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रविवार, 29 जनवरी 2012

सखी री ! नव बसन्त आये ...बसन्त गीत ..डा श्याम गुप्त....

                                         ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...      


सखी री ! नव बसन्त आये ।।

जन जन में, 
जन जन, मन मन में,
यौवन यौवन छाये ।
सखी री ! नव बसंत आये ।।

पुलकि पुलकि सब अंग सखी री ,
हियरा उठे उमंग ।
आये ऋतुपति पुष्प-बान ले,
आये रतिपति काम-बान ले,
मनमथ छायो अंग ।
होय कुसुम-शर घायल जियरा ,
अंग अंग रस भर लाये ।
सखी री ! नव बसंत आये ।।

तन मन में बिजुरी की थिरकन,
 बाजे ताल-मृदंग ।
 अंचरा खोले रे भेद जिया के,
यौवन उठे तरंग ।
गलियन  गलियन झांझर बाजे ,
अंग अंग हरषाए ।
प्रेम शास्त्र का पाठ पढ़ाने....
काम शास्त्र का पाठ पढ़ाने,
ऋषि अनंग आये ।
सखी री !  नव बसंत आये ।।

19 टिप्‍पणियां:

  1. बसंत का मोहक वर्णन किया है आपने बधाई, मेरे ब्लॉग पर स्वागत है|

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  2. धन्यवाद रितु जी,निशाजी,प्रेम जी ,शान्ति जी,सन्गीताजी व वन्दना जी...धन्यवाद शुक्ला जी ..
    ---धन्यवाद अतुल जी ....आभार..

    जवाब देंहटाएं
  3. तन मन में बिजुरी की थिरकन,
    बाजे ताल-मृदंग ।
    अंचरा खोले रे भेद जिया के,
    यौवन उठे तरंग ।
    गलियन गलियन झांझर बाजे ,
    अंग अंग हरषाए ।
    प्रेम शास्त्र का पाठ पढ़ाने....
    काम शास्त्र का पाठ पढ़ाने,
    ऋषि अनंग आये ।
    सखी री ! नव बसंत आये ।।
    इस रचना की अर्थ -छटाएं मोहित करतीं हैं शब्द चयन पुलकित करता है अर्थ भाव विभोर करतें हैं .

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  4. धन्यवाद ..सदा जी ...
    धन्यवाद वीरूभाई जी... साहित्यिक समीक्षात्मक टिप्पणी के लिये ....आभार..

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  5. सार्थक सन्देश देती अच्छी प्रस्तुति

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  6. बहुत सुन्दर सन्देश देती , बधाई.

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  7. क्या आपकी उत्कृष्ट-प्रस्तुति

    शुक्रवारीय चर्चामंच

    की कुंडली में लिपटी पड़ी है ??

    charchamanch.blogspot.com

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  8. dhanyavaad ...amrendr jee...


    रविकर जी......इस कमेन्ट का अर्थ समझ नहीं आया....? स्पष्ट करें तो पता चले...

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  9. KAL ki CHARCHA-MANCH ke SUTR Hain ISME--

    नुक्कड़ पे बक बक करे, ताके नारी वर्ज्य।
    भारतीय नारी सिखा, रही अनवरत फर्ज ।


    रही अनवरत फर्ज , भाग बेचैन आत्मा।
    अंधड़ मस्त विचार , दुनाली करे खात्मा।


    ‘सज्जन’ सच्चा दोस्त, समय का साया नीरज ।
    मो सम कौन कुटिल, नजरिया माँ का धीरज ।।

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  10. अच्छी कुन्डली है....

    -रही अनवरत फर्ज....दोहे में तो फ़िट है क्योंकि त्रितीय चरण से पूर्ण होरही है ( य्द्यपि शुद्ध नहीं है)...पर आगे के रोला में यह अर्धाली ...अर्थहीन वाक्यान्श है ..अतः वर्ज्य है...।
    --- आगे शेष चरणों में भी मात्रा दोष हैं...

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