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शनिवार, 16 सितंबर 2017

ये है नारी शक्ति

 

नारी की सशक्तता यहाँ देखो /इनमे देखो .


मैंने बहुत पहले एक आलेख लिखा था-

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ये सर्वमान्य तथ्य है कि महिला शक्ति का स्वरुप है और वह अपनों के लिए जान की बाज़ी  लगा भी देती है और दुश्मन की जान ले भी लेती है.नारी को अबला कहा जाता है .कोई कोई तो इसे बला भी कहता है  किन्तु यदि सकारात्मक रूप से विचार करें तो नारी इस स्रष्टि की वह रचना है जो शक्ति का साक्षात् अवतार है.धेर्य ,सहनशीलता की प्रतिमा है.जिसने माँ दुर्गा के रूप में अवतार ले देवताओं को त्रास देने वाले राक्षसों का संहार किया तो माता सीता के रूप में अवतार ले भगवान राम के इस लोक में आगमन के उद्देश्य को  साकार किया और पग-पग पर बाधाओं से निबटने में छाया रूप  उनकी सहायता की.भगवान विष्णु को अमृत देवताओं को ही देने के लिए और भगवान् भोलेनाथ  को भस्मासुर से बचाने के लिए नारी के ही रूप में आना पड़ा और मोहिनी स्वरुप धारण कर उन्हें विपदा से छुड़ाना पड़ा.
हमारे संस्कृत ग्रंथों में कहा गया है -
"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते,रमन्ते तत्र देवता."
प्राचीन काल  का इतिहास नारी की गौरवमयी  कीर्ति से भरा पड़ा है.महिलाओं ने समय समय पर अपने साहस पूर्ण कार्यों से दुश्मनों के दांत खट्टे किये हैं.प्राचीन काल में स्त्रियों का पद परिवार में अत्यंत महत्वपूर्ण था.गृहस्थी का कोई भी कार्य उनकी सम्मति के बिना नहीं किया जा सकता था.न केवल धर्म व् समाज बल्कि रण क्षेत्र में भी नारी अपने पति का सहयोग करती थी.देवासुर संग्राम  में कैकयी ने अपने अद्वित्य रण कौशल से महाराज दशरथ को चकित किया था.
गंधार के राजा रवेल की पुत्री विश्पला ने सेनापति का दायित्व स्वयं पर लेकर युद्ध किया .वह वीरता से लड़ी पर तंग कट गयी ,जब ऐसे अवस्था में घर पहुंची तो पिता को दुखी देख बोली -"यह रोने का समय नहीं,आप मेरा इलाज कराइये मेरा पैर ठीक कराइये जिससे मैं फिर से ठीक कड़ी हो सकूं तो फिर मैं वापस शत्रुओसे  सामना करूंगी ."अश्विनी कुमारों ने उसका पैर ठीक किया और लोहे का पैर जोड़ कर उसको वापस खड़ा किया -

" आयसी जंघा विश्पलाये अदध्यनतम  ".[रिग्वेद्य  १/ ११६]
इसके बाद विश्पला ने पुनः     युद्ध किया और शत्रु को पराजित किया.
महाराजा  रितध्वज    की पत्नी      मदालसा ने अपने पुत्रों को समाज में जागरण के लिए सन्यासी बनाने का निश्चय किया .महाराजा   रितध्वज के आग्रह पर अपने आठवे पुत्र अलर्क को योग्य शासक बनाया.व् उचित समय पर पति सहित वन को प्रस्थान कर गयी.जाते समय एक यंत्र अलर्क को दिया व् संकट के समय खोलने का निर्देश दिया.कुछ दिनों बाद जब अलर्क के बड़े भाई ने उसे राजपाट सौंपने का निर्देश दिया तब अलर्क ने वह यंत्र खोला जिसमे सन्देश लिखा था-"संसार के सभी ईश्वर अस्थिर हैं तू शरीर मात्र नहीं है ,इससे ऊपर उठ."और उसने बड़े भाई को राज्य सौंप देने का निश्चय किया.सुबाहु इससे अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें ही राज्य करते रहने का आदेश दिया.राजा  अलर्क को राज ऋषि की पदवी मिली .यह मदालसा की ही तेजस्विता थी जिसने ८ ऋषि तुल्य पुत्र समाज को दिए.
तमलुक [बंगाल] की रहने वाली मातंगिनी हाजरा ने ९ अगस्त १९४२ इसवी में भारत छोडो आन्दोलन में भाग लिया और आन्दोलन में प्रदर्शन के दौरान वे ७३ वर्ष की उम्र में अंग्रेजों की गोलियों का शिकार हुई और मौत के मुह में समाई .
असम के दारांग जिले में गौह्पुर   गाँव की १४ वर्षीया बालिका कनक लता बरुआ ने १९४२ इसवी के भारत छोडो आन्दोलन में भाग लिया .अपने गाँव में निकले जुलूस का नेतृत्व इस बालिका ने किया तथा थाने पर तिरंगा झंडा फहराने के लिए आगे बढ़ी पर वहां के गद्दार थानेदार ने उस पर गोली चला दी जिससे वहीँ उसका प्राणांत हो गया.
इस तरह की नारी वीरता भरी कहानियों से इतिहास भरा पड़ा है.और किसी भी वीरता,धैर्य        ज्ञान      की तुलना नहीं की जा सकती.किन्तु इस सबके बावजूद नारी को अबला  बेचारी  कहा जाता है.अब यदि हम कुछ और उदाहरण  देखें तो हम यही पाएंगे कि नारी यदि कहीं झुकी है तो अपनों के लिए झुकी है न कि अपने लिए .उसने यदि दुःख सहकर भी अपने चेहरे पर शिकन तक नहीं आने दी है तो वह अपने प्रियजन    के दुःख दूर करने के लिए.
कस्तूरबा गाँधी,जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका में घूमकर महिलाओं में सत्याग्रह का शंख फूंका .चंपारण ,भारत छोडो आन्दोलन में जिनका योगदान अविस्मर्णीय रहा ,ने भी पतिव्रत धर्म के पालन के लिए कपडे धोये,बर्तन मांजे और   ऐसे ऐसे कार्य किये जिन्हें कोई सामान्य भारतीय नारी सोचना भी पसंद नहीं करेगी.
महाराजा जनक की पुत्री ,रघुवंश की कुलवधू,राम प्रिय जानकी सीता ने पतिव्रत धर्म के पालन के लिए वनवास में रहना स्वीकार किया.
हमारे अपने ही क्षेत्र की  एक कन्या मात्र इस कारण से जैन साध्वी के रूप में दीक्षित हो गयी कि उसकी बड़ी बहन के साथ उसके ससुराल वालों ने अच्छा व्यव्हार नहीं किया और एक कन्या इसलिए जैन साध्वी बन गयी कि उसकी प्रिय सहेली साध्वी बन गयी थी.
स्त्रियों का प्रेम, बलिदान ,सर्वस्व समर्पण ही उनके लिए विष बना है.गोस्वामी तुलसीदास जी नारी को कहते हैं-
"ढोल गंवार शुद्रपशु नारी,
ये सब ताड़न के अधिकारी. "
वे एक समय पत्नी  प्रेम में इतने पागल थे कि सांप को रस्सी समझ उस पर चढ़कर पत्नी  के मायके के कमरे में पहुँच गए थे.ऐसे में उनको उनकी पत्नी  का ही उपदेश था जिसने उन्हें विश्व वन्दनीय बना दिया था-
"अस्थि चर्ममय देह मम तामे ऐसी प्रीती,
ऐसी जो श्रीराम में होत न तो भाव भीती."
इस तरह नारी को अपशब्दों के प्रयोग द्वारा    जो उसकी महिमा को नकारना चाहते हैं वे झूठे गुरुर में जी रहे हैं और अपनी आँखों के समक्ष उपस्थित सच को झुठलाना चाहते हैं .आज नारी निरंतर प्रगति पथ पर आगे बढ़ रही है .भावुकता सहनशीलता जैसे गुणों को स्वयं से अलग न करते हुए वह पुरुषों के झूठे दर्प के आईने को चकनाचूर कर रही है .अंत में नईम अख्तर के शब्दों में आज की नारी पुरुषों से यही कहेगी-
"तू किसी और से न हारेगा,
तुझको तेरा गुरुर मारेगा .
तुझको    दस्तार जिसने बख्शी है,
तेरा सर भी वही उतारेगा ."

आज मैं उसी कड़ी में अपने विचारों को आगे रख रही हूँ और बता रही हूँ नारी के ऐसे वर्ग के बारे में जो सशक्त है सबल है और केवल इसलिए क्योंकि वह भावुकता जैसी कमजोरी से कोसों दूर है .बहुत दिन पहले मेरे पापा ने मुझे बताया कि वे एक कमीशन में गए थे वहां पर जाट समुदाय की एक बुजुर्ग महिला ने उन्हें बताया कि -''बाबूजी !हम जाट औरतें अपना कार्य स्वयं देखती हैं और अपने पुरुषों पर आश्रित नहीं हैं .अन्य समुदायों में जैसे  औरतें आदमियों का हर काम में मुंह देखती हैं और उनके लिए ही भगवान के आगे झुकी रहती हैं हम्मे ऐसा नहीं है और इसलिए हममे न करवा चौथ होती है और न ही रक्षा बंधन .हम खुद पर ही ज्यादा विश्वास करती हैं और अपने आदमियों को अपने मालिक का दर्जा नहीं देती ''और ये हम सभी देखते भी हैं जाट औरतें जाट आदमियों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चलती हैं और खेती हो या नौकरी हर काम में अपना दबदबा रखती हैं .
ऐसे ही जैन समुदाय है जिसमे हमारे क्षेत्र में अधिकांश सर्राफ हैं और इनकी औरतें इनमे आदमियों से पूरी बराबरी करती हैं और अतिश्योक्ति न होगी अगर यह कहा जाये कि आदमियों को अपनी मुट्ठी में रखती हैं .ये धन का ,जेवर का लेनदेन आदि सभी कार्यों में बराबर का सहयोग व् हिस्सा रखती हैं और इनके परिवार में कोई भी फैसला हो इनकी जानकारी व् साझेदारी के बगैर नहीं लिया जा सकता .
बहुत अभिमान करते हैं हम अपने उच्च वर्ग या माध्यम वर्ग से सम्बंधित होने पर किन्तु यदि सच्चाई से बात की जाये तो सबसे अधिक सबल नारी निम्न वर्ग की ही कही जाएगी और इसका प्रत्यक्ष उदाहरण आप सभी स्वयं देख सकते हैं .सुबह सवेरे हम जैसे ही अपने घर के बाहर देखते हैं तो पाते हैं कि बहुत सी नारियों का झुण्ड चला जा रहा है जो कमीज-पेटीकोट पहने होती हैं और उनके हाथों में हंसिया -खुरपी आदि औजार होते हैं दिन भर वे इन औजारों से खेतों में मेहनत करती हैं और शाम को फिर ऐसे ही बतियाते हुए लौटती हैं जैसे सुबह काम पर जाते हुए बतिया रही थी .यही नहीं कहने को अनपढ़ कही जाने वाले ये महिलाएं किसी से सशक्ति करण की मांग नहीं करती और देश के लिए अपने घर परिवार के लिए एक मुखिया की हैसियत में ही काम करती हैं और अपना दबदबा सभी के दिमाग पर बनाये रखती हैं ये वे हैं जो भरे पूरे आदमियों के परिवारों में होते हुए भी अपने जानवरों को स्वयं हांककर घर कुशलता से ले आती हैं और इस तरह पुरुष की ताकत को दरकिनारकर एक तरफ रख देती हैं 

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.कारण केवल एक है ये अपने वर्चस्व की राह में और कार्य के बीच में भावुकता को आड़े नहीं आने देती और पूर्ण व्यावसायिक होकर अपने कर्मक्षेत्र पर आगे बढती हैं और ये कभी किसी के आगे नारी की कमजोरी का रोना नहीं रोती क्योंकि ये वे हैं जो भारतीय नारी को इस विश्व में कर्मशील प्राणी का सम्मान दिलाती हैं .ये केवल यही कहती हैं -
''कोमल है कमजोर नहीं तू ,
शक्ति का नाम ही नारी है .''


शालिनी कौशिक
[कौशल ]

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-09-2017) को
    "चलना कभी न वक्र" (चर्चा अंक 2730)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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