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रविवार, 24 सितंबर 2017

बेशर्म हैं वो लाठियां



डूब कर मरने की भी
बददुआ है बेअसर,
आंख का पानी भी जिनका
सूख गया इस कदर,
न्याय के लिए बढ़ी
बेटियों को क्या मिला?
ज्यादती की इंतिहां
हैं पुलिस की लाठियां!!!

हक नहीं गर बेटियों को
बोलने का देश में,
तानाशाही चल रही
जनतंत्र तेरे भेष में,
न रूकेगा बेटियों
जान लो ये सिलसिला,
ज्यादती की इंतिहां
है पुलिस की लाठियां!

बेशर्म है वो लाठियां
बेटियों पर जो पड़ी,
बेशर्म हैं वो हाथ जिनमें
लाठियां थी वे थमी,
अब ढ़हाना है हमें
बेशर्म ताकत का किला,
ज्यादती की इंतिहां
हैं पुलिस की लाठियां!!

शिखा कौशिक नूतन 

गुरुवार, 21 सितंबर 2017

ब्रह्मरूप-पुरुष –उठो जागो बोध प्राप्त करो--डा श्याम गुप्त

----ब्रह्मरूप-पुरुष –उठो जागो बोध प्राप्त करो ---
------माँ शक्ति रूपा के आगमन के प्रथम दिवस पर----
-----आदिशक्ति...नारी सृष्टि का आधार है, परन्तु ‘एकोहं बहुस्यामि’ के सृष्टि-विचार का आधार तो ब्रह्म...पुरुष ही है |
                         मनुस्मृति---पुरुष ही लिखता है, किसी भी नारी ने कोई महान कालजयी ग्रन्थ की रचना की है?..नहीं| इसमें पुरुष-प्रधान समाज का घिसा-पिटा गाना गाया जासकता है परन्तु उस समाज में तो नारी-पुरुष का समान अधिकार था | तभी तो लोपामुद्रा, घोषा, अपाला, यमी, भारती आदि ऋषिकाओं की उपस्थिति है |
                         जब जब भी पुरुष निर्बल, असहाय होजाता है तब-तब नारी दुर्गा रूप लेकर युद्धरत होती है ..यह अवधारणा केवल भारत में ही है, अन्य कहीं है भी तो यहीं से गयी हुईं, फ़ैली हुई संस्कृतियों में व उनकी स्मृतियों/ कथाओं में हैं|
                    परन्तु दुर्गा को बल ब्रह्मा, विष्णु, शिव व अन्य देवता, अर्थात पुरुष ही, अपनी शक्तियों के रूप में देते हैं तब दुर्गा में शक्ति का अवतरण होता है | उस प्रचंड शक्ति के काली रूपमें उद्दाम, असंयमित वेग को पुरुष (महादेव) ही रोकता है, नियमित करता है |
                        पुरुष-श्री कृष्ण के गुणों पर नारियां रीझती हैं, विष्णु को पति रूप में पाने हेतु, शिव के लिए भी तप करती हैं ..परन्तु कोइ एसा केंद्रीय नारी चरित्र नहीं है जिसके गुणों पर संसार भर के पुरुष रीझ जाएँ | हाँ शारीरिक रूप सौन्दर्य के दीवानों की गाथाएँ मिलतीं हैं अथवा महामाया माँ दुर्गा पर सौंदर्य लोलुप दुष्ट दानवों, असुरों द्वारा अनुचित प्रस्ताव रखने पर मृत्यु को वरण करने की गाथाएँ |
                    अतः निश्चय ही सृष्टि की जनक नारी है परन्तु पुरुष की नियमन व्यवस्था के अनुसार | अतः आज के परिप्रेक्ष्य में ---
-----वे पुरुष के आचरण सुधार की बातें करती रहेंगी एवं स्वयं सलमान खान व शाहरुख के पीछे भागती रहेंगीं|
-----वे हीरोइनों के वस्त्राभूषणों की नक़ल करेंगीं, स्वतंत्र रूप से रात-विरात अकेली स्वच्छंदता का भी अनुसरण करेंगीं ( जबकि हीरोइनें तो बोडीगार्ड के साथ रहती हैं)| हीरोइनों के पीछे भागने की वजाय सलमान, शाहरुख के पीछे भागेंगी | ( कुछ विद्वान नारियां हर काल की तरह अपवाद भी होती हैं ) |
------वे कहेंगीं कि समाज अपनी सोच बदले | समाज में तो स्त्री-पुरुष दोनों ही होते हैं अकेले पुरुष से कब समाज बनता है अतः दोनों को ही सोच बदलनी चाहिए |
-----वे पुरुष को साधू-संत बनने को कहेंगीं परन्तु स्वयं डायरेक्टर की इच्छा/आज्ञा पर /पैसे के लिए वस्त्र उतारती रहेंगीं |
------ वे देह –दर्शना वस्त्र पहनती रहेंगीं, उनका तर्क है की छोटी-छोटी बालिकाओं से, गाँव में पूरे वस्त्र पहने महिलाओं से भी वलात्कार होता है अतः वस्त्र कम पहनने से कुछ नहीं होता अपितु पुरुष व समाज को अपनी मानसिकता बदलनी होगी|
                    वे भूल जाती हैं कि- कम वस्त्रों, अश्लील चित्रों, सिनेमा, विज्ञापन आदि से जाग्रत उद्दाम वासना से जो भी व्यक्ति की पहुँच में होगा वही प्रभावित होगा | आप तो बाडीगार्ड, परिवार आदि की सुरक्षा में हैं, कौन हाथ डालने की हिंम्मत करेगा| चोर किसी प्रधानमन्त्री या पुलिस वाले के घर चोरी करने थोड़े ही जायेगा, जहां सुरक्षा कम है वहीं दांव लगाएगा |
------- इनसे कुछ नहीं होगा ----
                          अतः हे पुरुषो ! ब्रह्म रूप बनो, अपनी ज्ञान, विवेक व सदाचरण रूपी दैविक शक्तियां जाग्रत करो...उदाहरण बनो और अपनी जाग्रत शक्तियों को प्रदान करो नारी को ताकि वह पुनः दुर्गा का दुष्ट दलन रूप बनकर समाज में पूज्य बने |
                    और आप सच में ही---“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” के महामंत्र के गान के योग्य बनें |


चित्र--सिंह वाहिनी माँ की वन्दना रत त्रिदेव व ऋषि-मुनि----
------महाभारत -गूगल साभार

शनिवार, 16 सितंबर 2017

ये है नारी शक्ति

 

नारी की सशक्तता यहाँ देखो /इनमे देखो .


मैंने बहुत पहले एक आलेख लिखा था-

Maa DurgaMaa DurgaMaa Durga

ये सर्वमान्य तथ्य है कि महिला शक्ति का स्वरुप है और वह अपनों के लिए जान की बाज़ी  लगा भी देती है और दुश्मन की जान ले भी लेती है.नारी को अबला कहा जाता है .कोई कोई तो इसे बला भी कहता है  किन्तु यदि सकारात्मक रूप से विचार करें तो नारी इस स्रष्टि की वह रचना है जो शक्ति का साक्षात् अवतार है.धेर्य ,सहनशीलता की प्रतिमा है.जिसने माँ दुर्गा के रूप में अवतार ले देवताओं को त्रास देने वाले राक्षसों का संहार किया तो माता सीता के रूप में अवतार ले भगवान राम के इस लोक में आगमन के उद्देश्य को  साकार किया और पग-पग पर बाधाओं से निबटने में छाया रूप  उनकी सहायता की.भगवान विष्णु को अमृत देवताओं को ही देने के लिए और भगवान् भोलेनाथ  को भस्मासुर से बचाने के लिए नारी के ही रूप में आना पड़ा और मोहिनी स्वरुप धारण कर उन्हें विपदा से छुड़ाना पड़ा.
हमारे संस्कृत ग्रंथों में कहा गया है -
"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते,रमन्ते तत्र देवता."
प्राचीन काल  का इतिहास नारी की गौरवमयी  कीर्ति से भरा पड़ा है.महिलाओं ने समय समय पर अपने साहस पूर्ण कार्यों से दुश्मनों के दांत खट्टे किये हैं.प्राचीन काल में स्त्रियों का पद परिवार में अत्यंत महत्वपूर्ण था.गृहस्थी का कोई भी कार्य उनकी सम्मति के बिना नहीं किया जा सकता था.न केवल धर्म व् समाज बल्कि रण क्षेत्र में भी नारी अपने पति का सहयोग करती थी.देवासुर संग्राम  में कैकयी ने अपने अद्वित्य रण कौशल से महाराज दशरथ को चकित किया था.
गंधार के राजा रवेल की पुत्री विश्पला ने सेनापति का दायित्व स्वयं पर लेकर युद्ध किया .वह वीरता से लड़ी पर तंग कट गयी ,जब ऐसे अवस्था में घर पहुंची तो पिता को दुखी देख बोली -"यह रोने का समय नहीं,आप मेरा इलाज कराइये मेरा पैर ठीक कराइये जिससे मैं फिर से ठीक कड़ी हो सकूं तो फिर मैं वापस शत्रुओसे  सामना करूंगी ."अश्विनी कुमारों ने उसका पैर ठीक किया और लोहे का पैर जोड़ कर उसको वापस खड़ा किया -

" आयसी जंघा विश्पलाये अदध्यनतम  ".[रिग्वेद्य  १/ ११६]
इसके बाद विश्पला ने पुनः     युद्ध किया और शत्रु को पराजित किया.
महाराजा  रितध्वज    की पत्नी      मदालसा ने अपने पुत्रों को समाज में जागरण के लिए सन्यासी बनाने का निश्चय किया .महाराजा   रितध्वज के आग्रह पर अपने आठवे पुत्र अलर्क को योग्य शासक बनाया.व् उचित समय पर पति सहित वन को प्रस्थान कर गयी.जाते समय एक यंत्र अलर्क को दिया व् संकट के समय खोलने का निर्देश दिया.कुछ दिनों बाद जब अलर्क के बड़े भाई ने उसे राजपाट सौंपने का निर्देश दिया तब अलर्क ने वह यंत्र खोला जिसमे सन्देश लिखा था-"संसार के सभी ईश्वर अस्थिर हैं तू शरीर मात्र नहीं है ,इससे ऊपर उठ."और उसने बड़े भाई को राज्य सौंप देने का निश्चय किया.सुबाहु इससे अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें ही राज्य करते रहने का आदेश दिया.राजा  अलर्क को राज ऋषि की पदवी मिली .यह मदालसा की ही तेजस्विता थी जिसने ८ ऋषि तुल्य पुत्र समाज को दिए.
तमलुक [बंगाल] की रहने वाली मातंगिनी हाजरा ने ९ अगस्त १९४२ इसवी में भारत छोडो आन्दोलन में भाग लिया और आन्दोलन में प्रदर्शन के दौरान वे ७३ वर्ष की उम्र में अंग्रेजों की गोलियों का शिकार हुई और मौत के मुह में समाई .
असम के दारांग जिले में गौह्पुर   गाँव की १४ वर्षीया बालिका कनक लता बरुआ ने १९४२ इसवी के भारत छोडो आन्दोलन में भाग लिया .अपने गाँव में निकले जुलूस का नेतृत्व इस बालिका ने किया तथा थाने पर तिरंगा झंडा फहराने के लिए आगे बढ़ी पर वहां के गद्दार थानेदार ने उस पर गोली चला दी जिससे वहीँ उसका प्राणांत हो गया.
इस तरह की नारी वीरता भरी कहानियों से इतिहास भरा पड़ा है.और किसी भी वीरता,धैर्य        ज्ञान      की तुलना नहीं की जा सकती.किन्तु इस सबके बावजूद नारी को अबला  बेचारी  कहा जाता है.अब यदि हम कुछ और उदाहरण  देखें तो हम यही पाएंगे कि नारी यदि कहीं झुकी है तो अपनों के लिए झुकी है न कि अपने लिए .उसने यदि दुःख सहकर भी अपने चेहरे पर शिकन तक नहीं आने दी है तो वह अपने प्रियजन    के दुःख दूर करने के लिए.
कस्तूरबा गाँधी,जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका में घूमकर महिलाओं में सत्याग्रह का शंख फूंका .चंपारण ,भारत छोडो आन्दोलन में जिनका योगदान अविस्मर्णीय रहा ,ने भी पतिव्रत धर्म के पालन के लिए कपडे धोये,बर्तन मांजे और   ऐसे ऐसे कार्य किये जिन्हें कोई सामान्य भारतीय नारी सोचना भी पसंद नहीं करेगी.
महाराजा जनक की पुत्री ,रघुवंश की कुलवधू,राम प्रिय जानकी सीता ने पतिव्रत धर्म के पालन के लिए वनवास में रहना स्वीकार किया.
हमारे अपने ही क्षेत्र की  एक कन्या मात्र इस कारण से जैन साध्वी के रूप में दीक्षित हो गयी कि उसकी बड़ी बहन के साथ उसके ससुराल वालों ने अच्छा व्यव्हार नहीं किया और एक कन्या इसलिए जैन साध्वी बन गयी कि उसकी प्रिय सहेली साध्वी बन गयी थी.
स्त्रियों का प्रेम, बलिदान ,सर्वस्व समर्पण ही उनके लिए विष बना है.गोस्वामी तुलसीदास जी नारी को कहते हैं-
"ढोल गंवार शुद्रपशु नारी,
ये सब ताड़न के अधिकारी. "
वे एक समय पत्नी  प्रेम में इतने पागल थे कि सांप को रस्सी समझ उस पर चढ़कर पत्नी  के मायके के कमरे में पहुँच गए थे.ऐसे में उनको उनकी पत्नी  का ही उपदेश था जिसने उन्हें विश्व वन्दनीय बना दिया था-
"अस्थि चर्ममय देह मम तामे ऐसी प्रीती,
ऐसी जो श्रीराम में होत न तो भाव भीती."
इस तरह नारी को अपशब्दों के प्रयोग द्वारा    जो उसकी महिमा को नकारना चाहते हैं वे झूठे गुरुर में जी रहे हैं और अपनी आँखों के समक्ष उपस्थित सच को झुठलाना चाहते हैं .आज नारी निरंतर प्रगति पथ पर आगे बढ़ रही है .भावुकता सहनशीलता जैसे गुणों को स्वयं से अलग न करते हुए वह पुरुषों के झूठे दर्प के आईने को चकनाचूर कर रही है .अंत में नईम अख्तर के शब्दों में आज की नारी पुरुषों से यही कहेगी-
"तू किसी और से न हारेगा,
तुझको तेरा गुरुर मारेगा .
तुझको    दस्तार जिसने बख्शी है,
तेरा सर भी वही उतारेगा ."

आज मैं उसी कड़ी में अपने विचारों को आगे रख रही हूँ और बता रही हूँ नारी के ऐसे वर्ग के बारे में जो सशक्त है सबल है और केवल इसलिए क्योंकि वह भावुकता जैसी कमजोरी से कोसों दूर है .बहुत दिन पहले मेरे पापा ने मुझे बताया कि वे एक कमीशन में गए थे वहां पर जाट समुदाय की एक बुजुर्ग महिला ने उन्हें बताया कि -''बाबूजी !हम जाट औरतें अपना कार्य स्वयं देखती हैं और अपने पुरुषों पर आश्रित नहीं हैं .अन्य समुदायों में जैसे  औरतें आदमियों का हर काम में मुंह देखती हैं और उनके लिए ही भगवान के आगे झुकी रहती हैं हम्मे ऐसा नहीं है और इसलिए हममे न करवा चौथ होती है और न ही रक्षा बंधन .हम खुद पर ही ज्यादा विश्वास करती हैं और अपने आदमियों को अपने मालिक का दर्जा नहीं देती ''और ये हम सभी देखते भी हैं जाट औरतें जाट आदमियों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चलती हैं और खेती हो या नौकरी हर काम में अपना दबदबा रखती हैं .
ऐसे ही जैन समुदाय है जिसमे हमारे क्षेत्र में अधिकांश सर्राफ हैं और इनकी औरतें इनमे आदमियों से पूरी बराबरी करती हैं और अतिश्योक्ति न होगी अगर यह कहा जाये कि आदमियों को अपनी मुट्ठी में रखती हैं .ये धन का ,जेवर का लेनदेन आदि सभी कार्यों में बराबर का सहयोग व् हिस्सा रखती हैं और इनके परिवार में कोई भी फैसला हो इनकी जानकारी व् साझेदारी के बगैर नहीं लिया जा सकता .
बहुत अभिमान करते हैं हम अपने उच्च वर्ग या माध्यम वर्ग से सम्बंधित होने पर किन्तु यदि सच्चाई से बात की जाये तो सबसे अधिक सबल नारी निम्न वर्ग की ही कही जाएगी और इसका प्रत्यक्ष उदाहरण आप सभी स्वयं देख सकते हैं .सुबह सवेरे हम जैसे ही अपने घर के बाहर देखते हैं तो पाते हैं कि बहुत सी नारियों का झुण्ड चला जा रहा है जो कमीज-पेटीकोट पहने होती हैं और उनके हाथों में हंसिया -खुरपी आदि औजार होते हैं दिन भर वे इन औजारों से खेतों में मेहनत करती हैं और शाम को फिर ऐसे ही बतियाते हुए लौटती हैं जैसे सुबह काम पर जाते हुए बतिया रही थी .यही नहीं कहने को अनपढ़ कही जाने वाले ये महिलाएं किसी से सशक्ति करण की मांग नहीं करती और देश के लिए अपने घर परिवार के लिए एक मुखिया की हैसियत में ही काम करती हैं और अपना दबदबा सभी के दिमाग पर बनाये रखती हैं ये वे हैं जो भरे पूरे आदमियों के परिवारों में होते हुए भी अपने जानवरों को स्वयं हांककर घर कुशलता से ले आती हैं और इस तरह पुरुष की ताकत को दरकिनारकर एक तरफ रख देती हैं 

.
 

.कारण केवल एक है ये अपने वर्चस्व की राह में और कार्य के बीच में भावुकता को आड़े नहीं आने देती और पूर्ण व्यावसायिक होकर अपने कर्मक्षेत्र पर आगे बढती हैं और ये कभी किसी के आगे नारी की कमजोरी का रोना नहीं रोती क्योंकि ये वे हैं जो भारतीय नारी को इस विश्व में कर्मशील प्राणी का सम्मान दिलाती हैं .ये केवल यही कहती हैं -
''कोमल है कमजोर नहीं तू ,
शक्ति का नाम ही नारी है .''


शालिनी कौशिक
[कौशल ]

सोमवार, 11 सितंबर 2017

औरत और बूढी हाय रे!!!!!!!!!!!!


हाय रे!  योगी सरकार ऐसी गलती कैसे कर गयी, सुबह का अखबार देख केवल मेरा ही नहीं बल्कि सारी महिलाओं का माथा ठनक गया. समाचार कुछ यूँ था-
"बसों में मुफत सफर करेंगी 60 साल से ऊपर की महिलायें"
    समाचार  ही ऐसा था कि किसी के भी मुंह से योगी सरकार के लिए आशीर्वाद को हाथ नहीं उठे,  वजह कोई जानना कठिन थोड़े ही है, वो तो सब जानते ही हैं.
      इस दुनिया में आदमी हो या औरत, अपनी उमर कोई भी बताना नहीं चाहता और योगी सरकार के इस निर्णय के मुताबिक मुफत सफर के लिए जो परिचय पत्र बनेगा उसमें उमर का साक्षय लिया जायेगा, बस हो गया साबित कि मुफत सफर वाली औरत, यानी साठ साल से ऊपर, यानी बूढी, भला कौन औरत अपने को बूढी सुनना चाहेगी.
     लो भई योगी सरकार गई काम से.

शालिनी कौशिक 
  (कौशल) 

रविवार, 10 सितंबर 2017

गुलाम नारी


बढ़ रही हैं

गगन छू रही हैं

लोहा ले रही हैं

पुरुष वर्चस्व से

कल्पना

कपोल कल्पना

कोरी कल्पना

मात्र

सत्य

स्थापित

स्तम्भ के समान प्रतिष्ठित

मात्र बस ये

विवशता कुछ न कहने की

दुर्बलता अधीन बने रहने की

हिम्मत सभी दुःख सहने की

कटिबद्धता मात्र आंसू बहने की .

न बोल सकती बात मन की है यहाँ बढ़कर

न खोल सकती है आँख अपनी खुद की इच्छा पर

अकेले न वह रह सकती अकेले आ ना जा सकती

खड़ी है आज भी देखो पैर होकर बैसाखी पर .

सब सभ्यता की बेड़ियाँ पैरों में नारी के

सब भावनाओं के पत्थर ह्रदय पर नारी के

मर्यादा की दीवारें सदा नारी को ही घेरें

बलि पर चढ़ते हैं केवल यहाँ सपने हर नारी के .

कुशलता से करे सब काम

कमाये हर जगह वह नाम

भले ही खास भले ही आम

लगे पर सिर पर ये इल्ज़ाम .

कमज़ोर है हर बोझ को तू सह नहीं सकती

दिमाग में पुरुषों से कम समझ तू कुछ नहीं सकती

तेरे सिर इज्ज़त की दौलत वारी है खुद इस सृष्टि ने

तुझे आज़ाद रहने की इज़ाज़त मिल नहीं सकती .

सहे हर ज़ुल्म पुरुषों का क्या कोई बोझ है बढ़कर

करे है राज़ दुनिया पर क्यूं शक करते हो बुद्धि पर

नकेल कसके जो रखे वासना पर नर अपनी

ज़रुरत क्या पड़ी बंधन की उसकी आज़ादी पर ?

मगर ये हो नहीं सकता

पुरुष बंध रो नहीं सकता

गुलामी का कड़ा फंदा

नहीं नारी से हट सकता

नहीं दिल पत्थर का करके

यहाँ नारी है रह सकती

बहाने को महज आंसू

पुरुष को तज नहीं सकती

कुचल देती है सपनो को

वो अपने पैरों के नीचे

गुलामी नारी की नियति

कभी न मिल सकती मुक्ति .



शालिनी कौशिक

[कौशल ]

सोमवार, 4 सितंबर 2017

दोहरापन (कहानी )

रूचि अभी अभी कॉलेज से आयी ही थी | कि सामने मेज पर पड़ी मिठाइयाँ व शरबत के खाली गिलासो को देखकर माँ से पूछ बैठी की माँ कोई मेहमान आया था क्या ?
"हाँ आया था न तेरे ससुराल वाले आये थे "
माँ जवाब  दे पाती उससे पहले ही छोटे भाई ने कुछ चिढ़ाने के अंदाज़ में कहा |
रूचि को सुनकर विश्वास ही  नहीं हुआ उसे लगा उसके छोटे भाई ने मजाक किया है क्योकि वो तो अक्सर ऐसे मजाक कर के उसे चिढ़ाया करता था |
तो उसने भी पलटकर उसे चिढ़ाने के लिए कह दिया |
"अरे मेरे ससुराल वाले आये थे तो उन्हें रोक लेता मै भी मिल लेती उनसे "
और फिर रूचि हसँते हुए अपने कमरे की तरफ चल दी |
अभी कमरे में पहुँचकर बैड पर बैठी ही थी कि उसकी नजर कमरे में रखे शगुन के समान पर पड़ी | वो समान को देखने के लिए उठी ही थी की माँ कमरे में मिठाई का डिब्बा लेकर आ गई |
माँ - रूचि ले बेटा मुँह तो मीठा कर ले
पर रूचि तो अब भी समान की तरफ ही देख रही थी |
माँ - अरे वो तेरे शगुन का समान है वो लोग आज ही बात पक्की करने के साथ साथ शगुन का समान भी देकर गए |
बेटा बड़ा ही अच्छा रिश्ता है लड़का भी अच्छा है और पैसे वाला है अपना खुद का बड़ा घर है और इकलौता लड़का है अपने माँ बाप का | अरे वैसे भी आजकल कहा मिलता है ऐसा रिश्ता |
 माँ बोले जा रही थी | और  रूचि बस बेसुध सी बैठी अपने ही अन्तर्मन में खोई हुई अपने ही सवालो में उलझ सी गई थी |

कि वो ऐसे अचानक शादी कैसे कर सकती है ? अभी तो पढाई भी पूरी  नहीं हुई उसकी ?अभी अभी तो सपने देखना शुरू किया था | अभी अभी तो ज़िन्दगी का मतलब समझ आया था |  अभी तो बचपन से बाहर आयी है | शादी कैसे ?
और अभी कुछ समय पहले ही तो जब कॉलेज में प्रशांत ने उसे प्रपोज लिया था और उसने तुरंत घर आकर माँ को बताया था |
और फिर माँ ने  कितना समझाया था उसे की बेटा अभी तू छोटी है सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दे | और उसने प्रशांत को पसंद करने की बात माँ को बतानी चाही तो माँ ने फिर समझाया की तू इस काबिल नहीं है अभी की अपनी ज़िंदगी के इतने अहम फैसले ले सके |
पर आज वही माँ उसकी शादी करा रही है | तो क्या आज उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि  उनकी बेटी अभी छोटी है और अपनी ज़िंदगी के अहम फैसले लेने लायक नहीं है  या उसकी पढाई अभी ज्यादा जरुरी है |


या शायद हमारे समाज में लड़किया कभी इतनी बड़ी और समझदार हो ही नहीं पाती कि अपनी ज़िंदगी के अहम् फैसले ले पाए | वो या तो छोटी नासमझ नादान होती है या फिर शादी के लायक |



शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

कामवालियां



Woman in depression - stock photo
लड़ती हैं
खूब झगड़ती हैं
चाहे जितना भी
दो उनको
संतुष्ट कभी नहीं
दिखती हैं
खुद खाओ
या तुम न खाओ
अपने लिए
भले रसोईघर
बंद रहे
पर वे आ जाएँगी
लेने
दिन का खाना
और रात का भी
मेहमानों के बर्तन
झूठे धोने से
हम सब बचते हैं
मैला घर के ही लोगों का
देख के नाक सिकोड़ते हैं
वे करती हैं
ये सारे काम
सफाई भेंट में हमको दें
और हम उन्हीं को 'गन्दी 'कह
अभिमान करें हैं अपने पे
माता का दर्जा है इनका
लक्ष्मी से इनके काम-काज
ये ''कामवालियां'' ही हमको
रानी की तरह करवाएं राज़ .
.....................
शालिनी कौशिक
[कौशल ]