श्रुतियों व पुराण-कथाओं में भक्ति-पक्ष के साथ व्यवहारिक-वैज्ञानिक तथ्य-.
कावेरी की कथा......
कावेरी उद्गम -तलाकावेरी -कुर्ग |
कावेरी |
कावेरी -मंथर-मंथर |
कावेरी-होनेगोक्कल फाल्स |
कावेरी की कथा .....
भारतीय पुराण-कथाएं सदा अन्योक्ति, कूट व सूत्र रूप में कही गयी हैं , परन्तु उनके
वास्तविक/तात्विक अर्थ व्यवहारिक, नीति-परक व सामाजिक नीति व्यवस्था के होते है | अर्थ न समझने
के कारण लोग उन्हें प्रायः कपोल-कल्पित कह कर उनका उपहास भी करते हैं और हिन्दू सनातन-धर्म
के उपहास के लिए उदाहरण भी
वास्तविक/तात्विक अर्थ व्यवहारिक, नीति-परक व सामाजिक नीति व्यवस्था के होते है | अर्थ न समझने
के कारण लोग उन्हें प्रायः कपोल-कल्पित कह कर उनका उपहास भी करते हैं और हिन्दू सनातन-धर्म
के उपहास के लिए उदाहरण भी
कावेरी नदी की कथा का भी यही तथ्य है जो नारी जीवन-व्यवहार, सखियाँ,पिता-पुत्री प्रेम की व्याख्या
भी है...
स्थानीय..कर्मकान्ड केअनुसार कावेरी के उदगम-स्थान पर हर साल सावन के महीने में बड़ा भारी उत्सव
मनाया जाताहै। यह है कावेरी की विदाई का उत्सव। कुर्ग के सभी हिन्दू लोग, विशेषकर स्त्रियां, इस उत्सव में
बड़ी श्रद्धा के साथ भाग
लेती हैं।उस दिन कावेरी की मूर्ति की विशेष पूजा होती है। 'तलैकावेरी' कहलानेवाले उदगम-स्थान पर सब स्नान
करते हैं। स्नान करनेके बाद प्रत्येक स्त्री कोई न कोई गहना, उपहार के रुप में, उस तालाब में डालती है। यह दृश्य
ठीक वैसा ही होता है, जैसा कि नईविवाहित लड़की की विदाई का दृश्य |
कावेरी की पौराणिक कथा व स्थानीय जनश्रुति यह है----
सहा-पर्वत ने अपनी लजीली बेटी कावेरी को उसके पति समुद्रराज के पास भेजा। जब बेटी घर से विदा
होकर चली गईतब सहा-पर्वत को भय हुआ कि कहीं ससुरालवाले मेरी बेटी को गरीब न समझ लें। इसलिए उसने
कनका नाम की युवती को कईउपहारों के साथ दौड़ाया और कहा कि तुम जल्दी जाकर कावेरी के साथ हो लो।
कनका चली गई और 'भागमंडलम' नामक स्थान पर कावेरी से मिली। उपहार का शेष भाग यहीं पर
कावेरी को मिला,इस कारण इस स्थान का नाम 'भागमंडलम' पड़ा। परन्तु पिता सहा-पर्वत का भय अब भी दूर
नहीं हुआ। उसे लगा कि मैंने पुत्रीको उतने उपहार नहीं दिये, जितने कि मैं दे सकता था। उसने हेमावती नाम की दूसरी लड़की को बुलाया और बहुत से उपहारदेकर कहा कि तुम किसी ओर रास्ते से तेजी
से जाओ। हेमावती स्वयं अपनी सहेली के चली जाने पर दुखी थी। इसलिए सहा-पर्वत की आज्ञा से वह बहुत
प्रसन्न हुई और आंख मूंद कर भागी।
उधर कावेरी कनका से मिलने के बाद बहुत प्रसन्न हुई ओर विदाई का दु:ख भूल गई। 'भागमंडलम' से
'चित्रपुरम ' नामक स्थान तक दोनों सहेलियां ऊंची-ऊंची चट्रटानों के बीच में हंसती खेलती, किलोलें करती हुई चलीं,
परन्तु "चित्रपुरम' पहुंचने के बाद उनके कदम आगे नहीं बढ़े, क्योंकि वे कुर्ग की सीमा पर पहुंच गई थीं। आगे मैसूर राज्य आ गया था। उसमें प्रवेश करने का मतलब नैहर से सदा के लिए बिछुड़ना था। इस कारण वे
असमंजस में पड़ गई और ३२ कि.मी. तक कुर्ग और मैसूर की सीमा से साथ-साथ चलीं । चित्रपुरम से 'कण्णेकाल' के आगे कावेरी भारी मन से अपने पिता के घर से सदा के लिए बिछुड़ गई। बिछोहका
दु:ख उसे इतना था कि वह मैसूर के हासन जिले में पहाड़ी चट्रटानों के बीच में मुंह छिपाकर रोती हुई चली।
तिप्पूर नामक स्थान पर वह उत्तर की ओर मुड़ी, मानो पिता के घर लौट आयगी, परन्तु देखती क्या है कि उसकी सहेली हेमावती उत्तर से बड़ेवेग से चली आ रही है। उसी स्थान पर दोनों सहेलियां गले मिलीं।
होकर चली गईतब सहा-पर्वत को भय हुआ कि कहीं ससुरालवाले मेरी बेटी को गरीब न समझ लें। इसलिए उसने
कनका नाम की युवती को कईउपहारों के साथ दौड़ाया और कहा कि तुम जल्दी जाकर कावेरी के साथ हो लो।
कनका चली गई और 'भागमंडलम' नामक स्थान पर कावेरी से मिली। उपहार का शेष भाग यहीं पर
कावेरी को मिला,इस कारण इस स्थान का नाम 'भागमंडलम' पड़ा। परन्तु पिता सहा-पर्वत का भय अब भी दूर
नहीं हुआ। उसे लगा कि मैंने पुत्रीको उतने उपहार नहीं दिये, जितने कि मैं दे सकता था। उसने हेमावती नाम की दूसरी लड़की को बुलाया और बहुत से उपहारदेकर कहा कि तुम किसी ओर रास्ते से तेजी
से जाओ। हेमावती स्वयं अपनी सहेली के चली जाने पर दुखी थी। इसलिए सहा-पर्वत की आज्ञा से वह बहुत
प्रसन्न हुई और आंख मूंद कर भागी।
उधर कावेरी कनका से मिलने के बाद बहुत प्रसन्न हुई ओर विदाई का दु:ख भूल गई। 'भागमंडलम' से
'चित्रपुरम ' नामक स्थान तक दोनों सहेलियां ऊंची-ऊंची चट्रटानों के बीच में हंसती खेलती, किलोलें करती हुई चलीं,
परन्तु "चित्रपुरम' पहुंचने के बाद उनके कदम आगे नहीं बढ़े, क्योंकि वे कुर्ग की सीमा पर पहुंच गई थीं। आगे मैसूर राज्य आ गया था। उसमें प्रवेश करने का मतलब नैहर से सदा के लिए बिछुड़ना था। इस कारण वे
असमंजस में पड़ गई और ३२ कि.मी. तक कुर्ग और मैसूर की सीमा से साथ-साथ चलीं । चित्रपुरम से 'कण्णेकाल' के आगे कावेरी भारी मन से अपने पिता के घर से सदा के लिए बिछुड़ गई। बिछोहका
दु:ख उसे इतना था कि वह मैसूर के हासन जिले में पहाड़ी चट्रटानों के बीच में मुंह छिपाकर रोती हुई चली।
तिप्पूर नामक स्थान पर वह उत्तर की ओर मुड़ी, मानो पिता के घर लौट आयगी, परन्तु देखती क्या है कि उसकी सहेली हेमावती उत्तर से बड़ेवेग से चली आ रही है। उसी स्थान पर दोनों सहेलियां गले मिलीं।
कावेरी नदी का वास्तविक भौगोलिक स्वरुप देखिये... बिलकुल पौराणिक
अनुश्रुति व कथ्यों से समानता है ..-----
कावेरी के जन्म - अगस्त्य ऋषि कावेरी को कैलाश पर्वत से लेकर आये थे। एक बार भयंकर सूखा पड़ा जिससे
दक्षिण भारत में स्थिति बहुत ख़राब हो गयी। यह देखकर अगस्त्य ऋषि बहुत दुखी हुए और मानव जाति को
बचाने के लिए ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। ब्रह्मा जी ने उनसे कहा की अगर वे कैलाश पर्वत से बर्फीला पानी लेकर
जाएँ तो दक्षिण में नदी का उद्गम कर सकतें हैं। अगस्त्य ऋषि कैलाश पर्वत पर गए, वहां से बर्फीला पानी
अपने कमंडल में लिया और दक्षिण दिशा की और लौट चले। वें नदी के उद्गम स्थान की खोज करते हुए कुर्ग
पहुंचे। उचित उद्गम स्थान की खोज करते-करते ऋषि थक गए और अपना कमंडल भूमि पर रखकर विश्राम
करने लगे। तभी वहां पर एक कौवा उड़ते हुए आया और कमंडल पर बैठनेलगा। कौवे के बैठते ही कमंडल उलट
गया और उसका पानी भूमि पर गिर गया। जब ऋषि ने यह देखा तो उन्हें बहुत क्रोध आया। लेकिन तभी वहां
गणेश जी प्रकट हुए और उन्होंने ऋषि से कहा कि मैं ही कौवे का रूप धारण करके आपकी मदद के लिए आया
। कावेरी के उद्गम के लिए यही स्थान उचित है। यह सुनकर ऋषि प्रसन्न हुए और भगवान गणेश अंतर्ध्यान
हो गए।
कावेरी कर्नाटक की पूर्व कुर्ग रियासत से निकलती है। यह पूर्व मैसूर राज्य को सींचती हुई दक्षिण
पूर्व की ओर बहती है और तमिलनाडु के एक विशाल प्रदेश को हरा-भरा बनाकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
इस लम्बी यात्रा में कावेरी का रुप सैकड़ो बार बदलता है। कहीं वह पतली धार की तरह दो ऊंची चट्रटानों के
बीच बहती है, जहां एक छलांग में उसे पार कर सकते है कहीं उसकी चौड़ाई डेढ़ कि.मी. के करीब होती है ओर
वह सागर सी दिखाई देती है कहीं वह साढ़े तीन सौ फुट की ऊंचाई से जल प्रपात के रुप में गिरती है, जहां
उसका भीषण रुप देखकर और चीत्कार सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते है,कहीं वह इतनी सरल और प्यारी होती है
कि उस पर बांस की लकड़ी का पुल बनाकर लोग उसे पार कर जाते हैं।
पश्चिमी घाट के उत्तरी भाग में एक सुन्दर राज्य है, जिसे कुर्ग कहते हैं। राज्य में एक पहाड़ का नाम ...
सहापर्वत है। इस पहाड़ को 'ब्रह्माकपाल' भी कहते हैं।
इस पहाड़ के एक कोने में एक छोटा सा तालाब बना है। तालाब में पानी केवल ढाई फुट गहरा है। इस
चौकोर तालाब काघेरा एक सौ बीस फुट का है। तालाब के पश्चिमी तट पर एक छोटा सा मन्दिर है। मन्दिर के
भीतर एक तरुणी की सुन्दर मूर्तिस्थापित है। मूर्ति के सामने एक दीप लगातार जलता रहता है।
यही तालाब कावेरी नदी का उदगम-स्थान है। पहाड़ के भीतर से फूट निकलनेवाली यह सरिता पहले
उस तालाब मेंगिरती है, फिर एक छोटे से झरने के रुप में बाहर निकलती है। देवी कावेरी की मूर्ति की यहां पर
नित्य पूजा होती है। कावेरी कास्रोत कभी नहीं सूखता।
कावेरी कुर्ग से निकलती अवश्य है, पर वहां की जनता को कोई लाभ नहीं पहुंचाती। कुर्ग के घने
जंगलों में पानीकाफी बरसता है, इस कारण वहां कावेरी का कोई काम भी नहीं है, उल्टे कावेरी कुर्ग की दो और
नदियों को भी अपने साथ मिलालेती है और पहाड़ी पट्रटानों के बीच में सांप की तरह टेढ़ी-मेढ़ी चाल चलती,
रास्ता बनाती, मॅसूर राज्य की ओर बढ़ती है।
कनका से मिलने से पहले कावेरी की धारा इतनी पतली होती है कि उसे नदी के रुप में पहचानना भी
कठिन होता है।कनका से मिलने के बाद उसे नदी का रुप और गति प्राप्त होती है। सहा'पर्वत से बहनेवाले सैकड़ों
छोटे-छोटे सोते भी यहां परउसमे आकर मिल जाते हैं। इस स्थान को 'भागमंडलम' कहते हैं। हेमावती नदी
कर्नाटक राज्य के तिप्पूर नामक स्थान पर कावेरी से आकर मिलती है।
तमिल भाषा में कावेरी को प्यार से 'पोन्नी' कहते हैं। पोन्नी का अर्थ है सोना उगानेवाली। कहा जाता
है किकावेरी के जल में सोने की धूल मिली हुई है। इस कारण इसका यह नाम पड़ा। जानने योग्य बात यह है
कि कावेरी मेंमिलने वाली कई उपनदियों में से दो के नाम कनका और हेमावती हैं। इन दोनों नामों में भी सोने
का संकेत है।
------ कथा का तात्विक अर्थ भौगोलिक वर्णन है तथा नैतिक (एथीकल) अर्थ पिता की पुत्री के
प्रति चिंता का व सखियों के प्रेम का सुन्दर समन्वयात्मक वर्णन|-----|
सहापर्वत है। इस पहाड़ को 'ब्रह्माकपाल' भी कहते हैं।
इस पहाड़ के एक कोने में एक छोटा सा तालाब बना है। तालाब में पानी केवल ढाई फुट गहरा है। इस
चौकोर तालाब काघेरा एक सौ बीस फुट का है। तालाब के पश्चिमी तट पर एक छोटा सा मन्दिर है। मन्दिर के
भीतर एक तरुणी की सुन्दर मूर्तिस्थापित है। मूर्ति के सामने एक दीप लगातार जलता रहता है।
यही तालाब कावेरी नदी का उदगम-स्थान है। पहाड़ के भीतर से फूट निकलनेवाली यह सरिता पहले
उस तालाब मेंगिरती है, फिर एक छोटे से झरने के रुप में बाहर निकलती है। देवी कावेरी की मूर्ति की यहां पर
नित्य पूजा होती है। कावेरी कास्रोत कभी नहीं सूखता।
कावेरी कुर्ग से निकलती अवश्य है, पर वहां की जनता को कोई लाभ नहीं पहुंचाती। कुर्ग के घने
जंगलों में पानीकाफी बरसता है, इस कारण वहां कावेरी का कोई काम भी नहीं है, उल्टे कावेरी कुर्ग की दो और
नदियों को भी अपने साथ मिलालेती है और पहाड़ी पट्रटानों के बीच में सांप की तरह टेढ़ी-मेढ़ी चाल चलती,
रास्ता बनाती, मॅसूर राज्य की ओर बढ़ती है।
कनका से मिलने से पहले कावेरी की धारा इतनी पतली होती है कि उसे नदी के रुप में पहचानना भी
कठिन होता है।कनका से मिलने के बाद उसे नदी का रुप और गति प्राप्त होती है। सहा'पर्वत से बहनेवाले सैकड़ों
छोटे-छोटे सोते भी यहां परउसमे आकर मिल जाते हैं। इस स्थान को 'भागमंडलम' कहते हैं। हेमावती नदी
कर्नाटक राज्य के तिप्पूर नामक स्थान पर कावेरी से आकर मिलती है।
तमिल भाषा में कावेरी को प्यार से 'पोन्नी' कहते हैं। पोन्नी का अर्थ है सोना उगानेवाली। कहा जाता
है किकावेरी के जल में सोने की धूल मिली हुई है। इस कारण इसका यह नाम पड़ा। जानने योग्य बात यह है
कि कावेरी मेंमिलने वाली कई उपनदियों में से दो के नाम कनका और हेमावती हैं। इन दोनों नामों में भी सोने
का संकेत है।
------ कथा का तात्विक अर्थ भौगोलिक वर्णन है तथा नैतिक (एथीकल) अर्थ पिता की पुत्री के
प्रति चिंता का व सखियों के प्रेम का सुन्दर समन्वयात्मक वर्णन|-----|
BAHUT GYANVARDHAK POST .HARDIK AABHAR
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