....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
सखी री ! नव बसन्त आये ।।
जन जन में,
जन जन, मन मन में,
यौवन यौवन छाये ।
सखी री ! नव बसंत आये ।।
पुलकि पुलकि सब अंग सखी री ,
हियरा उठे उमंग ।
आये ऋतुपति पुष्प-बान ले,
आये रतिपति काम-बान ले,
मनमथ छायो अंग ।
होय कुसुम-शर घायल जियरा ,
अंग अंग रस भर लाये ।
सखी री ! नव बसंत आये ।।
तन मन में बिजुरी की थिरकन,
बाजे ताल-मृदंग ।
अंचरा खोले रे भेद जिया के,
यौवन उठे तरंग ।
गलियन गलियन झांझर बाजे ,
अंग अंग हरषाए ।
प्रेम शास्त्र का पाठ पढ़ाने....
काम शास्त्र का पाठ पढ़ाने,
ऋषि अनंग आये ।
सखी री ! नव बसंत आये ।।
सुन्दर गीत ..
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.com
बहुत सुन्दर सृजन , बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत
जवाब देंहटाएंबसंत का मोहक वर्णन किया है आपने बधाई, मेरे ब्लॉग पर स्वागत है|
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रितु जी,निशाजी,प्रेम जी ,शान्ति जी,सन्गीताजी व वन्दना जी...धन्यवाद शुक्ला जी ..
जवाब देंहटाएं---धन्यवाद अतुल जी ....आभार..
बहुत ही बढि़या।
जवाब देंहटाएंतन मन में बिजुरी की थिरकन,
जवाब देंहटाएंबाजे ताल-मृदंग ।
अंचरा खोले रे भेद जिया के,
यौवन उठे तरंग ।
गलियन गलियन झांझर बाजे ,
अंग अंग हरषाए ।
प्रेम शास्त्र का पाठ पढ़ाने....
काम शास्त्र का पाठ पढ़ाने,
ऋषि अनंग आये ।
सखी री ! नव बसंत आये ।।
इस रचना की अर्थ -छटाएं मोहित करतीं हैं शब्द चयन पुलकित करता है अर्थ भाव विभोर करतें हैं .
धन्यवाद ..सदा जी ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद वीरूभाई जी... साहित्यिक समीक्षात्मक टिप्पणी के लिये ....आभार..
सार्थक सन्देश देती अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सन्देश देती , बधाई.
जवाब देंहटाएंक्या आपकी उत्कृष्ट-प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुक्रवारीय चर्चामंच
की कुंडली में लिपटी पड़ी है ??
charchamanch.blogspot.com
dhanyavaad ...amrendr jee...
जवाब देंहटाएंरविकर जी......इस कमेन्ट का अर्थ समझ नहीं आया....? स्पष्ट करें तो पता चले...
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंKAL ki CHARCHA-MANCH ke SUTR Hain ISME--
जवाब देंहटाएंनुक्कड़ पे बक बक करे, ताके नारी वर्ज्य।
भारतीय नारी सिखा, रही अनवरत फर्ज ।
रही अनवरत फर्ज , भाग बेचैन आत्मा।
अंधड़ मस्त विचार , दुनाली करे खात्मा।
‘सज्जन’ सच्चा दोस्त, समय का साया नीरज ।
मो सम कौन कुटिल, नजरिया माँ का धीरज ।।
अच्छी कुन्डली है....
जवाब देंहटाएं-रही अनवरत फर्ज....दोहे में तो फ़िट है क्योंकि त्रितीय चरण से पूर्ण होरही है ( य्द्यपि शुद्ध नहीं है)...पर आगे के रोला में यह अर्धाली ...अर्थहीन वाक्यान्श है ..अतः वर्ज्य है...।
--- आगे शेष चरणों में भी मात्रा दोष हैं...
Jee AAbhaar ||
जवाब देंहटाएंbahut sunder rachana .
जवाब देंहटाएंwww.bhuneshwari.blogspot.com
धन्यवाद भुवनेश्वरी जी ....आभार..
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