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शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

''चल बबाल कटा !'' -लघु कथा


''और बता सरला क्या हाल-चाल हैं तेरे ? बहुत दिन में दिखाई दी .''घर की चौखट पर कड़ी विमला ने सामने सड़क से गुजरती सरला से ये पूछा तो वो ठिठक कर रुक गयी और बोली- ठीक हूँ जीजी ...आप बताओ बहुत दुबली लग रही हो !'' सरला के समीप आते ही विमला उसके कंधें पर हाथ रखते हुए बोली -'' मेरा क्या ..अब उम्र ही ऐसी है ..कोई न कोई रोग लगा ही रहता है ..अरे हाँ तेरी बहू तो पेट से थी ना ...कौन सा महीना चल रहा है अब ?'' विमला के इस सवाल पर सरला उसके और करीब आकर इधर-उधर नज़रे घुमाते हुए उसके कान के पास आकर हौले से बुदबुदाई - ''जीजी उसका गरभ तो गिर गया ..सीढ़ियों से रपट गयी थी ..छठा महीना चल रहा था ...अब जाकर सम्भली है उसकी तबियत ..मैंने तो उसे मायके भेज दिया था ..यहाँ कौन तीमारदारी करता ...दो दिन पहले ही आई है ..वो तो भगवान् का शुक्र रहा कि पेट में लौंडिया थी लौंडा होता तो जुलम ही हो जाता !'' विमला सरला की इस बात पर तपाक से बोली -'' यूँ ही तो कह हैं सब भगवान् जो करता है अच्छा ही करता है ...चल बबाल कटा !''
शिखा कौशिक 'नूतन'

4 टिप्‍पणियां:

  1. अगर लड़कियां बवाल हैं तो यह सवाल समाज के लिए बहुत गंभीर हैं बेटियों के बिना बेटों की हतरते कैसे पूरी होगी।

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  2. uf kadvi soch aapne achchhe tarike se likha hai sunder laghukatha
    rachana

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  3. और ये सोच नारियों की है .....ये नारियां पुरुषों को क्या दिशा देंगीं ...
    --- अज्ञानता हे सबका मूल कारण है..

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