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मंगलवार, 15 मई 2012

सिर या पूंछ ..भाई की ऊँची मूंछ !


सिर या पूंछ  ..भाई की ऊँची  मूंछ  !
[google se sabhar ]
 
भाई   ने  देखा  
बहन  खिड़की  पर  खड़ी थी  ;
गरजते  हुए  बोला  -
''शर्म  नहीं आती ?''
चलो हटो  यहाँ  से  ...
ये  अच्छी  लड़कियों  
का चाल -चलन  नहीं होता ''.

बहन तुरंत  हट  गयी  ;
बहन को लगा उससे बहुत  
बड़ी गलती हो गयी  ,
बहन के हटते  ही भाई 
खुद  खड़ा  होकर   देखने  
लगा आने जाने  वाली  लड़कियों को 
और इंतजार करने लगा 
सामने के घर की खिड़की के 
खुलने का  ;
क्योंकि  वहां  रहती है 
एक  लड़की ..जिसे  देखकर  
आँखे  सेक  लेता  है भाई ;
उस  लड़की के खिड़की पर आते ही 
लगातार घूरता रहता  है उसे  
लड़की   को नहीं ये पसंद  
इसीलिए शायद रहती है
 वो खिड़की बंद ;

तब  कहता है भाई  -
''ये  लड़की  खिड़की  पर  आती  ही  नहीं  
इस  सामने  वाली  लड़की  में   
भरा  है  बहुत  घमंड  !!!!

                   शिखा कौशिक 

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

सच कहूँ .... मुझे अच्छा नहीं लगता !




जब कोई टोकता है 
इतनी उछल कूद
मत मचाया कर 
तू लड़की है 
जरा तो तमीज़ सीख ले  
क्या  लडको  की  तरह  
घूमती -फिरती  है 
सच  कहूँ 
मुझे  अच्छा  नहीं  लगता  !

जब कोई कहता है 
तू लड़की है 
अब बड़ी हो गयी है 
क्या गुड़ियों से खेलती 
रहती है ?
घर के काम काज में 
हाथ बंटाया कर 
सच कहू 
मुझे अच्छा नहीं लगता !

जब कोई समझाता  है 
माँ को 
ध्यान रखा करो इसका 
जवान हो गयी है 
कंही कुछ ऊँच  -नीच 
न कर बैठे 
सच कहूँ 
मुझे अच्छा नहीं लगता !

पिता जी जब हाथ जोड़कर 
सिर-कंधें झुकाकर
लड़के वालों से करते 
हैं मेरे विवाह की बात 
हैसियत से ज्यादा दहेज़ 
देने को हो जाते है तैयार 
सच कहूँ 
मुझे अच्छा नहीं लगता ! 

ससुराल में जब 
सुनती हूँ ताने 
क्या दिया तेरे बाप ने ?
माँ ने कुछ सलीका नहीं सिखाया ?
सच कहूँ 
मुझे अच्छा नहीं लगता !

बेटा जन्मा ...थाल बजे 
उत्सव मनाया गया 
बेटी जन्मी ...मातम 
सा छा गया 
बेटे को दुलारा गया 
बेटी को दुत्कारा गया 
सच कहूँ 
मुझे अच्छा नहीं लगता !

मेरी बेटी भी 
उसकी होने वाली बेटी भी 
क्या यही सब सहती रहेंगी 
बस यही कहती रहेंगी ?
सच कहूँ 
मुझे अच्छा नहीं लगता !
  

मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

ये औरत ही है !


ये औरत ही है !



पाल कर कोख में जो जन्म देकर बनती  है जननी 
औलाद की खातिर मौत से भी खेल जाती है .


बना न ले कहीं अपना वजूद औरत 
कायदों की कस दी  नकेल जाती है .


मजबूत दरख्त बनने नहीं देते  
इसीलिए कोमल सी एक बेल बन रह जाती है .


हक़ की  आवाज जब भी  बुलंद करती है 
नरक की आग में धकेल दी जाती है 





फिर भी सितम  सहकर  वो   मुस्कुराती  है 
ये औरत ही है जो हर  ज़लालत  झेल  जाती  है .


                                          शिखा कौशिक 
                           [vikhyaat  ]