान हैं। पुलिस को मिली जानकारी के अनुसार खुद को इस बच्ची की मां बताने वाली नाबालिग लड़की पिछले साल कथित तौर पर एक लड़के के साथ भाग गई थी। वह संगम विहार इलाके में रह रही थी और यह बच्ची पिछले 20 दिनों से उसके साथ थी। 

दक्षिणी दिल्ली की पुलिस उपायुक्त छाया शर्मा ने बताया कि इस सिलसिले में अज्ञात लोगों के खिलाफ धारा 363 (अपहरण), 317 (12 साल से कम उम, के बच्चे को बेसहारा छोड़ना),324 और 325 (जख्म से संबंधित) के तहत मामला दर्ज किया गया है''
                                 इस समय  तो  केवल प्रभु  से यही  प्रार्थना की जा सकती है कि इस नन्ही परी के जीवन को बचाएं .
                                     शिखा कौशिक 

बसंत ऋतु आई है .... डा श्याम गुप्त.....

  बसंत  ---- बागों में, वनों में,सुधियों में बगरा हुआ रहता है और समय आने पर पुष्पित-पल्लवित होने लगता है .....प्रस्तुत है ..बसंत पंचमी पर एक रचना .....वाणी की देवी .सरस्वती वन्दना से....
        
                    सरस्वती वन्दना 

जो कुंद इंदु तुषार सम सित हार, वस्त्र से आवृता ।
वीणा है शोभित कर तथा जो श्वेत अम्बुज आसना ।
जो ब्रह्मा शंकर विष्णु देवों से सदा ही वन्दिता ।
 माँ शारदे ! हरें श्याम 'के तन मन ह्रदय की मंदता ।।

                   बसंत ऋतु आई है ....
 
                  ( घनाक्षरी छंद )
     
गायें कोयलिया तोता मैना बतकही करें ,           
कोपलें लजाईं , कली कली शरमा रही |

झूमें नव पल्लव, चहक रहे खग  वृन्द ,

आम्र बृक्ष बौर आये,  ऋतु हरषा रही|

नव कलियों पै हैं, भ्रमर दल गूँज रहे,

घूंघट उघार कलियाँ भी मुस्कुरा रहीं |

झांकें अवगुंठन से, नयनों के बाण छोड़ ,

विहंस विहंस ,  वे मधुप को लुभा रहीं ||


सर फूले सरसिज, विविध विविध रंग,

मधुर मुखर भृंग, बहु स्वर गारहे |

चक्रवाक वक जल कुक्कुट औ कलहंस ,

करें कलगान, प्रात गान हैं सुना रहे |

मोर औ मराल, लावा  तीतर चकोर बोलें,

वंदी जन मनहुं,  मदन गुण गा रहे |

मदमाते गज बाजि ऊँट, वन गाँव डोलें,

पदचर यूथ ले, मनोज चले आरहे ||


पर्वत शिला पै गिरें, नदी निर्झर शोर करें ,

दुन्दुभी बजाती ज्यों, अनंग अनी आती है |

आये ऋतुराज, फेरी मोहिनी सी सारे जग,

जड़ जीव जंगम मन, प्रीति मदमाती है |

मन जगे आस,  प्रीति तृषा  मन भरमाये ,

नेह नीति रीति, कण कण सरसाती है |

ऐसी बरसाए प्रीति रीति, ये बसंत ऋतु ,

ऋषि मुनि तप नीति, डोल डोल जाती है ||


लहराए क्यारी क्यारी,सरसों गेहूं की न्यारी,

हरी पीली ओड़े  साड़ी,  भूमि इठलाई  है |

पवन सुहानी, सुरभित सी सुखद सखि !

तन मन  हुलसे,  उमंग मन छाई है |

पुलकि पुलकि उठें, रोम रोम अंग अंग,

अणु अणु प्रीति रीति , मधु ऋतु लाई है |

अंचरा उड़े सखी री, यौवन तरंग उठे,

ऐसी मदमाती सी, बसंत ऋतु आई है ||

                                                              ----चित्र ..निर्विकार  एवं गूगल साभार
             

बसंत ऋतू की शुभकामनाएं...


आइये कुछ झलकियां तो देख लीजिए मित्र, मेरे ब्लाग में बसंत पंचमी की...
"आप सभी को हार्दिक दिल से शुभकामनाएं बसंत पंचमी की"

साभार: गूगल वेब को चित्रों के लिए.

गुरुवार, 26 जनवरी 2012

अमृता प्रीतम की कहानी में व्यक्त वर्तमान रेगिस्तान माननीय उच्च न्यायालय के दरवाजे तक

महानगरीय संस्कृति में सुविधाभोगी समाज में पनपते जायज नाजायज रिश्तों की अंतःकथा व्यक्त करता यह वाकया मुझे अमृता प्रीतम की उस कहानी ‘ब्रहस्पतिवार का दिन’ की याद दिला गया जिसमें अमृता ने तथाकथित समाज से यह सवाल किया था कि किसी औरत की पाकीजगीं का ताल्लुक उसके शरीर से ही क्यों लिया जाता है। अमृता जी ने अपनी इस कहानी में अपने बच्चे मन्नू को घर पर अकेला छोडकर अपने धन्धें पर जाती एक काल गर्ल पूजा के मन में पलते मातृत्व को इन शब्दों में व्यक्त किया थाः-
''माँ के गले से लगी बाँहों ने जब बच्चे को आँखों में इत्मीनान से नींद भर दी, तो पूजा ने उसे चारपाई पर लिटाते हुए, पैरों के बल चारपाई के पास बैठकर अपना सिर उसकी छाती के निकट, चारपाई की पाटी पर रख दिया और कहने लगी—‘‘क्या तुम जानते हो, मैंने अपने पेट को उस दिन मन्दिर क्यों कहा था ? जिस मिट्टी में से किसी देवता की मूर्ति मिल जाए, वहाँ मन्दिर बन जाता है—तू मन्नू देवता मिल गया तो मेरा पेट मन्दिर बन गया....’’
और मूर्ति को अर्ध्य देने वाले जल के समान पूजा की आँखों में पानी भर आया, ‘‘मन्नू, मैं तुम्हारे लिए फूल चुनने जंगल में जाती हूँ। बहुत बड़ा जंगल है, बहुत भयानक, चीतों से भरा हुआ, भेड़ियों से भरा हुआ, साँपों से भरा हुआ...’’
और पूजा के शरीर का कंपन, उसकी उस हथेली में आ गया, जो मन्नू की पीठ पर पड़ी थी...और अब वह कंपन शायद हथेली में से मन्नू की पीठ में भी उतर रहा था।

उसने सोचा—मन्नू जब खड़ा हो जाएगा, जंगल का अर्थ जान लेगा, तो माँ से बहुत नफरत करेगा—तब शायद उसके अवचेतन मन में से आज का दिन भी जागेगा, और उसे बताएगा कि उसकी माँ किस तरह उसे जंगल की कहानी सुनाती थी—जंगल की चीतों की, जंगल के भेड़ियों की और जंगल के साँपों की—तब शायद....उसे अपनी माँ की कुछ पहचान होगी।
पूजा ने राहत और बेचैनी का मिला-जुला साँस लिया। उसे अनुभव हुआ जैसे उसने अपने पुत्र के अवचेतन मन में दर्द के एक कण को अमानत की तरह रख दिया हो....
पूजा ने उठकर अपने लिए चाय का एक गिलास बनाया और कमरे में लौटते हुए कमरे की दीवारों को ऐसे देखने लगी जैसे वह उसके व उसके बेटे के चारों ओर बनी हुई किसी की बहुत प्यारी बाँहें हों...उसे उसके वर्तमान से भी छिपाकर बैठी हुई....

पूजा ने एक नज़र कमरे के उस दरवाजे की तरफ देखा—जिसके बाहर उसका वर्तमान बड़ी दूर तक फैला हुआ था....
शहर के कितने ही गेस्ट हाउस, एक्सपोर्ट के कितने ही कारखाने, एअर लाइन्स के कितने ही दफ्तर और साधारण कितने ही कमरे थे, जिनमें उसके वर्तमान का एक-एक टुकड़ा पड़ा हुआ था....
परन्तु आज बृहस्पतिवार था—जिसने उसके व उसके वर्तमान के बीच में एक दरवाज़ा बन्द कर दिया था।
बन्द दरवाज़े की हिफाजत में खड़ी पूजा को पहली बार यह खयाल आया कि उसके धन्धे में बृहस्पतिवार को छुट्टी का दिन क्यों माना गया है ?
इस बृहस्पतिवार की गहराई में अवश्य कोई राज़ होगा—वह नहीं जानती थी, अतः खाली-खाली निगाहों से कमरे की दीवारों को देखने लगी...
इन दीवारों के उस पार उसने जब भी देखा था—उसे कहीं अपना भविष्य दिखाई नहीं दिया था, केवल यह वर्तमान था...जो रेगिस्तान की तरह शहर की बहुत-सी इमारतों में फैल रहा था....
और पूजा यह सोचकर काँप उठी कि यही रेगिस्तान उसके दिनों से महीनों में फैलता हुआ—एक दिन महीनों से भी आगे उसके बरसों में फैल जाएगा।

और पूजा ने बन्द दरवाज़े का सहारा लेकर अपने वर्तमान से आँखें फेर लीं।‘‘

सचमुच अमृता प्रीतम की कहानी में व्यक्त वर्तमान रेगिस्तान शहर की बहुत सी इमारतों से फैलता हुआ आज माननीय उच्च न्यायालय के दरवाजे तक आ पहुंचा था।
यह अजब संयोग ही किलखनऊ शहर बीते ब्रहस्पतिवार को एक अनोखे मुकदमे का साक्षी बना जब घरों में चौका बरतन करने वाली राजाजीपुरम निवासी एक कुंवारी माँ ने अपने बच्चों के पिता का नाम जानने के लिये उच्च न्यायालय लखनऊ में हलफनामा पेश कर दस लोगों का डी0एन0ए0 टेस्ट करवाने की गुहार लगायी। इस कुंवारी मां का दर्द उसके द्वारा माननीय उच्च न्यायालय में प्रस्तुत हलफनामें मे अंकित इन शब्दों में साफ साफ झलकता है-
‘‘मेरे बच्चों के 10 पिता हैं तो मैं किसका नाम दूं। मुझे किसी ने बेटी बहन बीवी और मां नहीं समझा सिर्फ औरत समझा जिसने प्रकृति के गुण दोषों को अपने गर्भ में पालकर उन्हें इन्सान के रूप में निर्माण कर जन्म देने का गुनाह किया है। मेरे बच्चों के दस पिता हैं तौ मैं किसका नाम दूँ। डी0 एन0 ए0 जांच में जवाब खुद ही मिल जायेगा।’’

इस कुंवारी मां के द्वारा माननीय न्यायालय के समक्ष जिन दस व्यक्तियों का डी0एन0ए0 टेस्ट कराने का अनुरोध किया है उनमें एक नामी पत्रकार एक डाक्टर एक वकील तथा एक इंजीनियर और एक ठेकेदार भी शामिल है। इस सूची को देखने के बाद बस एक ही बात मस्तिष्क में गूंजती है कि ‘इस हम्माम में सब नंगे हैं।’ एक कुंवारी मां के सौजन्य से मा0 न्यायालय के सम्मुख पहुचे इस अनोखे मुकदमें में फरवरी माह की 9 तारीख को पुनः सुनवाई होनी है।

बुधवार, 25 जनवरी 2012

बकरी की हांक से पद्मश्री के धाक तक....

अपने गांव सुकुलदैहान में बकरी  चराती फुलवासन
‘’एक छोटा सा गांव। गांव के कोने में एक खपरैल वाला छोटा सा मकान। इस मकान में एक परिवार। परिवार में एक पति, एक पत्‍नी, दो लडकियां और दो लडकों को मिलाकर कुछ चार बच्‍चे। बिल्‍कुल आम ग्रामीण परिवार की तरह। पति खेतों में मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालने का काम करता था और पत्‍नी चारों बच्‍चों की देखभाल करने के अलावा खेत में पति की मदद करने, बकरी चराने और घर के सभी काम करने का जिम्‍मा उठाती थी।‘’
   यह कहानी ज्‍यादा पुरानी नहीं है। करीब 11 साल पुरानी है। अब इस कहानी में बदलाव आ गया है। अब इस कहानी की नायिका अपने गांव, अपने खेत और अपने घर तक सीमित नहीं रही। अब अपने हौसले के बल पर यह गांव से निकलकर शहर और अब देश की राजधानी दिल्‍ली तक अपनी पहचान बना चुकी है। यह पहचान उसने बनाई अपनी इच्‍छा शक्ति के दम पर। बात हो रही है छत्‍तीसगढ के आखिरी छोर पर बसे राजनांदगांव जिले के एक छोटे से गांव सुकुलदैहान की रहने वाली फुलवासन बाई यादव की। गांव की इस बकरी चराने वाली फुलवासन बाई यादव को देश के प्रतिष्ठित पुरस्‍कारों में से एक पद्मश्री पुरस्‍कार  दिए जाने की घोषणा हुई है। दिल्‍ली में आगामी दिनों में फुलवासन बाई को यह पुरस्‍कार महामहिम राष्‍ट्रपति के हाथों मिलेगा। फुलवासन की महिला सशक्तिकरण को लेकर प्रतिबद्धता का एक सबूत यह भी है कि जिस वक्‍त दिल्‍ली में पदम पुरस्‍कारों की घोषणा हो रही थी उस वक्‍त भी वह इसी विषय पर काम करने आंध्रप्रदेश के वारंगल में थी। दोपहर में जब मैंने उससे टेलीफोन पर बात की तो उसका कहना था कि यह पुरस्‍कार उसे नहीं, उन सारी महिलाओं को मिला है जिन्होने महिला सशक्तिकरण की दिशा में उनके साथ मिलकर काम किया है। 
मौजूदा समय में छत्‍तीसगढ में महिला सशक्तिकरण की रोल मॉडल फुलवासन बाई यादव का जन्‍म राजनांदगांव जिले के ग्राम छुरिया में 1971 में पिता श्री झडीराम यादव एवं माता श्रीमती सुमित्रा बाई के घर हुआ। घर की पारिवारिक स्थिति आर्थिक रूप से कमजोर थी। बड़ी मुश्किल से उन्होंने कक्षा 7वीं तक शिक्षा हासिल की। मात्र 12 वर्ष की उम्र में उनका विवाह ग्राम सुकुलदैहान के चंदूलाल यादव से हुआ। भूमिहीन चंदूलाल यादव का मुख्य पेशा चरवहा का है। गांव के लोगों के पशुओं की चरवाही और बकरी पालन उनके परिवार की जीविका का आज भी मुख्‍य  आधार है।
फुलवासन बाई यादव
छत्‍तीसगढ राज्‍य बनने से पहले छत्‍तीसगढ को पिछडा इलाका कहा जाता था और पिछडा कहा जाता था, यहां की महिलाओं को। राज्‍य बनने के बाद वर्ष 2001 में यहां की महिलाओं को जागृत और सशक्‍त करने के उद्देश्‍य से महिला सशक्तिकरण का काम शुरू किया गया। तत्कालीन कलेक्टर दिनेश श्रीवास्तव की पहल पर राजनांदगांव जिले में महिलाओं को एकजुट करने एवं उन्हें जागरूक बनाने के उद्देश्य से गांव-गांव में मां बम्लेश्वरी स्व.-सहायता समूह का गठन प्रशासन द्वारा शुरू किया गया। उस समय के तत्‍कालीन महिला बाल विकास अधिकारी राजेश सिंगी ने इस काम को पूरे जोशो खरोश के साथ किया और इसे महज अपनी सरकारी जिम्‍मेदारी न समझ दिल से अंजाम दिया और इसी का नतीजा रहा कि मौजूदा समय में राजनांदगांव महिला सशक्तिकरण की दिशा में आदर्श बन गया। इस अभियान से प्रेरित होकर श्रीमती फूलबासन यादव ने अपने गांव सुकुलदैहान में 10 गरीब महिलाओं को जोड़कर प्रज्ञा मां बम्लेश्वरी स्व-सहायता समूह का गठन किया। महिलाओं को आगे बढ़ाने एवं उनकी भलाई के लिए निरंतर  जद्दोजहद करने वाली फूलबासन यादव ने इस अभियान में सच्चे मन से बढ़-चढ़कर अपनी भागीदारी सुनिश्चित की। अभियान के दौरान उन्हें गांव-गांव में जाकर महिलाओं को जागरूक और संगठित करने का मौका मिला। अपनी नेक नियति और हिम्मत की बदौलत श्रीमती यादव ने इस कार्य में जबर्दस्त भूमिका अदा की। देखते ही देखते राजनांदगांव जिले में मात्र एक साल की अवधि में 10 हजार महिला स्व-सहायता समूह गठित हुए और इससे डेढ़ लाख महिलाएं जुड़ गई। महिलाओं ने एक दूसरे की मदद का संकल्प लेने के साथ ही थोड़ी-थोड़ी बचत शुरू की । देखते ही देखते बचत की स्व-सहायता समूह की बचत राशि करोड़ों में पहुंच गई। इस बचत राशि से आपसी में लेनदेन करने की वजह से सूदखोरों के चंगुल से छुटकारा मिला। बचत राशि से स्व-सहायता समूह ने सामाजिक सरोकार के भी कई अनुकरणीय कार्य शुरू कर दिए, जिसमें अनाथ बच्चों की शिक्षा-दीक्षा, बेसहारा बच्चियों की शादी, गरीब परिवार के बच्चों का इलाज आदि शामिल है। श्रीमती यादव ने सूदखोरों के चंगुल में फंसी कई गरीब परिवारों की भूमि को भी समूह की मदद से वापस कराने में उल्लेखनीय सफलता हासिल की।
महामहिम राष्‍ट्रपति से स्‍त्री शक्ति पुरस्‍कार लेती फुलवासन 

श्रीमती फूलबासन यादव को 2004-05 में उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए छत्‍तीसगढ़ शासन द्वारा मिनीमाता अलंकरण से नवाजा गया। 2004-05 में ही महिला स्व-सहायता समूह के माध्यम से बचत बैंक में खाते खोलने और बड़ी धनराशि बचत खाते में जमा कराने के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए श्रीमती फूलबासन बाई को नाबार्ड की ओर से राष्ट्रीय पुरस्कार से मिला। वर्ष 2006-07 में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया द्वारा भी  उन्हें सम्मानित किया गया। 2008 में जमनालाल बजाज अवार्ड के साथ ही जी-अस्तित्व अवार्ड तथा 2010 में भारत सरकार द्वारा स्‍त्री शक्ति पुरस्कार प्रदान किया गया। श्रीमती यादव को सद्गुरू ज्ञानानंद एवं अमोदिनी अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। उक्त पुरस्कार के तहत मिलने वाली राशि को उन्होंने महिलाओं एवं महिला समूहों को आगे बढ़ाने में लगा दिया है। श्रीमती यादव के परिवार का जीवन-यापन आज भी बकरीपालन व्यवसाय के जरिए हो रहा है।
                फुलवासन ने अपने 12 साल के सामाजिक जीवन में कई उल्लेखनीय कार्यों को महिला स्व-सहायता समूह के माध्यम से अंजाम दिया है। महिला स्व-सहायता समूह के माध्यम से गांव की नियमित रूप से साफ-सफाई, वृक्षारोपण, जलसंरक्षण के लिए सोख्ता गढ्ढा का निर्माण, सिलाई-कढ़ाई सेन्टर का संचालन, बाल भोज, रक्तदान,  सूदखोरों के खिलाफ जन-जागरूकता अभियान, शराबखोरी एवं शराब के अवैध विक्रय का विरोध, बाल विवाह एवं दहेज प्रथा के खिलाफ वातावरण का निर्माण, गरीब एवं अनाथ बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के साथ ही महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरबनाने में भी फुलवासन ने अहम रोल अदा किया है। राजनांदगांव जिला ही नहीं अपितु पूरे छत्‍तीसगढ़ में श्रीमती यादव महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में सशक्त सूत्रधार के रूप में जानी जाती है।
पदम पुरस्‍कार हासिल कर फुलवासन ने नारी शक्ति को साबित किया है।  नारी एकता को साबित किया है। और साबित किया है कि यदि हौसला हो तो सब कुछ संभव है। बधाई हो फुलवासन को।
 http://atulshrivastavaa.blogspot.com/2012/01/blog-post_25.html

सच्चा खुशहाल गणतंत्र कब ..एक अगीत ...डा श्याम गुप्त ...

वे राष्ट्रगान गाकर 
जनता को देश पर मर मिटने की,
कसम दिलाकर ;
बैठ गये लक्ज़री कार में जाकर ।    
टोपी पकडाई पी ए को,
अगले वर्ष के लिये -
रखे धुलाकर ॥

 
 हमारा सच्चा खुशहाल गणतंत्र दिवस ,
तब होगा, जब हमारा प्यारा भारत ;        
भ्रष्टाचार, अनैतिकता से मुक्त होगा ।

आओ मिलकर हम मनाएं गणतंत्र का दिन


आओ मिलकर  हम मनाएं गणतंत्र का  दिन  


आज है गणतंत्र का  दिन 
देश  का ये  पर्व  है ;
हम हैं भारत के निवासी 
हम को इस पर गर्व है !

राजपथ पर आज तिरंगा
 शान से लहराएगा ;
''जय हिंद''  का नारा  गूंजेगा 
हर  ह्रदय  हर्षायेगा   ;
देख  कर बल सेनाओं का
जोश  में भर जायेंगें  ;
बार  बार  हम ख़ुशी  में 
बस यही   दोहरायेंगें    ,
आओ मिलकर  हम मनाएं  
हम सभी का धर्म है ,
हम हैं भारत के निवासी 
हम को इस पर गर्व है !

आज के दिन सन पचास में 
संविधान था लागू हुआ ;
लोकतंत्र की इस बुलंदी को 
हमने ही इस दिन था छुआ ,
पूर्ण संप्रभुता वाला अपना  
भारत वर्ष है ,
हम हैं भारत के निवासी 
हमको इस पर गर्व है !

                                       शिखा कौशिक 

मंगलवार, 24 जनवरी 2012

जब आये ऋतुराज बसंत .....डा श्याम गुप्त....


            बसंत का आगमन हो चला है , प्रस्तुत है एक बासंतिक रचना ..... प्रारम्भ -- विश्व भर में, प्रकृति में , कण कण में  सरसता प्रदान करने वाली , बसंत की देवी ..की वन्दना से ....
           सरस्वती वन्दना

भारती   सरस्वती  शारदा   हंसवाहिनी ।
जगती   बागेश्वरी   कुमुदी  ब्रह्मचारिणी ।
बुद्धिदात्री चन्द्रकान्ति भुवनेश्वरी वरदायिनी ।
नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं  नमो  वीणावादिनी ।।

                    बसंत 
जब आये  ऋतुराज बसंत ।।
आशा तृष्णा प्यार जगाये ,
विह्वल मन में भरे उमंग ।
मन में फूले प्यार की सरसों ,
अंग अंग भर  उठे  उमंग ।


जब आये ऋतुराज बसंत ।।


अंग अंग में रस भर जाए,
तन मन में जादू कर जाए ।
भोली सरल गाँव की गोरी,
प्रेम मगन राधा बन जाए ।


कण कण में ऋतुराज समाये,
हर प्रेमी  कान्हा  बन  जाए ।
ऋषि-मुनि मन भी डोल उठें, जब-
बरसे  रंग  रस  रूप अनंत ।


जब आये ऋतुराज बसंत ।।
                                                           ---चित्र-- सरस्वती...गूगल साभार  
                                                                                                                                     अन्य--निर्विकार

वोट डाल ले ...वोट डाल ले ..



राष्ट्रीय मतदाता दिवस पर आप सभी से ये निवेदन है कि अपने वोट के अधिकार का प्रयोग करें .हम सौभाग्यशाली हैं जो हमें ये अधिकार मिला है .विशेष रूप से भारत की महिलाएं .विश्व के अनेक देशों में आज भी महिलाओं को वोट करने का अधिकार नहीं है .इस लिए सजग होकर इस अधिकार का प्रयोग करें 
-







वोट डाल ले ...वोट डाल ले ..
अब के इलेक्शन में वोट डाल ले .


सबसे जरूरी ये काम जान ले ;
कर न बहाना ये बात मान ले ;
वोट डाल ले ...वोट डाल ले .


वोटिंग  का  दिन  है  ये छुट्टी  नहीं 
इससे  बड़ी कोई ड्यूटी नहीं ;
चल बूथ  पर  वोटर  कार्ड साथ ले ;
वोट डाल ले .....


दादा चलें संग दादी चले ;
भैया के संग संग भाभी चले 
घर घर से वोटर साथ ले 
वोट डाल ले .......


हमको मिला मत का अधिकार ;
चुन सकते मनचाही सरकार ;
लोकतंत्र का बढ़ हाथ थाम ले .
वोट डाल ले .......


साइकिल से जा या रिक्शा से जा ;
कार से जा या स्कूटर से जा ;
कुछ न मिले  पैदल भाग ले 
वोट डाल ले .......


कैसा हो M .P .....M .L .A ?
तुझको ही करना है ये निर्णय ;
एक वोट डाल कर मैदान मार ले .
वोट डाल ले .....
                                          जय हिंद !
                           शिखा कौशिक 
               [नेता जी क्या कहते हैं ]





बेटी-माॅ का प्रतिबिंब है

          बेटी किसी भी समाज व परिवार की धरोहर है ,कहा जाता है कि अगर किसी भवन की नींव मजबूत होगी तो भवन भी मजबूत होगा।माॅ बेटी का रिश्ता एक नाजुक स्नेहिल रिश्ता है। प्राचीन काल में धार्मिक मान्यताओं अनुसार बेटी के जन्म पर कहा जाता था कि लक्ष्मी घर आई है,साथ ही बेटी के जन्म को कई पूण्यों का फल माना जाता था ।

       मोरारी बापू ने अपने प्रवचन में  बेटी को माता-पिता की आत्मा और  बेटे को हृदय की संज्ञा दी हेै। हृदय की धडकन तो कभी भी बंद हो सकती है लेकिन बेटी व आत्मा का संबध जन्मजंमातर का रहता है वह कभी  अलग नहीं हो सकती है।

        यद्यपि आधुनिक युग में माता-पिता के लिए बेटा-बेटी दोनो समान है,लेकिन कुछ रूढिवादी प्रथाओं,अशिक्षा,अज्ञानता व सामाजिक बुराइयों के कारण इसे अनचाही संतान माना जाने लगा है और बेटे और बेटी को समान दर्जा नही दे पाते है। कुछ लोग अपनी कुठित मानसिकता के कारण   बेटा स्वर्ग का सौपान और कन्या को नरक का द्धार मानते है।

        बेटी परिवार के स्नेह का केन्द्र बिन्दु और कई रिश्तो का मूल होती है।माॅ-बेटी का रिश्ता पारिवारिक रिश्तो की दुनिया मे एक महत्वपूर्ण रिश्ता है क्योंकि माॅ-बेटी का संबध दूध और रक्त दानों का होता है। माॅ ही बेटी की प्रथम गुरू होती है ।माॅ ही बचपन  मे अपनी लाड प्यार ममत्व रूपी खाद से बेटी रूपी पौधे को सींचने,तराशने व संवारने का कार्य करती है।एक माॅ का खजाना है उसकी बेटी ,एक माॅ की उम्मीद है उसकी बेटी, एक माॅ का भविष्य है उसकी बेटी, ,एक माॅ का हौसला है उसकी बेटी और  एक माॅ का अंतिम सहारा है उसकी बेटी

।                                                                                           
     भाई और बहन के प्यार की गहरी जडे भी कभी दुश्मनी मे बदल सकती है,पति-पत्नि के प्यार डगमगाने लगते है,लेकिन एक माॅ का प्यार बेटी के लिए मजबूत दीवार होता है क्योंकि उसकी जडे बहुत गहरी होती है। माॅ-बेटी एक दूसरे के दिल की धडकन होती हैं।विष्वास, कार्यकुशलता, उदारता ,खुली सोच,समझदारी आदि केवल माॅ ही बेटी को उसकी सच्ची सहेली बनकर दे सकती है जो उसके भावी जीवन के लिए उत्रदायी है।

         आज बेटियो ने चारो दिशाओे  में अपनी उपस्थित दर्ज करा चुकी है इसमे एक माॅ का त्याग,समर्पण लाड दुलार व सख्ती ही जो बेटी के हौसलो को उडान मिल सकी है।
एक माॅ बेटी में अपना प्रतिबिंब तलाशती है,एक माॅ चाहती है कि बेटी उसी की तरह संस्कारो व परम्पराआंे को आगे बढाने में उसकी सहयोगी, हमदर्द सखी सब कुछ बने ।एक माॅ बेटी की सच्ची सहेली की भूमिका को निभाते हुए उसके दिल की गहराई तक पहुचकर उसकी सहयोगी,विष्वासी बनकर उसका वर्तमान व भविष्य का जीवन संवारती है।माॅ अपनी बेटियो को आधुनिक व पुरातन में समन्वय रखते हुये खुला आकाश देती है ताकि वह अपने पंखो को फैलाकर सफलता की नयी उॅचाईयों को छू सके ।

 बेटी में कार्यकुशलता का बीजारोपण एक माॅ अच्छी तरह कर सकती है।वह उसे स्ंवय की,घर की स्वच्छता ,घर की सजावट,रसोई व खानपान की जानकारी परिवार की  परम्पराओ व रीति रिवाजो पारिवारिक रिष्तो की  अहमियत ,आचरण व शालीनता आदि का ज्ञान देती है।

       माॅ बेटी को भावी जीवन में आने वाली समस्याओं के बारे में बताती है सुसराल वालो व पति के साथ अपने दायित्वों को निभाने हुये परिवार मे समन्वय स्थापित करने के लिए प्रेरित करती है।

       इसी तरह बचपन में एक बेटी अपनी मम्मी की तरह ही दिखना चाहती है उसकी मम्मी की तरह साडी पहनती है माॅ की आदतो की नकल करती है। लेेकिन जैसे-जैसे बडी  होती है उसे लगने लगता है माॅ उसकी भावनाऔ को नही समझ रही हैै।लेकिन एक माॅ अपनी बडी होती बेटी के रक्षात्मक रवैया अपनाती है क्योंकि लेखिका सलुजा ने कहा हैकि  चिडियो और लडकियो की प्रकृति बडी सौम्य,सरल और निष्छल प्राणी की होती है ये अपनी सरलता व भोलेपन के कारण ही प्रायः अन्याय और शोषण का षिकार  हो जाती है। इस लिये बेटी को भी हमेशा अपनी माॅ से खुले रूप से बात करनी चाहिये अपनी पढाई अपने दोस्तो के बारे में ताकि एक माॅ समय के अनुसार बदलकर बेटी को आजादी दे सके,उस पर विश्वास  कर सके ।

   श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत   

सोमवार, 23 जनवरी 2012

नार्वे सरकार ने भारतीय माँ बाप से बच्चे छीने !!

नारी मन इन नार्वे--


नारी मन इन नार्वे,  तन है एक मशीन ।
नर-नारी तन भारती, दीन हीन गमगीन ।

दीन हीन गमगीन, दूर से ताको बच्चा।
 छीनेगी सरकार, करे गर करतब कच्चा  ।

साथ सुलाए बाप, खिला दे गर महतारी ।
गलत परवरिश भांप, रोय नर हारे नारी ।।


भारत की नारी करे, पल-पल अद्भुत त्याग ।
थपकी देकर दे सुला, दुग्ध अमिय अनुराग।

दुग्ध अमिय अनुराग, नार्वे की महतारी ।
पुत्र सोय गर साथ, नींद बिन रात गुजारी ।

कह रविकर परवरिश, सदा ही श्रेष्ठ हमारी।
ममता से भरपूर, पूज भारत की नारी ।।

शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

पवित्र प्रेम ही सारी समस्याओं का एकमात्र हल है Divine Love

चरम सुख के शीर्ष पर औरत का प्राकृतिक अधिकार है और उसे यह उपलब्ध कराना
उसके पति की नैतिक और धार्मिक ज़िम्मेदारी है.
प्रेम को पवित्र होना चाहिए और प्रेम त्याग भी चाहता है.
अपने प्रेम को पवित्र बनाएं .
धर्म-मतों की दूरियां अब ख़त्म होनी चाहिएं. जो बेहतर हो उसे सब करें और जो ग़लत हो उसे कोई भी न करे और नफ़रत फैलाने की बात तो कोई भी न करे. सब आपस में प्यार करें. बुराई को मिटाना सबसे बड़ा जिहाद है.
जिहाद करना ही है तो सब मिलकर ऐसी बुराईयों के खि़लाफ़ जिहाद करें जिनके चलते बहुत सी लड़कियां और बहुत सी विधवाएं आज भी निकाह और विवाह से रह जाती हैं।
हम सब मिलकर ऐसी बुराईयों के खि़लाफ़ मिलकर संघर्ष करें.
आनंद बांटें और आनंद पाएं.
पवित्र प्रेम ही सारी समस्याओं का एकमात्र हल है.

गुरुवार, 19 जनवरी 2012

स्त्री-सशक्तिकरण व स्त्री -पुरुष सम्बंध ..एक विवेचना---डा श्याम गुप्त


        स्त्री-सशक्तिकरण के युग में आजकल स्त्री-पुरुष सम्बन्धों, स्त्री पर अत्याचारों, बन्धन, प्रताडना, पुरुष-प्रधान समाज़, स्त्री-स्वतन्त्रता, मुक्ति, बराबरी  आदि विषयों पर कुछ अधिक ही बात की जा रही हैआलेख, ब्लोग, पत्रिकायें, समाचार पत्र आदि में जहां नारी लेखिकाएं जोर-शोर से अपनी बात रख रहीं है वहीं तथाकथित प्रगतिशील पुरुष भी पूरी तरह से हां में हां मिलाने में पीछे नहीं हैं कि कहीं हमें पिछडा न कह दिया जाय (चाहे घर में कुछ भी होरहा हो )। भागम-भाग, दौड-होड की बज़ाय कृपया नीचे लिखे बिन्दुओं पर भी सोचें-विचारें----
१- क्या मित्रता में ( पुरुष-पुरुष या स्त्री-स्त्री या स्त्री-पुरुष कोई भी ) वास्तव में दोनों पक्षों में बरावरी रहती है ---नहीं--आप ध्यान से देखें एक प्रायः गरीब एक अमीर, एक एरोगेन्ट एक डोसाइल, एक नासमझ एक समझदार, एक कम समर्पित एक अधिक पूर्ण समर्पित --होते हैं तभी गहरी दोस्ती चल पाती है । बस बराबरी होने पर नहीं। वे समय समय पर अपनी भूमिका बदलते भी रहते हैं, आवश्यकतानुसार व एक दूसरे के मूड के अनुसार। ।
२- यही बात स्त्री-पुरुष सम्बन्ध, पति-पत्नी मित्रता पर क्यों नहीं लागू होती?----किसी एक को तो अपेक्षाकृत  झुक कर व्यवहार करना होगा, या विभिन्न देश,काल, परिस्थियों, वस्तु स्थितियों पर किसी एक को झुकना ही होगा। यथायोग्य व्यवहार करना होगा। जब मानव गुफ़ा-बृक्ष-जंगल  से सामाज़िक प्राणी बना तो परिवार, सन्तान आदि की सुव्यवस्था हेतु नारी ने स्वयम ही समाज़ का कम सक्रिय भाग होना स्वीकार किया (शारीरिक-सामयिक क्षमता के कारण) और पुरुष ने उसका समान अधिकार का भागी होना व यथा-योग्य, सम्मान, सुरक्षा का दायित्व स्वीकार किया|
 
            अतः वस्तुतः आवश्यकता है, मित्रता की, सन्तुलन की, एक दूसरे को समझने की, यथा- योग्य, यथा-स्थिति सोच की, स्त्री-पुरुष दोनों को अच्छा, सत्यनिष्ठ, न्यायनिष्ठ इन्सान बनने की। एक दूसरे का आदर, सम्मान,करने की, विचारों  की समन्वय-समानता की ताकि उनके मन-विचार एक हो सकें ।यथा ऋग्वेद के अन्तिम मन्त्र (१०-१९१-२/४) में क्या सुन्दर कथन है---
"" समानी व अकूतिःसमाना ह्रदयानि वः ।
समामस्तु वो मनो यथा वः सुसहामतिः ॥"""
         ---अर्थात हे मनुष्यो ( स्त्री-पुरुष, पति-पत्नी, राजा-प्रज़ा आदि ) आप मन, बुद्धि, ह्रदय से समान रहें, समान व्यवहार करें, परस्पर सहमति से रहें ताकि देश, समाज़, घर,परिवार सुखी, समृद्ध,  शान्त जीवन जी सके ॥
       कवि ने कहा है---"
  "जो हम हें तो तुम हो, सारा जहां है,
 जो तुम हो तो हम हैं, सारा जहां है ।"
         अतः निश्चय ही यदि स्त्री सशक्तिकरण पर हमें आगे बढ़ना है, जो निश्चय ही समाज के आगे बढ़ने का बिंदु एवं प्रतीक है, तो न सिर्फ स्त्रियों को ही आगे बढ़ कर झंडा उठाना है  अपितु निश्चय ही पुरुष का भी और अधिक दायित्व होजाता है कि हर प्रकार से समन्वयकारी नीति अपनाकर अपने अर्ध-भाग को आगे बढ़ने में सहायता करें तभी समाज आगे बढ़ पायगा ।