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शुक्रवार, 27 जनवरी 2012
शनिवार, 5 नवंबर 2011
बुधवार, 26 अक्टूबर 2011
बुधवार, 5 अक्टूबर 2011
दुआ...
आप सभी को दुर्गा नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं
और साथ ही साथ बुराई पर अच्छाई की जीत की प्रतिक दशहरा पर्व की भी बधाईयां....
आप से निवेदन है कि अब मेरे दोनों ब्लाग निचे जो लिंक है वह फेसबुक पर उपलब्ध है तो मेरा आपसे अनुरोध है कि कृपया फेसबुक पर भी अनुसरण करें !! धन्यवाद !!
http://neelkamal5545.blogspot.com/
http://neelkamalkosir.blogspot.com/
नीलकमल वैष्णव"अनीश"
शनिवार, 3 सितंबर 2011
०५ सितम्बर शिक्षक दिवस एवं १४ सितम्बर हिंदी दिवस विशेष......
हिंदी महिमा.....
हिंदी हिन्दुस्तानी, हिंद की ये भाषा
इस हिंदी में छिपी हुई है, उन्नति की परिभाषा
भारत माता की उर माला का, मध्य पुष्प है हिंदी
माता के मस्तक पर, जैसे शोभित हो बिंदी
यह भरती गागर में सागर, लिखता जग देख ठगा सा
!! हिंदी ....................................... परिभाषा !!
इस हिंदी में महाकाव्य रच तुलसी हुए महान
अर्थ गंभीर ललित श्रृंगारिक, सब करते गुणगान
नीराजन यह भूमि भारत का, जन-जन की है यह आशा
!! हिंदी ....................................... परिभाषा !!
अपनी संस्कृति अपनी मर्यादा, अपनी भाषा का ज्ञान
यही एक पाथेय हमारा, रहे सदा यह ध्यान
बिन इसके यदि बढ़ा कदम, हम बनेंगे जग में तमाशा
!! हिंदी ....................................... परिभाषा !!
अपनी भाषा की समर्थता से, हम सामर्थ्य बढ़ाये
प्रगति वास्तविक है तब ही, जब सब हिंदी अपनाएं
भारत का उत्थान है हिंदी, अमृत निर्झर झरता सा
!! हिंदी ....................................... परिभाषा !!
अपने घर में अपनी भाषा हिंदी अपमानित न होवें
वह है अभागा अमृत पाकर कालजयी जो ना होवें
हिंदी सेवा में जुटकर साथी, अब झटके दूर हताशा
!! हिंदी ....................................... परिभाषा !!
हिंदी पर गर्व करेंगे जब हम, देश महान बनेगा
दिग दिगंत में व्यापित हिंदी नवल वितान बनेगा
भारत का मान बढेगा ऐसा, होगा अम्बर झुका-झुका सा
!! हिंदी ....................................... परिभाषा !!
आप सबको ०५ सितम्बर शिक्षक दिवस एवं
१४ सितम्बर हिंदी दिवस की अग्रिम
ढेर सारी शुभकामनाएं !!!!
नीलकमल वैष्णव"अनिश"
बुधवार, 24 अगस्त 2011
कोरे सपने.......
बिना तुम्हारे बंजर होगा आसमान
उजड़ी सी होगी सारी जमीन
फिर उसी धधकते हुए सूर्य के प्रखर तले
सब ओर चिलचिलाती काली चट्टानों पर
ठोकर खाता, टकराता भटकेगा समीर
भौंहों पर धुल-पसीना ले तन-मन हारा
बेचैन रहूंगा फिरता मैं मारा-मारा
देखता रहूँगा क्षितिजों की
सब तरफ गोल कोरी लकीर
फिर भी सूनेपन की आईने में चमकेगा लगातार
मेरी आँखों में रमे हुए मीठे आकारों का निखर
मैं संभल न पाऊंगा डालूँगा दृष्टि जिधर
अपना आँचल फैलायेगी वह सहज उधर.......
नीलकमल वैष्णव"अनिश"
०९६३०३०३०१०
०९६३०३०३०१७
गुरुवार, 18 अगस्त 2011
जुल्म और औरत.....
दान दहेज़ की चक्की में आज पीस रही है औरत
सभ्य समाज के हाथों आज लुट रही है औरत
गाय की तरह बाँध रहे हैं लोग आज भी इन्हें
हर जुल्म को घुट के आज सह रही है औरत
नित नये क़ानून को थोपा जाता है इसके माथे
दुनिया के झूठे उसूलों में आज पल रही है औरत
अब भी कुछ लोग पाँव की जूती ही समझते हैं इन्हें
मर्दों के पाँव तले आज भी कुचल रही है औरत
तन के साथ होता है इनके मन का भी बलात्कार
इंसान की दरिंदगी से आज दहल रही है औरत
रिश्तों की मर्यादा के लिये सी लिया है जुबान इसनें
माँ-बहन-बीवी के रूप में आज सिसक रही है औरत
जुल्म के हद के बाद भी जुल्म हो रहा है इस पर
जीते जी कहीं कहीं पर आज भी जल रही है औरत.....
नीलकमल वैष्णव"अनिश"
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