बेगम तो फ़िक्र करती है शौहर की सुबह-शाम ,
बेफिक्र होकर बीतती शौहर की सुबह -शाम !
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बेगम के सिर में दर्द है बेहाल हो रही ,
नुक्कड़ पे ताश खेलते शौहर जी सुबह-शाम !
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दें दूंगा मैं तलाक जो आँख दिखाई ,
इन धमकियों में दहलती बेगम की सुबह-शाम !
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बेगम क्यूँ फ़िक्र करती हो बच्चा नहीं हूँ मैं ,
छोड़ो ये पहरेदारी शौहर की सुबह-शाम !
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बेगम गयी है 'नूतन' जिस दिन से मायके ,
कटती है इत्मीनान से शौहर की सुबह-शाम !
शिखा कौशिक 'नूतन'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंपोस्ट का लिंक कल सुबह 5 बजे ही खुलेगा।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (15-12-13) को "नीड़ का पंथ दिखाएँ" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1462 पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (15-12-13) को "नीड़ का पंथ दिखाएँ" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1462 पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंsach bayan karti rachna....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यकरी !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट विरोध
new post हाइगा -जानवर
सटीक रचना
जवाब देंहटाएंसभी सुधी रचनाकारों को गीता-जयंती की वधाई !
जवाब देंहटाएंसचमुच बहुत सटीक बात कही है !
बेगम है बंद घर में, शौहर है काम पर,
जवाब देंहटाएंहोकर के बोर क्या करे बस फ़िक्र सुबहो-शाम|
अच्छी रचना
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