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रविवार, 14 जून 2015

शादी में पुलिस व् समाज का दखल अब ज़रूरी


आजकल शादी-ब्याह के दिन चल रहे हैं बारातें सड़कों पर दिन-रात दिखाई दे रही हैं .कहीं बैंड बाजे का शोर है तो कहीं डी जे का धूम-धड़ाका.बारातों के आगमन पर -
''आज मेरे यार की शादी है ,यार की शादी है मेरे दिलदार की शादी है ..''
तो बहुत सी जगह सुनाई दे जाता है किन्तु बारातों की विदाई के वक़्त -
''बाबुल की दुआएं लेती जा ,जा तुझको सुखी संसार मिले ...''
सुनाई देना लगभग गौरैया चिड़िया के दिखाई देने के समान कठिन कार्य हो गया है कारण ये नहीं कि हम लोग बहुत आगे बढ़ चुके हैं बल्कि कारण ये है कि बारातों का आगमन तो आज भी समाज के अनुसार हो रहा है लेकिन दुल्हन की विदाई अब पूरी तरह से वर व् वधु पक्ष के आपसी समझौतों के ऊपर टिककर रह गयी है और यहाँ कानून भी कुछ नहीं कर सकता क्योंकि दोनों पक्ष कानून को भली भांति जानते हैं और अपने अपने तर्क व् सबूत मजबूत रखते हैं ऐसा ही साबित होता है अभी के एक समाचार से जो कहता है -
[बारात दर से लौटी तो थाने जा पहुंची दुल्हन ]
procession returned and bride protest to police station at muktsar
इस मामले में लड़की पक्ष जहाँ दहेज़ मांगने की बात कह रहा है वहीँ लड़के के पक्ष से गुब्बारे का विवाद सामने रखा गया है सच्चाई क्या है यह तो कानूनी जाँच के बाद ही सामने आएगा किन्तु ये साफ हो गया है कि अब शादी ब्याह के मामले में बगैर पुलिस के समारोह की पूर्णता असंभव है क्योंकि इस समारोह के आयोजन से पहले भले ही दोनों पक्ष कुछ भी सौदे करते रहे किन्तु इसके आयोजन पर यह एक सामाजिक समारोह होता है और इस तरह से इसमें खलल पड़ना जो कि आजकल एक आम बात हो गयी है यह समाज व् कानून व्यवस्था के लिए खतरा है क्योंकि इससे समाज की मान्यताएं टूटती हैं और इससे जो अफरा-तफरी की स्थिति पैदा होती है उससे कानूनी व्यवस्था भंग होती है इसलिए अब कानून और समाज दोनों को इस समारोह की पूर्णता के लिए इसमें अपना दायित्व निभाना होगा और अपना दखल इसमें बढ़ाते हुए इस समारोह को बगैर विध्न-बाधा दोनों पक्षों को समझदारी के इस्तेमाल के लिए तैयार करते हुए पूर्ण कराना होगा.

शालिनी कौशिक
[कौशल ]

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