वाह! क्या बातहै ...एक तरफ खाप व पंचायतें लडकियों महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों पर भी पाबंदी
से आचरण, सद-आचरण व व्यवहार के नए -नए अध्याय रच रही हैं वहीं लडकियां भी
आगे आकर ...अपने ओडने -पहनावे के प्रति संवेदनशील व जागरूक हो रही हैं
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वही दूसरी ओर किसी नेता के लडकियों/महिलाओं को सभी व शालीन वस्त्र पहनने की सलाह पर तथाकथित महिला-आयोग आदि की स्मार्ट महिलायें आपत्ति कर रही हैं कि क्या बच्चियों से बलात्कार एवं गुवाहाटी की घटना कपडे देख कर हुई थी ?
वे भूल जाती हैं कि कपडे व अंग् प्रदर्शन भावनाओं को उत्तेजित करता है एवं टीवी , सिनेमा, उच्च वर्ग की महिलायें , सिने-तारिकाएं आदि को अधनंगा देखकर उन पर जोर नहीं चलता अपितु जहां जोर चलता है वहीं उसका प्रभाव व आवेग निकलता है |
दूसरी ओर हमारे व्यंगकार -कवि गोपाल चतुर्वेदी जी इस विषय पर खाप पंचायतों के फरमानों पर घिसे-पिटे सवाल उठाते हुए लिखित संविधान की बात करते हैं....परन्तु सब जानते हैं कि यह संविधान व इसके कार्यकारी जन कैसा व कितना पालन कर रहे हैं कि ५०-६० वर्षों में इस समस्या पर काबू नहीं पाया जा सका है अपितु समस्या बढ़ी ही है | संविधान में पंचायती राजकी बात भी कही गयी है |
क्या हम सब , पढ़े-लिखे स्त्री-पुरुष व पाश्चात्य रन में रंगे युवा इन सब बातों पर पुनर्विचार करेंगे |