भूतल में समाई सिया उर कर रहा धिक्कार
पितृ सत्ता के समक्ष लो राम गया हार !
देवी अहिल्या को लौटाया नारी का सम्मान
अपनी सिया का साथ न दे पाया किन्तु राम
है वज्र सम ह्रदय मेरा करता हूँ मैं स्वीकार !
पितृ सत्ता के समक्ष ........
वध किया अनाचारी का बालि हो या रावण
नारी को मिले मान बस था यही कारण
पर दिला पाया कहाँ सीता को ये अधिकार !
पितृ सत्ता के समक्ष .......
नारी नर समान है ; वस्तु नहीं नारी
एक पत्नी व्रत लिया इसीलिए भारी
पर तोड़ नहीं पाया पितृ सत्ता की दीवार !
पितृ सत्ता के समक्ष .....
अग्नि-परीक्षा सीता की अपराध था घनघोर
अपवाद न उठे कोई इस बात पर था जोर
फिर भी लगे सिया पर आरोप निराधार !
पितृ सत्ता के समक्ष लो राम गया हार !!
शिखा कौशिक
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झाँसी वाली रानी थी , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना की प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसंसार की दृष्टि में महान बनने की कामना संभवतः राम के न्याय पर भारी पड़ गई । सीता के साथ अन्याय करके वे एक ऐसा अनुचित उदाहरण संसार के समक्ष रख गए जिसने युगों-युगों तक कथित शुचिता के नाम पर स्त्रियों के साथ अन्याय किए जाने का आधार बना दिया । आपने जो कहा है, बिलकुल ठीक कहा है ।
जवाब देंहटाएंजितेन्द्र माथुर
गहराई से सोचना होगा ---- सामान्य तथ्य नहीं है यह अपितु गहरा रहस्य है ---वस्तुतः अग्निपरीक्षा की सत्यता आपलोगों को ज्ञात नहीं है | ध्यान से रामचरितमानस पढ़ें या अन्य रामकथाएं तो ज्ञात होगा कि रावण के यहाँ जाने वाली सीता थी ही नहीं वे तो पहले ही अपने श्वसुर ऋषि अग्निदेव के आश्रम चली गयीं थीं..राम का आदेश था .."तुम पावक महं करहु निवासा, तब लगी करों निशाचर ऩासा |" दूसरी स्त्री को सीता के रूप में रखा गया |
जवाब देंहटाएंअब सोचिये दूसरी स्त्री को सीता के स्थान पर कैसे लेजाया जा सकता था| इसलिए अग्नि परिक्षा का नाटक रचा गया |
----राम जैसे चरित्र पर हम जैसे सामान्य लोगों की बुद्धि से काम नहीं चलता ...