आजकल शादी-ब्याह के दिन चल रहे हैं बारातें सड़कों पर दिन-रात दिखाई दे रही हैं .कहीं बैंड बाजे का शोर है तो कहीं डी जे का धूम-धड़ाका.बारातों के आगमन पर -
''आज मेरे यार की शादी है ,यार की शादी है मेरे दिलदार की शादी है ..''
तो बहुत सी जगह सुनाई दे जाता है किन्तु बारातों की विदाई के वक़्त -
''बाबुल की दुआएं लेती जा ,जा तुझको सुखी संसार मिले ...''
सुनाई देना लगभग गौरैया चिड़िया के दिखाई देने के समान कठिन कार्य हो गया है कारण ये नहीं कि हम लोग बहुत आगे बढ़ चुके हैं बल्कि कारण ये है कि बारातों का आगमन तो आज भी समाज के अनुसार हो रहा है लेकिन दुल्हन की विदाई अब पूरी तरह से वर व् वधु पक्ष के आपसी समझौतों के ऊपर टिककर रह गयी है और यहाँ कानून भी कुछ नहीं कर सकता क्योंकि दोनों पक्ष कानून को भली भांति जानते हैं और अपने अपने तर्क व् सबूत मजबूत रखते हैं ऐसा ही साबित होता है अभी के एक समाचार से जो कहता है -
[बारात दर से लौटी तो थाने जा पहुंची दुल्हन ]
इस मामले में लड़की पक्ष जहाँ दहेज़ मांगने की बात कह रहा है वहीँ लड़के के पक्ष से गुब्बारे का विवाद सामने रखा गया है सच्चाई क्या है यह तो कानूनी जाँच के बाद ही सामने आएगा किन्तु ये साफ हो गया है कि अब शादी ब्याह के मामले में बगैर पुलिस के समारोह की पूर्णता असंभव है क्योंकि इस समारोह के आयोजन से पहले भले ही दोनों पक्ष कुछ भी सौदे करते रहे किन्तु इसके आयोजन पर यह एक सामाजिक समारोह होता है और इस तरह से इसमें खलल पड़ना जो कि आजकल एक आम बात हो गयी है यह समाज व् कानून व्यवस्था के लिए खतरा है क्योंकि इससे समाज की मान्यताएं टूटती हैं और इससे जो अफरा-तफरी की स्थिति पैदा होती है उससे कानूनी व्यवस्था भंग होती है इसलिए अब कानून और समाज दोनों को इस समारोह की पूर्णता के लिए इसमें अपना दायित्व निभाना होगा और अपना दखल इसमें बढ़ाते हुए इस समारोह को बगैर विध्न-बाधा दोनों पक्षों को समझदारी के इस्तेमाल के लिए तैयार करते हुए पूर्ण कराना होगा.
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
''आज मेरे यार की शादी है ,यार की शादी है मेरे दिलदार की शादी है ..''
तो बहुत सी जगह सुनाई दे जाता है किन्तु बारातों की विदाई के वक़्त -
''बाबुल की दुआएं लेती जा ,जा तुझको सुखी संसार मिले ...''
सुनाई देना लगभग गौरैया चिड़िया के दिखाई देने के समान कठिन कार्य हो गया है कारण ये नहीं कि हम लोग बहुत आगे बढ़ चुके हैं बल्कि कारण ये है कि बारातों का आगमन तो आज भी समाज के अनुसार हो रहा है लेकिन दुल्हन की विदाई अब पूरी तरह से वर व् वधु पक्ष के आपसी समझौतों के ऊपर टिककर रह गयी है और यहाँ कानून भी कुछ नहीं कर सकता क्योंकि दोनों पक्ष कानून को भली भांति जानते हैं और अपने अपने तर्क व् सबूत मजबूत रखते हैं ऐसा ही साबित होता है अभी के एक समाचार से जो कहता है -
[बारात दर से लौटी तो थाने जा पहुंची दुल्हन ]
इस मामले में लड़की पक्ष जहाँ दहेज़ मांगने की बात कह रहा है वहीँ लड़के के पक्ष से गुब्बारे का विवाद सामने रखा गया है सच्चाई क्या है यह तो कानूनी जाँच के बाद ही सामने आएगा किन्तु ये साफ हो गया है कि अब शादी ब्याह के मामले में बगैर पुलिस के समारोह की पूर्णता असंभव है क्योंकि इस समारोह के आयोजन से पहले भले ही दोनों पक्ष कुछ भी सौदे करते रहे किन्तु इसके आयोजन पर यह एक सामाजिक समारोह होता है और इस तरह से इसमें खलल पड़ना जो कि आजकल एक आम बात हो गयी है यह समाज व् कानून व्यवस्था के लिए खतरा है क्योंकि इससे समाज की मान्यताएं टूटती हैं और इससे जो अफरा-तफरी की स्थिति पैदा होती है उससे कानूनी व्यवस्था भंग होती है इसलिए अब कानून और समाज दोनों को इस समारोह की पूर्णता के लिए इसमें अपना दायित्व निभाना होगा और अपना दखल इसमें बढ़ाते हुए इस समारोह को बगैर विध्न-बाधा दोनों पक्षों को समझदारी के इस्तेमाल के लिए तैयार करते हुए पूर्ण कराना होगा.
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
Nice
जवाब देंहटाएंbahut acchi rachna
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंSahi Kaha Aapne !
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