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शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

नारी (एक बेबसी)

जब नारी ने जन्म लिया था ! 
अभिशाप ने उसको घेरा था !!
अभी ना थी वो समझदार !
लोगो ने समझा मनुषहार !! 
उसकी मा थी लाचार ! 
लेकीन सब थे कटु वाचाल !! 
वह कली सी बढ्ने लगी ! 
सबको बोझ सी लगने लगी !! 
वह सबको समझ रही भगवान ! 
लेकीन सब थे हैवान !! 
वह बढना चाहती थी उन्नती के शिखर पर ! 
लेकीन सबने उसे गिराया जमी पर !! 
सबने कीया उसका ब्याह ! 
वह हो गयी काली स्याह !! 
ससुर ने मागा दहेग हजार ! 
न दे सके बेचकर घर-बार !! 
सास ने कीया अत्याचार ! 
वह मर गयी बिना खाये मार !! 
पती ने ना दीया उसे प्यार ! 
पर शिकायत बार-बार !! 
किसी ने ना दिखायी समझदारी ! 
यही है औरत कि बेबसी लाचारी !! 
ना मीली मन्जिल उसे बन गयी मुर्दा कन्काल ! 
सबने दिया अपमान उसे यही बन गया काल !! 
यही है नारी कि बेबसी यही है नारी की मन्जिल ! 
यही हिअ दुनीय कि रीत यही है मनुष्य का दिल !! 
मै दुआ करता हू खुदा से किसी को बेटी मत देना ! 
यदी बेटी देना तो इन्सान को हैवनीयत मत देना !! 

http://hindikavitamanch.blogspot.in/
http://rishabhpoem.blogspot.in/

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना रविवार 13 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. शुक्रिया आप सभी का, आप सभी से मेरा सविनय निवेदन है की आप सभी मेरे ब्लॉग पर आये और अपने विचार प्रकट करे.
    http://hindikavitamanch.blogspot.in/
    http://rishabhpoem.blogspot.in/

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  3. मार्मिक प्रस्तुति ! नारी के दु:सह्य जीवन का दारुण चित्रण ! मन विचलित हो गया !

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  4. आप सभी का बहुत-बहुत आभार, शुक्रिया.

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