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गुरुवार, 26 जनवरी 2012

अमृता प्रीतम की कहानी में व्यक्त वर्तमान रेगिस्तान माननीय उच्च न्यायालय के दरवाजे तक

महानगरीय संस्कृति में सुविधाभोगी समाज में पनपते जायज नाजायज रिश्तों की अंतःकथा व्यक्त करता यह वाकया मुझे अमृता प्रीतम की उस कहानी ‘ब्रहस्पतिवार का दिन’ की याद दिला गया जिसमें अमृता ने तथाकथित समाज से यह सवाल किया था कि किसी औरत की पाकीजगीं का ताल्लुक उसके शरीर से ही क्यों लिया जाता है। अमृता जी ने अपनी इस कहानी में अपने बच्चे मन्नू को घर पर अकेला छोडकर अपने धन्धें पर जाती एक काल गर्ल पूजा के मन में पलते मातृत्व को इन शब्दों में व्यक्त किया थाः-
''माँ के गले से लगी बाँहों ने जब बच्चे को आँखों में इत्मीनान से नींद भर दी, तो पूजा ने उसे चारपाई पर लिटाते हुए, पैरों के बल चारपाई के पास बैठकर अपना सिर उसकी छाती के निकट, चारपाई की पाटी पर रख दिया और कहने लगी—‘‘क्या तुम जानते हो, मैंने अपने पेट को उस दिन मन्दिर क्यों कहा था ? जिस मिट्टी में से किसी देवता की मूर्ति मिल जाए, वहाँ मन्दिर बन जाता है—तू मन्नू देवता मिल गया तो मेरा पेट मन्दिर बन गया....’’
और मूर्ति को अर्ध्य देने वाले जल के समान पूजा की आँखों में पानी भर आया, ‘‘मन्नू, मैं तुम्हारे लिए फूल चुनने जंगल में जाती हूँ। बहुत बड़ा जंगल है, बहुत भयानक, चीतों से भरा हुआ, भेड़ियों से भरा हुआ, साँपों से भरा हुआ...’’
और पूजा के शरीर का कंपन, उसकी उस हथेली में आ गया, जो मन्नू की पीठ पर पड़ी थी...और अब वह कंपन शायद हथेली में से मन्नू की पीठ में भी उतर रहा था।

उसने सोचा—मन्नू जब खड़ा हो जाएगा, जंगल का अर्थ जान लेगा, तो माँ से बहुत नफरत करेगा—तब शायद उसके अवचेतन मन में से आज का दिन भी जागेगा, और उसे बताएगा कि उसकी माँ किस तरह उसे जंगल की कहानी सुनाती थी—जंगल की चीतों की, जंगल के भेड़ियों की और जंगल के साँपों की—तब शायद....उसे अपनी माँ की कुछ पहचान होगी।
पूजा ने राहत और बेचैनी का मिला-जुला साँस लिया। उसे अनुभव हुआ जैसे उसने अपने पुत्र के अवचेतन मन में दर्द के एक कण को अमानत की तरह रख दिया हो....
पूजा ने उठकर अपने लिए चाय का एक गिलास बनाया और कमरे में लौटते हुए कमरे की दीवारों को ऐसे देखने लगी जैसे वह उसके व उसके बेटे के चारों ओर बनी हुई किसी की बहुत प्यारी बाँहें हों...उसे उसके वर्तमान से भी छिपाकर बैठी हुई....

पूजा ने एक नज़र कमरे के उस दरवाजे की तरफ देखा—जिसके बाहर उसका वर्तमान बड़ी दूर तक फैला हुआ था....
शहर के कितने ही गेस्ट हाउस, एक्सपोर्ट के कितने ही कारखाने, एअर लाइन्स के कितने ही दफ्तर और साधारण कितने ही कमरे थे, जिनमें उसके वर्तमान का एक-एक टुकड़ा पड़ा हुआ था....
परन्तु आज बृहस्पतिवार था—जिसने उसके व उसके वर्तमान के बीच में एक दरवाज़ा बन्द कर दिया था।
बन्द दरवाज़े की हिफाजत में खड़ी पूजा को पहली बार यह खयाल आया कि उसके धन्धे में बृहस्पतिवार को छुट्टी का दिन क्यों माना गया है ?
इस बृहस्पतिवार की गहराई में अवश्य कोई राज़ होगा—वह नहीं जानती थी, अतः खाली-खाली निगाहों से कमरे की दीवारों को देखने लगी...
इन दीवारों के उस पार उसने जब भी देखा था—उसे कहीं अपना भविष्य दिखाई नहीं दिया था, केवल यह वर्तमान था...जो रेगिस्तान की तरह शहर की बहुत-सी इमारतों में फैल रहा था....
और पूजा यह सोचकर काँप उठी कि यही रेगिस्तान उसके दिनों से महीनों में फैलता हुआ—एक दिन महीनों से भी आगे उसके बरसों में फैल जाएगा।

और पूजा ने बन्द दरवाज़े का सहारा लेकर अपने वर्तमान से आँखें फेर लीं।‘‘

सचमुच अमृता प्रीतम की कहानी में व्यक्त वर्तमान रेगिस्तान शहर की बहुत सी इमारतों से फैलता हुआ आज माननीय उच्च न्यायालय के दरवाजे तक आ पहुंचा था।
यह अजब संयोग ही किलखनऊ शहर बीते ब्रहस्पतिवार को एक अनोखे मुकदमे का साक्षी बना जब घरों में चौका बरतन करने वाली राजाजीपुरम निवासी एक कुंवारी माँ ने अपने बच्चों के पिता का नाम जानने के लिये उच्च न्यायालय लखनऊ में हलफनामा पेश कर दस लोगों का डी0एन0ए0 टेस्ट करवाने की गुहार लगायी। इस कुंवारी मां का दर्द उसके द्वारा माननीय उच्च न्यायालय में प्रस्तुत हलफनामें मे अंकित इन शब्दों में साफ साफ झलकता है-
‘‘मेरे बच्चों के 10 पिता हैं तो मैं किसका नाम दूं। मुझे किसी ने बेटी बहन बीवी और मां नहीं समझा सिर्फ औरत समझा जिसने प्रकृति के गुण दोषों को अपने गर्भ में पालकर उन्हें इन्सान के रूप में निर्माण कर जन्म देने का गुनाह किया है। मेरे बच्चों के दस पिता हैं तौ मैं किसका नाम दूँ। डी0 एन0 ए0 जांच में जवाब खुद ही मिल जायेगा।’’

इस कुंवारी मां के द्वारा माननीय न्यायालय के समक्ष जिन दस व्यक्तियों का डी0एन0ए0 टेस्ट कराने का अनुरोध किया है उनमें एक नामी पत्रकार एक डाक्टर एक वकील तथा एक इंजीनियर और एक ठेकेदार भी शामिल है। इस सूची को देखने के बाद बस एक ही बात मस्तिष्क में गूंजती है कि ‘इस हम्माम में सब नंगे हैं।’ एक कुंवारी मां के सौजन्य से मा0 न्यायालय के सम्मुख पहुचे इस अनोखे मुकदमें में फरवरी माह की 9 तारीख को पुनः सुनवाई होनी है।

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