बेटी किसी भी समाज व परिवार की धरोहर है ,कहा जाता है कि अगर किसी भवन की नींव मजबूत होगी तो भवन भी मजबूत होगा।माॅ बेटी का रिश्ता एक नाजुक स्नेहिल रिश्ता है। प्राचीन काल में धार्मिक मान्यताओं अनुसार बेटी के जन्म पर कहा जाता था कि लक्ष्मी घर आई है,साथ ही बेटी के जन्म को कई पूण्यों का फल माना जाता था ।
मोरारी बापू ने अपने प्रवचन में बेटी को माता-पिता की आत्मा और बेटे को हृदय की संज्ञा दी हेै। हृदय की धडकन तो कभी भी बंद हो सकती है लेकिन बेटी व आत्मा का संबध जन्मजंमातर का रहता है वह कभी अलग नहीं हो सकती है।
यद्यपि आधुनिक युग में माता-पिता के लिए बेटा-बेटी दोनो समान है,लेकिन कुछ रूढिवादी प्रथाओं,अशिक्षा,अज्ञानता व सामाजिक बुराइयों के कारण इसे अनचाही संतान माना जाने लगा है और बेटे और बेटी को समान दर्जा नही दे पाते है। कुछ लोग अपनी कुठित मानसिकता के कारण बेटा स्वर्ग का सौपान और कन्या को नरक का द्धार मानते है।
बेटी परिवार के स्नेह का केन्द्र बिन्दु और कई रिश्तो का मूल होती है।माॅ-बेटी का रिश्ता पारिवारिक रिश्तो की दुनिया मे एक महत्वपूर्ण रिश्ता है क्योंकि माॅ-बेटी का संबध दूध और रक्त दानों का होता है। माॅ ही बेटी की प्रथम गुरू होती है ।माॅ ही बचपन मे अपनी लाड प्यार ममत्व रूपी खाद से बेटी रूपी पौधे को सींचने,तराशने व संवारने का कार्य करती है।एक माॅ का खजाना है उसकी बेटी ,एक माॅ की उम्मीद है उसकी बेटी, एक माॅ का भविष्य है उसकी बेटी, ,एक माॅ का हौसला है उसकी बेटी और एक माॅ का अंतिम सहारा है उसकी बेटी
।
भाई और बहन के प्यार की गहरी जडे भी कभी दुश्मनी मे बदल सकती है,पति-पत्नि के प्यार डगमगाने लगते है,लेकिन एक माॅ का प्यार बेटी के लिए मजबूत दीवार होता है क्योंकि उसकी जडे बहुत गहरी होती है। माॅ-बेटी एक दूसरे के दिल की धडकन होती हैं।विष्वास, कार्यकुशलता, उदारता ,खुली सोच,समझदारी आदि केवल माॅ ही बेटी को उसकी सच्ची सहेली बनकर दे सकती है जो उसके भावी जीवन के लिए उत्रदायी है।
आज बेटियो ने चारो दिशाओे में अपनी उपस्थित दर्ज करा चुकी है इसमे एक माॅ का त्याग,समर्पण लाड दुलार व सख्ती ही जो बेटी के हौसलो को उडान मिल सकी है।
एक माॅ बेटी में अपना प्रतिबिंब तलाशती है,एक माॅ चाहती है कि बेटी उसी की तरह संस्कारो व परम्पराआंे को आगे बढाने में उसकी सहयोगी, हमदर्द सखी सब कुछ बने ।एक माॅ बेटी की सच्ची सहेली की भूमिका को निभाते हुए उसके दिल की गहराई तक पहुचकर उसकी सहयोगी,विष्वासी बनकर उसका वर्तमान व भविष्य का जीवन संवारती है।माॅ अपनी बेटियो को आधुनिक व पुरातन में समन्वय रखते हुये खुला आकाश देती है ताकि वह अपने पंखो को फैलाकर सफलता की नयी उॅचाईयों को छू सके ।
बेटी में कार्यकुशलता का बीजारोपण एक माॅ अच्छी तरह कर सकती है।वह उसे स्ंवय की,घर की स्वच्छता ,घर की सजावट,रसोई व खानपान की जानकारी परिवार की परम्पराओ व रीति रिवाजो पारिवारिक रिष्तो की अहमियत ,आचरण व शालीनता आदि का ज्ञान देती है।
माॅ बेटी को भावी जीवन में आने वाली समस्याओं के बारे में बताती है सुसराल वालो व पति के साथ अपने दायित्वों को निभाने हुये परिवार मे समन्वय स्थापित करने के लिए प्रेरित करती है।
इसी तरह बचपन में एक बेटी अपनी मम्मी की तरह ही दिखना चाहती है उसकी मम्मी की तरह साडी पहनती है माॅ की आदतो की नकल करती है। लेेकिन जैसे-जैसे बडी होती है उसे लगने लगता है माॅ उसकी भावनाऔ को नही समझ रही हैै।लेकिन एक माॅ अपनी बडी होती बेटी के रक्षात्मक रवैया अपनाती है क्योंकि लेखिका सलुजा ने कहा हैकि चिडियो और लडकियो की प्रकृति बडी सौम्य,सरल और निष्छल प्राणी की होती है ये अपनी सरलता व भोलेपन के कारण ही प्रायः अन्याय और शोषण का षिकार हो जाती है। इस लिये बेटी को भी हमेशा अपनी माॅ से खुले रूप से बात करनी चाहिये अपनी पढाई अपने दोस्तो के बारे में ताकि एक माॅ समय के अनुसार बदलकर बेटी को आजादी दे सके,उस पर विश्वास कर सके ।
श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत
मोरारी बापू ने अपने प्रवचन में बेटी को माता-पिता की आत्मा और बेटे को हृदय की संज्ञा दी हेै। हृदय की धडकन तो कभी भी बंद हो सकती है लेकिन बेटी व आत्मा का संबध जन्मजंमातर का रहता है वह कभी अलग नहीं हो सकती है।
यद्यपि आधुनिक युग में माता-पिता के लिए बेटा-बेटी दोनो समान है,लेकिन कुछ रूढिवादी प्रथाओं,अशिक्षा,अज्ञानता व सामाजिक बुराइयों के कारण इसे अनचाही संतान माना जाने लगा है और बेटे और बेटी को समान दर्जा नही दे पाते है। कुछ लोग अपनी कुठित मानसिकता के कारण बेटा स्वर्ग का सौपान और कन्या को नरक का द्धार मानते है।
बेटी परिवार के स्नेह का केन्द्र बिन्दु और कई रिश्तो का मूल होती है।माॅ-बेटी का रिश्ता पारिवारिक रिश्तो की दुनिया मे एक महत्वपूर्ण रिश्ता है क्योंकि माॅ-बेटी का संबध दूध और रक्त दानों का होता है। माॅ ही बेटी की प्रथम गुरू होती है ।माॅ ही बचपन मे अपनी लाड प्यार ममत्व रूपी खाद से बेटी रूपी पौधे को सींचने,तराशने व संवारने का कार्य करती है।एक माॅ का खजाना है उसकी बेटी ,एक माॅ की उम्मीद है उसकी बेटी, एक माॅ का भविष्य है उसकी बेटी, ,एक माॅ का हौसला है उसकी बेटी और एक माॅ का अंतिम सहारा है उसकी बेटी
।
भाई और बहन के प्यार की गहरी जडे भी कभी दुश्मनी मे बदल सकती है,पति-पत्नि के प्यार डगमगाने लगते है,लेकिन एक माॅ का प्यार बेटी के लिए मजबूत दीवार होता है क्योंकि उसकी जडे बहुत गहरी होती है। माॅ-बेटी एक दूसरे के दिल की धडकन होती हैं।विष्वास, कार्यकुशलता, उदारता ,खुली सोच,समझदारी आदि केवल माॅ ही बेटी को उसकी सच्ची सहेली बनकर दे सकती है जो उसके भावी जीवन के लिए उत्रदायी है।
आज बेटियो ने चारो दिशाओे में अपनी उपस्थित दर्ज करा चुकी है इसमे एक माॅ का त्याग,समर्पण लाड दुलार व सख्ती ही जो बेटी के हौसलो को उडान मिल सकी है।
एक माॅ बेटी में अपना प्रतिबिंब तलाशती है,एक माॅ चाहती है कि बेटी उसी की तरह संस्कारो व परम्पराआंे को आगे बढाने में उसकी सहयोगी, हमदर्द सखी सब कुछ बने ।एक माॅ बेटी की सच्ची सहेली की भूमिका को निभाते हुए उसके दिल की गहराई तक पहुचकर उसकी सहयोगी,विष्वासी बनकर उसका वर्तमान व भविष्य का जीवन संवारती है।माॅ अपनी बेटियो को आधुनिक व पुरातन में समन्वय रखते हुये खुला आकाश देती है ताकि वह अपने पंखो को फैलाकर सफलता की नयी उॅचाईयों को छू सके ।
बेटी में कार्यकुशलता का बीजारोपण एक माॅ अच्छी तरह कर सकती है।वह उसे स्ंवय की,घर की स्वच्छता ,घर की सजावट,रसोई व खानपान की जानकारी परिवार की परम्पराओ व रीति रिवाजो पारिवारिक रिष्तो की अहमियत ,आचरण व शालीनता आदि का ज्ञान देती है।
माॅ बेटी को भावी जीवन में आने वाली समस्याओं के बारे में बताती है सुसराल वालो व पति के साथ अपने दायित्वों को निभाने हुये परिवार मे समन्वय स्थापित करने के लिए प्रेरित करती है।
इसी तरह बचपन में एक बेटी अपनी मम्मी की तरह ही दिखना चाहती है उसकी मम्मी की तरह साडी पहनती है माॅ की आदतो की नकल करती है। लेेकिन जैसे-जैसे बडी होती है उसे लगने लगता है माॅ उसकी भावनाऔ को नही समझ रही हैै।लेकिन एक माॅ अपनी बडी होती बेटी के रक्षात्मक रवैया अपनाती है क्योंकि लेखिका सलुजा ने कहा हैकि चिडियो और लडकियो की प्रकृति बडी सौम्य,सरल और निष्छल प्राणी की होती है ये अपनी सरलता व भोलेपन के कारण ही प्रायः अन्याय और शोषण का षिकार हो जाती है। इस लिये बेटी को भी हमेशा अपनी माॅ से खुले रूप से बात करनी चाहिये अपनी पढाई अपने दोस्तो के बारे में ताकि एक माॅ समय के अनुसार बदलकर बेटी को आजादी दे सके,उस पर विश्वास कर सके ।
श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत
सच है एक संस्कारी बेटी ,अच्छे ,मजबूत भविष्य का निर्माण करती है..
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.com
BILKUL SHI BAT.
जवाब देंहटाएंwell written
जवाब देंहटाएंbut this is the country where mothers kill daughters
from ancient times this is happening in India.
माँ और बेटी का रिश्ता शाश्वत होता है।
जवाब देंहटाएंसत्य बचन.....
जवाब देंहटाएं---बेटी ..दो घरों, परिवार, व्यष्टि व समष्टि का सामाजिक सम्मिलन कराती है ताकि विश्वबन्धुत्व को और आगे प्रगति-पथ मिले......निश्चय ही वह मानव का, पुरुष का प्रथम सखा होती है ....
sarthak post....
जवाब देंहटाएं