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शनिवार, 19 मार्च 2016

मैं तो खेलूंगी श्याम संग होरी...डा श्याम गुप्त

मैं तो खेलूंगी श्याम संग होरी...

 


                                  




मैं तो खेलूंगी श्याम संग होरी


मैं तो खेलूंगी श्याम संग होरी ...
खेलूंगी बरजोरी..बरजोरी....
मैं तो खेलूंगी श्याम संग होरी ...२ ..||
अब तक बहुत गगरियाँ फोरीं ...x २
छेड़ डगर में बहियाँ मरोरीं |
अब होरी मधु रंग रस छाये....x २ ..
श्याम सखा मोरे मन भाये
पागल तन मन भीगा जाए
चाहे चूनर ही रंग जाए ,
चाहे जले राधा भोरी ...x २ ....

ग्वाल बाल संग कान्हा आये ..x २
ढोल, मृदंग, मजीरे लाये |
बरसाने की डगर सुहाए,
रंग रसधार बहाते आये ...x २ ..
खेलन आये होरी ...
मैं तो खेलूंगी श्याम संग होरी...x २ ||
लकुटि लिए सब सखियाँ खडीं हैं ....x २ ..
सब मनमानी करने अड़ी हैं |
बरसाने की बीच डगर में ..x २ ..
अब न चले बरजोरी ..x २....
मैं तो खेलूंगी श्याम संग होरी ...x २ ...||

भर पिचकारी कान्हा मारे...x २ ..
तन मन के सब मैल उतारे ..x २...
अंतरमन तक भीजें सखियाँ ...x २ ..
भूल गईं सब लकुटि-लकुटियाँ |
भूल गयीं सब राह डगरियाँ,
भूल गयीं सब टूटी गगरियाँ ..x २
भूलीं माखन चोरी ..२
मैं तो खेलूंगी श्याम संग होरी ....x २ ||
माखन चोर रस-रंग बहाए ..x २
होगई मन की चोरी |
तन मन भीगें गोप-गोपिका...x २
भीगे राधा गोरी ...x २
होगई मन की चोरी |
मैं तो खेलूंगी श्याम संग होरी ..x २…
खेलूंगीबरजोरी..बरजोरी... मैं तो खेलूंगी श्याम संग होरी ..x २ ||

शनिवार, 16 अगस्त 2014

ब्रज की भूमि भई है निहाल...डा श्याम गुप्त

ब्रज की भूमि भई है निहाल...

                                   



 


























ब्रज की भूमि भई है निहाल |
सुर गन्धर्व अप्सरा गावें नाचें दे दे ताल |

जसुमति द्वारे बजे बधायो, ढफ ढफली खडताल |

पुरजन परिजन हर्ष मनावें जनम लियो नंदलाल |

आशिष देंय विष्णु शिव् ब्रह्मा, मुसुकावैं गोपाल |

बाजहिं ढोल मृदंग मंजीरा नाचहिं ब्रज के बाल |

गोप गोपिका करें आरती,  झूमि  बजावैं  थाल |

आनंद-कन्द प्रकट भये ब्रज में विरज भये ब्रज-ग्वाल |

सुर दुर्लभ छवि निरखे लखि-छकि श्याम’ हू भये निहाल ||




तेरे कितने रूप गोपाल ।

सुमिरन करके कान्हा मैं तो होगया आज निहाल ।

नाग-नथैया,  नाच-नचैया,  नटवर,  नंदगोपाल 

मोहन, मधुसूदन, मुरलीधर, मोर-मुकुट, यदुपाल ।
चीर-हरैया,    रास -रचैया,     रसानंदरस पाल ।
कृष्ण-कन्हैया, कृष्ण-मुरारी, केशव, नृत्यगोपाल |
वासुदेव, हृषीकेश, जनार्दन, हरि, गिरिधरगोपाल |
जगन्नाथ, श्रीनाथ, द्वारिकानाथ, जगत-प्रतिपाल |
देवकीसुत,रणछोड़ जी,गोविन्द,अच्युत,यशुमतिलाल |
वर्णन-क्षमता  कहाँ 'श्याम की,  राधानंद, नंदलाल |
माखनचोर, श्याम, योगेश्वर, अब काटो भव जाल ||



बाजै रे पग घूंघर बाजै रे ।
ठुमुकि ठुमुकि पग नचहि कन्हैया, सब जग नाचै रे ।
जसुमति अंगना कान्हा नाचै, तोतरि बोलन गावै ।
तीन लोक में गूंजे यह धुनि, अनहद तान गुंजावै ।
कण कण सरसे, पत्ता पत्ता,  हर प्राणी हरषाये  |
कैसे न दौड़ी आयं गोपियाँ घुँघरू चित्त चुराए |
तारी  दे  दे लगीं नचावन, पायलिया छनकैं  |
ढफ ढफली खड़ताल मधुर-स्वर,कर कंकण खनकें |
गोल बनाए गोपी नाचें,  बीच नचें नंदलाल  |
सुर दुर्लभ लीला आनंद मन जसुमति होय निहाल |
कान्हा नाचे ठुम्मक ठुम्मक तीनों लोक नचावै रे |
मन आनंद चित श्याम’, श्याम की लीला गावै रे ||
 

मंगलवार, 10 जनवरी 2012

काहे मुरली श्याम बजाये .......डा श्याम गुप्त का पद......

काहे मुरली श्याम बजाये |
सांझ सवेरे बजे  मुरलिया अति ही रस बरसाए |
रस बरसे मेरा तन मन भीगे अंतरघट सरसाये |
रस भीजै चूल्हे की लकड़ी आग पकड़ नहीं पाए |
फूंक फूंक मेरा जियरा धड़के चूल्हा बुझ बुझ जाए |           
सास  ननद सब ताना मारें, देवर  हंसी  उडाये |,
सजन प्रतीक्षा करे खेत पर भूखा पेट सताए |
श्याम' बने कैसे मेरी रसोई  श्याम उपाय बताये |
बैरिन मुरली  श्याम अधर चढ़ तीनों लोक नचाये ||