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शुक्रवार, 23 जनवरी 2015

डा श्याम गुप्त की कहानी--नारी और मुक्ति -



नारी और मुक्ति
              नारी विमर्श व्याख्यान माला गोष्ठी प्रारम्भ होने में अभी कुछ समय था | पधारे हुए सभी विज्ञजन विचार विमर्श करने लगे | पांडेजी ने अभी हाल में ही पढ़ी हुई उर्वशी-पुरुरवा की कथा पर अत्यंत तार्किकता व सतर्कता से सौन्दर्यपूर्ण समीक्षा करते हुए अंत में कहा, ’उर्वशी पुरुरवा के लिए वरदान है’ |
        ‘हाँ, निश्चय ही, क्योंकि नारी, पुरुष का मुक्ति-पथ है, मुक्ति-सेतु है |’ ड़ा शर्मा बोले |
        ‘और नारी की मुक्ति ?’  युवा लेखक राघव ने प्रश्न उठाया |
        ‘पथ की भी कभी मुक्ति होती है ! वह तो सदा मुक्ति हेतु पथ-दीप का कार्य करता है | स्त्री तो स्वयं ही पथ है मुक्ति का, इस पथ पर चले बिना कौन मुक्त होता है | संसार के हितार्थ कुछ तत्व कभी मुक्त नहीं होते मूलतः प्रकृति-तत्व, अन्यथा संसार कैसे चलेगा |’ ड़ा शर्मा ने अपना पक्ष रखा |
       ‘अर्थात आपका कथन है कि नारी की मुक्ति होती ही नहीं कभी | अमित जी ने हैरानी से पूछा,’ यह तो बड़ा अन्याय हुआ नारी के साथ |’
       नारी प्रकृति है, माया है | स्त्री द्विविधा भाव है | वही मोक्ष से रोकती भी है अर्थात संसारी भाव में जीव अर्थात पुरुष का जीना हराम भी करती है और और वही मोक्ष का द्वार भी है जीना आरामदायक भी करती है | काली के रूप में शिव को शव बनादेती है, सती के रूप में शिव को उन्मत्त करती  है तो पार्वती बन कर शिव को चन्द्रचूड बना देती है और तुलसी को तुलसीदास | नारी को गौ रूप कहा जाता है अर्थात वह प्रकृति में पृथ्वी है, गाय है, इन्द्रिय है, संसार हेतु अविद्या है तो तत्व रूप में विद्या, ज्ञान व बुद्धि | बंधन में तो पुरुष अर्थात जीव रूप में ब्रह्म या पुरुष रहता है| उसी को मुक्त होना होता है | नारी, प्रकृति, माया तो बद्ध-पुरुष को मुक्ति के पथ पर लेजाती है| ड़ा. शर्माजी ने स्पष्ट किया | तभी तो ईशोपनिषद में मोक्ष मन्त्र कहा गया है.......
              ” विद्या चा विद्या यस्तत  वेदोभय स:
               अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययामृमनुश्ते ||” 
       ‘तो फिर नारी के जीवन का उद्देश्य ही क्या रह जाता है | जब मुक्ति ही नहीं ?’ राघव ने पुनः प्रश्न उठाया |
       ‘नारी की मुक्ति पुरुष से जुडी है | यदि नारी पुरुष को मुक्ति की ओर लेजाती है | वह पुरुष को मुक्ति-पथ पर चलने को तैयार कर पाती है अपने प्रेम, तप, साधना, त्याग से तो वह अनाचारी, अत्याचारी, समाज एवं नारी पर भी अत्याचार का कारण नहीं बनेगा | समाज सम व द्वंद्वों से रहित रहेगा | क्योंकि मूलतः द्वंद्वों का कारण पुरुष ही होता है जो माया-बद्ध जीव है माया से भ्रमित | मेरे विचार से यही नारी की मुक्ति है |’ ड़ा शर्मा कहने लगे |
          ‘आखिर यह मुक्ति है क्या ?’ अमित जी कहने लगे, ‘ जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होना या सांसारिक बंधन से मुक्ति ...या संसार से ?’
          ‘और ये बंधन क्या है/ ड़ा शर्मा ने प्रति-प्रश्न किया, पुनः स्वयं ही कहने लगे,’ द्वेष, द्वंद्व, झगड़े, लाभ-हानि, लोभ-लालच में लिप्तता ही बंधन है | यदि नारी पुरुष को सहज रखने में सफल रहती है तो सारा समाज ही सहज रहता है | यही नारी का नारीत्व है और यही उसकी मुक्ति | पुरुष भी नारी को पूर्णता प्रदान कर उसे मुक्ति-पथ की ओर लेजाता है | अंत में मुक्ति तो जीव –तत्व की ही होती है वह न पुरुष होता है न स्त्री वह तो आत्म तत्व है | तभी तो कहा जाता है...
                       ’देहरी लौं संग बरी नारि और आगे हंस अकेला |’ 
           ‘पर जीव तो नारी भी है , फिर वह मुक्त क्यों नहीं हो सकती ?’ पांडे जी ने पूछा |
           वास्तव में तत्व व्याख्या में नारी जीव नहीं है | वह तो शक्ति का रूपांतरण है | अतः नारी तो सदा मुक्त है | वह बंधन में होती ही कब है | वह तो स्वयं बंधन है | जीव, पुरुष रूपी ब्रह्म को बांधने वाली | पुरुष ही बंधन में होता है | ब्रह्म पुरुष रूप में, जीव रूप में आकर स्वयं ही माया-बंधन में बंधता है ताकि संसार का क्रम चलता रहे | नारी तो स्वयं ही माया है, प्रकृति है | पुरुष –ब्रह्म को बाँध कर नचाने वाली| यद्यपि माया स्वयं ब्रह्म की इच्छा पर ही कार्य करती है स्वतंत्र रूप से नहीं क्योंकि वह उसी का अंश है.......    
                      “ ब्रह्म की इच्छा माया नाचे जीवन जगत सजाये |
                        जीव रूप जब बने ब्रह्म फिर माया उसे नचाये |”
          ‘यह तो विचित्र सा तर्क लगता है |’ राघव ने कहा |
          ‘हाँ, तभी तो पाश्चात्य जगत में एक समय ‘नारी जीव है भी या नहीं’ का प्रश्न उपस्थित था अपितु नारी को मानवी माने जाने में भी संदेह था | यह बड़ा ही क्रूड व क्रूर ढंग है वस्तुस्थिति को प्रकट करने का जो अति-भौतिकतावादी सभ्यता के अनुरूप ही हो सकता है | भारतीय सनातन सभ्यता , ब्राह्मण, जैन आदि में भी नारी को मुक्ति या मोक्ष का अधिकारी नहीं माना जाता रहा है परन्तु उसे मोक्ष के पथ पर लेजाने बाला माना जाता रहा है | इसीलिये उसे नर का, पुरुष का, ब्रह्म-जीव का बंधन कहा गया | यह कथन का तात्विक व सात्विक रूप है |’ ड़ा शर्मा जी ने बताया |
           ‘और ये अवतारों को क्या कहेंगे आप, हमारे यहाँ सारे अवतारों के साथ सदा नारी भी होती है या कोई भी शक्ति अवश्य अवतार लेती है जिनकी सहायता की अवश्य ही आवश्यकता पडती है इन अवतारों को; उसका क्या उत्तर देंगें आप ?’ सुषमा जी पूछने लगीं |
           ‘आपने बड़ी देर में भाग लेने का कष्ट किया बातचीत में’, ड़ा शर्मा हंसते हुए बोले ,’एक विचार भाव से वैज्ञानिक-अध्यात्म के अनुसार तो ये अवतार, चाहे सत्य हों या कल्पित.... जीवन व प्राणी की क्रमिक विकास यात्रा प्रतीत होते हैं....मत्स्य से जीवन की उत्पत्ति, जल से पृथ्वी पर आना, लघु मानव—मानव तक की उत्पत्ति, शारीरिक शक्ति-धनु, परशु, गदा आदि विविध हथियार,..  मानसिक शक्ति..तप, त्याग, मर्यादा व प्रकृति रूप के समन्वयक राम और शक्ति, ज्ञान, व्यवहार के समन्वयक कृष्ण तक| आगे अभी भविष्य के गर्भ में है |’ ये मानव व्यवहार की युग-संधियां भी कही जा सकती हैं|
        ‘आप सही कह रही हैं सुषमा जी, सभी के साथ उनकी मूल शक्ति रूप में या नारी-पत्नी रूप में प्रकृति या माया अवश्य अवतार लेती है..जन्म लेती है | जैसे ही बद्ध-जीव या अवतार का पृथ्वी-संसार पर कार्य समाप्त होजाता है वह मुक्ति के पथ पर अग्रसर होता है, उसकी शक्तियां, माया, प्रकृतिरूपा शक्ति-अवतार भी उससे पहले या बाद में जगत से प्रस्थान कर जाती हैं | इसीलिये तो हमारे यहाँ शक्ति-रूपा पत्नी सदैव पति से पहले मृत्यु की कामना करती है ताकि गोलोक में जाकर वहाँ की व्यवस्था भी संभाली जाय अपनी स्वेच्छा से भी और आशीर्वाद भी “सदा सुहागन रहो” का दिया जाता है | ड़ा शर्मा हंस कर कहने लगे |’ ....‘और सती प्रथा जैसी कुप्रथा शायद भी इस तात्विक बात का अर्थ-अनर्थ करने से उत्पन्न हुई |’ उन्होंने पुनः कहा |
       ‘परन्तु अवतार तो सर्व-समर्थ होते हैं, ब्रह्म रूप, ईश्वर का अवतार ; तो फिर शक्तियों को, प्रकृति को साथ आने की क्या आवश्यकता ?’ राघव ने तर्क किया |
       पुरुष या ब्रह्म या ईश्वर स्वयं अकेला कहाँ कार्य कर पाता है, वह तो अकर्मा है कार्य तो प्रकृति ही करती है | अवतार भी प्रकृति, शक्ति, योगमाया द्वारा ही कार्य कराते हैं | ड़ा शर्मा बोले |
       ‘तो फिर प्रकृति ही सब कुछ हुई, और स्त्री भी ...फिर पुरुष, ईश्वर, ब्रह्म, अवतार की क्या आवश्यकता है यदि हैं और यदि कल्पित हैं तो भी इनकी परिकल्पना की क्या आवश्यकता है |’ पांडे जी ने तर्क दिया |
      ‘परन्तु शक्ति स्वेच्छा से कहाँ कार्य करती है | वह तो पुरुष या ब्रह्म की इच्छानुसार ही क्रियाशील होती है | “एकोहं बहुस्याम “ की ईषत इच्छा से ही तो प्रकृति चेतन होकर संसार रचती है| अर्थात...ब्रह्म –प्रकृति, नर-नारी, दोनों ही आवश्यक हैं सृष्टि हेतु, संसार के लिए, संसार के सहज सामंजस्य के लिए| यदि संसार के इस द्वैत, द्विविधा भाव के तात्विक ज्ञान को सभी स्त्री-पुरुष समझ कर जीवन में उतारें यथानुसार कार्य करें तो समाज-संसार में द्वंद्वों का प्रश्न ही खडा नहीं होगा |’
         ‘तो फिर संसार कैसे चलेगा, क्यों रचा जायेगा, क्यों बनेगा ? किस लिए, किसके लिए ?’ प्रश्न उठाया गया |
         ‘तभी तो दोनों अलग अलग जन्म लेते हैं, आकर्षण-विकर्षण के चलते मिलते हैं..प्रेमी-प्रेमिका, पति-पत्नी बनते हैं...संसार-चक्र बनता व चलता है| एक दूसरे को मुक्ति पथ पर लेजाते हैं| तभी तो कहा गया है कि नारी के बिना मुक्ति नहीं, बिना संसार को जाने मुक्ति कैसी, बिना संसार रूपी वैतरिणी पार किये कहाँ मोक्ष और उसके लिए गाय की पूंछ अर्थात पृथ्वी का, प्रकृति का, नारी का, ज्ञान-बुद्धि का पल्लू पकडना अत्यावश्यक है |’ ड़ा शर्मा कहते गए | 
         “उर्वशी कहती है कि तुम सौ वर्ष तक भी प्रेम करते रहो तो भी नारी प्रेम नहीं करेगी, स्त्रियाँ निर्मोही होती हैं |” पांडेजी हंसते हुए कहने लगे |
         ‘ वैसे तो यह स्वर्ग की अर्थात सिद्धि-प्रसिद्धि के शिखर की बात है, जहां ममता-मोह-बंधन आदि नहीं होते परन्तु संसार में, पृथ्वी पर नारी प्रेम का प्रतीक है| तभी तो उर्वशी भूलोक पर आती है परन्तु भूलोक की नारी का पूर्ण धर्म नहीं निभा पाती| प्रकृति व माया की भांति नारी भी शक्ति है, ऊर्जा है ...पावर है, और शक्ति निर्मोही होती है उसके साथ नाजायज़ छेड़खानी से धक्का, शाक अर्थात करेंट लगने का सदैव अंदेशा रहता है| नर को भी समाज को भी, और परिणाम ..पंगु होजाना ..नर का भी, समाज का भी....सावधान..’  कहते हुए ड़ा शर्मा मुस्कुराये |
          ‘बडी देर से नारी-निंदा पुराण कहा-सुना जारहा है |’, अमृता जी जो बड़ी देर से सोफे पर बैठी हुईं सब सुन रहीं थीं, बोलीं |
         ‘ निंदा या प्रशंसा-स्तुति, पांडे जी बोले, ’ फिर,यह तो हम पुरुषों के मंतव्य हैं | आप लोग अपने मंतव्य प्रस्तुत करें |’
          सुना नहीं है, अमृता जी बोलीं.....
                 “ नारी निंदा मत करो,  नारी नर की खान |
                  नारी से नर होत हैं, ध्रुव, प्रहलाद समान ||” 
          बिलकुल सत्य है अमृता जी, ड़ा शर्मा कहने लगे, पर इसके लिए नारी को  ध्रुव, प्रहलाद की माँ के समान भी तो होना पडेगा |’   

गुरुवार, 22 जनवरी 2015

सातों सुर सातों रंग संग लाती है हर बिटिया !




सातों सुर सातों रंग संग लाती है हर बिटिया !
बेसुरी बदरंग उसके बिन है ये सारी दुनिया !
.............................................................
इसकी किलकारी इसकी मुस्कानें अंगना में लाती बहारें ,
ले लो गोदी ज़िद करती है , तब बरसें ठंडी फुहारें ,
नन्हें हाथों से ये लुटाती है भोली-भली हज़ारों खुशियां !
सातों सुर सातों रंग संग लाती है हर बिटिया !
बेसुरी बदरंग उसके बिन है ये सारी दुनिया !
.....................................................................
ये ही जननी है , ये ही पुत्री है ,ये ही पत्नी , यही है बहना ,
इसकी ममता का , समर्पण का ,स्नेह का क्या कहना ,
ये कली ही तो चटककर महका देती सारी बगिया !
सातों सुर सातों रंग संग लाती है हर बिटिया !
बेसुरी बदरंग उसके बिन है ये सारी दुनिया !
..................................................................
इसके सपनों को सच करना है फिर भरेगी ये ऊँची उड़ान ,
इसको आने दो इस दुनिया में ये भी तो प्रभु का वरदान ,
अब चहकने दो मीठा-मीठा सा नन्ही चिड़िया सी प्यारी गुड़िया !
सातों सुर सातों रंग संग लाती है हर बिटिया !
बेसुरी बदरंग उसके बिन है ये सारी दुनिया !


डॉ. शिखा कौशिक 'नूतन'

सोमवार, 19 जनवरी 2015

लघु कथा -कैसा विरोध प्रदर्शन



Protesters : lots of furious people protesting (a group of people protesting, protest, demonstrator, protest man, demonstrations, protest, demonstrator, hooligan, fan, protest design, protest poster) Stock Photo
लघु कथा -कैसा विरोध प्रदर्शन 

शहर में हुए छोटी बच्ची के साथ बलात्कार के विरोध-प्रदर्शन हेतु विपक्षी  पार्टी ने पाँच-पाँच सौ रूपये में झोपड़-पट्टी में रहने वाले परिवारों की महिलाओं को छह घंटे के लिए किराये पर लिया था . विपक्ष के पार्टी कार्यालय से पार्टी द्वारा वितरित वस्त्र धारण कर व् हाथों में बैनर लेकर दिए गए नारे लगाते हुए महिलाओं का काफिला सरकार की मुखिया के आवास की ओर बढ़ लिया . तभी उसमे सबसे जोर से नारे लगा रही कार्यकर्ती के मोबाइल की घंटी बजी .उसने सोचा जरूर पांच नंबर के बंगले वाली मोटी का फोन होगा .कह दूँगी आज बच्चा  बीमार है कल को आउंगी . पर कॉल घर से थी .उसने रिसीव करते हुए पूछा -''क्यों किया बबली फून ?'' बबली हकलाते हुए बोली -'' मम्मी वो भाई ने हैण्ड  पम्प पर पानी भरने आई सुमन का दुपट्टा खीचकर खुलेआम उसके साथ छेड़छाड़ कर दी .बहुत पब्लिक इकट्ठी हो गयी है .भाई बहुत पिटेगा आज ! जल्दी आजा मम्मी !'' कार्यकर्ती जोश में बोली -'बबली तू चिंता न कर ...देंखूं कौन हाथ लगावे है मेरे बेटे  को ? ससुरी इस सुमन में धरा क्या है ? मैं दस मिनट में पहुँचरी बबली ..तू घबरावे ना !'' ये कहकर कार्यकर्ती काफिले से अलग होकर अपने इलाके की ओर बढ़ चली !


शिखा कौशिक 'नूतन'

शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

* घूंघट की दीवारों में !*


* घूंघट की दीवारों  में !*
Image result for free images of woman in ghoonghat

क्यों कैद किया औरत को ?
घूंघट की दीवारों  में ,
घुटती है ; सिसकती है ,
घूंघट की दीवारों  में !
......................................
कुछ कर के दिखाने की ;
उसकी भी तमन्ना थी ,
दम  तोड़ रही हर चाहत ;
घूंघट की दीवारों  में !
......................................................
मुरझाया सा दिल लेकर ;
दिन-रात भटकती है ,
हाय कितना अँधेरा है !
घूंघट की दीवारों  में !
......................................
घूंघट जो उठाया तो ;
बदनाम न हो जाये ,
डर-डर के रोज़ मरती है ;
 घूंघट की दीवारों  में !
.........................................
क्या फूंकना औरत को ;
मरघट पे है ले जाकर ,
जल-जल के खाक होती है ;
घूंघट की दीवारों  में !

शिखा कौशिक 'नूतन'
















गुरुवार, 15 जनवरी 2015

SUPPORT THIS INITIATIVE AGAINST PARDA-PRATHA

Sunita Sharma[chairperson Gaytri women welfare & protection Society (Rgd)‏] HAS STARTED A GREAT INITIATIVE AND SEND THIS TO P.M. OF INDIA .SUPPORT HER AND HER SOCIETY .HER E-MAIL IS -sunitaskoshish@gmail.com
गायत्री महिला कल्याण एवं सुरक्षा समिति ( रजिस्टर्ड)                          
                         कानून बनाने हेतु  न्याय याचिका 
प्रधान मंत्री ,
भारतीय सरकार ,
नई देहली । 
       विषय - पर्दा प्रथा को मानवीय एवं मौलिक अधिकारों का हनन घोषित करते हुए इस प्रथा को समाप्त करने के लिए कानून बनाना और लागू करवाना , डोमेस्टिक वॉयलेंस के तहत करवाई और सजा लागू करना ।  
         संदर्भ - भारतीय सविधान आर्टिकल 14, 15,19, 21 एवं मानवीय अधिकारों के हनन के अंतर्गत । 

माननीय महोदय , 
हम इस विषय पर पिछली सरकारों को भी निवेदन करते आ रहे हैं और निराशा ही हाथ लगी । किन्तु अब जिस तरह आप ने नारी की गरिमा के प्रति संवेदनशीलता दिखाते हुए शौचालय निर्माण को राष्ट्रीय अभियान बना कर समस्याओं से निपटने की अपनी प्रतिबद्धता स्थापित  की है, उससे उत्साहित होकर हम आप को इस विषय पर निवेदन कर  रहे हैं । अगर उक्त नारी अभिशाप को आपके द्वारा कानून बना कर समाप्त करवा दिया जाता है तो वर्ष २०१४- १५ भारतीय नारी के इतिहास में स्वर्ण युग के रूप में  लिखा जाएगा । जिस प्रकार हमारी आज की  पीढ़ी  सती प्रथा\ बाल विवाह\ विधवा पुनः विवाह को इतिहास का हिस्सा मान कर पढ़ते हुए इस के पीछे के व्यक्तियों को श्रद्धा से देखती है, उसी प्रकार आज की सरकार को भविष्य की पीढ़ियाँ श्रद्धा से देखेंगी । ये शब्द न तो अतिश्योक्ति है, न तथ्य हीन । 
                  हम मानते हैं कि सामाजिक रूढ़ियों \ कुप्रथाओं को समाप्त करने के लिए जनांदोलन चाहिये, किन्तु पिछले राष्ट्रीय ही नहीं, अंतराष्ट्रीय तजुर्बों से यही निष्कर्ष निकलता है कि कुप्रथाओं को समाप्त करने के लिए कानून बना कर जनांदोलन चलाये गए और सफलता प्राप्त हुई । जैसे -
(1) सती प्रथा - सती प्रथा को समाप्त करने के लिए माननीय राजा राम मोहन राय ने उस वक्त की  सरकार से कानून बनवा कर जनांदोलन चलाया और सती प्रथा समाप्त करने में भारत ने सफलता पाई । 
(2) विधवा पुनर्विवाह - ईश्वरचन्द्र विद्यासागर जी के प्रयासों से ये कानून बना और भारतीय नारी का अभिशाप समाप्त हुआ । 
(3) बाल विवाह को रोकने के लिए कानून बनाने का सहारा लिया गया । 
(4) कन्या भ्रूण हत्या पर कानून - जब जनजागरण प्रभावी सिद्ध नहीं हुआ तो भारतीय सरकार को कन्या भ्रूण हत्या को रुकवाने के लिए कानून बनाना पडा । और इसको  लागू करने के लिए सरकार को सख्ती भी करनी पड रही है । इससे स्पष्ट होता है कि केवल जनजागरण से काम नहीं चल सकता । 
(5 ) राष्ट्रीय ही नहीं, अंतराष्ट्रीय पटल पर भी अनेकों ऐसे उदाहरण मिल जाते हैं । जिसमें कानून बना कर कुप्रथाओं को समाप्त किया गया । 
हमारी माँग का आधार   -
क़ानूनी परिप्रेक्ष्य में हमारी माँग का आधार -
(क) पर्दा प्रथा मानवीय अधिकारों का हनन है - इस विश्व वसुंधरा को देखने के लिए ईश्वर ने पुरुष की भाँति नारी को भी दो आँखें बिना पक्षपात के दी हैं, किन्तु नारी की आँखों पर पर्दा डलवा कर उससे देखने का मानवी अधिकार छीन लिया जाता है,  जो सीधा-सीधा मानवीय अधिकारों का हनन है । 
       मानवीय ही नहीं, अपितु ये अधिकार छीनकर नारी को पशु से भी बदतर साबित किया जाता है । सामान्य स्थिति में पशुओं की आँख पर भी पर्दा नहीं डाला जाता, वो तभी डाला जाता है, जब पशु को उसकी इच्छा के विपरीत कहीं ले जाया जाता है और शादी जैसे पवित्र बंधन के बाद भी नारी की हालत गली के कुत्ते-बिल्ली से बदतर कर दी जाती है । 
(ख  ) पर्दा प्रथा भारतीय सविधान के आर्टिकल १४, १५, १९ और विशेष रूप से २१  का हनन है-जब भारतीय नारी को पर्दा प्रथा के कारण देखने के स्वतंत्र  एवं समान  अधिकार से वंचित किया जाता है और सरकार उसे प्रोटेक्शन नहीं दे पाती तो सीधे सीधे आर्टिकल १४ का हनन होता है  

(ii)  पर्दा प्रथा लिंग (जेंडर)  के आधार पर  डिस्क्रिमिनेशन है, जो सीधे-सीधे आर्टिकल १५  का हनन है । 
(iv) पर्दा प्रथा विशेष रूप  से  सीधे-सीधे आर्टिकल 21 राइट ऑफ़  पर्सनल लिबर्टी  का हनन है | 
 (v ) पर्दा प्रथा नेचुरल जस्टिस का हनन है । 
सामाजिक परिप्रेक्ष्य में हमारी माँग का आधार - 
(क)  हो सकता है पर्दा प्रथा आपात काल का  धर्म हो ,किन्तु आज की परिस्थितियों में ये औचित्यहीन ही नहीं, समस्त समाज और मानवता की  हानि करने वाली है । 
 (ख) प्रायः गंदगी को ढका जाता है - जब  भारतीय नारी की आँखों को ढकवाया जाता है तो शायद पर्दा प्रथा का पक्षधर समाज   नारी को  गंदगी का दर्जा देने  के लिए इसकी पैरवी करता है  |
(ग) समाज में अच्छी वस्तु को बुरी चीजों से बचाने \ सुरक्षित रखने के लिए ढका जाता है , यदि समाज के इस प्रथा के पक्षधर नारी को गंदगी नहीं मानते तो क्या उन को अपने चरित्र पर संदेह है कि घर की  ही बहु-बेटी रूपी नारी को देख कर उन के चरित्र का हनन हो जायेगा | यदि ऐसा है तो वो अपनी  आँखें ढकें, न कि नारी की | ऐसे समाज की मानसिक कमजोरी की सजा नारी क्यों भुगते ?
(घ ) मुख वो छिपाते हैं, जो गलत काम करते हैं| शादी जैसे पवित्र बंधन डालते ही यदि नारी को मुख छिपाना पड़ता है तो स्पष्ट है कि शादी दुष्कर्म है, जिस कारण शादी करते ही नारी को मुख छिपाने का आदेश हो जाता है । यदि शादी दुष्कर्म है तो उसमें सहभागिता तो नारी पुरुष दोनों की है, फिर नारी अकेली क्यों मुख छिपाए ? और ऐसी सोच से समाज की व्यवस्था जो गृहस्थ को तपोवन के अलंकार से सुशोभित करती है, वो चकना - चूर हो जाएगी । 

पर्दा प्रथा के नुकसान -   जहाँ एक ओर खुलेआम देश में मानवीय और संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों के हनन से भारतीय गरिमा शर्मसार होती है वहीं --
(i)   नारी के अंदर मानसिक दासता की भावना विकसित होती है | 
(ii)    जब बच्चा अपनी माँ को घूँघट में देखता है तो उसके अंदर नारी को हेय दृष्टि से देखने की भावना पनपती है । जब वह बच्चा पुरुष होता है तो वो खुद को पुरुष के रूप में उत्तम मानता है और यही भावना शादी के बाद घर में आई  बहू से घरेलू मार -कुटाई \उत्पीड़न का  कारण बनती है | और जब वह बच्चा कन्या होती है तो माँ -चाची ताई को मुख छिपाए देख कर वो खुद को हीन मानने लगती है और हर अत्याचार तो अपनी नीयति मानने लगती है । 
(iii) नारी का सर्वांगीण विकास और सर्वतोमुखी उन्नति में पर्दा प्रथा बाधक है | 
(iv) पर्दा प्रथा से नारी की गरिमा गिरती है| गरिमा गिराने का अर्थ है अपनी ( मानव समाज \ राष्ट्र ) की उद्गम शक्ति का विनाश जो घाटे ही घाटे का सौदा  है | 

सावधानियाँ -
जब भी कोई कदम किसी विशेष जाति \ जेण्डर के हित के लिए उठाए जाते हैं तो शातिर लोगों द्वारा उन के दुरुपयोग की गुंजाइश भी बनी रहती है, इसीलिए शुभ कार्य करते वक्त रक्षा विधान की व्यवस्था की जाती है। जोश के साथ होश का पुट लगाया जाता है । इस कानून को बनाते वक्त निम्नलिखित प्रिकॉशन्स ली जा सकती हैं -
(अ) माना तब जाये कि नारी को आँखें \ मुख छुपाने का निर्देश दिया गया है, जब उस के साथ उसके सुसराल पक्ष के पुरुष साथ हों । 
(आ) माना तब जाये कि नारी को आँखें \ मुख छुपाने का निर्देश दिया गया है, जब उसके साथ उसके सुसराल पक्ष की नारियाँ साथ हों और उनके भी आँखें-मुख पर्दे के पीछे ढके हुए हों ।
(इ ) अगर एक अकेली नारी पर्दा करके समाज में विचरण करे तो उसे सुसराल का निर्देश नहीं माना जाना चाहिए।  ऐसे में यदि कोई स्वयं भोगी की शिकायत प्राप्त हो या किसी संस्था द्वारा साक्ष्य पेश किये जायें तो सुसराल वालों को पहले केवल समझाया जाये या उन से वस्तुस्थिति को समझा जाये। 

सजा - पहली दो बार जुर्माना किया जाये और तीसरी बार सजा सुनायी जाए | 

धर्म और प्रथा - पहले चरण में उन धर्मों में कानून लागू किया जाए, जहाँ धर्म पर्दे को मान्यता नहीं देते या परदे का निर्देश नहीं देते।  
    दूसरे चरण में जहाँ धर्म परदे के निर्देश देते हैं, उस धर्म अधिकारियों से विचार विमर्श किया जाए और वो खुद तय करें कि वो अपनी औरतों को आगे बढ़ाना चाहते हैं या नहीं |  

   हम आप से आशा करते हैं कि शीघ्र- अतिशीघ्र कानून बनाकर, आप इस अभिशाप को समाप्त करवाकर नारी जाति जो दुर्गा का अंश है, जो माँ भारती की संतान है,  जो जननी है, उसे समाज के कुछ मूढ़ों द्वारा नारी को हैंडीकैप (अपंग) बनवाये जाने  से रुकवायेंगे |
भवदीय ,

श्याम स्मृति- ....यदि पति माना हैं तो ...डा श्याम गुप्त...



श्याम स्मृति- ....यदि पति माना हैं तो ...

             यदि पति माना है तो पति-सेवा धर्म निभाना पत्नी का कर्तव्य है चाहे वह लूला हो, लंगडा हो, अंधा-कोडी हो | जैसा अनुसूया सीता से कहती हैं | शैव्या के कोढी पति अंधे च्यवन ऋषि की पत्नी राजा शर्याति की राजकुमारी सुकन्या की पतिसेवा की कथाएं प्रसिद्द हैं | सीता भी राम को जंगल में छोड़कर नहीं भागी | परन्तु गंगा, उर्वशी जैसी तमाम बुद्धिमती स्त्रियों ने विवाह संस्था को नहीं माना, किसी को पति नहीं माना | वैदिक काल में सरस्वती ने भी नहीं |

          इसीलिये तो शादी में गुण मिलाये जाते हैं , जन्म पत्री देखी जाती है सारा परिवार, कुटुम, खानदान सम्मिलित होता है | तब किसी को पति स्वीकारा जाता है | आजकल लड़की भी देखती है बात करती है |

          पुरुष ब्रह्म है नारी प्रकृति, वह शक्ति है ब्रह्म की | ब्रह्म उसके द्वारा ही कार्य करता है परन्तु फिर भी प्रकृति स्वतंत्र नहीं है, ब्रह्म की इच्छा से ही कार्य करती है | अतः नारी इच्छानुसार ही चले वही उचित रहता है | यदि पति माना है तो निभाना ही चाहिए चाहे कैसा भी हो|  इसीलिये तो पति की उम्र अधिक रखी गयी है ताकि अनुभव-ज्ञान के आधार पर नारी आदर करे पुरुष का और अनुभवी पुरुष सदा मान रखे अपने साथी का, बड़ों द्वारा छोटों के समादर करने वाले भावानुशासन के अनुसार |