१.
हे धर्म राज !
वह बंधन में थी
समाज व संस्कार के लिए
दिनरात खटती थी-
गृह-कार्य में
परिवार पति पुरुष की सेवा में |
आज वह मुक्त है ,
बड़ी कम्पनी की सेवा में नियुक्त है ,
स्वेच्छा से दिन-रात खटती है,
कंपनी के लिए,
अन्य पुरुषों के साथ या मातहत रहकर,
कंपनी की सेवा में |
२.
हे भीम !
वह बंधन में थी परिवार के,पारिवारिक शोषण ,हिंसा व,
शिकार के लिए |
आज वह मुक्त है ,
मदरसों, बाज़ारों, क्लबों ,
दफ्तरों व राजनैतिक गलियारों में
शोषण, हिंसा व बलात्कार के लिए |
३.
हे बृहन्नला !
वह दिन रात खटती थी ,पति-पुरुष की गुलामी में ;
आज वह मुक्त है,
सिनेमा, टीवी आर्टिस्ट है ;
दिन देखती है न् रात
हाड़ तोड़ श्रम करती है ,
अंग प्रदर्शन करती है
पैसे की/ पुरुष की गुलामी में |
४.
हे नकुल !
वह बंधन में थी,धर्म संस्कृति सुसंस्कारों की-
धारक का चोला ओढकर ;
अब वह मुक्त है,
लाज व शर्मोहया के वस्त्रों का,
चोला छोडकर |
५.
हे सहदेव !
वह बंधन में थी ,संस्कृति संस्कार सुरुचि के परिधान,
कन्धों पर धारकर ;
अब वह मुक्त है ,
सहर्ष कपडे उतारकर |
६.
माते कुंती !
आपकी बहू बंधन में थी ,बंटकर -
माँ पुत्री पत्नी के रिश्तों में ;
अब वह स्वतंत्र है ,
बांटने के लिए किश्तों में |
७-
हे दुर्योधन !
ठगे रह गए थे तुम, देखकर-" सारी बीच नारी है, या-
नारी बीच सारी है |"
इस युग भी सफल नहीं हो पाओगे ,
साड़ी हीन नारी देख
ठगे रह जाओगे |
८.
सखा कृष्ण !
द्वापर में एक ही दुर्योधन था ,द्रोपदी को बचा पाए थे ;
आज कूचे-कूचे, वन-बाग, गली-चौराहे
दुर्योधन खड़े हैं ,
किस किस को साड़ी पहनाओगे ?
सोचती हूँ , इस बार -
अवतार का जन्म लेकर नहीं आना;
जन जन के मानस में ,
संस्कार बन कर उतर जाना |