चींटियाँ बहुत होगईं हैं
अरुणा जी अध्ययन कक्ष में प्रवेश करते
हुए कहने लगीं, आजकल न जाने क्यों चींटियाँ बहुत होगईं हैं| सारे घर में हर जगह
झुण्ड में घूमती हुईं दिखाई देतीं हैं | पहले तो प्रायः मीठा फ़ैलने, छिटकने पर या
मीठे के वर्तन, पैकेट, डब्बे आदि में ही दिखाई देतीं थीं परन्तु बड़े आश्चर्य की
बात है कि अब तो नमकीन पर, आटे में, दाल-चावल, रोटियाँ, घी-तेल सभी में होने लगी
हैं | कैसा कलियुग आगया है |
मैंने कहा सुनिए ...बचपन में मैंने एक
चींटी नाम से कविता लिखी थी वह यूं थी......
नमकीन क्यों नहीं खातीं
क्या बात है ये हे चींटी | .......और अभी कुछ महीने पहले यूं लिखा
है....
चींटी के बिल डालते आटा,
मिलता नहीं राह में कोई |
सुनकर वे हंसने लगीं, बात को कहाँ से कहाँ खींच
लेजाते | फिर बोलीं, ’ बात तो सही है, पहले जगह-जगह पुरुष, नारियां, वृद्धजन आदि
प्रतिदिन चींटी के बिल में आटा, कुत्ते-गाय को रोटी आदि देते हुए दिखाई देते थे,
अब तो नहीं दिखाई देते | अतः बेचारी क्या करें ...’बुभुक्षितम किं न करोति पापं’....जो
कुछ भी जहां दिख जाता है एकत्र करने लग जाती हैं | जब मनुष्य स्वयं ही संग्रह में
लिप्त है तो वे क्या करें | इस युग में जिसे देखो वही धन–संग्रह के साथ हर वस्तु
के संग्रह में लगा है चार गैस-सिलेंडर,
पेट्रोल, मिट्टी का तेल, खाद्य-सामग्री, सब्जी-फल से भरा फ्रिज, जैसे कल ये सब
समाप्त होने वाला है | तो कौन चींटियों को आटा डालने जाए | मिठाई तो अब लोग फ्रिज
में रखने लगे हैं|’
सचमुच यही बात है, मैंने कहा,’ गायों व अन्य पशुओं के साथ भी तो यही होरहा
है | पहले हमने गायों को कभी मल-मूत्र-मैला आदि में लिपटा कागज़-कपड़ा आदि खाते नहीं
देखा, परन्तु आजकल वे सब खा रही हैं, और पोलीथीन की थैली में लिपटा पोलीपैक कूड़ा
खाकर काल का ग्रास बन रही हैं, घोर कलियुग में, क्यों?...क्योंकि गाय पालने वाले
सिर्फ दूध दुह कर उन्हें छोड़ देते हैं कहीं से भी कुछ भी खाने के लिए ..मुफ्त में
काम चल जाय | उन्हें दूध बेचने से, कमाई से फुर्सत कहाँ, गायों आदि को मैदानों,
चरागाहों में चराने कौन लेजाय| खली, बिनौला, चना-दाल, हरी-हरी घास कौन खिलाये|’
चरागाह, तालाब, जंगल आदि भी अब कहाँ रह गए हैं, बिल्डिंगों के जंगल में बदल
गए हैं|’ अरुणा जी कहने लगीं, ‘हाँ सरमा
के पुत्र, सारमेय-सुतों के अवश्य वारे-न्यारे हैं, वो भी विदेशी नस्ल वालों के |
देशी तो गलियों में मरियल से घूमते रहते है, कूड़े के ढेर से पेट भरते |’
achchhi laghu katha .aabhar
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कथा... प्रेरणादायक
जवाब देंहटाएंखूबसूरत कथा-
जवाब देंहटाएंआभार -
जवाब देंहटाएंयाद है जब पहली रोटी गाय के लिये निकाली जाती थी और आखरी रोटी कुत्ते के लिये.
अक्सर घर के बुजुर्ग चीटियों को आटा-चीनी का मिश्रण को खिलाते नजर आते थे.
माँ पहली रोटी गाय के लिए ही बनाती थी वही बात याद आ .....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सावन कुमार, मनके मनके जी, रविकर,पारुल जी,शिखा जी एवं राजेन्द्र जी.....
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