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मंगलवार, 26 नवंबर 2013

श्याम स्मृति- ......बंधन ही स्वतन्त्रता है .....डा श्याम गुप्त.....



 श्याम स्मृति- ......बंधन ही स्वतन्त्रता है .....

            बंधन क्या है, मुक्ति क्या है, स्वतन्त्रता क्या है ? क्या सांसारिक कर्तव्य, कृतित्व, दायित्व बंधन हैं ? गृहस्थी, पारिवारिक सम्बन्ध, आपसी संवंध या स्त्री-पुरुष के प्रेम व विवाह या दाम्पत्य संवंध बंधन हैं ? क्या इन बंधनों से मुक्त व स्वतंत्र होकर जीवन-संगीत का आनंद लिया जा सकता है | क्या स्त्री-पुरुष आपसी बंधनों से मुक्त होकर जीवन-सुख का वास्तविक आनंद उठा सकते हैं|
           नहीं .....जिस प्रकार वीणा के तारों का दोनों छोरों पर बंधन एवं आवश्यक व उपयुक्त कसाव मधुर संगीत के लिए आवश्यक है अन्यथा तारों का कसाव या तनाव अधिक होगा तो टूटने का अवसर रहेगा, तार ढीले होंगे तो संगीत उत्पन्न ही नहीं होगा| उसी प्रकार जीवन है, जीवन व्यवहार, दाम्पत्य-जीवन, स्त्री-पुरुष संवंध के संगीतमय व मधुमय होने हेतु दोनों छोरों पर समुचित बंधन व समुचित दृडता आवश्यक है तभी मानव उन्मुक्त जीवन व्यतीत कर सकता है |

           मुक्ति प्राप्ति की इच्छा या योग व अनुशासन भी तो एक बंधन ही है | योगेश्वर श्रीकृष्ण स्वयं जीवन भर कर्म व पारिवारिक, सांसारिक बंधनों में बंधे रहे ....हाँ लिप्त नहीं रहे जो बंधन व मुक्ति दोनों के लिए ही अत्यावश्यक है ....और योगेश्वर का ही आदेश है गीतामृत रूप में|

           अतः बंधन आवश्यक है, हाँ तारों को दोनों छोरों पर समुचित रूप से कसे हुए होने चाहिए ताकि जीवन पूर्ण स्वतन्त्रता व उन्मुक्तता से जिया जा सके| यही बंधन मानव को अनिर्बन्धित–बंधित करता है, मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है |