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रविवार, 5 अगस्त 2012

50 लाख पन्नों पर लिखी दोस्ती

- प्रेम प्रकाश
प्यार और दोस्ती जीवन से जुड़े ऐसे सरोकार हैं जिनको निभाने के लिए हमारी आपकी फिक्रमंदी भले कम हुई हो पर इसे उत्सव की तरह मनाने वाली सोच बकायदा संगठित उद्योग का रूप ले चुका है। दिलचस्प यह भी है कि कल तक लक्ष्मी के जिन उल्लुओं की चोंच और आंखें सबसे ज्यादा परिवार और परंपरा का दूध पीकर बलिष्ठ हो रहे संबंधों पर भिंची रहतीं थी, अब वही कलाई पर दोस्ती और प्यार का धागा बांधने का पोस्टमार्डन फंडा हिट कराने में लगे हैं। फ्रेंड और फ्रेंडशिप का जो जश्न पूरी दुनिया में अगस्त के पहले रविवार से शुरू होगा उसके पीछे का अतीत मानवीय संवेदनाओं को खुरचने वाली कई क्रूर सचाइयों पर से भी परदा उठाता है।
फ्रेंडशिप डे या मैत्री दिवस को मनाने का ऐतिहासिक सिलसिला 1935 में तब शुरू हुआ जब यूएस कांग्रेस ने दोस्तों के सम्मान में इस खास दिन को मनाने का फैसला किया। इस फैसले तक पहुंचने के पीछे सबसे बड़ी वजह प्रथम विश्वयुद्ध के वे शर्मनाक अनुभव बनी जिसने देशों के साथ समाज के भीतर संबंधों के सारे सरोकारों को तार-तार कर दिया। इस त्रासद अनुभव को सबने मिलकर अनुभव किया। तभी बगैर किसी हील-हुज्जत के यह सर्वसम्मत राय बनने लगी कि अगर हम संबंधों के निभाने के प्रति समय रहते संवेदनशील जज्बे के साथ सामने नहीं आए तो वह दिन दूर नहीं जब मानव इतिहास का कोई भी हासिल बचा नहीं रख पाएंगे। आलम यह है कि पिछले कई दशकों से  दुनिया के सबसे ताकतवर देश का तमगा हासिल करने वाले देश से मैत्री को उत्सव दिवस के रूप में मनाने की परंपरा आज पूरी दुनिया के कैलेंडर की एक खास तारीख है। दोस्ती का दायरा समाज और राष्ट्रों के बीच ज्यादा से ज्यादा बढ़े इस जरूरत को समझते हुए संयुक्त राष्ट्र ने भी 1997 में एक अहम फैसला लिया। उसने लोकप्रिय कार्टून कैरेक्टर विन्नी और पूह को पूरी दुनिया के लिए दोस्ती का राजदूत घोषित किया।
पिछले दस सालों में दोस्ती का यह पर्व उसी तरह पूरी दुनिया में लोकप्रिय हुआ है जिस तरह वेंलेंटाइन डे। अलबत्ता यह बात जरूर थोड़ी चौकाती है कि सेक्स और सेंसेक्स के बीच झूलती दुनिया में संबंधों को कलाई पर बांधकर दिखाने की रस्मी रिवायत से किसका भला ज्यादा हो रहा है। लेखक राजेंद्र यादव दोस्ती की बात छेड़ने पर अंग्रेजी की एक पुरानी कहावत दोहराते हैं- 'बूट्स एंड फ्रेंडशिप शुड बी पॉलिश्ड रेग्युलरली।' जाहिर है संबंधों को एक दिन के उल्लास और उत्सव की रस्म अदायगी के साथ निपटाने के खतरे को वे बखूबी समझते हैं।
फेंड और फ्रेंडशिप का जिक्र हो रहा हो और बात युवाओं की न हो बात पूरी नहीं होती है। आर्चीज जैसी कार्ड और गिफ्ट बनाने और बेचने वाली कंपनियां इन्हीं युवाओं के मानस पर प्रेम, ख्वाब, यादें और दोस्ती जैसे शब्द लिखकर तो अपनी अंटी का वजन रोज ब रोज बढ़ा रही हैं। फिर बात दोस्ती के महापर्व की हो तो इन युवाओं को कैसे भूला जा सकता है। हाल में टीवी पर दिखाए जा रहे एक शो में जज बने जावेद अख्तर तब तुनक गए जब गायिका वसुंधरा दास ने अपने एक गाने को यूथफूल होने की दलील उनके सामने रखी। जावेद साहब ने थोड़े तल्ख लहजे में उस मानसिकता पर चुटकी ली जिसमें देह की अवधारणा को संदेह से अलगाने की कोशिश हो या किसी बेसिर-पैर के म्यूजिकल कंपोजिशन को मार्डन या यूथफूल ठहराने का कैलकुलेटेड एफर्ट, यूथ सेंटीमेंट की बात छेड़कर सब कुछ जायज और जरूरी ठहरा दिया जाता है। उनके शब्द थे "इस तरह की दलीलों को सुनकर ऐसा लगता है कि जैसे यूथ कोई 21वीं सदी का इन्वेंशन हो और इससे पहले ये होते ही नहीं थे।' इस  वाकिए को सामने रखकर यह समझने में थोड़ी सहुलियत हो सकती है कि नई पीढ़ी को सीढ़ी बनाकर संबंधों के केक काटने वाला बाजार किस कदर अपने मकसद में क्रूर है। यहां यह भूल करने से बचना चाहिए कि नई पीढ़ी की संवेदनशीलता कोरी और कच्ची है। हां, यह जरूर है कि उसके आसपास का वातावरण उससे वह मौका भरसक हथिया लेने में सफल हो रहा है जो निभाए जाने वाले मानवीय सरोकारों को दिखाए जाने वाला रोमांच भर बना रहे हैं।
स्थिति शायद उतनी निराशाजनक नहीं जितनी ऊपर से दिखती है। गूगल सर्च इंजन पर फ्रेंडशिप डे के दो शब्द जो 50 लाख से ज्यादा पन्ने हमारे सामने खोलता है उसमें कई सामाजिक संस्थाओं और दोस्तों के ऐसे समूहों के क्रिया-कलापों का बखान भी बखान भी है जो मानवीय संबंधों को हर तरह की त्रासदी से उबाड़ने में लगे हैं। खुशी की बात यह कि ऐसी पहलों का ज्यादातर हिस्सा युवाओं के हिस्से है। बहरहाल, पूरी दुनिया के साथ भारत भी मैत्री दिवस को मनाने के लिए तैयार है। और उम्मीद की जानी चाहिए कि संबंधों और वचनों के मान के लिए सब कुछ दाव पर लगा देने वाले देश में लोक और परंपरा के साथ आधुनिकता के बीच दोस्ती के नए संकल्प पूरे होंगे।
puravia.blogspot.in

बुधवार, 19 अक्टूबर 2011

जनाना न्याय का उध्बोधन गीत


                                                                                    -प्रेम प्रकाश
(1)
याद आता है
अभिनेता महान का हिट संवाद
मर्द को दर्द नहीं होता जनाब
गूंजती है आवाज
सनसनाहट से भरी एमएमएस क्लिप में
बांग्ला की कुलीन अभिनय परंपरा की बेटी की
आई वांट ए परफेक्ट गाइ  
और फिर उतरने लगते हैं पर्दे पर
एक के बाद एक दृश्य
शालिनी ने लकवाग्रस्त पति को
दिया त्याग रातोंरात
अधेड़ मंत्री के यहां पड़े छापे में मिली
पौरुष शास्त्र की मोटी किताब
वियाग्रे की गोलियां
मुस्टंड मर्दानगी के लिए ख्यात
हकीम लुकमान के लिखे अचूक नुस्खे
मिस वाडिया ने अपनी आत्मकथा में
उड़ाया इंच दर इंच मजाक
अपने सहकर्मी की गोपनीय अंगुली का

(2)
नामर्दों के लिए कोई जगह नहीं
उन्हें नहीं मिलेगी तोशक न मिलेगी रजाई
न वे झूल सकेंगे झूला न बना सकेंगे रंगोली
और न खेल सकेंगे होली
अवैध मोहल्लों के किसी गली-कूचे या मैदान में
 ऊंची एड़ी पर खड़ी दुनिया
 नहीं देखना चाहती किसी नामर्द की शक्ल
अपनी किसी संतान में

(3)
मर्द न होना किसी मर्द के लिए 
बिल्कुल वैसा ही नहीं है
जैसा किसी औरत का न होना औरत
स्त्री-पुरुष का लिंग भेद मेडिकल रिपोर्ट नहीं
बीसमबीस क्रिकेट का स्कोर बोर्ड
करता है जाहिर
पुरुष इस खेल को सबसे तेज और
जोरदार खेलकर ही साबित हो सकते हैं जवां मर्द
और तभी मछली की तरह उतरेगी
उसके कमरे में कैद तलाब में कोई औरत

(4)
मर्दाना पगड़ी की कलगी खिलती रहे
अब ये चाहत नहीं चुनौती है पुरुषों के आगे
उसे हर समय दिखना होगा
सख्त और मुस्तैद
नहीं तो सुनना पड़ सकता है ताना
वंशी बजाते हुए नाभी में उतर जाने वाले कन्हाई
कहीं पीछे छूट गए
औरतों ने देना शुरू कर दिया है
पुरुष को पौरुष से भरपूर होने की सजा
जिस औजार से गढ़ी जाती थीं  
अब तक मन माफिक मूर्तियां
अब उनका इस्तेमाल मिस्त्री नहीं
बल्कि करने लगे हैं बुत
मैदान वही
बस  योद्धाओं के बदल गए हैं पाले
मर्दाना तर्क जनाना हाथों में
ज्यादा कारगर और उत्तेजक रणनीति है
जैसे को तैसा...
जनाना न्याय का उध्बोधन गीत है             
( http://angikaa.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html)