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गुरुवार, 4 अगस्त 2011

दलदल


हर देश हर शहर में एक ऐसा दलदल होता है,
जहां लोगों की रातें रंगीन करने वाला हर शख्श कमल होता है.

ये वो दलदल है, जहाँ न कोई न कोई गुलाब होता है.
पर एक बार के लिए ही सही हर आदमी के मन में ऐसे ही किसी कमल का ख्वाब होता है.

सारा जहान इसे एक गन्दा दलदल कहता है,
फिर भी इस दलदल के इन फूलों को अपनी आँखों का काज़ल कौन कहता है?

इस गंदे दलदल से इन सुन्दर कमलों को,
तो हर कोई बहार निकलना चाहता है...
पर कौन है ऐसा, जो इन कमलों को,
साफ़ सुथरी जगह देना चाहता है?

गर ये बाहर आ भी जाएँ, इस घिनौने दलदल से,
तब भी यहाँ हर कोई उन्हें, सिर्फ सजावटी फूल ही मानता है.
ये वो फूल नहीं जिन्हें, भगवान के चरणों में अर्पण किया जाए,
बल्कि इस FAST ज़माने में तो हर कोई इन्हें, बस USE - N - THROW मानता है.

ऐ दुनिया वालों! अपने दिल में झाँक कर देखो जरा...,
फिर मुझसे कहना के तुम्हारे दिल में है कितना गन्दा दलदल भरा?

जो कहा मैंने, वो बात सच है,
ये तुम्हारा और मेरा दिल जानता है. 
आज "महेश" तुमसे सिर्फ इतनी ही भीख मांगता है.

के देनी हो इन कमलों को अगर कोई सुन्दर जगह,
तो निकाल फेंको उस नफरत के बीज को अपने दिलों से,
जो उनके लिए तुमने अपने दिलों में बोया है, बेवजह.



Er. Mahesh Barmate "Maahi"
6th Sep. 2009

2 टिप्‍पणियां:

  1. Mahesh ji -bahut gahri bat uthhai hai aapne .in kamalon ko samman ka jeevan pradan karna har samaj ki prathmikta hono chahiye .sarthak post ke sath is blog par aapka shubhagaman huaa hai .aabhar

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  2. शिखा जी, आपका बहुत बहुत शुक्रिया !

    जब आपका ईमेल मिला भारतीय नारी ब्लॉग पे लिखने के लिए तब से अब तक सोचता था कि आखिर मैं क्या लिखुंगा "नारी" पे...?

    फिर कल अचानक याद आया कि एक कविता लिखी है तो आज मैंने वह कविता यहाँ पोस्ट कर दी...

    आपने इसे पसंद किया, आपका बहुत बहुत धन्यवाद... :)

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