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बुधवार, 10 जून 2015

बलात्कारी..पति ?-कहानी


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पंचायत अपना फैसला सुना चुकी थी .नीला के बापू -अम्मा , छोटे भाई-बहन बिरादरी के आगे घुटने टेककर पंचायत का निर्णय मानने को विवश हो चुके थे .निर्णय की जानकारी होते ही नीला ने उस बंद -दमघोंटू कोठरी की दीवार पर अपना सिर दे मारा था और फिर तड़प उठी थी उसके असहनीय दर्द से .चार दिन पहले तक उसका जीवन कितनी आशाओं से भरा हुआ था . उसका इंटरमीडियट का परीक्षा-परिणाम आने वाला था .वो झाड़ू लगाते ,कच्चा आँगन लीपते , कपडे धोते , बर्तन मांजते और माँ के साथ रोटी बेलते ... बस डिग्री कॉलेज में प्रवेश के सपने देखती . अपने पूरे कुनबे में नीला पहली लड़की थी जिसने इंटरमीडिएट तक का पढाई का सफर पूरा किया था .दलित घर की बेटी , जिसके बापू-अम्मा ने मजदूरी कर-कर के, पढ़ाया था ...उस कोमल कली नीला को इस बात का अंदाज़ा तक न था कि कोई उसका सर्वस्व लूटने को उसके आस-पास मंडराता रहता है .चालीस-पैतालीस साल के उस अधेड़ को गली के बच्चे चच्चा-चच्चा कहकर पुकारते थे .वो कभी चूड़ी बेचने के बहाने , कभी गज़रे ,कभी ईंगुर -चुटीले ,कभी साड़ी...जिस के भी द्वारा घरों में औरतों से गुफ्तगूं का मौका मिल जाये , वही उठाकर बेचने नीला की गली में आ धमकता था .सबसे अच्छा लगता उसे चूड़ियाँ बेचना क्योंकि चूड़ी पहनाने के बहाने औरतों की नरम कलाइयां छूने का मौका जो मिल जाता उस दुष्ट को .नीला की अम्मा भी कभी-कभार उससे कुछ खरीद लेती .उस मनहूस दिन नीला घर पर अकेली थी .वो कुकर्मी दरवाज़े पर आया तो नीला ने बंद किवाड़ों के पीछे से ही कह दिया कि ''घर पर कोई नहीं है ....कल को आना अम्मा तुमसे चूड़ी ले लेंगी .'' उस कुकर्मी की आँखें 'घर पर कोई नहीं है ' सुनकर चमक उठी थी वासना की आग में .वो खांसता हुआ सा बोला था - ''बीबी बहुत प्यासा हूँ ...किवाड़ खोलकर थोड़ा पानी पिला दो .'' मासूम नीला उसकी वासना प्यास को समझ न पाई और किवाड़ खोलकर उसके लिए पानी लेने चली गयी .वो दुष्कर्मी नीला के पानी लेने घर के अंदर की ओर जाते ही घर में घुसा और अंदर से कुण्डी लगाकर अपना सामान फेंककर नीला के पास अंदर ही पहुँच गया .नीला कुछ समझ पाती इससे पहले ही वो बाज़ ऐसे झपटा कि मासूम चिड़िया छटपटाती रह गयी .
जब घर के सब लोग वापस आये तब नीला पर हुए अत्याचार की व्यथा-कथा सुनकर सारे मौहल्ले में हल्ला मच गया . नीला के बापू-अम्मा थाने पहुंचे तो वहां से उन्हें धकिया दिया गया .मामला पंचायत तक पहुंचा और पंचों ने ये कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया कि-'' देखो भाई इस आदमी ने अपना गुनाह मान लिया है .दारू पिए हुए था ये .हो गयी गलती ...फांसी पर चढ़ा दें क्या इसे ? लौंडिया को भी देखना चाहिए था कि नहीं . जवान लौंडियाँ ने घर के किवाड़ खोले ही क्यों जिब घर पर माँ-बाप नी थे ! बस बहक गया यु तो ..मरद की जात..खैर छोद्दो यु सब ...इस ससुरे का ब्याह नी हुआ इब तक यु इधर-उधर मुंह मारता फिरे है ...आगे-पीछे भी कोई नी ...सुन भाई नीला के बाप इब इस बलात्कारी से ही नीला का ब्याह करने में गनीमत है थारी भी और म्हारी भी वरना बगड़ के सारे गांवों में थू-थू होवेगी ...और जिब यु ऊँची जात का होके भी नीला को ब्याहने को राज़ी है तो तेरे के परेसानी है !'' नीला की अम्मा ने चीखकर इसका विरोध किया था भरी पंचायत में -'' जुलम है यु तो ...कहाँ वो जंगली सुअर और कहाँ मेरी फूल सी बच्ची !'' पर कौन सुनता उसकी .पंच ये कहकर उठ लिए ' चल हट यहाँ से ...फूल सी बच्ची ..दाग लग लिया उसके ..कौन जनानियों के मुंह लगे !''
तन -मन पर ज़ख्म लिए नीला दुल्हन बनी.फेरे हुए जिन्हें वो बलात्कारी बमुश्किल ही पूरे कर पाया क्योंकि उसने उस वक्त भी दारू पी हुई थी .नीला विदा होकर अपने ही गांव में कुछ दूर पर स्थित ससुराल पहुंची तो लोग-लुगाइयों की खुसर-पुसर के बीच उसने दारू के नशे में टुन्न बलात्कारी पति को सहारा देकर अंदर के कमरे में ले जाकर एक पलंग पर लिटा दिया . धीरे-धीरे आस-पड़ोस के लोग वहां से खिसक लिए .नीला ने घायल नागिन की नज़रों की भांति इधर-उधर देखा और तेजी से जाकर घर के मुख्य किवाड़ों की कुण्डी लगा आई .उसने देखा घर के एक कोने की भंड़रियां में केरोसीन के तेल की कनस्तरी रखी हुई थी ..उसने कनस्तरी उठाई और टुन्न पड़े बलात्कारी पति के ऊपर ले जाकर उड़ेल दी . वो टुन्न होते हुए भी एकाएक होश में आ गया और उसने अपने पंजे में नीला की गर्दन दबोच ली पर नीला ने शेरनी की भांति अपना घुटना मोड़ा और उसके पेट पर इतना जोरदार प्रहार किया कि वो बिलबिला उठा और पेट पकड़ कर जमीन पर गिर पड़ा .नीला ने अपनी सुहाग की साड़ी झटाझट उतारी और उस बलात्कारी पति के ऊपर कफ़न की तरह डाल दी . वो उसकी उलझन में ही फंसा था कि नीला ने ब्लाउज में पहले से छिपाए हुए लाइटर को जलाया और उस बलात्कारी के कपड़ों से छुआ दिया .खुद नीला फुर्ती से कमरे से निकलकर बाहर आई और किवाड़ बंद कर बाहर से सांकल लगा दी .बलात्कारी पति आग में झुलसते हुए उसे गालियां देता रहा और वो जोर जोर से चिल्लाती रही -'' अजी.. ..नहीं ऐसा मत करो ..मैंने तुम्हें माफ़ कर दिया है ..किवाड़ क्यों अंदर से बंद कर लिए .....कोई खिड़की भी नहीं जो देख सकूँ तुम क्या कर रहे हो ...हाय ये आग कैसी ....है तुमने खुद को आग लगा ली ...अजी ऐसा न करो ... मैं तो सुहागन बनते ही विधवा हो जाउंगी ..अजी किवाड़ खोल दो ..'' इधर नीला व् बलात्कारी पति की चींखें सुनकर आस-पड़ोस के लोग-लुगाई उनके घर के बाहर इकट्ठा हो चुके थे .सब बाहर से उनके घर का किवाड़ पीट रहे थे और नीला कमरे के किवाड़ की झरोख में से देख रही थी बलात्कारी को उसका दंड मिलते हुए . जब नीला ने देखा कि वो अधमरा होकर जमीन पर गिर पड़ा है तब नीला ने झटाक से ऐसी किवाड़ खोले जैसे धक्का देकर उसने ही अंदर से बंद किवाड़ खोल लिए हुए .इसके बाद वो ब्लाऊज-पेटीकोट में ही बाहर का किवाड़ खोलने को दौड़ पड़ी .उसको ऐसी हालत में देखकर इकठ्ठा हुई औरतों में से एक ने अपनी ओढ़ी हुई सूती चादर उड़ा दी और नीला बेसुध सी होकर फिर से अंदर भाग ली .उसके पीछे बाहर इकठ्ठा मर्द भी भागते हुए अंदर कमरे में पहुंचे और बलात्कारी पति को उठाकर सरकारी अस्पताल ले गए .वहां पहुँचते-पहुंचते उसके प्राण निकल चुके थे .वो पुलिस जिसने नीला के बाप को धकियाकर थाने से ये कहकर भगा दिया था कि ''तुम्हारी जनानियों की भी कोई इज्जत -विज्जत होवे है के ..जा जाकर पंचायत में जाकर ले ले वापस अपनी इज्जत '' आज बड़ी मुस्तैदी के साथ अस्पताल में आ धमकी . नीला का बयान दर्ज़ किया गया .नीला ने अपना बयान कुछ इस तरह दर्ज़ कराया -'' आस-पड़ोस के लोगों के जाते ही मेरे पतिदेव मेरे चरणों पर गिर पड़े और बोले- मैंने तेरे साथ बहुत गलत किया .मैं तेरे लायक कहाँ ? मुझ जैसे बलात्कारी के लिए तू क्यों करवाचौथ को बरती रह्वेगी ? क्यों बड़-मावस पर बड़ पूजके मेरी लम्बी उम्र मांगेगी ? क्यों सिन्दूर सजावेगी मांग में और चूड़ी पहरेगी ....मैं तो एक जनम को भी तेरा पति होने लायक ना फेर सात जन्मों की बात रहन दे ..इब मैं प्राश्चित करूंगा और ये कहकर वे तेल की कनस्तरी उठा लाये और खुद पर उड़ेल दी .मैंने मना करी तो मुझे धक्का दे दिया .मैं ज्यों ही उठती तब तक उन्होंने लाइटर से अपने कपड़ों में आग लगा ली .मैं दौड़कर उनके पास पहुंची तो मेरी साड़ी ने भी आग पकड़ ली . ये देखकर उन्होंने मेरी साडी खींच ली और मुझे कमरे से बाहर धकियाकर तुरंत किवाड़ बंद कर लिए .मैं किवाड़ों को पीटती रही कि मैंने तुम्हे माफ़ कर दिया है पर उन्होंने नहीं खोले .मेरे लगातार किवाड़ पीटते रहने के कारण अंदर की सिटकनी खुल गयी .तब मैंने देखा वे ज़मीन पर अधमरे से पड़े थे .मैंने लाज-शर्म छोड़ उसी अवस्था में जाकर घर के किवाड़ खोल दिए और ....'' ये कहते-कहते नीला ने अपनी कलाइयां अस्पताल की दीवार पर दे मारी जिसके कारण उनमे पहनी हुई चूड़ियाँ मौल कर वहां फर्श पर बिखर गयी और नीला की कलाइयों में कांच चुभने के कारण खून छलक आया .इतने में खबर पाकर नीला के बापू-अम्मा भी वहां आ पहुंचे और आते ही अम्मा ने नीला को बांहों में भरकर '' मेरी बच्ची तू तो सही-सलामत हैं ना '' कहते हुए उसका माथा चूमने लगी . नीला ने अम्मा को एक ओर ले जाकर धीमे से उसके कान में कहा -'' अम्मा ये मेरा निर्णय था .पंचायत को मुझमे में दाग दिख रहा था ना तो लो दाग लगाने वाले को जलाकर खाक कर दिया मैंने .जंगली सूअर को उसके बाड़े में ही घुसकर काट डाला .बलात्कारी कभी पति नहीं हो सकता अम्मा ! वो केवल बलात्कारी ही रहता मेरे लिए .उसने जितने दर्द मेरे तन-मन को दिए थे आज मैंने उन सब दर्दों की सिकाई कर ली उसे आग में जलते देखकर .'' नीला के ये कहते ही अम्मा ने आँखों-आँखों में उसके द्वारा किये गए दुष्ट संहार पर असीम संतुष्टि व्यक्त की और उसे गले से लगा लिया . पुलिसवाले सारे मामले को आत्म-हत्या की धाराओं में दर्ज़ कर वहां से चम्पत हो लिए और वहां इकट्ठा लोग-लुगाई -'' के ...किब ....क्योंकर '' करते हुए बलात्कारी पति के अंतिम संस्कार की तैयारियों में जुट गए .

शिखा कौशिक 'नूतन '

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (12-06-2015) को चर्चा मंच के 2000वें अंक "उलझे हुए शब्द-ज़रूरी तो नहीं" { चर्चा - 2004 } पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. बहुत अच्‍छी लगी कहानी....अब लड़कि‍यों को भावुकता परे हटाकर दि‍माग से काम लेना होगा। अबला नहीं अब नारी

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  3. बहुत बहुत सार्थक कहानी

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