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गुरुवार, 4 अगस्त 2011

क्या यह गारंटी दे सकते है ?

क्या रावण ने माता सीता क़ा हरण उनके परिधान देखकर किया था ?अथवा दुश्शासन ने देवी  द्रौपदी  क़ा चीर हरण उनके परिधान देखकर किया था ? या फूलन देवी के साथ अमानुषिक कुकृत्य करने वाले उसकी वेशभूषा को देखकर ऐसा करने के लिए प्रेरित हुए थे ?----सभी क़ा उत्तर मेरी दृष्टि  में ''नहीं'' है फिर क्यों हमारा समाज  बार-बार लड़कियों की वेशभूषा  को लेकर नए-नए सवाल  खड़े करता  रहता  हैं ?कुछ समय पूर्व गाँव भैंसवाल  की बत्तीस खाप ने लड़कियों के मोबाईल फोन रखने को प्रतिबंधित कर एक बहस को जन्म दे दिया था फिर दिनांक  [४-२-२०११] को पंचायत ने लड़कियों के जींस-टॉप व् मिनी स्कर्ट पहनने पर पाबन्दी लगाकर एक और नयी बहस को जन्म दे दिया था .इसी प्रकार दिल्ली में हुई सलट वॉक को लेकर भी पुरुष प्रधान भारतीय समाज में संकीर्ण मानसिकता के लोग सलट वॉक में शामिल युवतियों व् महिलाओं के लिए अभद्र टिप्पणियां कर रहे हैं . इनका  मानना है कि  लड़कियों को पाश्चात्य   सभ्यता से प्रेरित होकर ऐसी वेशभूषा नहीं पहननी   चाहिए इससे छेड़छाड़   की घटनाये बढती है .ये बात तो मै भी मानती हूँ कि ''जैसा देश वैसा भेष ' के आधार पर हमारे गाँव में जींस-टॉप पहने लडकी को एक विचित्र   जीव की भांति देखा जाता है जबकि शहरों में यह स्थिति नहीं है .इसलिए लड़कियों को स्वयं   यह निर्णय लेने दे कि उन्हें कब -कहाँ-कैसे वस्त्र धारण करने हैं? कुछ लड़कियां मात्र आधुनिक दिखने की चाह में या अपने साथ की लड़कियों से अलग दिखनें के लिए ऐसी वेशभूषा धारण करती हैं जो उनके परिवार-समाज की आँखों में चुभने लगती है .लड़कियों को इस ओर खुद ध्यान देना होगा पर ऐसी महिलाओं के प्रति दकयानूसी सोच रखने वाले क्या यह गारंटी दे सकते है कि जींस- टॉप -मिनी स्कर्ट की जगह साडी -सलवार-सूट पहनने वाली लड़की के साथ छेड़छाड़ नहीं होगी!
               शिखा कौशिक 

5 टिप्‍पणियां:

  1. पोशाक जो भी पहनी जाए वो शालीन दिखनी चाहिए..सलीके से जींस-टॉप और स्कर्ट भी पहनी जाए तो बेहद खूबसूरत लगती है...

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  2. मां की राय बहुत अहम है लिबास के बारे में
    बच्चे को उसकी मां बचपन में ही बताती है कि बेटा नंगे मत घूमो। मां ही बच्चे को मौसम के लिहाज़ से कपड़े पहनना सिखाती है। घर में सादा कपड़े पहनाने वाली मां शादी-ब्याह और त्यौहार में अपने बच्चों को बेहतरीन लिबास पहनाती है। वही मां अपनी बेटी को अलग बनावट के कपड़े पहनाती है और बेटों को अलग। लड़के अपनी मां से ही यह सब सीखते हैं। स्त्री देह की नुमाईश के ज़रिये दौलत कूटने वाले लोग तरह तरह से नंगेपन को देश का चलन बना देना चाहते हैं। जिन लोगों को उनसे सहमति है, उन्हें चाहिए कि वे इस देश की मांओं को यह बात समझाएं कि वे अपनी औलाद को बताएं कि कोई कैसे भी रहे और कुछ भी पहने, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। बीस-तीस साल में लोगों की सोच कुछ तो बदल ही जाएगी।
    रह गई बात ड्रेस की तो यह कौन तय करेगा कि किस ड्रेस की शालीनता क्या है ?
    इसमें भी हरेक की अलग अलग पसंद है और जो जिसे पसंद करता है, उसे ही शालीन मानता है।
    किसी भी घटना के बहुत से कारण हो सकते हैं। ऐसे ही बलात्कार के भी बहुत से कारण हुआ करते हैं। स्त्री की नाभि, उसकी पिंडलियां और उसका वक्ष खुला देखकर पुरूष के शरीर में उत्तेजना का संचार होता है। ऐसे में कुछ लोग सामाजिक लोक लाज के भय से या किसी और वजह से अपने मनोभाव का दमन कर देते हैं लेकिन जिन लोगों को सामाजिक लोक लाज या क़ानून का कोई भय नहीं होता और बाहुबल या धनबल पर्याप्त होता है वे नारी की देह से खेल ही लेते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि उत्तेजना तो किसी और की देह को देखकर पैदा हुई और उसकी तृप्ति के लिए वे किसी और को शिकार बना लेते हैं।
    सीता हरण, द्रौपदी का वस्त्र हरण और फूलन के साथ ज़्यादती ये सब राजनीतिक-सामाजिक प्रतिशोध के लिए किये गए थे। इन दो कारणों के अलावा और भी बहुत से कारण हैं जिन्हें जानने के लिए पूरे ग्रंथ की ज़रूरत है।
    बहरहाल एक मां सदा से अपने और अपनी बेटियों के शील की रक्षा करती आ रही है और वस्त्रों के बारे में उसके विचारों को भी महत्व दिया जाना चाहिए।

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  3. मॉडरेशन हटाकर आपने अच्छा किया !

    शुक्रिया !!

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  4. यौन दुराचार एक आंतरिक विकृति है। परन्तु देश,काल और परिस्थिति का ध्यान रखना बुरा नहीं है। कपड़े चुनने की आज़ादी महिलाओं को होनी चाहिए मगर उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि केवल अधनंगापन आधुनिकता नहीं है।

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