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सोमवार, 3 मार्च 2014

''पति के दिल की आग ने पत्नी को किया राख ''



Assam woman dies of burn wounds, police say she's not the one who kissed Rahul

मीडिया और सियासत यदि आज के परिप्रेक्ष्य देखा जाये तो एक सिक्के के दो पहलू बनकर रह गए हैं .आज की परिस्थितियों में मीडिया पूर्णरूपेण इसी ताक में लगा है कि किसी भी तरह कोई भी मुद्दा सियासी राहों में उछलकर हड़कम्प मचा दिया जाये.कोई वेबसाइट और कोई भी समाचार आज इस समाचार को अपने मुख्य पृष्ठ पर स्थान देने से नहीं चूका कि ''राहुल गांधी को चूमने पर पति ने की हत्या ''.राहुल गांधी आज अपनी कर्मशील कार्यशैली और जगह जगह जाकर जनप्रतिनिधियों से मुलाकात कर उनकी समस्याओं को जानकर उनके निवारण सम्बन्धी कार्यक्रम को अपने दल के घोषणा पत्र में स्थान देने में व्यस्त हैं और उनका यह कार्यक्रम जनता में खासा लोकप्रिय हो रहा है किन्तु मीडिया ये सब नहीं चाहता उसकी चाहत एकमात्र यही है कि ''जिसे मीडिया उभारे जनता उसे ही स्वीकारे '' और इसलिए बार-बार राहुल गांधी का नाम उछालकर उनके अभियान में रुकावटें पैदा करने में लगा है नहीं देख रहा है कि वह अपने मुख्य कर्त्तव्य से इस नाते विमुख हो रहा है जिसका आगाज़ और अंजाम दोनों ही सच्चाई और ईमानदारी को साथ लेकर अन्याय व् अत्याचार का नाश करने में है .
औरत आरम्भ से ही आदमी द्वारा अपनी संपत्ति की तरह समझी गयी ,गुलाम से बढ़कर उसकी कभी आदमी ने कोई हैसियत होने नहीं दी .आदमी के अनुसार औरत बस उसकी कठपुतली बनकर रहे और अपना कोई अलग अस्तित्व कभी न समझे .सोमेश्वर चुटिया एक ऐसे व्यक्ति का नाम है जिसने पुरुष सत्तात्मक समाज की इसी मानसिकता का प्रतिनिधित्व कर अपनी पत्नी बॉँटी चुटिया को जिन्दा जलाकर मार डाला ,अब इस बात के पीछे ये कहा जा रहा है कि उसने उसे राहुल गांधी के कार्यक्रम में जाने से रोका था ,उसने उसे राहुल गांधी को चूमने के कारण जलाकर मार डाला .पडोसी ये कारण कह रहे हैं तो प्रशासन उसकी वहाँ उपस्थिति से ही इंकार कर रहा है. कोई मतलब नहीं इन बातों का ,मामला सीधा और साफ है पुरुष और नारी का सम्बन्ध ,जिसे नारी द्वारा देवता का दर्जा दिया गया उसी ने नारी को पैर की जूती समझा ,कोई नहीं कह रहा कि क्या हक़ बैठता है पुरुष को नारी को जिन्दा मार देने का ?क्या नारी का जीवनदाता वह है ?अगर नारी का यह आचरण उसे नापसंद है तो वह स्वयं को उससे अलग कर सकता है ,स्वयं का वह जो चाहे कर सकता है किन्तु कोई अधिकार उसे इस बात का नहीं है कि वह उसे इस तरह से या कैसे भी ज़िंदगी से महरूम कर दे ,पर कहीं भी यह आवाज़ नहीं उठायी जा रही है .वही मीडिया जो नारी सशक्तिकरण के लिए कभी बेटी ही बचाएगी जैसे अभियान चलाता है ,तो कभी मोमबत्ती जलाकर सोये समाज को जागने के लिए ललकारता है वह ऐसे मामले में सही पथ का अनुसरण क्यूँ नहीं करता ?क्यूँ नहीं इस समाचार का शीर्षक ''पति द्वारा पत्नी की जलाकर हत्या ''रखा गया ?पत्नी वह जो कि सामान्य घरेलू महिला न होकर बेकाजन ग्राम पंचायत की पार्षद थी ,क्यूँ मीडिया को नहीं दिखी यहाँ विकास की राहों पर कदम बढ़ाती पत्नी के लिए पति ईर्ष्या ?समाचार का शीर्षक कहें या मामले का एकमात्र सत्य ,वह यही है कि ''पति के दिल की आग ने पत्नी को किया राख ''क्यूँ मीडिया ने इस सत्य को नहीं स्वीकारा ?क्यूँ नहीं कहा कि आदमी को तो बस एक बहाना चाहिए औऱत पर कहर ढाने का और औरत जहाँ चूक जाती है वहाँ ऐसा ही अंजाम पाती है और हद तो ये है कि ऐसे समय पर हर वह ऊँगली जिसे किसी को निशाना बनाना हो वह उस तरफ उठकर अपना उल्लू सीधा कर जाती है और यही यहाँ हो रहा है .पुरुष के दमनात्मक रवैये की शिकार औरत की हालत का जिम्मेदार राहुल गांधी को बनाकर अपना उल्लू ही तो सीधा किया जा रहा है .
''औरत पे ज़ुल्म हो रहे ,कर रहा आदमी ,
सच्चाई को कुबूलना ये चाहते नहीं .
गैरों के कंधे थामकर बन्दूक चलाना
ये कर रहे हैं काम ,मगर मानते नहीं .''
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

धिक् ! मात्र पुरुष की गन्दी सोच

NCP woman leader nirbhaya was responsible for her rape
दामिनी गैंगरेप कांड और इसके पहले हुए बलात्कार और इसके बाद निरंतर हो रहे बलात्कारों ने देश में एक बहस सी छेड़ दी है और अधिकांशतया ये बहस एक ही कोण पर जाकर ठहर जाती है और वह कोण है नारी विरोध ,नारी से सम्बंधित जितने भी अपराध हैं उन सबमे एक ही परंपरा रही है नारी को ही जिम्मेदार ठहराने की .ये पहली और आखिरी पीड़ित होती है जो स्वयं ही अपराधी भी होती है .ऐसा नहीं है कि मात्र पुरुष ही नारी पर दोषरोपण करते हैं नारी भी स्वयं नारी पर ही दोष मढ़ती है और इसी कड़ी में एक नया नाम जुड़ा है महाराष्ट्र महिला आयोग की सदस्य और एन.सी.पी. नेता डॉ.आशा मिर्गी का ,जो कहती हैं कि नारी के साथ हो रहे इस अपराध के तीन ही कारण हैं -१-उसके अनुचित कपडे ,२-उसका अनुचित व्यवहार और ३- उसका अनुचित जगहों पर जाना ,बहुत गहराई से शोध किया गया है बलात्कार के कारणों का डॉ.आशा मिर्गी के कथन से तो यही लगता है और आश्चर्य है कि ऐसा वे तब कह रही हैं जब वे महाराष्ट्र जैसे राज्य की निवासी हैं जहाँ इस तरह के अपराधों की संख्या देश में सबसे ज्यादा होनी चाहिए क्योंकि उनके हिसाब से अनुचित कपडे ,अनुचित व्यव्हार व् अनुचित जगहों पर जाना इस अपराध का मूल कारण है तो महाराष्ट्र की राजधानी मुम्बई ,मुम्बई में बॉलीवुड और बॉलीवुड की हीरोइन जो इन सभी कार्यों में लिप्त हैं तब तो बलात्कार की संख्या सर्वाधिक भारत में यहीं होनी चाहिए जबकि आंकड़े तो कुछ और ही कहते हैं -

[Maximum rapes in India recorded in this state

Maximum rapes in India recorded in this state
Madhya Pradesh reported the highest number of rape cases (3,406) accounting for 14.1 per cent of total such cases reported in the country.
Rape cases have been further categorised as incest rape and other. Incest rape cases have decreased by 7.3 per cent from 288 cases in 2010 to 267 cases in 2011 as compared to 9.2 per cent increase in overall rape cases.
Maharashtra (44 cases) has accounted for the highest (15.3 per cent) incest rape cases.][एन.डी.टी.वी .से साभार ]
उपरोक्त आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश में ये संख्या सर्वाधिक है महाराष्ट्र में नहीं ,फिर क्या डॉ.आशा मिर्गी ने उन्हें अपने शोध में सम्मिलित करते हुए ये विचार व्यक्त किये हैं या उन्हें भी यहाँ वैसे ही दरकिनार कर दिया है जैसे अपने सतही शोध में वास्तविक कारणों को .
बलात्कार आज हमारे देश ही क्या विश्व की समस्या बन चूका है ,न केवल भारत बल्कि सम्पूर्ण विश्व की नारी इस अपराध को झेल रही है .जब मिस वर्ल्ड की प्रतियोगिता में शामिल होने जा रही प्रतिभागी तक को ये झेलना पड़ता है तब इस अपराध के विश्वव्यापी होने को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता ,अंतर सिर्फ ये है कि वह प्रतिभागी तब भी उस प्रतियोगिता में भाग लेती है और विजयी होती है और भारत भारत में बलात्कार की शिकार नारी का तो मानो जीवन ही समाप्त हो जाता है क्योंकि भारत के बाहर यह एक अपराध है इसमें नारी का दोष नहीं ढूँढा जाता किन्तु भारत में ये अपराध होने पर सर्वप्रथम नारी को ही कलंकित करना शुरू कर दिया जाता है अपराधी बना दिया जाता है .
सभी ये मानते हैं कि लड़कियों को सही कपडे पहनने चाहियें ,सही व्यवहार रखना चाहिए ,सही जगहों पर जाना चाहिए किन्तु क्या कोई भी यह कह सकता है कि आज बलात्कार हर तरह से गलत लड़की के साथ हो रहे हैं यदि ऐसा है तो बॉलीवुड की कोई हेरोइन ,डैली सोप की अभिनेत्री ,मॉडल आदि तो इस अपराध से बच ही नहीं सकती क्योंकि वे तो हर तरह से गलत कपडे पहनती हैं ,गलत व्यवहार के रूप में हर तरह के गलत हाव-भाव का प्रयोग करती हैं और ऐसी गलत जगहों पर जाती हैं जहाँ यौन शोषण एक आम बात है ,जब दूरदर्शन जैसे राष्ट्रीय चैनल पर खुलेआम नगनता, उत्तेजक दृश्यों व् अश्लील व्यवहार सबके सामने हो रहा है -

आलोचना -सामाजिक -दूरदर्शन पर खुलेआम महिला शोषण [contest]

तब अन्य चैनल्स की स्थिति तो सोची भी नहीं जा सकती ऐसे में इस अपराध के मूल कारणों से ध्यान हटाकर नारी पर ही इसका दोषारोपण किया जाना निंदनीय है .
इस अपराध का करने वाला पुरुष है और मात्र एक शरीर नहीं वरन उसकी सोच भी इस अपराध का मूल कारण है .न केवल नारी शरीर से पुरुष अपनी हवस मिटाता है वरन वह मिटाता है इससे सम्बंधित नारी के पिता ,भाई, पति से अपनी रंजिश की प्यास ,वह लेता है बदला उस नारी से अपनी उपेक्षा का ,वह सिखाता है उसे सबक कि उसे नहीं अधिकार पुरुष के एकतरफा प्यार को ठुकराने का और वह दिखाता है उसे उसकी वास्तविक स्थिति कि उसमे नहीं दम इस समाज में अपना प्रतिष्ठापूर्ण स्थान बनाने का और यदि ऐसा नहीं है तो गाँव में चारा काटने गयी ,खेत में पति के लिए भोजन लेकर गयी ,शहरों -कस्बों में स्कूल में पढने-पढ़ाने गयी ,बस में सफ़र कर रही कपड़ों से ढकी छिपी डरी डरी सी लड़कियां क्यूँ खुलेआम बलात्कार का शिकार हो रही अं ?क्यूँ शिकार हो रही हैं वे ज़रा सी बच्चियां जिन्होंने अभी चलना -फिरना बाते करना सीखा ही है ?क्यूँ इनके साथ हो रहे हैं गैंगरेप ?क्या एक लड़की के अनुचित कपडे ,अनुचित व्यवहार ,अनुचित जगह पर जाने मात्र से ५ से ७ लोगों की हवस की भावना या कहूँ वासना इस कदर उबल सकती है कि वे ऐसी घटना को अंजाम दे दें ?
क्यूँ नहीं ऐसे विषयों पर बोलते वक़्त ये हमारे देश समाज के कर्णधार गहराई से अवलोकन करते हैं इन तथ्यों का जो चीख-चीखकर कहते हैं कि ये सब पुरुषों के द्वारा पूर्व नियोजित होता है .यह अचानक से नहीं होता और नारी केवल इसी करना इसका शिकार होती है क्योंकि नारी को प्रकृति ने कमज़ोर बनाया है और उसे इस अपराध से उत्पन्न बीज को ढोने का श्राप दिया है[जो कार्य समाज की मर्यादाओं के अनुसार होने पर नारी के लिए वरदान कहा जाता है वही कार्य ऐसी परिस्थितियों में नारी के लिए श्राप बन जाता है क्योंकि ये साबित करना कि ये बच्चा धर्म युक्त है या धर्म विरुद्ध नारी की ही जिम्मेदारी होती है और ये कार्य उसके लिए ऐसी परिस्थितियों में मुश्किल नहीं तो कठिन अवश्य होता है और उसकी इसी मजबूरी का लाभ पुरुष वर्ग द्वारा एक खेल की तरह उठाया जाता है .]
और बाकी सब ऐसी सोच रखने वाले लोग कर रहे हैं जो पुरुषों की गन्दी सोच का कारण भी नारी को ही बना रहे हैं जबकि इस अपराध का केवल और केवल एक ही कारण है ''पुरुष की गन्दी सोच'' और ये ही वजह भी है बहुत सी जगह नारी के अनुचित कपड़ों,अनुचित व्यवहार व् अनुचित जगहों पर जाने की क्योंकि वह इसी सोच का फायदा उठाने को कभी मजबूरी वश तो कभी तरक्की की चाह में ऐसा करने को आगे बढ़ जाती है .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

शनिवार, 30 नवंबर 2013

पति का धर्म परिवर्तन व् दूसरे विवाह पर हिन्दू महिला का अधिकार


मेरे एक आलेख पर जो कि जब मैं नारी ब्लॉग की सदस्या थी पर मेरे आलेख विवाह विच्छेद /तलाक और महिला अधिकारपर टिप्पणी कर प्राची पाराशर पूछती हैं -
[prachi parashar-
November 28, 2013 at 6:48 PM
after 16 yrs of my happy love merrige life my husband indulge with a muslim widow lady with her 3 own children.now i have stopped crying and put my application in mahila help line .please help me for the further steps .i dont want to live a compromising life .i have my 3 children ,out of which my eldest daughter has compleated her14th and the youngest one is going towards his5th .plz guide me about my rights which i can get if there is any condition of divorce.]
और इनकी समस्या को देखते हुए हिन्दू विधि में निम्न उपचार प्रदान किये गए हैं -
* विवाह विधि संशोधन अधिनियम १९७६ के पश्चात् यदि किसी हिन्दू महिला का पति धर्म परिवर्तन द्वारा हिन्दू नहीं रह गया है तो वह पत्नी तलाक की आज्ञप्ति प्राप्त कर सकती है अर्थात तलाक ले सकती है .धर्म परिवर्तन से तलाक खुद ही नहीं हो जाता इसके लिए उसे याचिका दायर करनी होगी और आज्ञप्ति प्राप्त करनी होगी आज्ञप्ति के बाद ही तलाक होगा .
*साथ ही हिन्दू दत्तक तथा भरण पोषण अधिनियम १९५६ के अंतर्गत वह और उसके बच्चे पोषण के अधिकारी भी हैं .इस अधिनियम की धारा १८ के अधीन पत्नियों को दो प्रकार के अधिकार दिए गए हैं -
१- भरण पोषण ;
२-पृथक निवास का अधिकार .
कोई भी हिन्दू पत्नी बिना पोषण का अधिकार खोये हुए अपने पति से उसके धर्म त्याग के आधार पर पृथक निवास की अधिकरणी होगी .
* इसके साथ ही दंड प्रक्रिया संहिता १९७३ की धारा १२५ भी उसे और उसके बच्चों को ये अधिकार देती है -
दंड प्रक्रिया सहिंता १९७३ की धारा १२५ [१] के अनुसार ''यदि पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति -
[क] अपनी पत्नी का ,जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ है ,
[ख] अपनी धर्मज या अधर्मज अव्यस्क संतान का चाहे विवाहित हो या न हो ,जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ है ,या
[ग] -अपने धर्मज या अधर्मज संतान का [जो विवाहित पुत्री नहीं है ],जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है ,जहाँ ऐसी संतान किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण अपना भरण -पोषण करने में असमर्थ है
भरण पोषण करने की उपेक्षा करता है या भरण पोषण करने से इंकार करता है तो प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ,ऐसी उपेक्षा या इंकार साबित होने पर ,ऐसे व्यक्ति को ये निर्देश दे सकेगा कि वह अपनी ऐसी पत्नी या ऐसी संतान को ऐसी मासिक दर पर जिसे मजिस्ट्रेट उचित समझे भरण पोषण मासिक भत्ता दे .
शालिनी कौशिक
[कानूनी ज्ञान ]

शनिवार, 31 अगस्त 2013

समाज की बलि चढ़ती बेटियां



समाज की बलि चढ़ती बेटियां

'साहब !मैं तो अपनी बेटी को घर ले आता लेकिन यही सोचकर नहीं लाया कि समाज में मेरी हंसी उड़ेगी और उसका ही यह परिणाम हुआ कि आज मुझे बेटी की लाश को ले जाना पड़ रहा है .'' केवल राकेश ही नहीं बल्कि अधिकांश वे मामले दहेज़ हत्या के हैं उनमे यही स्थिति है दहेज़ के दानव पहले लड़की को प्रताड़ित करते हैं उसे अपने मायके से कुछ लाने को विवश करते हैं और ऐसे मे बहुत सी बार जब नाकामी की स्थिति आती है तब या तो लड़की की हत्या कर दी जाती है या वह स्वयं अपने को ससुराल व् मायके दोनों तरफ से बेसहारा समझ आत्महत्या कर लेती है .
सवाल ये है कि ऐसी स्थिति का सबसे बड़ा दोषी किसे ठहराया जाये ? ससुराल वालों को या मायके वालों को ....जहाँ एक तरफ मायके वालों को अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा की चिंता होती है वहां ससुराल वालों को ऐसी चिंता क्यूं नहीं होती ?
इस पर यदि हम साफ तौर पर ध्यान दें तो यहाँ ऐसी स्थिति का एक मात्र दोषी हमारा समाज है जो ''जिसकी लाठी उसकी भैंस '' का ही अनुसरण करता है और चूंकि लड़की वाले की स्थिति कमजोर मानी जाती है तो उसे ही दोषी ठहराने से बाज नहीं आता और दहेज़ हत्या करने के बाद भी उन्ही दोषियों की चौखट पर किसी और लड़की का रिश्ता लेकर पहुँच जाता है क्योंकि लड़कियां तो ''सीधी गाय'' हैं चाहे जिस खूंटे से बांध दो .
मुहं सीकर ,खून के आंसू पीकर ससुराल वालों की इच्छा पूरी करती रहें तो ठीक ,यदि अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठा दें तो यह समाज ही उसे कुलता करार देने से बाज नहीं आता .पति यदि अपनी पत्नी से दोस्तों को शराब देने को कहे और वह दे दे तो घर में रह ले और नहीं दे तो घर से बाहर खड़ी करने में देर नहीं लगाता  .पति की माँ बहनों से सामंजस्य बैठाने की जिम्मेदारी पत्नी की ,बैठाले तो ठीक चैन की वंशी बजा ले और नहीं बिठा पाए तो ताने ,चाटे सभी कुछ मिल सकते हैं उपहार में और परिणाम वही ढाक के तीन पात  रोज मर-मर के जी या एक बार में मर .
ये स्थिति तो तथाकथित आज के आधुनिक समाज की है किन्तु भारत में अभी भी ऐसे समाज हैं जहाँ बाल विवाह की प्रथा है और जिसमे यदि दुर्भाग्यवश वह बाल विधवा हो जाये तो इसी समाज में बहिष्कृत की जिंदगी गुजारती है ,सती प्रथा तो लार्ड विलियम बैंटिक के प्रयासों से समाप्त हो गयी किन्तु स्थिति नारी की  उसके बाद भी कोई बेहतर हुई हो ,कहा नहीं जा सकता .आज भी किसी स्त्री के पति के मरने पर उसका जेठ स्वयं शादी शुदा बच्चों का बाप होने पर भी उसे ''रुपया '' दे घरवाली बनाकर रख सकता है .ऐसी स्थिति पर न तो उसकी पत्नी ऐतराज कर सकती है और न ही भारतीय कानून ,जो की एक जीवित पत्नी के रहते हुए दूसरी पत्नी को मान्यता नहीं देता किन्तु यह समाज मान्यता देता है ऐसे रिश्ते को .
इस समाज में कहीं  से लेकर कहीं तक नारी के लिए साँस लेने के काबिल फिजा नहीं है क्योंकि यदि कहीं भी कोई नारी सफलता की ओर बढती है या चरम पर पहुँचती है तो ये ही कहा जाता है कि सामाजिक मान्यताओं व् बाधाओं को दरकिनार कर उसने यह सफलता हासिल की .क्यूं समाज में आज भी सही सोच नहीं है ?क्यूं सही का साथ देने का माद्दा नहीं है ?सभी कहते हैं आज सोच बदल रही है कहाँ बदल रही है ?जरा वे एक ही उदाहरण सामने दे दे जिसमे समाज के सहयोग से किसी लड़की की जिंदगी बची हो या उसने समाज के सहयोग से सफलता हासिल की हो .ये समाज ही है जहाँ तेजाब कांड पीड़ित लड़कियों के घर जाने मात्र से ये अपने कदम मात्र इस डर से रोक लेता हो कि कहीं अपराधियों की नज़र में हम न आ जाएँ ,कहीं उनके अगले शिकार हम न बन जाएँ और इस बात पर समाज अपने कदम न रोकता हो न शर्म महसूस करता हो कि अपराधियों की गिरफ़्तारी पर थाने जाकर प्रदर्शन द्वारा उन्हें छुडवाने की कोशिश की जाये .
इस समाज का ऐसा ही रूप देखकर कन्या भ्रूण हत्या को जायज़ ही ठहराया जा सकता है क्योंकि -
''क्या करेगी जन्म ले बेटी यहाँ ,
साँस लेने के काबिल फिजा नहीं .
इस अँधेरे को जो दूर कर सके ,
ऐसा एक भी रोशन दिया नहीं .''
शालिनी कौशिक
[एडवोकेट ]

रविवार, 11 अगस्त 2013

अब वह दिन दूर नहीं-पी वी संधू को सलाम

अब वह दिन दूर नहीं जब महिला शक्ति को सलाम करने को ये दुनिया खड़ी होगी 

'' तू अगर चाहे झुकेगा आसमां भी सामने, दुनिया तेरे आगे झुककर सलाम करेगी . जो आज न पहचान सके तेरी काबिलियत कल उनकी पीढियां तक इस्तेकबाल करेंगी .'' 

बधाइयां: सिंधू की कामयाबी से किंग खान भी गदगद

Updated on: Sun, 11 Aug 2013 12:00 PM (IST)
PV Sindhu
बधाइयां: सिंधू की कामयाबी से किंग खान भी गदगद
नई दिल्ली। विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप में बेशक भारतीय युवा खिलाड़ी पीवी सिंधू को सिर्फ कांस्य से संतोष करना पड़ा हो लेकिन उसके बावजूद उन्होंने देश का दिल जीत लिया। आम से लेकर खास तक सभी इस नए सितारे की चमक को सलाम कर रहे हैं।
बॉलीवुड के सुपरस्टार शाहरुख खान अपनी फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस की प्रमोशन और फिल्म को मिली ताजा सफलता के बाद जश्न में व्यस्त जरूर हैं लेकिन फिर भी पीवी सिंधू की इस बेहतरीन सफलता पर वह खुद को रोक नहीं सके और उन्होंने ट्वीट के जरिए अपनी सिंधू को बधाई दी। शाहरुख ने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा, '..और मुबारकबाद सिंधू। तुमने हमें गौरवान्वित किया है। मिस्टर पादुकोण (प्रकाश) ने यह कर दिखाया था और अब तुमने भी। बहुत आगे जाना है..खेलती रहो।' गौरतलब है कि शाहरुख की फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस में उनकी सह-कलाकार अभिनेत्री दीपिका पादुकोण के पिता प्रकाश पादुकोण ने पुरुषों के सिंगल्स मुकाबलों में 1983 के कोपेनहेगन विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक हासिल किया था, उसके बाद 2011 के लंदन संस्करण में महिलाओं के युगल मुकाबलों में ज्वाला गुंट्टा और अश्विनी पोनप्पा की जोड़ी ने भी कांस्य जीता था लेकिन महिलाओं के सिंगल्स में विश्व चैंपियनशिप का पदक जीतने वाली सिंधू पहली खिलाड़ी बन गई हैं।
किंग खान के अलावा बैडमिंटन स्टार अश्विनी पोनप्पा ने भी बधाइयां देते हुए कहा, 'मुझे लगता है कि सिंधू का प्रदर्शन लाजवाब था। महिलाओं के सिंगल्स मुकाबलों में वह ऐसा करने वाली पहली खिलाड़ी बन गई हैं। यह कामयाबी बाकी युवा खिलाड़ियों का मनोबल भी ऊंचा करेगी।' उधर, अश्विनी की जोड़ीदार ज्वाला ने ट्वीट के जरिए अपनी बधाई दी, ज्वाला ने लिखा, 'अइयो..हार्ड लक सिंधू। कुछ नहीं होता, तुम अब भी रॉकस्टार हो। कांस्य के लिए बधाइ।' इसके अलावा खेल मंत्री जितेंद्र सिंह ने भी सिंधू को बधाइ देते हुए कहा, 'ग्वांगझू में जारी विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप में तुम्हारे अद्भुत प्रदर्शन के लिए बधाइ। महिलाओं के सिंगल्स इवेंट में कांस्य जीतकर तुमने देश को गर्व करने का मौका दिया है।' राजनेता दिगविजय सिंह ने भी सिंधू को ट्वीट के जरिए बधाई दी। उन्होंने लिखा, 'शानदार प्रदर्शन सिंधू। उसको और उसके कोच को बधाइ। वह युवा है और लगन के साथ खेलने वाली खिलाड़ी है, उसका भविष्य उज्जवल है।'
गौरतलब है कि सिंधू ने चीन की विश्व में दूसरी वरीयता खिलाड़ी व टूर्नामेंट की डिफेंडिंग चैंपियन जैसी स्टार खिलाड़ियों को हराकर सेमीफाइनल तक का सफर तय किया था, लेकिन सेमीफाइनल में थाइलैंड की विश्व में तीसरी वरीयता प्राप्त खिलाड़ी रत्चानोक इंथानोन ने सिंधू को 10-21, 13-21 से रौंदकर फाइनल में अपनी जगह पक्की कर ली। करोड़ों फैंस का उस समय दिल तो टूटा लेकिन सिंधू की इस सफलता ने आगे लिए उनके रास्ते व उनके मनोबल को और आसान व मजबूत बना दिया है।[दैनिक जागरण से साभार ]
प्रस्तुति-शालिनी कौशिक [एडवोकेट ]

शनिवार, 1 जून 2013

संस्कृति रक्षण में महिला सहभाग

pretty hindu indian woman...editable vector illustration of ...स्मारिका- संस्कृति रक्षण में महिला सहभाग
यूनान ,मिस्र ,रोमां सब मिट गए जहाँ से ,
बाकी अभी है लेकिन ,नामों निशां हमारा .
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी ,
सदियों रहा है दुश्मन ,दौरे ज़मां हमारा .
भारतीय संस्कृति की अक्षुणता को लक्ष्य कर कवि इक़बाल ने ये ऐसी अभिव्यक्ति दी जो हमारे जागृत व् अवचेतन मन में चाहे -अनचाहे विद्यमान  रहती है  और साथ ही इसके अस्तित्व में रहता है वह गौरवशाली व्यक्तित्व जिसे प्रभु ने गढ़ा ही इसके रक्षण के लिए है और वह व्यक्तित्व विद्यमान है हम सभी के सामने नारी रूप में .दया, करूणा, ममता ,प्रेम की पवित्र मूर्ति ,समय पड़ने पर प्रचंड चंडी ,मनुष्य के जीवन की जन्मदात्री ,माता के समान हमारी रक्षा करने वाली ,मित्र और गुरु के समान हमें शुभ कार्यों  के लिए प्रेरित करने वाली ,भारतीय संस्कृति की विद्यमान मूर्ति श्रद्धामयी  नारी के विषय में ''प्रसाद''जी लिखते हैं -
''नारी तुम केवल श्रद्धा हो ,विश्वास रजत नग-पग तल में ,
पियूष स्रोत सी बहा करो ,जीवन के सुन्दर समतल में .''
संस्कृति और नारी एक दूसरे के पूरक कहे जा सकते हैं .नारी के गुण ही हमें संस्कृति के लक्षणों के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं .जैसे भारतीय नारी में ये गुण है  कि वह सभी को अपनाते हुए गैरों को भी अपना बना लेती है वैसे ही भारतीय संस्कृति में विश्व के विभिन्न क्षेत्रों से आई संस्कृतियाँ समाहित होती गयी और वह तब भी आज अपना अस्तित्व कायम रखे हुए है और यह गुण उसने नारी से ही ग्रहण किया है .
   संस्कृति मनुष्य की विभिन्न साधनाओं की अंतिम परिणति है .संस्कृति उस अवधारणा को कहते हैं जिसके आधार पर कोई समुदाय जीवन की समस्याओं पर दृष्टि निक्षेप करता है .''आचार्य हजारी प्रसाद द्वैदी  ''के शब्दों में ,-
''नाना प्रकार की धार्मिक साधनाओं कलात्मक प्रयत्नों और भक्ति तथा योगमूलक अनुभूतियों के भीतर मनुष्य उस महान सत्य के व्यापक और परिपूर्ण रूप को क्रमशः  प्राप्त करता जा रहा है जिसे हम ''संस्कृति''शब्द द्वारा व्यक्त करते हैं .''
    इस प्रकार किसी समुदाय की अनुभूतियों के संस्कारों के अनुरूप ही सांस्कृतिक अवधारणा का स्वरुप निर्धारित होता है .संस्कृति किसी समुदाय,जाति अथवा देश का प्राण या आत्मा होती है ,संस्कृति द्वारा उस जाति ,राष्ट्र अथवा समुदाय के उन समस्त संस्कारों का बोध होता है जिनके सहारे वह अपने आदर्शों ,जीवन मूल्यों आदि का निर्धारण करता है और ये समस्त संस्कार जीवन के समस्त क्षेत्रों में नारी अपने हाथों  से प्रवाहित  करती  है .जीवन के आरम्भ  से लेकर अंत तक नारी की भूमिका संस्कृति के रक्षण में अमूल्य है .
    भारतीय संस्कृति का मूल तत्व ''वसुधैव कुटुम्बकम ''है .सारी वसुधा को अपना घर मानने वाली संस्कृति का ये गुण नारी के व्यव्हार में स्पष्ट दृष्टि गोचर होता है .पूरे परिवार को साथ लेकर चलने वाली नारी होती है .बाप से बेटे में पीढ़ी  दर पीढ़ी संस्कार भले ही न दिखाई दें किन्तु सास से बहू तक किसी भी खानदान के रीति-रिवाज़ व् परम्पराएँ हस्तांतरित होते सभी देखते हैं .
    ''जियो और जीने दो''की परंपरा को मुख्य सूत्र के रूप में अपनाने वाली हमारी संस्कृति अपना ये गुण भी नारी के माध्यम  से जीवित रखते दिखाई देती है .हमारे नाखून जो हमारे शरीर पर मृत कोशिकाओं के रूप में होते हैं किन्तु नित्य प्रति उनका बढ़ना जारी रहता है ..हमारी मम्मी ने ही हमें बताया था कि उनकी दादी ने ही उनको बताया था -''कि नाखून काटने के बाद इधर-उधर नहीं फेंकने चाहियें बल्कि नाली में बहा देना चाहिए .''हमारे द्वारा ऐसा करने का कारण पूछने पर मम्मी ने बताया -''कि यदि ये नाखून कोई चिड़िया खाले तो वह बाँझ हो सकती है और इस प्रकार हम अनजाने में चिड़ियों की प्रजाति के खात्मे के उत्तरदायी हो सकते हैं .''
         इन्सान जितना पैसे बचाने के लिए प्रयत्नशील रहता है शायद किसी अन्य कार्य के लिए रहता हो .हमारी मम्मी ने ही हमें बताया -''कि जब पानी भर जाये तो टंकी बंद कर देनी चाहिए क्योंकि पानी यदि व्यर्थ में बहता है तो पैसा भी व्यर्थ में बहता है अर्थात खर्च होता है व्यर्थ में .
     घरों में आम तौर पर सफाई के लिए प्रयोग होने वाली झाड़ू के सम्बन्ध में दादी ,नानी ,मम्मी सभी से ये धारणा हम तक आई है कि झाड़ू लक्ष्मी स्वरुप होती है इसे पैर नहीं लगाना चाहिए और यदि गलती से लग भी जाये तो इससे क्षमा मांग लेनी चाहिए . और ये भावना नारी की ही हो सकती है कि एक छोटी सी वस्तु का भी तिरस्कार न हो . हमारी संस्कृति कहती है कि ''जैसा व्यवहार आप दूसरों से स्वयं के लिए चाहते हो वही दूसरों के साथ करो .''अब चूंकि सभी अपने लिए सम्मान चाहते हैं ऐसे में नारी द्वारा झाड़ू जैसी छोटी वस्तु को भी लक्ष्मी का दर्जा दिया जाना संस्कृति की इसी भावना का पोषण है वैसे भी ये मर्म एक नारी ही समझ सकती है कि यदि झाड़ू न हो तो घर की सफाई कितनी मुश्किल है और गंदे घर से लक्ष्मी वैसे भी दूर ही रहती हैं .
    हमारी संस्कृति कहती है -
   ''यही पशु प्रवर्ति है कि आप आप ही चरे ,
    मनुष्य है वही कि जो मनुष्य के लिए मरे .''
भूखे को भोजन खिला उसकी भूख शांत करना हमारी संस्कृति में मुख्य कार्य के रूप में सिखाया गया है और इसका अनुसरण करते हुए ही हमारी मम्मी ने हमें सिखाया -''कि तुम दूसरे को खिलाओ ,वह तुम्हे मुहं से दुआएँ दे या न दे आत्मा से ज़रूर देगा .''
      भारतीय संस्कृति की दूसरों की सेवा सहायता की भावना ने विदेशी महिलाओं को भी प्रेरित किया .मदर टेरेसा ने यहाँ आकर इसी भावना से प्रेरित होकर अपना सम्पूर्ण जीवन इसी संस्कृति के रक्षण में अर्पित कर दिया .आरम्भ से लेकर आज तक नर्स की भूमिका नारी ही निभाती आ रही है क्योंकि स्नेह व् प्रेम का जो स्पर्श मनुष्य को जीवन देने के काम आता है वह प्रकृति ने नारी के ही हाथों में दिया है .
    हमारी ये महान संस्कृति परोपकार के लिए ही बनी है और इसके कण कण में ये भावना व्याप्त है .संस्कृत का एक श्लोक कहता  है -
  ''पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः ,
  स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः.
  नादन्ति शस्याम खलु वारिवाहा ,
  परोपकाराय  सताम विभूतयः ."    
    और नारी अपने फ़र्ज़ के लिए अपना सारा जीवन कुर्बान कर देती है .अपना या अपने प्रिय से प्रिय का भी बलिदान देने से वह नहीं हिचकती है .जैसे इस संस्कृति में पेड़ छाया दे शीतलता पहुंचाते हैं नदियाँ प्यास बुझाने के लिए जल धारण करती हैं .माँ ''गंगा ''का अवतरण भी इस धरती पर जन जन की प्यास बुझाने व् मृत आत्माओं की शांति व् मुक्ति के लिए हुआ वैसे ही नारी जीवन भी त्याग बलिदान की अपूर्व गाथाओं से भरा है इसी भावना से भर पन्ना धाय ने अपने पुत्र चन्दन का बलिदान दे कुंवर उदय सिंह की रक्षा की .महारानी सुमित्रा ने इसी संस्कृति का अनुसरण करते हुए बड़े भाइयों की सेवा में अपने दोनों पुत्र लगा दिए .देवी सीता ने इस संस्कृति के अनुरूप ही अपने पति चरणों की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर दिया .उर्मिला ने लक्ष्मण की आज्ञा पालन के कारण अपने नयनों से अश्रुओं को बहुत दूर कर दिया ..
      नारी का संस्कृति रक्षण में सहभाग ऐसी अनेकों कहानियों को अपने में संजोये है इससे हमारा इतिहास भरा है वर्तमान जगमगा रहा है और भविष्य भी निश्चित रूप में सुनहरे अक्षरों में दर्ज होगा .

                              शालिनी कौशिक 
                        [   कौशल ]


                             

शनिवार, 23 मार्च 2013

'इतनी पुरानी औरत से कौन करेगा रेप'

'इतनी पुरानी औरत से कौन करेगा रेप'

Updated on: Sat, 23 Mar 2013 08:04 AM (IST)
Who dare to rape so old woman: ACP
'इतनी पुरानी औरत से कौन करेगा रेप'
देवरिया [जागरण संवाददाता]। देश में महिलाओं के सम्मान को लेकर छिड़ी बहस के बीच देवरिया के अपर पुलिस अधीक्षक की एक टिप्पणी ने रेप की नई परिभाषा गढ़ दी है। शुक्रवार को रेप का मुकदमा दर्ज कराने की फरियाद लेकर पहुंची एक महिला को राहत देने की बजाय उन्होंने सार्वजनिक रूप से यह टिप्पणी करके सनसनी फैला दी कि 'इतनी पुरानी औरत से कौन रेप करेगा।' उनकी इस टिप्पणी पर तीखी प्रतिक्रियाएं हो रही हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों एवं महिला संगठनों ने इसे महिलाओं का अपमान करार देते हुए उन्हें निलंबित करने की मांग की है।
बनकटा थाना क्षेत्र के दलन छपरा गांव की एक विवाहिता के साथ गांव के ही एक युवक ने रेप किया। इस मामले में प्राथमिकी दर्ज न किए जाने से दुखी महिला पति के साथ मंगलवार को अपर पुलिस अधीक्षक केशव चंद्र गोस्वामी से मिलने पहुंची। गोस्वामी महिला से मिले तो जरूर लेकिन रेप की घटना को उन्होंने झुठला दिया। उन्होंने महिला के साथ आए परिवारीजन से पूछा कि उसकी शादी कितने साल पहले हुई? उसके कितने बच्चे हैं? पंद्रह साल पहले शादी होने का जवाब मिलने पर उन्होंने तपाक से टिप्पणी कर दी कि 'इतनी पुरानी औरत के साथ कौन रेप करेगा।' उनकी यह टिप्पणी सुन पीड़िता के परिवारीजन व पत्रकारों के अलावा वहां मौजूद लोग दंग रह गए। बाद में गोस्वामी के बयान पर बवाल मच गया। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ममता शर्मा ने नाराजगी व्यक्त की। जिले के एसपी उमेश कुमार श्रीवास्तव ने बयान के लिए स्पष्टीकरण मांगा है।
विवाद बढ़ता देख पुलिस ने आनन-फानन शुक्रवार शाम को बनकटा थाने में महिला के साथ रेप के बजाय छेड़खानी का मुकदमा दर्ज कर लिया। हालांकि किसी की गिरफ्तारी नहीं की गई है।
एएसपी पर होगी कार्रवाई: एसपी
अपर पुलिस अधीक्षक के बयान को लेकर हंगामा होने की जानकारी मिलने पर पुलिस के उच्चाधिकारी सक्रिय हो गए हैं। पुलिस अधीक्षक उमेश कुमार श्रीवास्तव ने एएसपी को पत्र लिखकर बयान पर स्पष्टीकरण मांगा है। उन्होंने कहा कि उनके बयान के बारे में अलग से जांच की जा रही है। उन्होंने जो कहा है यदि वह सच मिला तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
डीजीपी ने मांगी माफी
लखनऊ। रेप के मामले में पीड़ित महिला से देवरिया के एएसपी केसी गोस्वामी द्वारा अशोभनीय टिप्पणी किए जाने पर डीजीपी एसी शर्मा ने खेद जताते हुए माफी मांगी है। डीजीपी ने आरोपी एएसपी से दो दिनों के भीतर उनका स्पष्टीकरण तलब किया है। आइजी कानून-व्यवस्था आरके विश्वकर्मा ने बताया कि पीड़ित महिला की तहरीर पर रिपोर्ट दर्ज कर ली गई है। वहीं एसपी देवरिया को मामले की जांच सौंपी गई है। उन्होंने कहा कि सीओ से पदोन्नत होकर एएसपी बने अधिकारियों को जनता से बातचीत करने का तरीका भी सिखाया जाएगा।
[दैनिक जागरण से साभार ]
    अब तो भगवान् ही बताये कि कौन है ऐसी कुत्सित घटनाओं का जिम्मेदार ]
                    शालिनी कौशिक 

बुधवार, 13 मार्च 2013

मासूम बच्चियों के प्रति यौन अपराध के लिए आधुनिक महिलाएं कितनी जिम्मेदार? रत्ती भर भी नहीं .

मासूम बच्चियों के प्रति यौन अपराध के लिए आधुनिक महिलाएं कितनी जिम्मेदार? रत्ती भर भी नहीं .

''आंधी ने तिनका तिनका नशेमन का कर दिया ,
पलभर में एक परिंदे की मेहनत बिखर गयी .''
फखरुल आलम का यह शेर उजागर कर गया मेरे मन में उन हालातों को जिनमे गलत कुछ भी हो जिम्मेदार नारी को ठहराया जाता है जिसका सम्पूर्ण जीवन अपने परिवार के लिए त्याग और समर्पण पर आधारित रहता है .किसी भी सराहनीय काम का श्रेय लेने के नाम पर जब सम्पूर्ण समाज विशेष रूप से पुरुष वर्चस्ववादी समाज आगे बढ़ सीना तान कर खड़ा हो जाता है तो समाज में घटती अशोभनीय इन वारदातों का ठीकरा नारी के सिर क्यों फोड़ते हैं ?जबकि मासूम बच्चियां जिस यौन दुर्व्यवहार की शिकार हो रही हैं उसका कर्ता-धर्ता तो पुरुष ही है .
   आधुनिक महिलाएं आज निरंतर प्रगति पथ पर आगे बढ़ रही हैं और ये बात पुरुष सत्तात्मक समाज को फूटी आँख भी नहीं सुहाती और इसलिए सबसे अधिक उसकी वेशभूषा को ही निशाना बनाया जाता है .सबसे ज्यादा आलोचना उसके वस्त्र चयन को लेकर ही होती है .जैसे कि एक पुराने फ़िल्मी गाने में कहा गया-
''पहले तो था चोला बुरका,
   फिर कट कट के वो हुआ कुरता ,
      चोले की अब चोली है बनी
          चोली के आगे क्या होगा ?
ये फैशन यूँ ही बढ़ता गया ,
   और कपडा तन से घटता गया ,
       तो फिर उसके बाद ......''

यौन दुर्व्यवहार के लिए कपड़ों को दोषी ठहराया जा रहा है .यह धारणा भी बलवती की जा रही है कि यदि दो लड़कियां साथ जा रही हैं और उनमे से एक पूरी तरह से ढकी-छिपी हो और दूसरी आधुनिक वस्त्रों में हो तो वह आधुनिक वस्त्रों वाली ही छेड़खानी का शिकार होती है और यदि इसी धारणा पर  विश्वास किया जाये तो दिल्ली गैंगरेप कांड तो होना ही नहीं चाहिए था  क्योंकि उसमे दामिनी के भाई के अनुसार वह लम्बे गर्म ओवरकोट में थी .
    ऐसे में मासूम बच्चियों के साथ यौन दुर्व्यवहार के लिए महिलाओं के आधुनिक होने को यदि उत्तरदायी ठहराने की कोशिश की जाती है तो ये सरासर नाइंसाफी होगी समस्त नारी समुदाय के साथ, क्योंकि बच्चियों के मामले में पहले तो ये मासूम न तो कपड़ों के सम्बन्ध में कोई समझ रखती हैं और न ही यह जानती हैं कि जो व्यवहार उनके साथ किया जा रहा है वह एक गंभीर अपराध है .हम स्वयं देखते हैं कि बच्चे कैसे भी कहीं घूम फिर लेते हैं और खेलते रहते हैं वे अगर इन दुनियावी  बातों में फसेंगे तो बचपन शब्द के मायने ही क्या रह जायेंगे जो जिंदगी के औपचारिक अनौपचारिक तथ्यों से अंजान रहता है और एक शांत खुशहाल समय गुजारता है .
   ऐसे में ये सोचना कि बच्चे ये देखेंगे या महसूस करेंगे कि उनकी वेशभूषा अश्लील है या उत्तेजनात्मक ,मात्र कोरी कल्पना है साथ ही उनके बारे में सोचते हुए उनकी माँ ये सोचेगी कि मेरा बच्चा इस तरह अभद्र लग रहा है और हर वक्त घर में भी उसके कपड़ों को देखती रहेगी तो असम्भव ही कहा जायगा क्योंकि जो बच्चे इसका शिकार हो रहे हैं वे इतने छोटे हैं कि उनके बारे में उनके बड़े ये कल्पना भी नहीं कर सकते कि उनके साथ कोई ऐसा करने की सोच भी सकता है .इतनी छोटी बच्चियों के शरीर भले ही कपड़ों से ढके हो या न ढके हों कभी भी उनकी यौन प्रताड़ना का कारण नहीं होते ,उनकी यौन प्रताड़ना का एकमात्र कारण है ''उनकी मासूमियत ,जिसके कारण वे न तो उस व्यवहार को जान पाते हैं और न ही किसी को उसके बारे में बता पाने की स्थिति में होते हैं .जैसे कि मोबिन धीरज लिखते हैं -
''मुहं से निकले तो ज़माने को पता चलता है ,
घुट के रह जाये जो आवाज कोई क्या जाने .''
बिल्कुल यही कारण है कि वहशी दरिन्दे को अपनी हवस बुझाने के लिए इन बच्चियों के शरीर के रूप में एक महिला का शरीर मिलता है और उसका शिकार वह बच्ची न तो उसका प्रतिरोध ही कर सकती है और न ही उसका अपराध दुनिया के सामने उजागर .

   इसके साथ ही आधुनिक महिलाओं पर यह जिम्मेदारी डाली जा रही है तो ये नितान्त अनुचित है क्योंकि यह कृत्य इन बच्चियों के साथ या तो घर के किसी सदस्य द्वारा ,या स्कूल के किसी कर्मचारी या शिक्षक द्वारा ,या किसी पडौसी द्वारा किया जाता है और ऐसे में ये कहना कि वह उसकी वेशभूषा देख उसके साथ ऐसा कर गया ,पूर्ण रूप से गलत है यहाँ महिलाओं की आधुनिकता का तनिक भी प्रभाव नहीं कहा जा सकता .
    मासूम बच्चियों के प्रति यौन दुर्व्यवहार का पूर्ण रूप से जिम्मेदार हमारा समाज और उसकी सामंतवादी सोच है ,जिसमे पुरुषों के लिए किसी संस्कार की कोई आवश्यकता नहीं समझी जाती ,उनके लिए किसी नैतिक शिक्षा को ज़रूरी नहीं माना  जाता . यह सब इसी सोच का दुष्परिणाम है .ऐसे में समाज में जो थोड़ी बहुत नैतिकता बची है वह नारी समुदाय की शक्ति के फलस्वरूप है और यदि नारी को इसी तरह से दबाने की कोशिशें जारी रही तो वह भी नहीं बचेंगी और तब क्या हल होगा उनकी सहज कल्पना की जा सकती है .इसलिए नारी पर इस तरह से दोषारोपण करने वालो को ''नवाज़ देवबंदी''के इस शेर को ध्यान में रखना होगा -
''समंदर के किसी भी पार रहना ,
    मगर तूफान से होशियार रहना ,
        लगाओ तुम मेरी कीमत लगाओ
             मगर बिकने को भी तैयार रहना .''

शालिनी कौशिक
    [कौशल ]

सोमवार, 3 सितंबर 2012

क्या साहित्य समाज का दर्पण नहीं श्याम गुप्त जी ?


क्या साहित्य समाज का दर्पण नहीं श्याम गुप्त जी ?
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  अभी हाल ही में भारतीय नारी ब्लॉग  पर शिखा कौशिक जी का एक व्यंग्य आलेख प्रकाशित हुआ शीर्षक था 
व्यंग्य आलेख गुजरात के माननीय मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जी की इस टिपण्णी पर था -''कि मध्यवर्गीय लड़कियों को सेहत से ज्यादा सुन्दरता की फ़िक्र होती है .''
शिखा जी ने व्यंग्य आलेख बहुत ही रोचकता के साथ प्रस्तुत किया और साथ ही प्रस्तुत किये वे भाव जो उस तबके के थे जिनके बारे में  नरेंद्र मोदी जी  ने नासमझी से टिप्पणी की थी 
चलिए  ये तो रही पोस्ट की बात इस पोस्ट को सम्मान देते   हुए माननीय रूपचंद शास्त्री जी ने इसे रविवार के चर्चा मंच पर लेने के लिए ये टिप्पणी कर दी -



डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) ने कहा…




बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज रविवार (02-09-2012) के चर्चा मंच पर भी की गयी है!
सूचनार्थ!


-जो कि सामान्य तौर पर वे ब्लॉग  जगत किसी भी उत्कृष्ट प्रविष्टि के लिए करते हैं किन्तु आश्चर्य तब हुआ जब साहित्य सृजन में लगे डॉ.श्याम गुप्त जी ने पोस्ट को लेकर ऐसी टिप्पणी कर दी जिसे ब्लॉग जगत में तो कोई स्वीकार नहीं करेगा 



डा. श्याम गुप्त ने कहा…


----- असभ्य , अलोकतांत्रिक, अशालीन भाषा का प्रयोग नहीं होना चाहिए.. यह ब्लॉग्गिंग के लिए शर्मनाक है....
---और शास्त्रीजी ...इस भाषा में या कथ्य में कौन सा शास्त्र है, सुंदरता है जो इसे चर्चामंच पर सजाया जाए....

१-अपने उपन्यास ''कर्मभूमि '' में मुंशी प्रेमचंद की प्रस्तुति -
''अमर ''ने पीछे फिरकर कहा -''जब यहाँ मुझे  लोग शोहदा और कमीना न समझेंगे.''
-सुखदा कहती है -''उन्होंने मेरे साथ विश्वास घात किया है मैं ऐसे कमीने आदमी की खुशामद नहीं कर सकती .''
२-''कृष्णकली ''में शिवानी की प्रस्तुति -
''जरा कान लगा कर सुनना तो कालोचांद ,तेरी हरामखोर आया किस मूंडी कटे से बाते कर रही है .''
जया अम्मा से -''पहले उस खबीस चोट्टे स्वामीं को कहीं से पकड़ लायी ......''
३''आदमी की निगाह में औरत'' में राजेन्द्र यादव की प्रस्तुति -
''चूड़ियाँ या साड़ियाँ पहनने के ताने देने वाली औरत जब धड़ल्ले से ;;गाली ''''गाली ''जैसी गलियों का इस्तेमाल करती है तो उसे सपने में भी ध्यान नहीं होता कि वह अपना ही अपमान कर रही है ''

अब यदि उपरोक्त प्रस्तुतियों के बारे में भी डॉ.श्याम  गुप्त  जी के वाही  विचार  हैं जो उन्होंने शिखा जी की पोस्ट पर टिप्पणी रूप में किये हैं तो उन्हें नहीं पता कि ''साहित्य समाज का दर्पण होता है  .''और डॉ.रूपचंद शास्त्री जी यही समझते हैं और इसे महत्व देते हैं .इसलिए पहले डॉ.श्याम गुप्त जी को चाहिए कि वे  इस ओर ध्यान दें और फिर  यदि ऐसे  कटु  उद्गार व्यक्त करने ही हैं तो नरेंद्र मोदी जी जैसों के गलत कथनों पर कीजिये न  कि उन्हें आईना दिखाने वाले सत्य  कथनों पर.
                         शालिनी कौशिक