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मंगलवार, 7 मई 2013






परिवर्तन

पहले किसी आदमी को
अकेली जाती लडकी दिख जाती थी
तो वो पूछ्ता था-
कहाँ जाओगी बहन?

फिर एक समय ऐसा भी आया
जब वो पूछ्ने लगा-
कहाँ जाओगी मेरी जान?

पर अब तो वो समय गया है
कि वो उससे कुछ नहीं पूछता
बस, बलपूर्वक उसे साथ ले जाता है
और फिर कुछ ही देर में
उसके ज़िस्मों-दिमाग पर
अपनी क्रूरता के कुछ निशान
और कुछ जख़्म 
हमेशा-हमेशा के लिये छोड़ जाता है

हमारे असभ्य से सभ्य होने की
बस यही कहानी है:
नारी आज़ भी अबला है 
आज़ भी उसके आँचल में दूध
और आँखों में पानी है            
                                                                
(कविता-संग्रह "एक किरण उजाला" से)

सोमवार, 15 अप्रैल 2013







जीवन एक मॉडर्न पेंटिग

जब कभी सोचा
मैंने एकांत में
जीवन मालूम
पड़ा मुझे
किसी मॉडर्न
पेंटिग की तरह
आड़ी-तिरछी लकीरें
एक सुंदर
पहेली के जैसा
जिसे सुलझाने में
शायद
बीत जाये उम्र
और फिर भी
शायद
जो ना सुलझे कभी ∙

शनिवार, 13 अप्रैल 2013






अज्ञानता


बाँटने थे हमें
सुख-दुःख
अंतर्मन की
कोमल भावनाएं
शुभकामनाएं और अनंत प्रेम
पर हम
बँटवारा करने में लग गए
जमीन पानी आकाश हवा
और
लडते रहे
उन्हीं तत्वों के लिए
जो अंततः
साबित हुए मूल्यहीन.