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गुरुवार, 6 नवंबर 2014

बॉबी केस और पामेला बोर्डेस


-प्रेम प्रकाश
पामेला बोर्डे स का नाम 1989 और 199० के आसपास जब मीडिया की सुर्खियों में आया था तो दुनिया सिर्फ इस बात पर दंग नहीं थी कि तब की ब्रितानी हुकूमत और वहां की सियासत के साथ मीडिया जगत में अचानक भूचाल आ गया। ...और वह भी एक कॉल गर्ल के कारण। भारत में तो लोग इस बात पर ज्यादा हतप्रभ थे कि इस सेक्स स्केंडल में भारत की एक बेटी का नाम आ रहा है। 
पामेला 1982 में मिस इंडिया चुनी गई थी पर ग्लैमर की जिस दुनिया में वह मुकाम हासिल करना चाह रही थी वह दुनिया उसके आगे देह की नीलामी की शर्त रख देगी ऐसा शायद उसने भी नहीं सोचा था। 1982 वही साल है जब बिहार का बॉबी मर्डर केस सामने आया था। नेताओं और उनके बेटों ने सचिवालय में काम करने वाली एक महिला कर्मचारी को पहले तो हवस का कई बार शिकार बनाया और बाद में जब बात हाथ से निकलती दिखी तो उसका गला घोंट दिया गया। 
दरअसल, पिछले दो-ढाई दशकों में भारत इन मामलों में इतना 'उदार’ जरूर हो गया है कि उसे अब ऐसी सनसनी के लिए सात समंदर पार का दूरी तय करनी पड़े। इस दौरान देश की अर्थव्यवस्था अगर ग्लोबल हुई है तो परिवार, समाज और राजनीति में भी काफी कुछ बदल गया है। कैमरा, मोबाइल और इंटरनेट के दौर में एक तो निजी और सार्वजनिक जीवन का अलगाव मिट गया है, वहीं इससे गोपन के 'ओपन’ का जो संधान शुरू हुआ है, उसने कई दबी और गुह्य सचाइयों को सामने ला दिया। बात अकेले राजनीति की करें तो अंगुलियां कम पड़ जाएंगी गिनने में कि इस दौरान कितने नेताओं और सरकार के हिस्से-पुर्जों की मर्यादित जीवन की कलई खुलने के बाद मुंह ढांपने पर मजबूर होना पड़ा है। हाल के कुछ सालों की बात करें तो भारतीय राजनीतिक यह सर्वाधिक अप्रिय प्रसंग अब आपवादिक नहीं रह गया है। इसके साथ ही स्त्री और राजनीति का साझा भी इस कदर बदल गया है, इसमें गर्व और संतोष करने लायक शायद ही कुछ बचा हो। इस स्थिति की गहराई में जाएं तो हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि सेवा और राजनीति का अलगाव तो बहुत पहले हो गया था। ऐतिहासिक रूप से यह स्थिति जयप्रकाश आंदोलन के भी बहुत पहले आ गई थी। अब तो वही लोग राजनीति में आ रहे हैं जिन्हें चुनाव मैनेज करना आता हो। धनबल और बाहुबल के जोर के आगे चरित्रबल को कौन पूछता है। फिर समाज का अपना चरित्र भी कोई इससे बहुत अलग हो, ऐसा भी नहीं है। टीवी-सिनेमा से लेकर परिवार-समाज तक चारित्रिक विघटन का बोलबाला है।
दुर्भाग्य से भारतीय राजनीति के इस धूमिल अध्याय का पटाक्षेप अभी आसानी से होता तो नहीं लगता। क्योंकि जो स्थिति है उसमें इस चिता को भी पूरी स्वीकृति नहीं है। ऐसे मौकों पर महेश भट्ट जैसे फिल्मकार इस दलील के साथ सामने आते हैं कि जीवन का भीतरी और बाहरी सच अब अलग-अलग नहीं रहा। जो है वह खुला-खुला है, ढंका-छिपा कुछ भी नहीं। नहीं तो ऐसा कभी नहीं रहा है कि संबंध और परिवार की मर्यादा वही रही हो, जैसी दिखाई-बताई जाती रही हो। भट्ट आगे यहां तक कह जाते हैं कि इस स्थिति पर सर फोड़ने के बजाय इसे स्वाभाविक रूप में स्वीकार करना चाहिए। क्योंकि अगर इस स्वीकृति से हमने आदर्श और मर्यादा के नाम पर कोई मुठभेड़ की तो फिर हम सचाई से भागेंगे। यह नंगे सच की चुनौती है। 
(http://puravia.blogspot.in/)

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

भारतीय राजनीति के आकाश में नारियों का योगदान ....डा श्याम गुप्त....



                   भारतीय राजनीति के आकाश में नारियों का योगदान

            यूं तो पुरा-काल, वैदिक काल से लेकर अब तक मानव समाज के अर्धांश भाग- नारी, का समाज के प्रत्येक क्षेत्र में अतुलनीय व असीम योगदान से कोई अनभिज्ञ नहीं है परन्तु इस आलेख का विषय-क्षेत्र मूल रूप से राजनीति की विसात पर नारियों के तपत्याग, बलिदान एवं सक्रिय कर्तत्व पर प्रकाश डालना है|

           पुरा युग जो मानव के विकास व प्रगति का आदिम युग था जिसमें देवों, उपदेव जातियों, दैत्यों व मानवों के विविधि सामाजिक रूप व आपसी सम्बन्ध थे | यहाँ पार्वती एवं सरस्वती ऐसे दो विशिष्ट नाम हैं | संसार की समस्त सभ्यता, नियम, नीति-निर्देश व व्यवहार के प्रदाता वेदों के प्रसार व नियामक एवं अथर्ववेद की रचना कराने वाले भगवान शिव की पत्नी व सलाहकार पार्वती, रणकौशल से युक्त, नीतिज्ञ व शास्त्र-कुशल थीं, जिन्होंने विविध रूपों में युद्धों के सक्रिय संचालन एवं नीति-कुशलता से देवों, दैत्यों व मानवों की प्रगति में सहयोग दिया व प्रत्येक स्तर पर आसुरी शक्तियों का विनाश किया | इसीलिये शिव के ब्रह्म रूप के साथ पार्वती को प्रकृति व आदि-शक्ति कहा गया |

            गन्धर्वों-विद्याधरों द्वारा वेदों के अपहरण पर 'सरस्वती' ने वेदों को पुनर्प्राप्ति हित देवताओं को नीति-कौशल सुझाया कि वे स्त्री लोभी गन्धर्वों-विद्याधरों से उनके बदले वेद प्राप्त करलें तत्पश्चात मैं पुनः देवों के पास लौट आऊँगी | इस प्रकार देवों को धार्मिक एवं राजनैतिक संकट से उबारा गया |

            विश्व की सर्वप्रथम अय्यार,जासूस, डिटेक्टिव, खोजी ...इंद्र की बहन सरमा  ने पणियों द्वारा बृहस्पति की गायों को चुराकर छुपाने के प्रकरण में अपनी कूटनीति व खोजी ज्ञान द्वारा गायों के छुपे होने के स्थान का पता लगाया, तत्पश्चात पणि-समूह का विनाश करके इंद्र द्वारा गायों को पुनः प्राप्त किया गया | 

           तत्कालीन भारत सम्राट महाराज शर्याति की पुत्री, अप्रतिम सौन्दर्य की मलिका सुकन्या ने अपनी भूल व असावधानी से उत्पन्न राजनैतिक संकट से अपने गृह-राज्य व पिता को उबारा | वृद्ध च्यवन ऋषि से विवाह करके एवं जीवन भर उनकी सेवा-श्रुशूषा द्वारा उन्हें पुनः यौवन प्राप्त भी कराया |

           त्रेता युग में कैकेयी, उर्मिला, सीता, मंथरा का राजनैतिक महत्त्व किसी से छुपा नहीं है | शस्त्र-शास्त्र कुशल, नीतिज्ञ कैकेयी ने देवासुर संग्राम में महाराज दशरथ को पराजय से बचाया | वशिष्ठ व राम के साथ कैकेयी की मंत्रणा ही थी जो शक्ति का ध्रुवीकरण करके रावण की पराजय व भारतीय दक्षिणी भूभाग को विजित करने हेतु राम-वनवास का प्रारूप बनी | इस पूरे प्रकरण में प्रत्येक स्तर पर सीता का तप, त्याग, बलिदान की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका रहीपहले सीता-हरण ( कहीं कहीं रावण का वध भी आदि-शक्ति रूप में सीता द्वारा ही किया गया वर्णित है ) फिर अयोध्या परित्याग प्रकरण में लव-कुश के द्वारा अयोध्या के निकट स्थित सबसे बड़े शक्ति-केंद्र वाल्मीकि -आश्रम की समस्त शक्तियों को अयोध्या के हेतु प्राप्त करके अयोध्या को पूर्ण निरापद बनाने में राम की कूटनीति में सहायक होना | इस सब में उर्मिला का लक्ष्मण के साथ न जाकर उन्हें देश-समाज हेतु पूर्ण रूप से मुक्त रखने में किये गए तप-त्याग, रावण के भारतीय विजित प्रदेश दक्षिणी भूभाग एवं उत्तरीय भूभाग की सीमा पर स्थित रक्षिका व सेनापति रूप ताड़का का राजनैतिक वर्चस्व तथा रावण द्वारा पति-ह्त्या की आग में जलती रावण की बहन शूर्पणखा  का रावण को दंड दिलाने हेतु किये गए कृत्य के राजनैतिक महत्त्व को अनदेखा नहीं किया जा सकता |

          द्वापर में भीष्म की शक्ति व कुरुवंश की राजनैतिक शक्ति के बल पर गांधारी की बलि, जिसने महाभारत के युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार की | अम्बा, अम्बालिका व अम्बिका के बलपूर्वक हरण पर अम्बा द्वारा भीष्म से बदली का संकल्प भी राजनीति की बसात पर नारी के बलिदान की कहानी हैद्रौपदी द्वारा दुर्योधन का उपहास एवं चीरहरण के पश्चात उसका संकल्प महाभारत युद्ध एवं पांडवों को श्रीकृष्ण के सहयोग का मूल कारण ही बना जिसने देश के साथ-साथ विश्व राजनीति एवं इतिहास की दिशा ही बदल दी|

          राधा  के महान त्याग जिसने असीम विरह वेदना सहकर भी प्रेम को बंधन न बनाकरकृष्ण को प्रेम-बंधन में न बांधकर अपितु अपने प्रेम को उनकी शक्ति बनाकर मथुरा जाने के लिए प्रेरित किया एवं कर्म से विरत न होने का सन्देश दिया | जिसका ब्रज, पूरे भारत एवं विश्व की राजनीति पर दूरगामी प्रभाव हुआ| जिसे युगों-युगों तक याद किया जाता रहेगा| जिसके कारण कृष्ण, श्रीकृष्ण व भगवान् श्रीकृष्ण हुए एवं गीता के कर्म-योग का ज्ञान विश्व को प्राप्त हुआइसी प्रेम व कर्म के कर्तत्व के कारण राधा, श्रीकृष्ण के साथ युगल रूप में पूज्या बनीं, जो विश्व सभ्यता व संस्कृति के इतिहास में एक अनुपम व अतुलनीय मिशाल है|

       अर्वाचीन काल में शिवाजी की माता जीजाबाई का राजनैतिक प्रभाव व महत्त्व किससे छुपा है| अहल्याबाई होल्कर, महारानी लक्ष्मीबाई, रानी चेनम्मा के शस्त्रों की झनकार, जोधाबाई का वलिदान, पन्ना धाय का त्याग की राजनैतिक बिसात का कम महत्त्व नहीं है |

         आधुनिक युग में नेताजी सुभाष बोस की झांसी रानी रेजीमेंट की केप्टन लक्ष्मी सहगल, स्वतंत्रता संग्राम की राजनीति में श्रीमती सरोजिनी नायडू, विजय लक्ष्मी पंडित, सुचेता कृपलानी आदि का नाम कौन नहीं जानता |

        स्वतन्त्रता पश्चात काल में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की राजनैतिक शक्ति का पूरे विश्व में डंका बजा | आज न जाने कितनी महिलायें मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक, राजनयिक, ग्राम-प्रधान आदि बनाकर देश की राजनीति में अपना वर्चस्व कायम किये हुए हैं, इसे सम्पूर्ण विश्व देख व जान  रहा है |