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शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

* घूंघट की दीवारों में !*


* घूंघट की दीवारों  में !*
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क्यों कैद किया औरत को ?
घूंघट की दीवारों  में ,
घुटती है ; सिसकती है ,
घूंघट की दीवारों  में !
......................................
कुछ कर के दिखाने की ;
उसकी भी तमन्ना थी ,
दम  तोड़ रही हर चाहत ;
घूंघट की दीवारों  में !
......................................................
मुरझाया सा दिल लेकर ;
दिन-रात भटकती है ,
हाय कितना अँधेरा है !
घूंघट की दीवारों  में !
......................................
घूंघट जो उठाया तो ;
बदनाम न हो जाये ,
डर-डर के रोज़ मरती है ;
 घूंघट की दीवारों  में !
.........................................
क्या फूंकना औरत को ;
मरघट पे है ले जाकर ,
जल-जल के खाक होती है ;
घूंघट की दीवारों  में !

शिखा कौशिक 'नूतन'
















7 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (18-01-2015) को "सियासत क्यों जीती?" (चर्चा - 1862) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....

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  3. सही ---पर आजकल घूंघट कौन कर रहा है ..

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  4. घूंघट कपड़ों का नहीं आँखों में शर्म सका होना चाहिए
    http://savanxxx.blogspot.in

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