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गुरुवार, 7 अगस्त 2014

हुमायूं और कर्मावती के बीच का प्रगाढ़ रिश्ता और राखी का मर्म

ज्वैलरी मार्केट में भी रक्षाबंधन के दौरान उछाल आ जाता है। मिठाइयां, ड्रायफ्रुटस्, चाॅकलेटस की भी अच्छी खासी बिक्री होती है। डाक विभाग और कूरियर कारोबारी भी रक्षाबंधन के दौरान विशेष सेवाएं प्रदान करते हैं। रक्षा बंधन के पर्व को कुछ लोगों ने अपनी हरकतों से नुक्सान भी पहुंचाया है। पश्चिमी सभ्यता से रेशम की डोरी भी प्रभावित हुई है। फ्रैण्डशिप डे’ के दिन स्कूल और कालेज के विद्यार्थी एक-दूसरे की कलाइयों में फ्रैण्डशिप बेल्ट बांधते हैं नये दोस्त बनाने के लिए लड़के उन लड़कियों को भी बेल्ट बांधने से नही चूकते जिनसे जान थी और न ही पहचान।
रक्षाबंधन को भी कान्वेंट स्कूलों ने उसी तर्ज पर मनाने की परंपरा स्थापित कर नुक्सान ही पहुंचाया है। माना कि खून के रिश्ते से भी ज्यादा मायने मानवीय रिश्तों में छुपे हैं। मुंहबोली बहन अथवा भाई बनाने का फैशन ही भाई-बहन के पवित्रा रिश्ते को संदेहास्पद बनाता है। बहनों और भाइयों दोनों को रिश्तों की नाजुकता को ध्यान में रखना चाहिए। नई पीढ़ी को शायद यह नहीं पता कि भावनाओं का अनादर एवं विश्वास के साथ घात अशोभनीय है।
फिर यह भी प्रश्न उठता है कि रिश्ते तो और भी हैं, क्या उनमें भी कर्त्तव्य बोध जागृत करने के लिए कोई त्योहार मनाया जाता है? क्या पिता अपने बच्चों की पालना करे, इसके लिए कोई त्योहार है? मां अपने बच्चों को खुशी दे, इसके लिए कोई त्योहार है? फिर भाई, बहन की रक्षा करे, इसी के लिए त्योहार क्यों?
वास्तव में यह त्योहार एक बहुत ही ऊंची भावना के साथ शुरू हुआ था, जो समय के अंतराल में धूमिल हो गया और इस त्योहार का अर्थ संकुचित हो गया। भारतीय संस्कृति वसुधैव कुटुंबकम् में विश्वास करती है। इसका अर्थ है कि सारा विश्व ही एक परिवार है। भाई-बहन का नाता ऐसा नाता है जो कहीं भी, कभी भी बनाया जा सकता है।
आप किसी भी नारी को बहन के रूप में निसंकोच संबोधित कर सकते हैं। बहुत छोटी आयु वाली को , हो सकता है , माता न कह सकें , पर बहन तो बच्ची , बूढ़ी हरेक को कह सकते हैं। वसुधैव कुटुंबकम् हमें यही सिखाता है कि संसार की हर नारी को बहन मानकर और हर नर को भाई मानकर निष्पाप नजरों से देखो।
आपकी सगी बहन सब नारियों की प्रतिनिधि है - इस निष्पाप वैश्विक संबंध की याद दिलाने यह त्योहार आता है और इसके लिए निमित्त बनती है सगी बहन , क्योंकि बहन - भाई के नाते में लौकिक बहन का नाता स्वाभाविक रूप से पवित्रता लिए रहता है। बहन जब अपने लौकिक भाई की कलाई पर राखी बांधती है तो यही संकल्प देती है कि भाई , जैसे तुम अपनी इस बहन को पवित्र नजर से देखते हो , दुनिया की सभी नारियों को , कन्याओं को ऐसी ही नजर से निहारना। संसार की सारी नारियां तुझे राखी नहीं बांध सकतीं , पर मैं उन सबकी तरफ से बांध रही हूं। वो सब मुझमें समाई हुई हैं , उन सबका प्रतिनिधि बनकर मैं आपसे निवेदन करती हूं , आपको प्रतिज्ञाबद्ध करती हूं कि आप निष्पाप बनें।

भारतीय नारी का एक रूप ‘बहन‘ भी है और भारतीय पर्व और त्यौहारों की सूची में एक त्यौहार का नाम ‘रक्षा बंधन‘ भी है। जहां होली का हुड़दंग और दीवाली पर पटाख़ों का शोर शराबा लोगों के लिए परेशानी का सबब बन जाता है और उनके पीछे की मूल भावना दब जाती है वहीं रक्षा बंधन का त्यौहार आज भी दिलों को सुकून देता है। यह त्यौहार मुझे सदा से ही प्यारा लगता आया है।
यह पर्व भाई-बहन के बीच पवित्र स्नेह का द्योतक भी है। बहन भाई की कलाई पर रेशम की डोरी यानी राखी बांधती है आरती उतार कर भाई के माथे पर टीका लगाती है तथा सुख एवं समृद्धि हेतु नारियल एवं रूमाल भाई को भेंट स्वरूप देती है। भाई भी बहन की रक्षा के संकल्प को दोहराते हुए भेंट स्वरूप कुछ रुपये अथवा वस्तुएं प्रदान करता है।
इतिहास में एक अध्याय कर्मावती व हुमायूं के बीच प्रगाढ़ रिश्ते और राखी की लाज से जुड़ा है। कर्मावती ने हुमायूं को पत्रा भेज कर सहायता मांगी थी। बादशाह हुमायूं ने राखी की लाज निभाते हुए अपनी राजपूत बहन कर्मावती की मदद की थी। अतः रक्षाबंधन हमारे लिए विजय कामना का भी पर्व है।
हमें कर्मावती और हुमायूं की वह ऐतिहासिक घटना सदैव याद रखनी चाहिए कि पवित्र रिश्ते मजहब के फ़र्क़ के बावजूद भी बनाए जा सकते हैं।पवित्र रिश्तों का सम्मान करना हम सभी का नैतिक कर्तव्य भी है।
आओ और पेड़ों को राखी बांधो और उनके रक्षार्थ सामूहिक प्रयास करो। शायद यह प्रयास वृ़क्षों की अनावश्यक कटाई की रोकथाम में कारगर सिद्ध हो जाए।
इस त्यौहार के पीछे एक पौराणिक कथा भी बताई जाती है, जो इस प्रकार है : 
उस दिन श्रावणमास शुक्ल की चतुर्थी थी। दूसरे दिन प्रातः इंद्र देवता की पत्नी ने गुरू बृहस्पति की आज्ञा से यज्ञ किया और यज्ञ की समाप्ति पर इंद्र की दाई कलाई पर ‘रक्षा‘-सूत्रा’ बांधा। तत्पश्चात देव-दानव युद्ध में देवताओं को जीत की प्राप्ति हुई। कहा जाता है तभी से श्रावणी की पूर्णिमा को रक्षाबंधन पर्व के रूप में मनाया जाने लगा।
प्राचीन काल में शिष्य अपने गुरूओं के हाथ में सूत का धागा बांधकर उनसे आशीष प्राप्त करते थे। ब्राह्मण भी हाथ में सूत का धागा बांध कर आशीर्वाद प्रदान करते हैं। रक्षाबंधन भले ही हिंदुओं का पावन पर्व है किंतु दूसरे धर्म के अनुयायियों ने भी स्वेच्छा से रक्षा बंधन पर्व में अपनी आस्था व्यक्त की है।
समयानुसार सभी पर्व प्रभावित हुए हैं। रक्षाबंधन भी प्रभावित हुए बगैर नहीं रह पाया। रेशम की डोरी की जगह फैंसी राखियां चलन में आ गई। हमारी अर्थव्यवस्था में रक्षाबंधन पर्व के महत्त्वपूर्ण योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। करोड़ों रूपयों का कारोबार लाखों परिवारों को आजीविका प्रदान कर रहा है।
भैया और बहन के पावन रिश्ते को बांधने वाली रेशम की डोर का रंग और ढंग भी बदलते दौर में बदल गया है। अब इस रेशम की डोर पर फैशन का रंग चढ़ गया है। कारोबारी इस प्रेम के पर्व को अपने तरीके से कैश कर रहे हैं। बाजार में सोने और चांदी से जड़ी राखी उतारकर बहनों को आकर्षित किया जा रहा है। इसकी कीमत भी काफी हाई-फाई है। दूसरी तरफ बहनें भी अपने भैया के लिए महंगी राखी खरीदने को तवज्जो दे रही हैं। सोना-चांदी से जडि़त राखी के स्वर्णकारों के पास स्पेशल आर्डर भी आ रहे हैं। बाजार में 20 हजार रुपए कीमत वाली राखी आ गई है। बदलते दौर में स्वर्णकारों को भी भाई बहन के प्यार के पर्व पर चांदी कूटने का मौका मिल गया है। आशा शर्मा, मीना धीमान, पूजा राणा, मंजू कविता, आमना और रेखा धीमान का कहना है कि भाई की कलाई को सजाने के लिए हजारों रुपए भी कम पड़ जाते हैं।
धर्मशाला के वर्मा ज्यूलर शाप के मालिक राजेश वर्मा का कहना है कि इस राखी के पर्व पर सोने चांदी से जडि़त राखियों के अलावा मोती जडि़त राखी के आर्डर भी आ रहे हैं। सोने और चांदी से जडि़त राखी के आर्डर धर्मशाला ही नहीं बल्कि प्रदेश भर में बुक किए जा रहे हैं। सोने का भाव आसमान पर है, बावजूद इसके बहनें अपने भाई की कलाई को सजाने के लिए इसकी परवाह नहीं कर रही हैं।

ब्रह्माकुमारी दादी हृदयमोहिनी कहती हैं कि
हम हर वर्ष रक्षाबंधन का पर्व मनाते हैं। हर बार हमें समझाया जाता है कि बहन, भाई को इसलिए राखी बांधती है कि वह उसकी रक्षा करेगा। लेकिन यदि बहन राखी नहीं बांधेगी, तो क्या भाई उसकी रक्षा नहीं करेगा? हिंदुओं को छोड़कर बाकी किसी संस्कृति -बौद्ध, क्रिश्चियन, मुस्लिम आदि संप्रदायों में राखी नहीं बांधी जाती, परंतु भाइयों द्वारा अपनी लौकिक बहनों की रक्षा तो वहां भी की जाती है। ऐसे कर्त्तव्य बोध के लिए कोई और त्योहार क्यों नहीं मनाया जाता? यदि कोई कहे कि यह त्योहार भाई-बहन के बीच प्रेम बढ़ने का प्रतीक है, तो भी प्रश्न उठता है कि क्या राखी न बांधी जाए तो बहन-भाई का प्रेम समाप्त हो जाएगा?
भाई-बहन को सहोदर-सहोदरी कहा जाता है, यानी एक ही उदर (पेट) से जन्म लेने वाले। जो एक उदर से जन्म लें, एक ही गोद में पलें, उनमें आपस में स्नेह न हो, यह कैसे हो सकता है। सफर के दौरान किसी यात्री के साथ दो-चार घंटे एक ही गाड़ी में सफर करने से भी कई बार इतना स्नेह हो जाता है कि हम उसका पता लेते हैं, पुन: मिलने का वायदा भी कर लेते हैं। तो क्या सहोदर-सहोदरी में स्वाभाविक स्नेह नहीं होगा, जो उन्हें आपस के प्रेम की याद दिलाने के लिए राखी का सहारा लेना पड़े।
मेरी सुरक्षा भी तभी होगी जब आप औरों की बहनों की सुरक्षा करेंगे। यदि आपके किसी कर्म से संसार की कोई भी बहन असुरक्षित हो गई , तो आपकी यह बहन भी किसी के नीच कर्म से असुरक्षित हो सकती है। आपसे कोई अन्य बहन न डरे और अन्य किसी भाई से आपकी इस बहन को कोई डर न हो , यही राखी का मर्म है।

मंगलवार, 10 जून 2014

घर में शान्ति बनाने का आसान उपाय

इस प्रकृति की रचना ही ऐसी है कि जो चीज़ जितनी ज़्यादा अहम है, वह उतनी ही ज़्यादा आसानी से मिल जाती है। शान्ति के लिए आपकी चाहत ही काफ़ी है। जब आप किसी चीज़ को दिल से, पूरी शिद्दत से चाहते हैं तो वह ख़ुद ही आपकी तरफ़ खिंची चली आती है।
आपको शान्ति चाहिए?
बस, आप इरादा कीजिए कि आप शान्त हैं। लीजिए, आप शान्त हो गए। अब आप अपनी शान्ति को भंग करने वाला, उसे नुक्सान पहुंचाने वाला कोई काम न करें। आपकी शान्ति बनी रहेगी। आप सिर्फ़ 24 घंटे शान्ति के इस भाव के साथ जीने की कोशिश कीजिए। आपके जीने का अन्दाज़ ही बदल जाएगा। आपके बीवी-बच्चे, पड़ोसी, रिश्तेदार और दोस्त आपसे रोज़ाना की तरह बर्ताव करेंगे लेकिन सिर्फ़ चन्द रोज़। आप उनकी बातों को सुनें लेकिन आप हर हाल में उन्हें शान्ति भरी प्रतिक्रिया ही दें। आपके मन में पुरानी यादें यानि भूतकाल की घटनाओं के भूत बड़ा हंगामा मचाएंगे लेकिन आप उन्हें कोई रिएक्शन मत देना। वे भी शांत होते चले जाएंगे।
आप हर समय अपना संकल्प याद रखें कि आप शान्त हैं। अगर आप मानते हैं कि आप शान्त हैं तो फिर आप शान्त हैं।
क्यों है न बिलकुल आसान उपाय ?
…फिर इसे आपने अब तक आज़माया क्यों नहीं है ?

बुधवार, 4 जून 2014

घायल मन को शांति कैसे मिले?

आज इंसान अपने शरीर का इलाज कर रहा है लेकिन उसकी बीमारी का कारण उसके मन में छिपा है. जब तक इंसान अपने मन पर ध्यान नहीं देगा, अपने ख़यालात और जज़्बात को हेल्दी नहीं बनायेगा तब तक वह एक के बाद दूसरी बीमारी का शिकार होता रहेगा. आज यह बात साइंटीफिकली साबित हो चुकी है कि Stress 95% बीमारियों का कारण है.
भारतीय  नारी को भी तनाव का सामना करना पड़ता है. ऐसे में उसे तनाव से मुक्ति के लिए ज़रूर कुछ करना चाहिए. ऐसा कुछ जिससे उसे आराम मिले, सुकून मिले. वह अपने तन पर उबटन मलने से लेकर मायके जाने तक कुछ भी कर सकती है. तनाव देने वाली जगह से हट जाना भी एक अच्छा उपाय है. 
आज मन घायल है और लोग अपने जीवन साथी की परवाह नहीं करते कि उसे प्यार की कितनी ज़्यादा ज़रूरत है. 
तनाव का सही इलाज शांति है और शांति केवल प्रेम से मिलती है. सबसे ज़्यादा प्रेम वह पैदा करने वाला पालनहार करता है. सबसे प्रेम पाने की अपेक्षा छोड़ कर उसके  प्रेम को याद करना मन को गहरी शांति देता है. 
जब आप पानी पियें , जब आप खाना खाएं और जब आप साँस लें तो उसकी नेमतों को उसके प्यार का तोहफा समझ कर ग्रहण करें. आपकी बदली हुई मानसिकता आपको बदलकर रख देगी, आपको शान्ति मिलेगी और फिर यह कभी ख़तम न होगी.
बच्चे के लिए माँ और माँ के लिए बच्चा सबसे बड़ा तोहफ़ा  है. जो नहीं मिल सका उसे भुला दें और जो पास में है उसका शुक्र अदा करें, सारा Stress दूर हो जाएगा.  

शनिवार, 19 अप्रैल 2014

भारत की ‘लिव-इन-रिलेशनशिप’ परंपरा-हरि मोहन

लिव इन रिलेशनशिप से मिलने-जुलने वाली यह परंपरा राजस्थान में आज भी कायम है। इस प्रथा का नाम है ‘नाता प्रथा’। राजस्थान की इस इस प्रथा के मुताबिक, कोई शादीशुदा पुरुष या महिला अगर किसी दूसरे पुरुष और महिला के साथ  अपनी इच्छा से रहना चाहती है तो वो अपने पति या पत्नी से तलाक लेकर रह सकती है। इसके लिए उन्हें एक निश्चित राशि चुकानी पड़ती है।

इस प्रथा में महिला और पुरुष के बच्चों और दूसरे मुद्दों का निपटारा पंचायत करती है। उन्हीं के निर्णय के हिसाब से तय किया जाता है कि बच्चे किसके साथ रहेंगे। ये इसलिए किया जाता है कि ताकि बाद में महिला या पुरुष के बिच किसी चीज़ को लेकर मतभेद न हो। वो अपनी जिंदगी अपनी पंसद के व्यक्ति या स्त्री के साथ आराम से काट सके।

राजस्थान में इस प्रथा का चलन ब्राह्मण, राजपूत और जैन को छोड़कर बाकी की जातियों में देखा जा सकता है। गुर्जरों में यह परंपरा यहां खासकर लोकप्रिय है। इस प्रथा से यहां के पुरुष और महिलाओं को तलाक के कानूनी झंझटों से छुटकारा तो मिलता ही है साथ  ही में अपनी पसंद का जीवन साथी के साथ रहने का हक भी मिल जाता है।

हालांकि, बदलते वक्त के साथ इस प्रथा में भी कई विसंगतियां आई हैं। इसका स्वरूप भी बदला है। कई बार तो इस प्रथा की आड़ में महिलाओं को दलालों के हाथों बेचने का घिनौना खेल भी खेला जाता है।

गुरुवार, 3 अप्रैल 2014

कानून : घरेलु हिंसा प्रकरणों को पुलिस और कोर्ट में ले जाना कितना प्रासंगिक?

एक हिंदी ब्लॉगर ने चिंता जताई है कि
आज घरेलु हिंसा कानूनन अपराध है। इसके बावजूद भी-
(1) घरेलु हिंसा की शिकार कितनी पत्नियां अपने पतियों के खिलाफ मुकदमे दर्ज कराती हैं?
(2) कितनी पत्नियां घरेलु हिंसा के प्रकरणों को पुलिस या कोर्ट में ले जाने के तत्काल बाद वापस लेने को विवश हो जाती हैं?
(3) घरेलु हिंसा की शिकार होने पर मुकदमा दर्ज कराने वाली स्त्रियों में से कितनी घरेलु हिंसा को कानून के समक्ष कोर्ट में साबित करके पतियों को सजा दिला पाती हैं?
(4) घरेलु हिंसा प्रकरणों को पुलिस और कोर्ट में ले जाने के बाद कितनी फीसदी स्त्रियॉं कोर्ट के निर्णय के बाद अपने परिवार या विवाह को बचा पाती हैं या कितनी स्त्रियां विवाह को बचा पाने की स्थिति में होती हैं? 
साभार :

‘वैवाहिक बलात्कार’ का कानून कितना प्रासंगिक?


बुधवार, 18 दिसंबर 2013

भारतीय नारी का चीरहरण अमेरिका में कैसे रुकेगा ?

कल टी. वी. पर देखा कि अमेरिका ने फिर से एक भारतीय देवयानी खोबरागाडे का अपमान कर दिया है। वह अमेरिका में भारत की एक राजनयिक हैं। इस तरह की ख़बरें देखने के हम आदी हो चुके हैं लेकिन हमें यह उम्मीद बिल्कुल नहीं थी कि भारत उनके इस अपमान पर इतना सख्त रद्दे-अमल ज़ाहिर करेगा। बहरहाल भारत का यह काम वाक़ई तारीफ़ के क़ाबिल है।
इस विषय पर आज (18 दिसंबर 2013) हिन्दुस्तान में छपा में यह लेख छपा है जिसमें अमेरिका की नीयत और नीति का ख़ुलासा किया गया है-
कुछ साल पहले एक यूरोपीय देश के राजनयिक को एक सड़क दुर्घटना के सिलसिले में अमेरिका में जेल भेज दिया गया था। लेकिन अमेरिका दूसरे देशों में अपने राजनयिक ही नहीं, अन्य लोगों के लिए भी विशेष सुविधाएं चाहता है, भले ही वे संदेहास्पद चरित्र के लोग हों।कुछ वक्त पहले अमेरिकी दूतावास के लिए काम कर रहे एक अमेरिकी ठेकेदार ने पाकिस्तान में कुछ लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। उसे राजनयिक सुरक्षा नहीं मिली हुई थी, लेकिन अमेरिका ने दबाव डालकर उसे पाकिस्तान से छुड़वाकर अमेरिका पहुंचा दिया। ऐसे अनेक उदाहरण हैं। मुंबई में 26/11 के आतंकवादी हमलों का आरोपी डेविड हेडली अमेरिकी जेल में बंद है, लेकिन अमेरिका उसे भारत को सौंपने को तैयार नहीं है। डेविड हेडली अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के लिए काम करता था और उसकी हरकतों की जानकारी होते हुए भी अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों ने उसे वक्त रहते नहीं पकड़ था, न भारत को उसकी हरकतों की जानकारी दी थी। अगर ऐसा किया जाता, तो शायद 26/11 का हमला रोका जा सकता था। इससे जाहिर होता है कि अमेरिका का दूसरे देशों से व्यवहार परस्पर सम्मान और अंतरराष्ट्रीय परंपराओं के मुताबिक नहीं, बल्कि ताकत के तर्क से तय होता है। इस मामले में भी भारत का यही कहना है कि सामान्य मानवीय शिष्टाचार का खयाल तो रखा जाना चाहिए था। 
इस घटना के बाद यह सवाल उठता है कि आखि़र अमेरिकी हाथों से क्यों उतर रहे हैं भारतीयों के कपड़े ?
इसका जवाब यही है कि एशियाई देशों की शक्ति बिखरी हुई है। जब तक ये देश अपने साझा हित के लिए एक नहीं होंगे तब तक भारतीयों के कपड़े उतरते ही रहेंगे। आगे से चाहे राजनियकों के कपड़े न भी उतारे जाएं तब भी आम भारतीयों को तो ज़िल्लत बर्दाश्त करनी ही पड़ेगी।
बहरहाल संशोधित लोकपाल मुबारक हो।
सुना है कि यह संसद में पास हो गया है और अन्ना ने अपना अनशन तोड़ दिया है। उनके मंच पर उनके साथ खड़े बीजेपी और कांग्रेस के समर्थक भी ख़ुशी से तिरंगा फहरा रहे हैं।
अब सरकार को इस लोकपाल से दो चार मंत्रियों को पकड़वाना ही पड़ेगा वर्ना अरविंद केजरीवाल का आरोप सच साबित हो जाएगा कि इस क़ानून से तो एक चूहा भी जेल नहीं जाएगा।
धन्यवाद अरविंद केजरीवाल, इतने अच्छे कमेंट के लिए कि लोकपाल के शिकंजे में भ्रष्टाचारी को फंसना ही पड़ गया। 

मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

इज़्ज़त

होटल की लिफ़्ट ऊपर से आकर रूकी तो अंदर से एक एक करके सभी निकल कर चले गए और मैं इत्मीनान से उसमें दाखि़ल हो गया। मेरे पीछे पीछे एक लड़की भी लिफ़्ट में दाखि़ल हो गई। उसने मिनी स्कर्ट से भी छोटा कुछ पहन रखा था और टॉप के नाम पर जो कुछ पहन रखा था, वह स्किन कलर में था। यह पता करना बड़ा मुश्किल था कि वह कुछ छिपाना चाहती है या सब कुछ दिखाना चाहती है।
सार्वजनिक जगहों पर नंगा घूमना क़ानूनी तौर पर प्रतिबंधित है। शायद इसलिए उसने क़ानून के सम्मान के लिए ही कपड़े पहन रखे हैं। मुझ पर बदहवासी तारी हो गई। लिफ़्ट का बटन दबाने के लिए उसने अपना हाथ बढ़ाया तो मैंने अपना हाथ रोक लिया। उसने अपनी मंज़िल का बटन दबाकर मेरी तरफ़ देखा। वह मेरे चेहरे का बग़ौर मुआयना कर रही थी। 
ए.सी. के बावुजूद मेरे माथे पर पसीने के क़तरे नुमूदार हो रहे थे। मैंने जेब से रूमाल निकाल कर अपना माथा साफ़ किया तो उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान तैरने लगी।
उसकी मंज़िल आने में अभी कुछ वक्त और था। उसने वक्तगुज़ारी के लिए अपना पर्स खोलकर कुछ तलाश किया। इस तलाश में हर बार वह कोई न कोई चीज़ हाथ में लेकर बाहर निकालती। जिनकी बनावट देखकर और उनके इस्तेमाल की कल्पना करके ही मेरी धड़कनें बढ़ती जा रही थीं। इस तलाश में उसने अपने काम की सारी चीज़ें एक एक करके मुझे दिखा दीं। शायद यही उसका मक़सद था। पर्स बंद करके उसने एक बार फिर मुझे मुस्कुरा कर देखा। मैं समझ गया कि वह मेरी हालत से लुत्फ़अन्दोज़ हो रही है। कभी कभी लम्हे कैसे सदियां बन जाते हैं, इसका अंदाज़ा मुझे आज हो रहा था।
उसकी मंज़िल पर लिफ़्ट रूकी तो मैं भी उसके पीछे पीछे ही लिफ़्ट से निकल आया। उसने बड़ी अदा के साथ अपने बाल समेटे और खुलकर एक क़हक़हा लगाया। मुझे अभी 5 मंज़िल ऊपर जाना था। मैं सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ गया। सीढ़िया लिफ़्ट के मुक़ाबले सेफ़ हैं। मैं बूढ़ा हूं, दिल का मरीज़ हूं। सीढ़िया चढ़ना मेरे लिए जानलेवा हो सकता है लेकिन फिर भी इज़्ज़त बचाने का यही एक तरीक़ा मुझे नज़र आया।
वह मुझे सीढ़ियों पर चढ़ते देखकर और ज़्यादा ज़ोर से हंसने लगी। मैं तेज़ तेज़ क़दम उठाने लगा ताकि उसकी नज़र के दायरे से जल्दी से जल्दी निकल जाऊं। अचानक मुझे अपनी चेतना डूबती हुई सी लगी। पता नहीं अब कभी आंख खुले या नहीं लेकिन मेरी इज़्ज़त बच गई थी। मुझे ख़ुशी थी कि मैं अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और घरवालों की नज़र में शर्मिन्दा होने से बच गया था। 
...
हिन्दी ब्लॉगर शिखा कौशिक जी की लघुकथा ‘पुरूष हुए शर्मिन्दा’ पढ़कर हमें भी एक लघुकथा लिखने की प्रेरणा प्राप्त हुई है जो एक दूसरा पहलू भी सामने लाती है। उसे इसी ब्लॉग पर पेश किया जाएगा। इससे पता चलता है कि हमारे समाज में कितने रंग-बिरंगे व्यक्ति रहते हैं और यह कि न सभी पुरूष एक जैसे हैं और न ही सारी औरतें एक जैसी हो सकती हैं।

शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

यौन उत्पीड़न किसे कहते हैं?

तरूण तेजपाल ने बड़ी हिम्मत के साथ स्वीकार किया है कि हां, उन्होंने अपनी सहकर्मी महिला पत्रकार के साथ वह किया है जिसे वह यौन उत्पीड़न बता रही है।
वह सहकर्मी महिला पत्रकार भी बहुत बहादुर निकली। उसनेभी अपना उत्पीड़न भले ही करवा लिया लेकिन उसे बर्दाश्त बिल्कुल नहीं किया। उसने चिठ्ठी लिखकर तहलका पत्रिका की प्रबंध संपदिका शोमा सिंह को सारा माजरा बता दिया और सच्चाईदुनिया के सामने आ गई। पत्रकार का फ़र्ज़ यही तो होता है कि दुनिया के सामने सच्चाई ले आए।
देखिए, मॉडर्न एजुकेशन हमारे देश को कैसे कैसे बहादुर दे रही है।
उधर शोमा सिंह कह रही हैं कि मेरी पहली तरजीह महिला पत्रकार को अच्छा फ़ील कराना है और वह करा भी रही हैं।
अगर उत्पीड़िता ने अच्छा फ़ील कर लिया तो मामला आपसी सहमति से निपट भी सकता था लेकिन तरूण तेजपाल की सताई हुई पार्टियों को बैठे बिठाए मौक़ा मिल गया। वे तरूण तेजपाल को लम्बा नापने की फ़िराक़ में हैं। अगर ऐसे आड़े वक्त के लिए तरूण तेजपाल ने कोई सीडी बचाकर नहीं रखी है तो वह चौड़े में मारे जाएंगे। इसमें कोई शक नहीं है। जल में रहकर मगरमच्छों से इसीलिए तो कोई बैर नहीं करते।
बहरहाल ताज़ा ख़बर यह है कि गोवा पुलिस के उपमहानिरीक्षक ओ. पी. मिश्रा जी ने बताया है कि तरूण तेजपाल के खि़लाफ़ एफ़आईआर दर्ज कर ली गई है।
इस कांड के बाद एजुकेटिड पुरूषोंमें सहकर्मी महिलाओं के प्रति अविश्वास उत्पन्न होने का ख़तरा भी पैदा हो गया है। आनन्द के पलों का लुत्फ़ उठाते हुए कौन यह जान सकता है कि कल इसी लुत्फ़ को उत्पीड़न क़रार दिया जा सकता है।
तमाम अंदेशों के बावजूद होटलों में सम्मेलन और सेमिनार चलते रहेंगे और औरत और मर्द तरक्क़ी करते रहेंगे। यह भी सच है।
इस तरह की घटनाएं हमें कन्फ़्यूज़ कर देती हैं कि आखि़र यौन उत्पीड़न क्या है?
एक पढ़ी लिखी और बालिग़ लड़की को क्या चीज़ मजबूर करती है कि वह अपने आप को यौन शोषण के लिए अर्पित करने के लिए होटल के कमरे में ख़ुद ही चल कर जाए और फिर शोर मचाए।
क्या इसे मर्द का यौन उत्पीड़न न माना जाए?

मंगलवार, 22 अक्टूबर 2013

छात्रा से किया 75 बार बलात्कार

एक अध्यापक ने चौथी क्लास की अपनी शिष्या से बलात्कार करना शुरू किया तो 75 बार कर डाला।
इसलिए सब अपने बचे बच्चियों के टीचरों पर सतर्क दृष्टि ज़रूर रखे. पूरी ख़बर पढने के लिए अखबार की कटिंग देख लें.

शुक्रवार, 7 जून 2013

वास्तव में जिया खान आधुनिक नारी की एक प्रतिनिधि थी

ज़िया ख़ान मर गई. उसने 3 दिन पहले पंखे से लटक कर खुदकुशी कर ली थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में आया है कि मरने से पहले उसने शराब भी पी थी. मरने से पहले उसने सूरज पंचोली को फ़ोन किया था. 
आत्महत्याएं सारे समाज के लिए चेतावनी हैं. वास्तव में जिया खान आधुनिक नारी की प्रतिनिधि थी. आधुनिक नारी के रास्ते पर चलकर आज की नारियों के एक तादाद किस अंजाम से दो चार हो रही है. इसे आसानी से जाना जा सकता है.   वास्तव में आज इंसानियत के सामने आदर्श का संकट है. इन हालात में हम सबको सोचना होगा कि सेक्स और क्राइम की दलदल से अपनी नस्ल को कैसे बचाएं ?

शुक्रवार, 3 मई 2013

दलबीर कौन ने कहा ...



आज सरबजीत सिंह को अंतिम विदाई दी जा रही है। पूरा देश उसके परिवार के दुख में शरीक है। सरबजीत सिंह की रिहाई के मुददे पर उसकी बहन दलबीर कौर ने बहुत भाग-दौड़ की है। पाकिस्तान से वापसी के बाद दलबीर कौर बहुत ग़ुस्से में थीं। उनका ग़ुस्सा जायज़ भी था लेकिन फिर बाद में उनका एट्टीट्यूड एकदम बदल गया।
एक हिंदी ब्लॉगर गिरधर तेजवानी उनके इस रवैये पर लिखते हैं कि

सरबजीत की बहन एक रात में ही कैसे बदल गई?-Tejvani Girdhar

 पाकिस्तान से लौटने पर वाघा बॉर्डर पर शेरनी की तरह दहाड़ते हुए दलबीर कौर ने कहा था कि भारत सरकार के लिए शर्म की बात है कि वह अपने एक नागरिक को नहीं बचा सकी। भारत ने पाकिस्तान के कई कैदी छोड़े लेकिन अपने सरबजीत को नहीं बचा सके। उन्होंने आरोप लगाया था कि भारत सरकार ने उनके परिवार को धोखा दिया है। उन्होंने यह धमकी भी दी थी कि अगर सरबजीत को कुछ हुआ तो वह देश में ऐसे हालात पैदा कर देंगी कि मनमोहन सिंह कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे। एक ओर जहां उनके इस बयान को उनके अपने भाई के प्रति अगाघ प्रेम की वजह से भावावेश में आ जाना माना जा रहा था, वहीं कुछ को लग रहा था कि वे किसी के इशारे पर मनमोहन सिंह को सीधी चुनौती दे रही थीं। कुछ ऐसे भी हो सकते हैं, जिनको उम्मीद रही हो कि दलबीर कौर को सरकार के खिलाफ काम में लिया जाएगा। जो कुछ भी हो, लेकिन उनका गुस्सा जायज था। मगर जैसे ही सरबजीत की मौत की खबर आई, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी व गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने सरबजीत के परिवार से मुलाकात की और दलजीत कौर का सुर बदल गया है। जिस प्रकार वह उनसे गले मिल कर भावुक हुईं, उससे भी यह आभास हो गया कि एक ही रात में उसका हृदय परिवर्तन हो गया है।
दलबीर कौन ने कहा कि उनका भाई देश के लिए शहीद हुआ है। देश के सभी हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और सभी राजनीतिक दलों को एक हो जाना चाहिए। उन्होंने सब से मिलकर पाकिस्तान पर हमला करने की जरूरत बताई। दलबीर ने कहा कि पहले मुशर्रफ ने वाजपेयी की पीठ पर छुरा मारा, अब जरदारी ने मनमोहन की पीठ पर छुरा मारा है। यह मौका है जब देशवासियों को सब कुछ भूल कर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के हाथ मजबूत करने चाहिए और गृह मंत्री शिंदे का साथ देना चाहिए।
स्वाभाविक सी बात है कि उनके इस बदले हुए रवैये पर आश्चर्य होना ही है। आखिर ऐसी क्या वजह रही कि एक दिन पहले सरकार से सीधी टक्कर लेने की चेतावनी देने वाली सरबजीत की बहन पलट गई। संदेह होता है कि वे अब किसी दबाव में बोल रही हैं। जाहिर तौर पर यह सरकार का ही दबाव होगा, जिसके तहत सरबजीत की दोनों बेटियों को सरकारी नौकरी और पर्याप्त आर्थिक मदद करने की पेशकश की गई होगी। दलबीर कौर के इस रवैये की सोशल मीडिया पर आलोचना हो रही है।
हक़ीक़त जो भी हो लेकिन यह सच है कि प्यार के दो बोल और दो रोटी की ज़मानत इंसान को बदल कर रख देती है।

सोमवार, 8 अप्रैल 2013

सुन्दरता औरत का जन्मसिद्ध अधिकार है

सुन्दरता औरत का जन्मसिद्ध अधिकार है. मोती भस्म इसे पाने में  बहुत सहायक है. 


  1. फायदे-
  2. कैल्शियम आँखों और त्वचा को चमकदार  भी बनाता है। खाल नर्म, मुलायम और मोती की तरह आबदार हो जाती है। औरतों की आम बीमारी ल्यूकोरिया ख़त्म हो जाती है। जीवन में जोश और उमंग पैदा हो जाता है। जिन लोगों के जीवन में समस्याओं से घबराकर बार बार यह विचार आता हो कि इस जीने से तो मरना भला। वे इस नुस्ख़े को खाकर बुरे विचार से पीछा छुड़ा सकते हैं। ऐसा विचार तब आता है जबकि मनुष्य तनाव को झेलने की अंतिम सीमा पर पहुंच जाता है। इस नुस्ख़े का सेवन करने वाले का तनाव भी कम होता है और तनाव झेलने की ताक़त भी बढ़ती है। इससे हड्डी मज़बूत होती है, याददाश्त बढ़ती है।
    यह नुस्ख़ा वैवाहिक जीवन को ख़ुशहाल बनाता है। औरत का हुस्न बहुत बढ़ जाता है। कमज़ोरी और निराशा को दूर करता है। इस नुस्ख़े में शामिल जिंक नई कोशिकाओं का निर्माण करता है। नई कोशिकाओं निर्माण से बुढ़ापा आने की रफ़्तार धीमी पड़ जाती है।
    इस नुस्ख़े का इस्तेमाल घर से दूर किसी पहाड़ी पर जाकर किया जाए तो पूरा असर दिखाएगा और जल्दी दिखाएगा। अपने तजर्बे की बुनियाद पर हम इस नुस्ख़े को 4 से 6 माह तक इस्तेमाल करने की सलाह देंगे।
  3. परहेज़-
  4. 1. आग पर पके हुए खाने का पूरी तरह परहेज़ रखें। डायबिटीज़ का ध्यान रखते हुए आप फल और सब्ज़ियां कच्ची खाएं।
    2. ताज़ा रिसर्च कहती है कि डायबिटीज़ के मरीज़ खजूर, गाजर और चुक़न्दर भी खा सकते हैं। खजूर पेड़ पर पका हुआ होना चाहिए। कुछ लोग गुड़ की चाशनी में मीठा कर देते हैं। यह सस्ती खजूर गुड़ की वजह से नुक्सान देगी।
    विशेष-
    1. थोड़ा थोड़ा करके 4 लीटर पानी पिएं।
    2. पालक का जूस और खीरा खाएं। ये बॉडी की अल्कलाईन नेचर को वापस लाने में बहुत अच्छी मदद करते हैं।
    3. रात में सोते वक्त गर्म पानी के साथ त्रिफला चूर्ण या पंच सकार चूर्ण (बैद्यनाथ) ज़रूर लें ताकि पेट रोज़ाना अच्छी तरह साफ़ होता रहे।
    4- गोखरू, मूसली, अजवायन, कदंब का मूल, सौंठ आदि दवाओं को बराबर मात्रा में लेकर कूट पीस कर रख लें और लगभग 7 ग्राम दवा में कैल्शियम सप्लीमेंट (भस्म आदि) 100 मिग्रा. मिलकर सेवन करें. 5- यह नुस्खा प्राचीन भारतीय शॉड को सामने लिखा गया है. इसका सेवन अपनी मर्ज़ी से न करें बल्कि किसी आयुर्वेदिक या यूनानी चिकित्सक की निगरानी में ही करें.

सोमवार, 1 अप्रैल 2013

राजो की हैप्पी फ़ैमिली


भाइयों से भी शादी की प्रथा

हिंदुओं में अगर पत्नी जीवित है तो एक से अधिक शादी करना वर्जित है। यही नियम पत्नी पर भी लागू होता है। महाभारत में दौपद्री के पांच पति थे, वह चाहे कुछ भी रहा हो। देश के कुछ हिस्सों में आज भी यदा-कदा महाभारत की यह प्रथा नजर आ जाती है। एक गांव है देहरादून के पास जहां कुछ परिवारों में आज भी यह प्रथा जारी है। 21 साल की राजो वर्मा भी इसी तरह की एक महिला है। वह एक कमरे के घर में अपने परिवार के साथ रहती है। खास बात यह है कि उसके पांच पति हैं। 

सभी-यानी बच्चे , पति और मां एक साथ एक कमरे में कंबल बिछा कर सोते हैं। राजो हर रात अलग-अलग पति के साथ बिताती है। उसे पता ही नहीं है कि उसका 18 महीने का बेटा जय उसके किस पति से है। देहरादून के पास एक छोटे से गांव में रहने वाली राजो की शादी गांव के पांच भाइयों के साथ हुई है।

इस हैपी फैमिली में राजो के पांच पतियों में 32 साल का बज्जू वर्मा, 28 साल का संत राम वर्मा, 26 साल का गोपाल वर्मा, 21 साल का गुड्डू वर्मा और राजो से भी छोटा उसका पांचवां पति 19 साल का दिनेश वर्मा है।

असल में देहरादून के इस छोटे से गांव में यह परंपरा है कि औरत को अपने पति के अन्य भाइयों से भी शादी करनी होती है। राजो की असल में गुड्डू के साथ शादी हुई थी। उसके बाद उसने परंपरानुसार गुड्डू के अन्य भाइयों के साथ भी शादी कर ली। हाल ही में इनका सबसे छोटा भाई दिनेश भी राजो का पति बन गया है।

राजो के पहले पति गुड्डू का कहना है कि उसे कभी यह दिक्कत पेश नहीं आई और न ही जलन हुई कि राजो उसके अलावा उसके चार और भाइयों के साथ भी रहती है।

शुक्रवार, 8 मार्च 2013

इरादा मज़बूत हो तो औरत को ख़ुशहाली मयस्सर आ सकती है


दुनिया सलामत है। दीन भी सलामत है। दीन धर्म से अलग हटकर रास्ते बनाने वाले भी अपने अपने काम कर रहे हैं। 8 मार्च का दिन अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के तौर पर मनाया जाता है। किसी के लिए साल में एक दिन मुक़र्रर करने का मतलब होता है, पूरे साल में हमने उसके प्रति जो किया है, उसका हिसाब किताब लगाना और अपना गुण दोष जांचना। आज हम देख रहे हैं कि औरत पिछले साल जहां थी, कुछ मैदानों में उससे आगे बढ़ी है तो सेहत और हिफ़ाज़त के मैदानों में उसे चोट खानी पड़ी है। उसे ख़रीदा और बेचा भी गया, उसका जबरन अपहरण भी किया गया, उसे उसकी पसंद के युवक से शादी करने के एवज़ में क़त्ल भी किया गया और अपने मां-बाप की इज़्ज़त की ख़ातिर निगाहें झुका कर चलने वाली लड़कियों के साथ बलात्कार भी किया गया। औरत की आबरू को बुरी तरह तार तार किया गया। छोटी छोटी बच्चियों को दरिंदों ने अपनी हवस का निशाना बनाया।
दीन धर्म को मानने वालों के रहते हुए यह सब हुआ। आधुनिक बुद्धिजीवियों की सतर्क निगरानी के बावजूद यह सब हुआ। अगले साल जब यह दिन आएगा, तब भी हम यही सब कह रहे होंगे।
यह सब नहीं होना चाहिए।
आदमी ठान ले तो यह सब नहीं हो सकता। आदमी पहाड़ को काटकर मैदान बना सकता है। आदमी पहाड़ पर ट्रेन चला सकता है। आदमी चांद को छू सकता है और वह मंगल को खोदकर ज़मीन पर ला सकता है। अगर यही आदमी चाहे तो वह अपनी मां, बहन और बेटियों को हिफ़ाज़त और इज़्ज़त भी दे सकता है।
अगर आज औरत को यह सब मयस्सर नहीं है तो यह हमारे इरादे की कमज़ोरी का सुबूत है।
किसी शायर ने कहा भी है -
कहिये तो आसमाँ को ज़मीं पर उतार लाएं
मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए

कितना अच्छा हो, अगर साल 2013 में यह नज़ारा देखने को मिले कि परंपरागत और आधुनिक समाज में यह होड़ लगे कि देखें कौन औरत को हिफ़ाज़त और सम्मान देने में दूसरे को पछाड़ता है ?
मज़बूत इरादे और सकारात्मक प्रतियोगिता के ज़रिये हम औरतों को वह सब दे सकते हैं, जो उनका वाजिब हक़ है।

सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

पितृभक्ति में श्रवण कुमार माधवी से छोटा होकर भी अधिक याद क्यों किया जाता है ?


माता पिता की सेवा का जब भी नाम आता है तो हमेशा श्रवण कुमार का नाम लिया जाता है।
क्या इसके पीछे भी पुरूषवादी मानसिकता ही कारण बनती है ?
क्या वैदिक इतिहास में किसी लड़की ने अपने माता पिता की सेवा नहीं की ?
अनगिनत लड़कियां ऐसी हुई हैं जिन्होंने अपने माता पिता की प्रतिष्ठा के लिए अपना सब कुछ दाँव पर लगा दिया।
एक लड़की का सब कुछ क्या होता है ?
उसकी इज़्ज़त, उसकी आबरू !
विवाह हो जाए तो पति के लिए उसके नाज़ुक जज़्बात और बच्चे हो जाएं तो अपने लाडलों की ममता !
माधवी ने अपने पिता ययाति की प्रतिष्ठा बचाने के लिए यह सब कुछ गंवा दिया लेकिन किसी से शिकायत तक न की। उसके त्याग और बलिदान के सामने श्रवण कुमार का शारीरिक श्रम कहीं नहीं ठहरता लेकिन फिर भी माधवी का नाम पितृभक्ति में कभी नहीं लिया जाता।
ऐसा क्यों ?



शनिवार, 8 सितंबर 2012

आंवले का तेल कैसे बनाया जाता है ?

शहनाज़ हुसैन ने अपने काम की शुरूआत अपने घर के बरामदे से की थी। आपके पास शुरूआत करने के लिए उससे अच्छी जगह हो सकती है।
आप मार्कीट में आंवले के तेल के नाम पर बहुत से हरे रंग के तेल बिकते हुए देखेंगे। उनमें आंवला नहीं होता। बस हरा रंग और आंवले की ख़ुश्बू होती है। वह भी तिल के तेल में नहीं बल्कि किसी सस्ते से रिफ़ाइन्ड ऑयल में जिसे केमिकल से प्रॉसिस किया जाता है और एक मशहूर ब्रांड के तेल में मिटटी का तेल भी डाला जाता है। जिसके असर से बाल समय से पहले सफ़ेद हो जाते हैं। अक्सर मशहूर ब्रांड का यही हाल है।
भृंगराज
 आपको आंवले का तेल चाहिए तो हमदर्द का लीजिए या फिर बैद्यनाथ का महाभृंगराज तेल लीजिए। भृंगराज एक औषधि है जो क़स्बों और देहात में नालियों के किनारे उगती है। इस पर सफ़ेद फूल आता है। हमें इसकी पहचान है। हमें यह मुफ़्त मिल जाता है वर्ना बाज़ार में सूखा हुआ बहुत महंगा मिलता है।
गूगल की मदद से आप इसका चित्र पहचान लीजिए तो आपको यह अपने घर के आस पास ही मिल जाएगा। आप अपने लिए महाभृंगराज का तेल ख़ुद बनाइये। आंवले का तेल भी आप ख़ुद बना सकते हैं। तरीक़ा बहुत आसान है।
मिसाल के तौर पर आप 10 ग्राम आंवले लीजिए और उसे सोलह गुने पानी में भिगो दीजिए। रात भर भीगने के बाद आप सुबह उसे मंद आंच पर पका लें। जब पानी आधा रह जाए तो यानि कि 80 ग्राम तो उसे छान लीजिए और उसमें 80 ग्राम तिल का तेल मिलाकर फिर आग पर पकाएं। जब पानी भाप बनकर उड़ जाए तो सिर्फ़ तेल बचेगा। यही वास्तव में आंवले का तेल है। इसमें आप बाज़ार से ख़ुश्बू और रंग अपनी पसंद का लेकर मिलाएं और बेचें।

आप भृंगराज का तेल भी इसी विधि से बना सकती हैं। ये नुस्ख़े बनाने मुश्किल लगें तो एक सस्ता और तेज़ असर करने वाला नुस्ख़ा हरेक बना सकता है। आप तिल के तेल में बरगद के पत्ते और उसकी दाढ़ी पकाकर भी बेचने लगें तो लोगों के बाल टूटना बंद हो जाएंगे। तेल का रिज़ल्ट आपके तेल की सेल बढ़ा देगा। कुछ दूसरे तरीक़ों से भी आप तेल तैयार कर सकते हैं। इन्हें आप यूट्यूब में उपलब्ध वीडियो में देख सकते हैं।
http://commentsgarden.blogspot.in/2012/09/how-to-make-amla-hair-oil-at-home.html

शनिवार, 1 सितंबर 2012

केयर ऑफ स्वात घाटी

''यह मेरी अस्मिता का प्रश्न है...विद्वता का अभिमान नहीं है मुझे। ज्ञान पर विश्वास अवश्य है। सब कहें तो कहें कि वाचकनु के ॠषिकुल में किसी स्त्री ने शास्त्रार्थ में भाग नहीं लिया फिर वह भी याज्ञवल्क्य जैसे महान ज्ञानी के समक्ष...समूचे राजदरबार के समक्ष राजा जनक के ब्रह्मयज्ञ में मैं ब्राह्मणत्व और आत्मा को लेकर कुछ प्रश्न उठाने का साहस बल्कि दुस्साहस करने जा रही हूँ । तुम मुझे रोको मत प्रिय। मेरे पिता ॠषि वाचकनु और मेरे बालसखा तुम ही ने तो मुझे तर्क का सामर्थ्य दिया है...तुम दोनों के बीच बैठ कर ही मैं ने यह सीखा है। मैं तुम्हारी वाग्दत्ता अवश्य हूँ मगर हूँ तो एक स्वतन्त्र इकाई। इस चराचर विश्व में विद्वजनों के प्रतिपादित नियमों के विपरीत सोचने और प्रश्न करने या खण्डन करने का तर्क मैंने अर्जित कर लिया है तो क्यों नहीं अब...याज्ञवल्क्य के समक्ष ऐसा अवसर दुर्लभ होता है। नहीं तुम मुझे नहीं रोक सकते। तुम्हें मेरी मर्यादा की चिन्ता है नहजारों पुरुषों के समक्ष, नेत्र और मस्तक उठा कर प्रश्न उठाऊंगी...तो लो मैं ने डाल लिया दुशाला अपनी यौवनपुष्ट देह पर, कहो तो इस सुन्दर मुख पर भी हवनकुण्ड की राख मल लूं और कुरूप कर लूं। यह जान लो, तुम और पिता से भी कह दो कि मेरी यह देह मेरे ज्ञान और प्रतिभा की कारा नहीं बन सकती। नहीं बन सकती।''
तालियों की गडग़डाहट से थिएटर हॉल गूंज उठा। सुगन्धा हल्के - हल्के हांफते हुए ग्रीनरूम में चली आई। साथियों ने उसे घेर लिया, फुसफुसा कर बधाई देने लगे।
'' वाह सुगन्धा, पहली ही बार में झण्डे गाड दिए।''
'' क्या डॉयलॉग डिलीवरी थी। शानदार। दर्शक दम साधे बैठे हैं।''
'' क्या सच ?''
'' हाँ।''
गार्गी बनी सुगन्धा ने एक नजर शीशे पर डाली, विद्रोहिणी, विदूषी ॠषिकन्या के वेश में उसने अपनी देह को लम्बवत देखा। वह हल्का - हल्का कांप जरूर रही थी मगर मंच पर बोले संवादों का ओज अब भी देह से उत्सर्जित हो रहा था। राजा जनक के नौरत्नों में एक रत्न 'गार्गी'। शास्त्रार्थ में भाग लेने को उत्सुक गार्गी। और सुगन्धा? वह कौन है? उससे अपनी पहचान की डोर छूटने लगी थी।
उसने रंगीन दुशाला बदला और सफेद दुशाला सीने और कंधों पर लपेट लिया। जंघा तक लहराते हुए खुले बाल खींच कर पीछे जूडे में बांधेफूल बालों से निकाल फेंके। उसके चौडे सांवले माथे पर पीले वाटरकलर से मेकअप आर्टिस्ट निधि ने चन्दन का - सा त्रिपुण्ड उसके माथे पर रचा दिया। बीच में लाल बिन्दु। वह अपनी बारी आने तक बाकी के संवाद बुदबुदाते हुए दोहराने लगी।
''भूत, भविष्य और वर्तमान क्या है। ये काल क्या है और किस पर बुना गया है इस काल का ताना - बाना और बुने जाने की पुनरावृत्तियां किसमें ओत - प्रोत हैं? महात्मन, स्वर्ग के ऊपर क्या है और धरती के नीचे क्या है, इन दोनों के बीच क्या है? ये ब्रह्मलोक क्या हैयह कैसे रचा गया और कब विकसित हुआ?
''गार्गी इतने प्रश्न मत कर कि तेरा ही सर ही फट जाए। ''
याज्ञवल्क्य बना अनुज अपने आसन से उठ खडा हुआ और उसे लाल आंखों से घूरने लगा। वह डायलॉग भूलने को थी मगरउसने मन से दो पंक्तियां मन से बोलीं फिर शेष खुद ब खुद जुबान पर आ गईं।
''क्षमा करें, महाराज जनक, मेरा उद्देश्य मेरे प्रश्न व्यर्थ नहीं हैं।'' सुगन्धा ने प्रश्नवाचक दृष्टि राजा जनक के सिंहासन की ओर डाली। राजा जनक ने दृष्टि झुका ली।
''महात्मन याज्ञवल्क्य, आप तो मुझे क्षमा करें। जैसे वैदेह या काशी के किसी योद्धा के किशोर पुत्र अपने ढीली डोर वाले धनुष पर भी बाण चढा कर युद्ध के लिए किसी को भी ललकार सकते हैं। इन प्रश्नों के पीछे वैसा ही बालसुलभ साहस ही समझ लें मगर उत्तर अवश्य दें। बस मेरे इन अंतिम दो प्रश्नों के उत्तर दें, मुझे पता है, आपके पास इन प्रश्नों के सटीक उत्तर हैं। देखिए न, ये सहस्त्र कामधेनुएं बडी बडी आँखों में प्रतीक्षा लिए आपके आश्रम के पवित्र वातवरण में हांकी जाने को उत्सुक हैं।'' कह कर ॠषि वाचकनु की पुत्री गार्गी शांत हो गई और अपने आसन से उठ कर एक गाय के भोले मुख को सहलाने लगी। तभी
याज्ञवल्क्य का स्वर गूंजा, ''तो फिर, सुन ओ गार्गी, ध्यान से सुन।''
गार्गी बनी सुगन्धा ने कुछ सुना कि नहीं न जाने कब नाटक खत्म हुआ उसे पता नहीं चला वह तो मंचसज्जा, अभिनय, परदों के गिरते - उठते क्रम, प्रकाश - संगीत के महीन जाल के बीच सुन्न खडी थी। तालियां उसे बार - बार वर्तमान में लाने के प्रयास में थीं। उसके सैलफोन पर श्यामल का संदेश जगमग कर रहा था। '' शानदार! तुम पर गर्व है, गार्गी।''
मेकअप उतारते हुए उसका ध्यान चेहरे की बांई तरफ गया। बांई आंख के नीचे एक खंरोच थी और उसके चारों तरफ एक काला और जामुनी निशान बना था। उसका शरीर ढीला हो गया। वह ओज जाता रहा...बेचारगी घर करती रही। गर्व से भरी आंखों में पानी भर आया। वह खुद को घसीटते हुए कपडे बदलने के लिए ड्रेसिंगरूम में ले गई। बाहर आते ही सहकलाकारों ने उसे घेर लिया, '' सुगन्धा, पहली ही परफॉरमेन्स में ये जलवे!''
''श्यामल को देखा होतावो किस कदर गर्व से झूम रहे थे। कोई उनसे कह रहा था कि 'वेदों का युग जीवन्त हो गया था और दर्शकों को अपनी दुनिया में लौटने में समय लगा।''
''सच?''
''हां।''
'' चलो सफल रहा पहला ही शो...कल अखबार भरे होंगे।''
'' भैय्ये, गए वो जमाने जब नाटकों की सफलता राजनीति और फिल्मों के साथ स्कोर कर पाती थी, रिव्यू आते थे। किसी कोने में छोटी खबर ही छप जाए तो गनीमत समझना।''
'' पागल है, यह श्यामल सर का नाटक है,अननोटिस्ड नहीं जाने वाला।''
सबका बाहर निकल कर निरूलाज में डिनर करने का कार्यक्रम पहले से तय था। श्यामल अपने महत्वपूर्ण मेहमानों और पत्रकारों के साथ बाहर व्यस्त थे। उसे अपनी हदें पता थीं, चुपचाप उसने बैग उठाया और सबसे विदा ली।
'' ये क्या यार!''
'' नहीं हो पाऐगा अनुज। छोटा वाला शाम के बाद नहीं रहता मेरे बिनाफिर मेरे पति भी आज बहुत व्यस्त हैं। छोडो न फिर कभी। बल्कि तुम सब लोग कभी सुबह घर आओ ब्रेकफास्ट पर, मैं तुम सब को खिलाउंगी पिजा या थाई फूड।''
'' हां, जल्दी ही तुम्हारे घर टपक पडेंग़े। बिना प्लान..''
'' बाय।''
''गुडनाइट।''
'' सुनो निधि, श्यामल को कहना, मैं जल्दी में थी। कल फोन पर बात करूंगी।''
थिएटर के गलियारों से निकल कर वह बाहर आई। श्रीराम सेन्टर के खुले छोटे लॉन में आकर उसने गहरी सांस ली, बालों को क्लचर में बांधा और दो सीढी उतर कर बस के इंतजार में बाईं तरफ बने एक टीनशेड में खडी हो गयी। मौसम तो सुबह ही से मुंह बना ही रहा था, अंधेरे के गहराते ही बरसात भी शुरू हो गई। टिन पर टपकती मोटी बूंदों ने तालियों की याद दिला दी। क्या उसे ही लेकर थीं वो तालियां। प्रशंसा में बजती तालियां? या मजाक उडाती तालियां। उसका चेहरे की सूजन पर ध्यान गया।
''बहुत दिनों से देख रहा हूँ। घर से खूंटा छुडा कर भागने लगी हो। बच्चों की तरफ ध्यान कम रहने लगा है। मान्या का रिपोर्ट कार्ड देखा? कैसे उसकी पोजिशन पहली से पांचवीं हो गई है हाफइयरली में।''
''जानते हो तुम, उसे चिकनपॉक्स हुए थे।''
'' तब भी तुम घर में कहां बैठी थीं।''
''बहस शुरू मत करो।''
''बहस की बात ही नहीं। बहस की गुंजाइश मैं नहीं छोडता। बस बन्द करो ये सब और घर में ठहरो थोडा। बच्चों को देखो। जब मेरे ऑफिस में बहुत व्यस्तता हो, तभी तुम्हारा कोई न कोई शौक मुंह उचकाने लगता है। पहले फ्रेन्च सीखूंगी। फिर ये थियेटर।''
''विनय, आज मूड्स मत दिखाना, आज मेरा पहला स्टेज परफॉरमेन्स है।''
'' देखो, नन्नू को बुखार है, मुझे रात देर होगी, आज तुम कहीं नहीं जा रही हो।''
'' मान्या है न, फिर मैं ने उसे क्रोसीन सिरप दे दिया है, फिलहाल वह सो रहा है। बस शाम छह से नौ तक की बात है।''
'' नहीं।''
'' प्लीज। नाटक की घोषणा हो गयी है। टिकट बिक चुके हैं। मेरा लीडिंग रोल है। इसे कोई और नहीं कर पाऐगा।विनय प्लीज।''
'' स्साले, अच्छा घन्टों बाहर डोलने का बहाना ढूंढ लिया है।''
'' तो क्या करुं? बच्चे स्कूल चले जाते हैं, तुम दफ्तर सुबह आठ से शाम आठ मैं क्या करूं? घर और बच्चे अकेले ने छूटें इसीलिए हमने यहां रिहर्सल कीं।''
'' ठीक है वो दिन - दिन की बात थी। अब रातों को भी...रात को इस शहर में बाहर भेज दूं तुम्हें...तुम्हें न सही मुझे तो तुम्हारी सुरक्षा का ख्याल है।'' वह नर्म पडा।
'' तो तुम साथ चलो।'' उसने भी कोशिश की।
'' बीवी की नौटंकी देखने? हिश्ट।'' वह घने तिरस्कार के साथ बोला। सुगन्धा चुप रही अगले कुछ मिनट, वह शीशे में देखकर टाई उतारता रहा।
''आज मेरा डिनर नहीं बनेगा। एक क्लाइंट के साथ डिनर है।बल्कि मैं चाहता हूँ कि तुम साथ चलो।''
'' क्यों अच्छा इंप्रेशन पडता है, जवान बीवी का?'' कह कर वह जबान भी नहीं काट पाई थी कि_
'' बकवास....बकवास करती है।'' कह कर विनय ने बांह मरोड दी।
'' मैं बकवास कर रही हूँ नौटंकी और थिएटर में फर्क करने की तमीज़ तो सीख लो।'' उसने बांह छुडा कर उसे धकिया दिया।
'' सीख ली...मेरी मौजूदगी तो मौजूदगी गैरमौजूदगी में भी तेरे नौटंकीबाज़ यार यहां मजमा लगाए तो रहते हैं। वो तेरा बंगालीबाबू श्यामल। उसकी फेमिनिस्ट बीवी अनामा जो तमाम मीडिया में फेमिनिज्म का झण्डा लेकर घूमती फिरती है। तू मत करना कभी ये कोशिश, वरना उसी झण्डे का डण्डा..... ''
'' तुमसे मुंह लगना बेकार है, बेटी के सामने भी अपना ये गन्दा मुंह खोलने से बाज नहीं आओगे...मैं जा रही हूँ ।''
'' तू कहीं नहीं जा रही। चुपचाप घर में बैठ।'' कह कर उसने उसे बिस्तर पर धकिया दिया। वह उठी और बैग उठा कर चलने लगी _ '' तू भी रोक कर देख ले।''
उसने तमतमा कर उसके चेहरे पर घूंसा मार दिया। अनामिका में पहनी शादी की अंगूठी की एक खरोंच आंख के पास उभर आई, खंरोंच के आस - पास तुरन्त सूजन आ गई। वह चेहरा सहलाती हुई तेजी से फ्लैट से उतर आई और गेट के बाहर आकर खडी हो गई। वह खिडक़ी में से चिल्लाया _
'' बहुत अकड क़े जा रही है ना? फिर सोच लेना, लौट कर घर आने की जरूरत नहीं है।''
''...''
'' देख जुर्रत मत करना लौटने की।''
एक टैक्सी वाला रुका, वह पीछे आती आवाज उपेक्षित कर टैक्सी में चढ ग़ई -'' मैट्रो स्टेशन।''
थिएटर पहुंची तो, वक्त अभी बाकी था। लडाई नहीं हुई होती तो बच्चों को को कुछ खिला कर, बहला कर आती। हडबडाहट में सब रह गया। यूं तो नौकरानी आऐगी ही, रोटी - सब्जी बनेगी। बच्चे बेमन से खाएंगे। कुछ उनकी पसंद का बना आती, बर्गर या पास्ता।
वह मंच की तरफ बढ आई वहां हल्का अंधेरा था। श्यामल मंच सज्जा और में तल्लीन था कुछ लडक़ों के साथ। मंच सज्जा अधुनातन और कलात्मक तरीके से की गई थी। बहुरंगी प्रकाश का प्रयोग ज्यादा था, बजाय चीजों और परदों और पेन्टिंगों के। कंप्यूटर की सहायता से 'वर्चुअल इमेजेज' यानि आभासी छायाओं का इस्तेमाल खूबसूरत भी है और कम खर्चीला भी। बहुरंगी प्रकाश के बीच गुरूकुल की सुबह का दृश्य बहुत सुन्दर बन पडा है, हिलते पेडों और कुटियों की महज छायाएं। नेपथ्य से गूंजते मंत्र और पंछियों की काकली के स्वर ध्वनि प्रभाव की तरह इस्तेमाल किए जाने हैं। मिथिला की आध्यात्म सभा के दृश्य के लिए हवा में डोलते सुनहरे परदों का इस्तेमाल किया जाना था, इसके लिए पीछे एक स्क्रीन पर नवग्रह चलायमान थे। एक ओर सहस्त्रों गायों की प्रतिच्छाया पडनी थी। एक कोने में एक बडा यज्ञकुण्ड रखना था जिसमें से निकलती अग्नि को उडती नारंगी झालरों के माध्यम से प्रस्तुत किया जाना था। एक सचमुच की सजी हुई गाय बाकि आभासी गायों का प्रतिनिधित्व करने को लाई गई थी। एक नाटक खासी तैयारी मांगता है। बहुत सा श्रम। पर्दे के पीछे का काम कम नहीं होता! सुगन्धा हैरान थी और शाम की क्लेश का प्रभाव उसके मन से जाता रहा। श्यामल की गंभीरता के पीछे इतना बडा कलाकार कहा छिपा रहता है? श्यामल, जिसके निकट रह कर उसने अपने व्यक्तित्व की थाह जानी है। श्यामल, जिसके पास बने रहना उसे सुख देता है।
श्यामल, जिससे वह आठ महीने पहले मिली थी, बडे भाई अनुराग के साथ। वो दोनों कॉलेज के मित्र रहे हैं। उस दिन श्यामल के एक बेहद लोकप्रिय नाटक का सौवां शो था। हफ्तों तक उस नाटक का नशा रहा था। तब उसने सोचा तक नहीं था कि एक दिन वह इसी लोकप्रिय नाटयनिर्देशक के निर्देशन में मंच पर उपस्थित होगी।
एक दिन, न जाने किस बहके हुए फुरसतिया क्षण में उस ने श्यामल को फोन किया था।
'' क्या मैं आपके किसी नाटक में एक पेड या खम्भे का रोल पा सकती हूँ?''
''नहीं, वहां भी लम्बी कतार है। परदा गिराने और उठाने वाले की जगह जरूर है,कर लोगी?''
'' हां, आपके नाटक में उपस्थित रहने के लिए कुछ भी करूंगी।''
''तुम्हारी क्वालीफिकेशन क्या है?''
'' एम एससी बॉटनी।''
'' मार डाला।''
'' क्यों?''
'' कलाओं से कहीं कोई दूर का वास्ता?''
'' न।''
''नाटक पढे?''
''नहीं।''
''देखे।''
''स्कूल में देखे। किए नहीं।''
'' गार्गी के बारे में सुना है?''
''कौन गार्गी?''
 '' पौराणिक पात्र?''
'' शायद हां, कभी स्कूल की किसी संस्कृत की किताब में या हिंदी के पाठ में...पर अब याद नहीं।''
'' नेट पर देखना और रिसर्च करके मुझे कल बताना। तुम मेरे साथ स्क्रिप्ट पर काम करोगी?''
'' मुझे स्टेज पर छोटी - सी उपस्थिति चाहिए थी। स्क्रिप्ट तो...! ''
'' स्टेज बाद की चीज है। नेपथ्य में काम करना सीखोगी तभी तो न मंच को समझोगी!''
''ठीक है।''
स्क्रिप्ट पर काम करने में दो महीने जाने कहाँ उडनछू हो गए। बहुत कुछ सीखा उसने श्यामल से। इस नाटक में गहरी रुचि जाग उठी। गार्गी के चरित्र ने उस पर असर डालना शुरू किया। स्क्रिप्ट देखकर श्यामल की पत्नी अनामा ने जब इस गैरपारंपरिक, कम ग्लैमरस रोल में रुचि लेने की जगह दूरदर्शन के चर्चित सीरियल में अपना समय देना ज्यादा पसंद किया तो श्यामल ने सुगन्धा में अपनी गार्गी को खोजा। लम्बे बाल, चौडा माथा, चौडा जबडा, कम झपकने वाली जिज्ञासु आंखें, गङ्ढे वाली ठोडी और जिद्दी व्यवहार जताती नाक। हल्की भारी आवाज...लम्बी और पुष्ट देह।
'' मैं कर पाऊंगी?''
''कर लोगी।''एक विश्वास था निर्देशक श्यामल का जिसका निर्वाह करना था सुगन्धा को।
वह जुट गई। दूध उफन रहा है, सुगन्धा रट रही है डायलॉग।
''याज्ञवल्क्य, बताओ तो जल के बारे में कहा जाता है कि उस में हर पदार्थ घुल मिल जाता है, तो यह जल किसमें जाकर मिल जाता है?''
''अच्छा आत्मन, फिर सच्चा ब्राह्मणत्व क्या है?''
साबुन के झाग से ढकी हुई देह को शीशे में देखती हुई वह... और शॉवर के साथ उसका एकालाप चलता जा रहा है, '' लो मैं ने डाल लिया दुशाला अपनी यौवनपुष्ट देह पर, कहो तो इस सुन्दर मुख पर भी हवनकुण्ड की राख मल लूं और कुरूप कर लूं। यह जान लो, तुम और पिता से भी कह दो कि मेरी यह देह मेरे ज्ञान और प्रतिभा की कारा नहीं बन सकती। नहीं बन सकती।''
वह मानो सपनों की किसी आसमानी दुनिया में रही थी पिछले कुछ महीने। आज समय आ गया था ज़मीन छूने का।
'' आ गई मेरी विदूषी गार्गी! राजा जनक के नौ रत्नों में से एक रत्न। वाचकनु ॠषि की पुत्री।''
'' वैसे श्यामल! मुझे शक है...''
'' बोलो न, मंच पर जाने से पहले अपने सारे शक दूर कर लो।''
' यही कि गार्गी का कोई मंगेतर था भी, कोई उसका बाल - सखा, ॠषि वाचकनु का शिष्य। जिसे आपत्ति होती कि गार्गी आध्यात्म सभा में अन्य आठ शास्त्रार्थ करने वाले ज्ञानियों के साथ जाए और याज्ञवल्क्य से सवाल करे! आपने स्क्रिप्ट में यह मिथक बुना है या यह सच है। वह सदा की बालब्रह्मचारिणी थी या बाद में अविवाहित रहने का प्रण लिया? नेट पर बालब्रह्मचारिणी होने का ही जिक़्र है। कई लोगों ने उसे याज्ञवल्क्य की पत्नी भी समझा है।''
''मिथक हो कि कल्पना...जो नाटक को पूर्णता व सार्थकता दे वही सही है। मुझे कहीं लगता है कि सुन्दर और युगप्रवर्तक गार्गी को प्रेमी या मित्रविहीन बना कर बृहदारण्यक उपनिषद में ज्यादती हुई है। उस युग की स्त्री टाईम और स्पेस को लेकर सवाल कर रही है! बडी बात है। वही सवाल जिनके अंत में उसने उत्तर चाहे थे, स्पेस और टाईम के बाहर क्या है? ब्रहान्ड। तो फिर पूछती है यह ब्रह्माण्ड किसके अधीन है जिसका गोल - मोल उत्तर याज्ञवल्क्य महाशय देते हैं जिनका लॉजिक मैं नहीं समझ पाता।''
''ऐसा क्यों?''
''वही कि कोई अविनाशी तत्व। अक्षरत्व। जिसके अनुसासन व प्रशासन में सब ओत - प्रोत है। ऑल रबिश! समझती नहीं, प्रश्नों के उत्तर की जगह गार्गी को धमकी देने वाले याज्ञवल्क्य को निरूत्तर छोड क़र पुरुष जाति की हेठी करानी थी क्या? जबकि वे उत्तरविहीन हो चुके थे मगर हो सकता है कि क्षेपक की तरह आगे जोडा गया हो, या उनके खीजने पर गार्गी ने ही स्वयं वे उत्तर दिये हों। हो सकता है कि प्रेम या सम्मान के कारण गार्गी ने अंत में कहा हो कि 'याज्ञवल्क्य के पास हर प्रश्न का उत्तर है, चाहे वह धरती या ब्रह्मलोक से जुडा हो या अंतरिक्ष से। ब्राह्मणत्व या पुरुष की इयत्ता से जुडे प्रश्न हों...वे ब्रह्मर्षि हैं। वे इन सहस्त्रों गायों के अधिकारी हैं।' मगर फिर स्त्री की इयत्ता? यह प्रश्न क्यों नहीं किया गार्गी ने और मेरी विवशता देखो कि मैं गार्गी के सम्मान में इस उपनिषद के किसी तथ्य को कल्पना से बदल नहीं सकता, अन्दाजा लगा कर भी नहीं...पता है, लोग थियेटर फूंक देंगे। गार्गी की मां, बालसखा और संगी साथियों तक का हल्का - सा जिक़्र कहीं नहीं है।''
'' हाँ।''
''अपनी परंपरा की विरासत इतनी समृद्ध है, मगर हमारे पास सही तथ्यों के मामले में दरिद्रता ही दरिद्रता है। विवश कर देने वाली दरिद्रता। उस समय के ब्राह्मणों ने सदियों तक अपने लाभ के लिए बहुत कुछ नष्ट हो जाने दिया और बहुत कुछ क्षेपकों की तरह हमारे महान ग्रन्थों में जोड दिया।''
सुगन्धा चकित हो श्यामल की पीडा को देखने लगी तो वह संभला।
'' खैर, डायलॉग्स जहां - जहां भूलती थीं वहां सुधारा ? सुगन्धा कर तो लोगी न! खासी भीड होगी।''
'' हाँ, शायद। पता नहीं। डराइए मत।''
'' एक्सप्रेशन शार्प और ड्रामेटिक रखना। पौराणिक नाटक है। फिर दिन की रिहर्सल और रात में मंच की नकली रोशनी में फर्क होता है। तुम्हारे उच्चारणों पर तो पूरा कॉन्फीडेन्स है मुझे। वही तुम्हारी ताकत है। गुड लक, सुगन्धा। तुम ग्रीनरूम में चलो, मैं पहुंचता हूँ। निधि वहां है तुम्हारे कॉस्टयूम के साथ।''
कॉस्टयूम पौराणिक किस्म का था। कंचुकीनुमा ब्लाउज़, नाभिदर्शना साडी, सुनहरे दुशाले ने राहत दी। श्यामल कॉस्टयूम को लेकर बहुत सजग रहते हैं। वह बाल काढ रही थी कि श्यामल ग्रीन रूम में आए।
''निधि, सुगन्धा के ये बाल खुले रहेंगे पहले सीन में। दूसरे - तीसरे सीन में जब वह 'ब्रह्मचारिणी' रहने का प्रण लेती है, उसके बाद से यह जूडे में बंधे हुए रहेंगे। माथे पर चन्दन का त्रिपुण्ड रहेगा। यह सुनहरा दुशाला सफेद रंग के दुशाले से बदला जाऐगा। सुनो मुझे मेकअप एकदम सादा चाहिए मगर वेल डिफाइन। नेचुरल लिप्सटिक, गहरी आंखें।''
श्यामल कहते हुए कुछ हैरान सा सुगन्धा की तरफ बढा।
''सुगन्धा यह चेहरे पर क्या हुआ है? कल तक तो यह नहीं था। इतनी गहरी खरोंच और यह नीला निशान?''
'' बाथरूम में फिसल गई थी, नल से लग गई।'' उसने लगभग बुदबुदाते हुए कहा था। श्यामल अविश्वास के साथ उसे गौर से देखता रहा। वह चुप था मगर उसकी अनुभवी आंखें बोल रही थीं_
''पन्द्रह बरस हुए होंगे मुझे थिएटर करते हुए। तुम लोगों के पास अब बहाने भी खत्म हो चले हैं। मेरे नाटकों की गार्गियां, आम्रपालियां, वसंतसेनाएं, वावसदत्ताएं देवयानियां, शर्मिष्ठाएं...यूं ही चेहरे पर अपनों के विरोध के हिंसक निशान लेकर थिएटर आती रही हैं। बहाने भी अमूमन यही सब रहते हैं , मसलन बाथरूम में फिसल गई थी। बच्चे ने खिलौना कार से मार दिया गलती से। टैक्सी या बस के दरवाजे से टकरा गई। तुम पहली तो नहीं हो, सुगन्धा! ''
प्रत्यक्षत: वह इतना ही बोला और बाहर निकल गया, ''कोई बात नहीं, जाओ पहले बर्फ लगा कर सूजन दबा दो फिर कन्सीलर लगा कर, गहरा फाउण्डेशन लगा लेना।समय होने वाला है जल्दी करो।'' वह उसे ग्रीन रूम में शर्मिन्दा छोड ग़या था। उसे लगा वह सारे संवाद भूल जाऐगी। उसने अपने संवादों वाला पुलिन्दा निकाल लिया। बेमन से उन काले शब्दों को पढने लगी थी, जिनके अर्थ उन शब्दों के छोटे कलेवर में समाए नहीं समा रहे थे। खैर, चलो यह नाटक तो पूरा हुआ।
बस आने में देर लग रही थी। शेड में खडे लोग एक - एक कर टैक्सियां पकड रहे थे। वह भी एक टैक्सी की तरफ बढी।
''कहा जाना है, मैडम?''
उसके कानों में खिडक़ी से उछल कर किसी पत्थर की तरह पीठ पर पडी आवाज़ ग़ूंजी।
'' डोन्ट कम बैक होम। इस जुर्रत के साथ घर लौटने की जरूरत नहीं है।''
'' मैडम,बारिश तेज हो रही है कहाँ जाना है ?
''कहाँ?'' क्या वह भूल गई?
''गुरूकुल या वैदेह के दरबार से बाहर आओ, गार्गी। मंच और थिएटर के बाहर तुम्हारा एक घर है। वहाँ बच्चे हैं। विनय है। विनय डिनर पर बाहर गया होगा। बच्चों ने नौकरानी के हाथों खाना पता नहीं खाया होगा या टीवी देखते होंगे। मान्या का होमवर्क अधूरा होगा। नन्नू को बुखार है। इडियट, यह सब भूल कैसे सकती हो?
'' मैडम? किधर जाना है? ''
'' घर...ऑफकोर्स घर ही।''
'' घर किधर? पता है कोई?''
''हाँ, है।'' सुगन्धा टैक्सी में घुसते हुए बोली। ड्राइवर ने टैक्सी बढा दी। उसने सीट से सर टिका लिया। शीशे के बाहर की तेज होती बारिश धीरे - धीरे आंखों में होने लगी। उसने आंखें बन्द कीं तो दो बूंदे, पलक की कोरों पर आकर उलझ गईं। टपकने से पहले उसने उन्हें रुमाल में सोख लिया। मन ने कहा - ''मेरा पता क्या पूछते हो, मैं तो प्रज्ञा और गर्भाशय के बीच उलटी लटकी हूँ। प्रज्ञा आसमान छूना चाहती है, गर्भाशय धरती में जडें धंसाए हुए है। फिर भी, हाँ, है पता मेरा भी पता है। तुम सुनो, सब सुन लें।''
सुगन्धा बहुत धीमे होठों में बुदबुदाने लगी।
''मैं गार्गी, केयर ऑफ याज्ञवल्क्य। मैं दुश्चरित्र अहिल्या केयर ऑफ गौतम ॠषि। मैं भंवरी देवी, मैं रूप कंवर केयर ऑफ लोक पंचायत, केयर ऑफ ऑनर किलिंगकेयर ऑफ चेस्टिटी बैल्ट। पब में पीटी जाने वाली लडक़ी हूँ, केयर ऑफ शिवसेना। नाजनीन फरहदी हूँ केयर ऑफ तेहरान जेल। सरेआम कोडे ख़ाने वाली वो कमसिन लडक़ी...केयर ऑफ स्वात घाटी।''
-मनीषा कुलश्रेष्ठ
http://mankiduniya.blogspot.com/2012/09/blog-post.html

गुरुवार, 2 अगस्त 2012

घर के साथ बाहर का काम कर रहा है औरत को बीमार

सेवा क्षेत्र में घटती महिलाओं की भागीदारी
ऋतु सारस्वत, समाजशास्त्री 
महिलाओं की सेवा क्षेत्र में लगातार घट रही भागीदारी को देखते हुए योजना आयोग ने सरकार को यह सुझाव दिया है कि 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान देश में सृजित होने वाली ढाई करोड़ नई नौकरियों में से आधी महिलाओं को मिलें। यह प्रस्ताव महिला सशक्तीकरण को नई दिशा दे सकता है। यूं तो ‘महिला सशक्तीकरण’ एक व्यापक अवधारणा है, पर उसका केंद्रबिंदु ‘निर्णय लेने की स्वतंत्रता’ है और यह तभी संभव है, जब महिलाएं आत्मनिर्भर हों। महिलाएं देश का महत्वपूर्ण मानव संसाधन हैं, इसलिए सामाजिक-आर्थिक विकास का अत्यंत महत्वपूर्ण निर्धारक तत्व भी हैं। चिंता का विषय यह है कि पिछले तीन दशकों में महिलाओं के वंचित रह जाने की समस्या को खत्म करने में सफलता नहीं मिली है। आम राय यह है कि आर्थिक मोर्चे पर भारतीय महिलाएं बड़ी तेजी के साथ आगे बढ़ रही हैं, परंतु आंकड़े इससे उलट कुछ और बयान कर रहे हैं। 2009-10 के एक सर्वे के मुताबिक, ‘कार्य’ में महिलाओं की भागीदारी की दर 2004-05 में 28.7 प्रतिशत थी, जो 2009-10 में घटकर 22.8 प्रतिशत रह गई। जब देश के चुनिंदा आला पदों पर आसीन महिलाएं फोर्ब्स पत्रिका में स्थान पा रही हैं, तो आर्थिक मोर्चे पर महिलाओं की भागीदारी घटना हैरत की बात है। दरअसल, भारतीय महिलाओं के लिए यह एक ऐसा संक्रमण काल है, जहां एक ओर उनके लिए आर्थिक स्वतंत्रता ने द्वार खोल रखे हैं, तो दूसरी ओर उनकी परंपरागत पारिवारिक जिम्मेदारियां हैं, जिन्हें निभाने की सीख उन्हें बचपन से ही दी जाती है। यह जरूर है कि शहरी संस्कृति से ताल्लुक रखने वाले ऐसे मध्यवर्गीय परिवारों की तादाद में बढ़ोतरी हुई है, जिन्होंने अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए औरतों को बाहर जाकर काम करने की ‘इजाजत’ दी है। इसके बावजूद उन्हें परिवार के कार्यो से मुक्ति मिलती हो, ऐसा नहीं है। दूसरी ओर कार्यस्थल पर होने वाला लैंगिक भेदभाव, उनके प्रबंधन, नेतृत्व व कार्यक्षमताओं पर विश्वास न करने की मानसिकता, उन्हें उनके पुरुष सहकर्मियों की अपेक्षाकृत अधिक चुनौती देती है। यही दोहरा दबाव भारतीय महिलाओं  को ‘आर्थिक स्वतंत्रता’ की सोच को ही तिलांजलि देने के लिए प्रेरित करता है। ब्रिटेन में हुए एक सर्वे के मुताबिक, सुबह छह बजे बिस्तर छोड़ने के बाद से रात 11 बजे से पहले तक उन्हें एक पल की फुरसत नहीं होती। अनवरत काम से उनका शरीर बीमारियों का गढ़ बनने लगता है। यह स्थिति भारतीय संदर्भ में और गंभीर है, जहां पुरुष घरेलू कामकाज में सहयोग देना आज भी उचित नहीं समझते। क्या स्त्री की इससे मुक्ति संभव है? है, बशर्ते परिवार के पुरुष सदस्य उसे अपनी ही भांति इंसान मानना शुरू कर दें और घर की जिम्मेदारियों को निभाने में उसके वैसे ही सहयोगी बनें, जैसे परिवार की आर्थिक सुदृढ़ता के लिए स्त्री ने बाहर जाकर काम करना स्वीकारा है।

साभार दैनिक हिन्दुस्तान दिनांक 3 अगस्त 2012 पृष्ठ 12 
http://auratkihaqiqat.blogspot.com/2012/08/women-empowerment.html