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रविवार, 13 जनवरी 2019

गौर फरमायें


जब तक रहेगी स्त्री एक देह मात्र ,
नोचीं  जाएगी ऐसे ही
नर-गिद्धों द्वारा |
रोज़ छपेंगी ख़बरें
इंसानियत के शर्मसार होने की ,
और नाचेगी हैवानियत
क्या खूब होगा नज़ारा !!
देह तो देह है
सीधा- सा है इसका गणित ,
सात माह , सत्रह बरस या सत्तर साल ,
कामुक के लिए है बस लूटने का माल |
बनेंगे कानून , छिड़ेगी बहस -बालिग है या नाबालिग ,
फांसी दी जाये या उम्र कैद ,
कटते जायेंगें साल-दर-साल और कामुकता 
का राक्षस किसी और नाम ,रूप, स्थान पर 
कर डालेगा स्त्री-देह को हलाल 
और फिर उठेंगे 
स्त्री के चरित्र ,
उसके पहनावे ,
उसके होने पर ही अजीबोगरीब सवाल ||

                       

  पितृसत्ता जरा गौर फरमाए !

फिर हुआ बलात्कार ,
शुरू हुई छानबीन ,
लड़की ने पहना क्या था ?
लड़की घर से निकली क्यों थी ?
नतीजे आयेगें कुछ इस प्रकार -
लड़कियां बिगड़ती जा रही हैं ,
शर्म-हया बेच कर खा रही हैं ,
कुछ कारगर उपाय बतलाये जायेंगें -
इनसे मोबाइल फोन वापस लिए जाये ,
जींस पहनने पर प्रतिबन्ध लगाया जाये ,
अंत: वस्त्रों का रंग निर्धारित किया जाये ,
लेकिन 
लेकिन 
लेकिन जब  
बलात्कार हुआ हो  सात माह की बच्ची के साथ  ,
तब उस पर क्या-क्या थोपा जाये 
पितृसत्ता जरा गौर फरमाए !!!

                    -डॉ शिखा कौशिक 'नूतन'...

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

रहन सहन एवं यौन अपराध व बलात्कार.......डा श्याम गुप्त ..




 





               If  this is the situation, this is the innovation & pretty pictures & the same is taught, told & displayed in schools ..colleges & their functions.. then forget that rapes & crimes will be controlled in country and society....

                 यदि यह  वस्तुस्थिति  एवं यही नवीनता, नवीन वैचारिकता है जिसे  स्कूलों, कालेजों में यह सिखाया, पढ़ाया, बताया एवं  दिखाने व कार्यक्रमों का भाग होता रहा तो आप भूल जाएँ कि देश व समाज में बलात्कार, यौन शोषण एवं स्त्रियों के प्रति अपराध कम होंगे .....

                                                                   ---     चित्र -- टाइम्स ऑफ़ इंडिया

शनिवार, 26 जनवरी 2013

दोष मेरा है...कविता ...... डा श्याम गुप्त ...


  आज जब मैं हर जगह ,
छल द्वंद्व द्वेष पाखण्ड झूठ ,
 अत्याचार व अन्याय -अनाचार
को देखता हूँ ;
उनके कारण और निवारण पर ,
विचार करता हूँ ,
तो मुझे लगता है कि -
दोषी मैं ही हूँ ,
सिर्फ़ मैं ही हूँ ।

क्यों मैं आज़ादी के पचास वर्ष बाद भी
अंग्रेज़ी में बोलता हूँ ,
राशन की दुकान पर बैठ कर ,
झूठ बोलता हूँ , कम तोलता हूँ |

क्यों मैं बैंक के लाइन में लगना
अपनी हेठी समझता हूँ ,
येन केन  प्रकारेण  ,
पीछे से काम कराने को तरसताहूँ |

क्यों मैं 'ग्रेपवाइन''ब्लोइंग मिस्ट'
 के ही पेंटिंग्स बनाता हूँ ,
'प्रसाद' और 'कालिदास' को भूलकर
शेक्सपीयर के ही नाटक दिखाता हूँ

क्यों मैं सरकारी गाडी में ,
भतीजे की शादी में जाता हूँ,
प्राइवेट यात्रा का भी ,
टीऐ पास कराता हूँ |

क्यों मैं किसी को जन सम्पत्ति -
नष्ट करते देखकर नहीं टोकता हूँ ,
स्वयं भला रहने हेतु
जन-धन की हानि नहीं रोकता हूँ |

क्यों मैं रास्ते रोक कर
शामियाने लगवाता हूँ ,
झूठी शान के लिए
अच्छी -खासी सड़क  बर्वाद कराता हूँ |

क्यों मैं किसी सत्यनिष्ठ व्यक्ति को देखकर,
नाक-मुंह सिकोड़ लेता हूँ ,
सामने ही अपराध, भ्रष्टाचार ,लूट-खसोट , बलात्कार
होते देख कर भी मुंह मोड़ लेता हूँ

क्यों मैं कलेवा की जगह ब्रेकफास्ट
खाने की जगह लंच उडाता हूँ ,
राम नवमी की वजाय, धूम धाम से
वेलेंटाइन डे मनाता हूँ |

क्यों मैं रिश्वत के पहिये को
और आगे बढाता हूँ,
एक जगह लेता हूँ-
छत्तीस जगह देता हूँ |

क्यों मैं भ्रष्ट लोगों को वोट देकर
भ्रष्ट सरकार बनाता हूँ ,
अपने कष्टों की गठरी
अपने हाथों उठाता हूँ |

क्यों मैंने अपना संविधान
अन्ग्रेजी में बनाया ,
जो अधिकांश जन समूह की
समझ में ही न  आया |

आप लड़िये या झगडिये ,
दोष चाहे एक दूसरे पर मढिये ,
दोष इसका है न उसका है न तेरा है ,
मुझे शूली पर चढादो ,
दोष मेरा है।