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शनिवार, 30 मई 2015

मेरी पहली दोस्त

जब हुआ मेरा सृजन,
माँ की कोख से|
मैं हो गया अचंभा,
यह सोचकर||

कहाँ आ गया मैं,
ये कौन लोग है मेरे इर्द-गिर्द|
इसी परेशानी से,
थक गया मैं रो-रोकर||

तभी एक कोमल हाथ,
लिये हुये ममता का एहसास|
दी तसल्ली और साहस,
मेरा माथा चूमकर||

मेरे रोने पर दूध पिलाती,
उसे पता होती मेरी हर जरूरत|
चाहती है वो मुझे,
अपनी जान से  भी बढ़कर||

उसकी मौजूदगी देती मेरे दिल को सुकून,
जिसका मेरी जुबां पर पहले नाम आया|
पहला कदम चला जिसकी,
उंगली पकड़कर||

http://hindikavitamanch.blogspot.in/2015/05/blog-post_13.html

मंगलवार, 28 जनवरी 2014

गीत ..डा श्याम गुप्त.....



                            गीत का स्वर--
मेरे गीतों में आकर के तुम क्या बसे,गीत का स्वर मधुर- माधुरी होगया ,
अक्षर अक्षर सरस आम्र मन्ज़रि हुआ , शब्द मधु की भरी गागरी होगया॥
 
तुम जो ख्यालों में आकर समाने लगे, गीत मेरे कमल दल से खिलने लगे।
मन के भावों में तुमने जो नर्तन किया,गीत ब्रज की भगति-बावरी होगया॥

प्रेम की भक्ति सरिता में होके मगन मेरे मन की गली तुम समाने लगे।
पन्ना पन्ना सजा प्रेम रसधार में , गीत पावन हो मीरा का पद होगया॥

भाव चितवन के मन की पहेली बने,गीत कविरा का निर्गुण सबद होगया।
तुमने छंदों में सजके सराहा इन्हें , मधुपुरी की चतुर नागरी होगया॥

तुम जो हँस-हँस के मुझको बुलाते रहे,दूर से छलना बन के लुभातीं रहीं।
गीत इठलाके तुम को बुलाने लगे ,मन लजीली कुसुम वल्लरी होगया॥

मस्त में तो यूँही गीत गाता रहा, तुम सजाते रहे, मुस्कुराते रहे।
भाव भंवरा बने गुनगुनाने लगे,गीत का स्वर नवल पांखुरी होगया॥

तुमने कलियों से जो लीं चुरा शोखियाँ,बन के गज़रा कली खिलखिलातीं रहीं।
पुष्प चुनकर जो आँचल में भरने चलीं, गीत पल्लव सुमन आंजुरी होगया॥

तेरे स्वर की मधुर-माधुरी मिल गयी,गीत राधा की प्रिय बांसुरी होगया।
भक्ति के भाव तुमने जो अर्चन किया,गीत कान्हा की प्रिय सांवरी होगया ॥

सोमवार, 30 दिसंबर 2013

नव वर्ष के लिए एक ग़ज़ल...व एक गीत ..... डा श्याम गुप्त ...

                          नववर्ष पर नव-आशा, नव-विचार युत ....मानव संस्कृति व संस्कार के मूल .....प्रेम व  संसृति की नाभि -रूप हेतु प्रस्तुत है एक गीत व एक ग़ज़ल......

एक ग़ज़ल------उन के अश्कों को...



              ग़ज़ल.....
उन के अश्कों को पलकों से चुरा लाये हैं |
उनके गम को हम खुशियों से सजा आये हैं

आप मानें या न मानें यह तहरीर मेरी ,
उनके अशआर ही ग़ज़लों में उठा लाये हैं|

उस दिए ने ही जला डाला आशियाँ मेरा ,
जिसको बेदर्द हवाओं से बचा लाये हैं |

याद करने से भी दीदार न होता उनका,
इश्क में यूंही तड़पने की सजा पाए हैं|

प्यार में दर्द का अहसास कहाँ होता है,
प्यार में ज़ज्ब दिलों को ही जख्म भाये हैं|

प्रीति है भीनी सी बरसात, क्या आलम कहिये,
रूह क्या अक्स भी आशिक का भीग जाए है|

श्याम करते हैं सभी शक मेरे ज़ज्वातों पे,
हम से ही दर्द के नगमे जहां में आये हैं||

                                     --- चित्र गूगल साभार....   

... और एक गीत ....ये दुनिया हमारी सुहानी न होती.....





ये दुनिया हमारी सुहानी न होती,  
कहानी ये अपनी कहानी न होती ।
ज़मीं चाँद -तारे सुहाने न होते
जो प्रिय तुम न होते, अगर तुम न होते।

न ये प्यार होता, ये इकरार होता
न साजन की गलियाँ, न सुखसार होता।
ये रस्में न क़समें, कहानी न होतीं
ज़माने की सारी रवानी न होती ।

हमारी सफलता की सारी कहानी
तेरे प्रेम की नीति की सब निशानी ।
ये सुंदर कथाएं फ़साने न होते
सजनि! तुम न होते,जो सखि!तुम न होते ।

तुम्हारी प्रशस्ति जो जग ने बखानी
कि तुम प्यार-ममता की मूरत-निशानी ।
ये अहसान तेरा सारे जहाँ पर
 तेरे त्याग-दृड़ता  की सारी कहानी ।

ज़रा सोचलो कैसे परवान चढ़ते
हमीं जब न होते, जो यदि हम न होते।
हमीं हैं तो तुम हो सारा जहाँ है
जो तुम हो तो हम है, सारा जहाँ है।

अगर हम न लिखते, अगर हम न कहते
भला गीत कैसे तुम्हारे ये बनते।
किसे रोकते तुम, किसे टोकते तुम
ये इसरार इनकार, तुम कैसे करते ।

कहानी हमारी-तुम्हारी न होती
न ये गीत होते, न संगीत होता।
सुमुखि! तुम अगर जो हमारे न होते
 सजनि! जो अगर हम तुम्हारे न होते॥



                                                              ----- चित्र ..डा श्याम गुप्त