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गुरुवार, 29 नवंबर 2012

विवाहेतर सम्बन्ध (लेख)



रंजनाजी का अपने पति से तलाक हो गया सुन कर धक्का सा लगा.करीब ४५ वर्षीय रंजनाजी भद्र महिला थीं पति बच्चे सब सुशिक्षित भला सा हँसता खेलता परिवार फिर अचानक ये क्या हुआ?सवाल मन को कचोटता रहा कि पता चला रंजनाजी ने दूसरी शादी कर ली ओर वह दूसरा आदमी किसी भी मायने में उनके पति से उन्नीस ही है लगभग ३ साल से उनका उससे अफेयर चल रहा था.सुनकर हैरानी हुई .अधिक जानकारी जुटाने पर पता चला कि रंजना जी कि मुलाकात उस व्यक्ति से फेस बुक पर हुई थी,ओर उन्ही के बेटे ने उन्हें बोरियत से बचाने के लिए उनका फेस बुक पर अकाउंट बनाया था प्रारंभिक जानपहचान के बाद उनकी घनिष्टता बढ़ती गयी ओर ओपचारिक बातों से बहुत आगे बढ़ कर प्यार मुहब्बत में बदल गयी वह व्यक्ति भी उसी शहर का था ओर जल्द ही कभी कभी होने वाली मुलाकातें एक दूसरे के बिना नहीं रह सकने में तब्दील हो गयी. वह व्यक्ति भी शादीशुदा है ओर इस शादी के लिए उसने भी अपनी पत्नी को बड़ी रकम दे कर उससे छुटकारा पा लिया .
कुछ सालों पहले ऐसे वाकये अख़बार में पढ़े जाते थे ओर वे सभी विदेशों के होते थे.तब अपने यहाँ कि परिवार संस्कृति पर बड़ा मान होता था जिसकी वजह से हमारे यहाँ ऐसे वाकये नहीं के बराबर होते हैं. लेकिन आज ये आम हैं हमारा सामाजिक पारिवारिक परिवेश तेज़ी से बदल रहा है इन परिवर्तनों के साथ आ रहे हैं मूल्यों में बदलाव पारिवारिक व्यवस्था में बदलाव.

आज संयुक्त परिवार तेज़ी से ख़त्म होते जा रहे हैं सामाजिक व्यवस्था नौकरी पर टिकी है जिसके लिए बच्चों को घर से बाहर जाना ही होता है यदि नहीं भी तो भी युवा पीढ़ी बड़े बुजुर्गों के साथ उनकी देख रेख ,टोकाटाकी में रहना पसंद नहीं करती.ये उन्हें अपनी स्वतंत्रता में खलल लगते हैं.ऐसा नहीं है कि इससे परिवार का स्नेह कम ही होता हो लेकिन एक समय के बाद जब बच्चे बड़े हो जाते हैं अपनी पढाई लिखाई में व्यस्त, ऐसे समय में महिलाओं का घर में अकेले समय कटना मुश्किल होता है .पति के पास काम कि व्यस्तता बच्चों कि अपनी अलग दुनिया ऐसे में महिलाओं का सहारा बनती हैं किटी पार्टी क्लब या फेस बुक पर होने वाली दोस्ती. 
आइये देखें कुछ उन कारणों को जिनके चलते महिलाएं अकेलेपन कि शिकार हो कर ऐसे कदम उठाने को विवश हो रही हैं. 

*संयुक्त परिवार ख़त्म हो रहे हैं एकल परिवार के बढ़ते चलन से पति बच्चों के चले जाने के बाद महिलाएं घर में अकेली होती हैं ओर उनका समय काटे नहीं कटता .

*अति व्यस्तता के इस दौर में रिश्ते नातेदारों से भी एक दूरी बन गयी है अतः उनके यहाँ आना जाना मिलना जुलना कम हुआ है साथ ही सहनशीलता में कमी आयी है इसलिए रिश्तेदारों का कुछ कहना या सलाह देना अपनी जिंदगी में एक दखल सा लगता है जिससे उनसे दूरियां बढा लीं जाती हैं.

* विश्वास कि कमी के चलते सामाजिक दायरा बहुत सिमट गया है अब आस पड़ोस  पहले जैसे नहीं रह गए जब किस के घर कौन आ रहा है कि खबर रखी जाती थी या दिन में महिलाएं एक साथ बैठ कर बतियाते हुए घर के काम निबटा लेतीं थीं. इसका एक बड़ा कारण दिनचर्या में बदलाव भी है सबके घरेलू कामों का समय उनके बच्चों के अलग स्कूल टाइम ट्यूशन कि वजह से अलग अलग हो गया है. 

*पति कि अति व्यस्तता इसका एक बड़ा कारण है.अब पहले जैसी १० से ५ वाली नौकरियां नहीं रहीं .अब दिन सुबह ५ बजे से शुरू होता है जो सबके जाने तक भागता ही रहता है. इससे पति पत्नी को इतमिनान से बैठ कर कुछ समय अपने लिए बिताने का मौका ही नहीं मिलता .कम समय में जरूरी बातें ही हो पाती हैं .ऐसे में अकेलेपन कि शिकार महिलाओं के पास पति कि नजदीकी महसूस करने के लिए कोई बात ही नहीं रह जातीं .

*ऐसे ही पुरुषों कि व्यस्तता भी बहुत बढ़ गयी है .सुबह का समय भागदौड में ओर रात घर पहुँचते पहुँचते इतनी देर हो जाती है कि कहने सुनने के लिए समय ही नहीं बचता .इसलिए आजकल पुरुष भी अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं ओर ऑफिस में या फेस बुक पर उनकी भी दोस्ती महिलाओं से बढ़ रही है जिसके साथ वो अपने मन कि सारी बातें शेयर कर सकें.

*यदि अकेले रहने कि वजह परिवार से मनमुटाव है तो ऐसे में पति का उदासीन रवैया भी पत्नी को आहत करने वाला होता है .उसे लगता है कि उसका पति उसे समझ नहीं पा रहा है या उसकी भावनाओं कि उसे कोई क़द्र नहीं है .ऐसे में पति पत्नी के बीच एक भावनात्मक अलगाव पैदा हो रहा है. 

*टी वी सीरियल में आधुनिक महिलाओं के रूप में जो चारित्रिक हनन दिखाया जा रहा है उसका असर महिलाओं के सोचने समझने पर पड़ा है.अब किसी पराये व्यक्ति से बातचीत करना दोस्ती रखना कभी बाहर चले जाना जैसी बातें बहुत बुरी बातों में शुमार नहीं होतीं,बल्कि आज महिलाएं अकेले घर का मोर्चा संभल रही हैं ऐसे में  बाहरी लोग आसानी से उनके संपर्क में आते हैं. 
* पति परमेश्वर वाली पुरातन सोच बदल गयी है .
*इंटरनेट के द्वारा घर बैठे दुनिया भर के लोगों से संपर्क बनाया जा रहा है ऐसे में अकेलेपन हताशा निराशा को बाँट लेने का दावा करने वाले दोस्त महिलाओं कि भावनात्मक जरूरत में उनके साथी बन कर आसानी से उनके फ़ोन नंबर घर का पता हासिल कर उन तक पहुँच बना रहे हैं. 
* नौकरीपेशा महिलाएं भी घर बाहर कि जिम्मेदारियां निभाते हुए इतनी अकेली पड़ जातीं है कि ऐसे में किसी का स्नेह स्पर्श या भावनात्मक संबल उन्हें  किसी की ओर आकर्षित कर करने के लिए काफी होता है.

लेकिन ऐसे विवाहेतर सम्बन्ध क्या सच में महिलाओं या पुरुषों को वो भावनात्मक सुकून प्रदान कर पाते हैं? 
होता तो ये है की जब ऐसे सम्बन्ध बनते हैं दिमाग पर दोहरा दवाब पड़ता है. एक ओर जहाँ उस व्यक्ति के बिना रहा नहीं जाता ओर दूसरी ओर उस सम्बन्ध को सबसे छुपा कर रखने की जद्दोजहद रहती है.ऐसे में यदि कोई टोक दे की आजकल बहुत खुश रहती हो या बहुत उदास रहती हो तो एक दबाब बनता है. 
जब  सम्बन्ध नए नए बनते हैं तब तो सब कुछ भला भला सा लगता है लेकिन समय के साथ इसमें भी रूठना मनाना, बुरा लगना, दुःख होना जैसी बातें शामिल होती जातीं हैं लेकिन बाद में स्थिति ये हो जाती है की ना इससे छुटकारा पाना आसान होता है ना इन्हें बनाये रखना क्योंकि तब तक  इतनी अन्तरंग बातें सामने वाले को बताई जा चुकी होती हैं की इस सम्बन्ध को झटके से तोड़ना भी कठिन हो जाता है. 
हर विवाहेतर सम्बन्ध की इतिश्री तलाक या दूसरे विवाह में नहीं होती .लेकिन इतना तो तय है की ऐसे सम्बन्ध जब भी परिवार को पता चलते हैं विश्वास बुरी तरह छलनी होता है .फिर चाहे वह पति का पत्नी पर हो या पत्नी का पति पर या बच्चों का माता पिता पर. 
बच्चों पर इसका सबसे बुरा असर पड़ता है एक ओर जहाँ उनका अपने माता पिता के लिए सम्मान कम होता है वहीँ परिवार के टूटने की आशंका उनके में एक असुरक्षा की भावना भर देती है जिसका असर उनकी आने वाली जिंदगी पर भी पड़ता है ओर वे आसानी से  किसी पर विश्वास नहीं कर पाते.
 यदि परिवार ओर रिश्तेदार इसे एक भूल समझ कर माफ़ भी कर दें तो भी आगे की जिंदगी में एक शर्मिंदगी का एहसास बना रहता है जो सामान्य जिंदगी बिताने में बाधा बनता है 
यदि इन संबंधों में कहीं आगे बढ़ कर अंतरंगता में बदल दिया जाये तो ब्लेकमेल होने का डर सताता रहता है. 

विवाहेतर सम्बन्ध आकर्षित करते हैं लेकिन अंत में हाथ लगती है हताशा निराशा ओर टूटन .इनसे बचने के लिए जरूरी है की अकेलेपन से बचा जाये.खुद को किसी रचनात्मक कार्यों में लगाया जाये. अपने आसपास पड़ोसियों से मधुर सम्बन्ध बनाये जाएँ .रिश्तेदारों से बोलचाल व्यवहार के सम्बन्ध कायम किये जाएँ .अपने पार्टनर से अपनी परेशानियों के बारे में खुल कर बात की जाये ओर अपने पुराने विग्रह दूर रख कर उनकी बातें सुनी ओर समझीं जाएँ. हमारी सामाजिक पारिवारिक व्यवस्था बहुत मजबूत ओर सुरक्षित है इसे अपने बच्चों के लिए इसी रूप में संवारना हमारा कर्त्तव्य है अतः क्षणिक आवेश में आकर इसे तहस नहस ना करें. 
कविता वर्मा 

गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

नारी- पुरुष के लिए सांसारिक योग द्वारा ब्रह्म प्राप्ति का साधन है..डा. श्याम गुप्त..

                           नारी- पुरुष के लिए सांसारिक योग द्वारा  ब्रह्म प्राप्ति का साधन है । एक पत्नी कठोरतम मार्गदर्शक होती है ।   रूप-गर्व , गर्व, व्यंग्य, कटाक्ष व अपमान द्वारा वह ही पुरुष के आत्म-तत्व को उद्वेलित, उद्भाषित व प्रकाशित करने में समर्थ है । शायद गुरु से भी अधिक। वह काली को महाकवि कालिदास, रामबोला को तुलसीदास बना सकती है।
                        वस्तुतः ब्रह्म रूप, पुरुष तो निर्गुण ही होता है।  गुण तो शक्ति, प्रकृति, माया या स्त्री-रूप में ही होते है । अव्यक्त परब्रह्म के व्यक्त रूप-- ब्रह्म या पुरुष  व  आदि-शक्ति या प्रकृति-माया में --पुरुष तो निर्गुण होता है परन्तु आदि-शक्ति मूलतः त्रिगुणमयी होती है ...सत, रज, और तमआदि-शक्ति जहां प्रत्येक तत्व को ये गुण प्रदान करती है जिससे वह शक्तिमान होता है, तथा प्रकृति -माया रूप में वह प्रत्येक संसारी रूप-भाव में ये तीनों गुण उत्पन्न करती है, जो सरस्वती, लक्ष्मी व काली रूप होते हैं । वहीं नारी रूप में वही रूप-भाव सरस्वती, लक्ष्मी व काली के रूप में अवस्थित होते हैं जिसके कारण स्त्री अपने विभिन्न मायाभाव प्रकट कर पाती है, बाह्यांतर या आभ्यंतर रूप-भावों के प्रकटन द्वारा।
                          ये सत, रज, तम  गुण-रूप--शक्ति, प्रकृति या नारी-- सरस्वती, लक्ष्मी व काली  ... निर्गुण परब्रह्म या उसके संसारी रूप 'अर्धनारीश्वर'  के नारी-भाग हैं शक्ति भाग हैं जिनके शक्तिमान भाग ...पुरुष भाग से बनते हैं ...ब्रह्मा..विष्णु...शिव  ...नियामक,  पोषक  व संहारक  शक्तियुत ।  मानव ह्रदय- जिसमें प्राणों का बास कहा जाता है..  तीनों भाव युत होता है---  ह्र = हर = प्राण को हरने वाला...शिव  --- द = प्राण देने वाला  अर्थात विष्णु ....य =  नियमनकारी = ब्रह्मा । ये तीनों शक्तियां व शक्तिमान के संतुलन, संयोजन ...मिलन से ही सृष्टि होती है। अतः निश्चय ही स्त्री-पुरुष का आपसी संयोजन, संतुलन प्रत्येक प्रकार के सृष्टि-भाव के लिए आवश्यक है 
                 परब्रह्म  शुद्ध अव्यक्त रूप में निर्गुण होता है, संपूर्ण होता है । यथा ......

                                             "ॐ पूर्णमदं पूर्णमिदं , पूर्णं पूर्णामेव उदच्यते ।     
                                                पूर्णस्य पूर्णमादाय ,पूर्नामेवावशिष्यते ।"
व्यक्त व सगुण होने पर....  वे पुरुष व प्रकृति रूप में अपने आप में पूर्ण होते हैं परन्तु संसारी रूप में --प्रकृति अपने आपमें तो संपूर्ण  होती है परन्तु सृष्टि-भाव हित, जीव रूप में,नारी-भाव में वह अपूर्ण होती है । पुरुष भी सान्सारिक रूप-जीव रूप में अपने में अपूर्ण होता है। अतः दोनों ही अपनी अपनी अपूर्णता के पूर्णता हित संसारी-योग अर्थात 'स्त्री-पुरुष मिलन ' के लिए आकुल-तत्पर  रहते हैं ( सृष्टि के प्रत्येक तत्व में यही आकुलता होती है ) ।   विवाह इसी कमी के पूरा करने हेतु संकल्प को कहते हैं तभी इसे योग मिलना भी कहा जाता है ।
                           अतः निश्चय ही विवाह  या स्त्री-पुरुष सम्बन्ध, पति-पत्नी सम्बन्ध .... प्रकृति-पुरुष के आपसी सामंजस्य  का नाम है ...योग है।  इस योग द्वारा वे एक दूसरे को बाह्य व आतंरिक रूप -भाव में पूर्णता से समझ पाते हैं । एक दूसरे के समस्त विभिन्न बाह्य व आतंरिक माया के आवरणों को समझकर , हटाकर  विराग मार्ग द्वारा मुक्ति, मोक्ष व अमृतत्व-प्राप्ति तक पहुंचते है और संपूर्ण होकर अपने मूल स्वरुप ब्रह्म को प्राप्त होते हैं ।