श्याम स्मृति- ....यदि पति माना हैं तो ...
यदि
पति
माना
है
तो
पति-सेवा
धर्म
निभाना पत्नी का कर्तव्य है चाहे वह लूला हो, लंगडा हो, अंधा-कोडी हो | जैसा अनुसूया सीता से कहती हैं | शैव्या के कोढी पति व अंधे च्यवन ऋषि की पत्नी राजा शर्याति की राजकुमारी सुकन्या की पतिसेवा की कथाएं प्रसिद्द हैं | सीता भी राम को जंगल में छोड़कर नहीं भागी | परन्तु गंगा, उर्वशी जैसी तमाम बुद्धिमती स्त्रियों ने विवाह संस्था को नहीं माना, किसी को पति नहीं माना | वैदिक काल में सरस्वती ने भी नहीं |
इसीलिये तो शादी में गुण मिलाये जाते हैं , जन्म पत्री देखी जाती है सारा परिवार, कुटुम, खानदान सम्मिलित होता है | तब किसी को पति स्वीकारा जाता है | आजकल लड़की भी देखती है बात करती है |
पुरुष ब्रह्म है नारी प्रकृति, वह शक्ति है ब्रह्म की | ब्रह्म उसके द्वारा ही कार्य करता है परन्तु फिर भी प्रकृति स्वतंत्र नहीं है, ब्रह्म की इच्छा से ही कार्य करती है | अतः नारी इच्छानुसार ही चले वही उचित रहता है | यदि पति माना है तो निभाना ही चाहिए चाहे कैसा भी हो| इसीलिये तो पति की उम्र अधिक रखी गयी है ताकि अनुभव-ज्ञान के आधार पर नारी आदर करे पुरुष का और अनुभवी पुरुष सदा मान रखे अपने साथी का, बड़ों द्वारा छोटों के समादर करने वाले भावानुशासन के अनुसार |
apni apni soch hai .stri hi aadar kare aur purush uski upeksha kare .
जवाब देंहटाएंapni apni soch hai .stri hi aadar kare aur purush uski upeksha kare .
जवाब देंहटाएंapni apni soch hai .stri hi aadar kare aur purush uski upeksha kare .
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जवाब देंहटाएं----तत्व भाव यह है ----
नारी आदर करे पुरुष का और पुरुष सदा मान रखे अपने साथी का, बड़ों द्वारा छोटों के समादर करने वाले भावानुशासन के अनुसार |
सोच अपनी अपनी नहीं उससे समाज में द्वंद्व व अहं का अनाचरण फैलता है.....उचित, समन्वयक व सत्य सोच होनी चाहिए .....
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