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शुक्रवार, 3 जुलाई 2015

वैदेही सोच रही मन में


वैदेही सोच रही मन  में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते !!
वैदेही सोच रही मन  में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते ,
लव-कुश की बाल -लीलाओं  का आनंद प्रभु संग में लेते .
जब प्रभु बुलाते लव -कुश को आओ पुत्रों समीप जरा ,
घुटने के बल चलकर जाते हर्षित हो जाता ह्रदय मेरा ,
फैलाकर बांहों का घेरा लव-कुश को गोद उठा लेते !
वैदेही सोच रही मन  में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते !!

ले पकड़ प्रभु की ऊँगली जब लव-कुश चलते धीरे -धीरे ,
किलकारी दोनों की सुनकर मुस्कान अधर आती मेरे ,
पर अब ये दिवास्वप्न है बस रोके आंसू बहते-बहते .
वैदेही सोच रही मन  में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते !!

लव-कुश को लाकर उर समीप दोनों का माथा लिया चूम ,
तुम केवल वैदेही -सुत हो ; जाना पुत्रों न कभी भूल ,
नारी को मान सदा देना कह गयी सिया कहते -कहते .
वैदेही सोच रही मन  में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते !!

शिखा कौशिक 'नूतन '

रविवार, 26 अगस्त 2012

''विद्रोही सीता की जय'' लिख परतें इतिहास की खोलूँगी !



''विद्रोही सीता की जय'' लिख परतें इतिहास की खोलूँगी !
Hindu Goddess Sita

त्रेता में राम दरबार सजा ; थी आज परीक्षा सीता की ,
तुम  करो  प्रमाणित  निज  शुचिता थी राजाज्ञा रघुवर की ,
वाल्मीकि  संग खड़ी सिया के मुख पर क्षोभ के भाव दिखे ,
सभा उपस्थित जन जन संग श्री राम लखें ज्यों चित्रलिखे . 
बोली सीता -श्री राम  सुनो  अब और परीक्षा ना दूँगी 
नारी जाति सम्मान हित अपवाद सभी  मैं  सह लूंगी !
 प्रभु आप  निभाएं राजधर्म मैं नारी धर्म निभाऊंगी ;
आज आपकी आज्ञा  का पालन न मैं कर पाऊँगी ,
स्वाभिमानी  नारी बन सब राजदंड मैं भोगूंगी 
नारी जाति सम्मान हित ....
जो अग्नि परीक्षा पहले दी उसका भी मुझको खेद है ,
ये कुटिल आयोजन  बढ़वाते  नर-नारी में भेद हैं ,
नारी विरूद्ध अन्याय पर विद्रोह की भाषा बोलूंगी 
नारी जाति सम्मान हित .......
था नीच अधम पापी रावण जिसने था मेरा हरण किया ,
पर अग्नि परीक्षा ली राजन क्यों आपने ये अपराध किया ?
हर  नारी मुख से  हर युग में ये प्रश्न आपसे पूछूंगी ,
नारी जाति सम्मान हित .....

नारी का यूं अपमान न हो इसलिए त्यागा रानीपद ;
मैने छोड़ा साकेत यूं ही ना घटे कभी नारी का कद ,
नारी का मान बढ़ाने को सब मौन मैं अपने तोडूंगी ,
नारी जाति सम्मान हित ....

अग्नि परीक्षा शस्त्र लगा पुरुषों के हाथ मेरे कारण ;
भावुकता में ये भूल हुई पाप हुआ मुझसे दारुण ,
मत झुकना तुम अन्याय समक्ष सन्देश सभी को ये दूँगी .
नारी जाति सम्मान  हित ....


इस महाभयंकर भूल की मैं दूँगी  खुद को अब यही सज़ा ;
ये भूतल फटे अभी इस क्षण जाऊं इसमें अविलम्ब समा ,
अपराध किया जो मैंने ही दंड मैं उसका झेलूंगी ,
नारी जाति सम्मान हित .....
पुत्री सीता की व्यथा देख फट गयी धरा माँ की छाती ;
बोली ये जग है पुरुषों का नारी उनको कब है भाती  ?
आ पुत्री मेरी गोद में तू तेरे सब कष्ट मिटा  दूँगी .
नारी जाति सम्मान हित .....
सीता के नयनों में उस  क्षण अश्रु नहीं अंगारे  थे ;
विद्रोही सीता रूप देख उर काँप रहे वहाँ सारे थे ,
फिर समा गयी सीता कहकर ये अत्याचार न भूलूंगी .
नारी जाति सम्मान हित ....
नारी धीरज को मत परखो सीता ने ये सन्देश दिया ;
सन्देश यही एक देने को निज प्राणों का उत्सर्ग किया ,
'विद्रोही सीता की जय ''लिख परतें इतिहास की खोलूँगी 
जय सीता माँ की बोलूंगी ..जय सीता माँ की बोलूंगी !