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गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

क्या इनमें कोई भी सेलेब्रिटी है ??? ... डा श्याम गुप्त ....

                           
                     उपरोक्त चित्रों में देखिये .....क्या इनमें कोई  भी सेलेब्रिटी है ??? अधिकांश युवा -पीढी के  वे लोग हैं जो फिल्म, या उल-जुलूल ड्रामा, कला, फैशन, संगीत  वाले हैं...जिनके लिए वस्त्र-पहनने व वस्त्रहीन होने में कोई अंतर नहीं...... या फिर तथाकथित एक्टिविस्ट हैं;....जिन्होंने अभी जीवन का अर्थ  भी नहीं जाना है, वास्तविक ज्ञान से जिनका कोइ लेना-देना नहीं है  ...जो इंडिया में रहते हैं भारत में नहीं ....इंडिया  में भी बस रहते हैं पर अमेरिका, योरोप से ज्ञान व सीख लेते हैं |  जिनके लिए अमेरिकन व विदेशी ही ज्ञानी एवं आदर्श हैं| विदेशी नियम, व्यवहार यहाँ तक कोर्ट -क़ानून भी उनके लिए मिशाल की भाँति हैं| इनके लिए भारतीय सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी 'बारबेरिक' है( यह शब्द भी विदेशी है भारतीय शब्द कोश में कहीं नहीं है )  वे खाते भारत का हैं और गुण इंडिया के या विदेशों के गाते हैं...अथवा अधिकांश विदेशी हैं जिनके लिए नंगे होना, रहना कोई  द्विधा की बात नहीं है |  कहाँ है बड़े-बड़े.....न्यायविद ..साहित्यकार...गुरु...ज्ञानी...पंडित...राजनैतिज्ञ ..वैज्ञानिक...शास्त्रकार...दार्शनिक.....चिकित्सक ..विचारक ..आदि .....


..My life, my choice, my partner, with consent ..kuchh bhi karoon  ...who the hell govt or law or other people are


IS THIS LOVE ..OR HUMAN..OR RIGHT ??????
 the wrong examples..of course the thinking of a tree

                  एसे लोग ... 'आज गे कल न्यूड '...के  लिए चिल्लाने लगें तो  कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी  | वे मनुस्मृति की बात करेंगे जैसे मनु कोई अवांछनीय व्यक्ति या संस्था हो| ये लोग खजुराहो, शिखंडी, युवनाश्व, विष्णु व कृष्ण का मोहिनी रूप, महादेव का रास-लीला हेतु बनाया गया स्त्रीवेष, कृष्ण का नारी रूप  आदि-आदि का उदाहरण खोजने व देने लगेंगे ... ....चाहे वे इन शास्त्र-पुराणों को  वास्तव में कपोल-कल्पित ही मानते होंगे | ..... वे भूल जाते हैं कि इन सबमें गे-सेक्स की कोइ बात नहीं है ..न गे-विवाह की ....अपितु सभी में रूप बदलने के तथ्य हैं | अथवा अत्यंत उच्च दार्शनिक बातें हैं | खजुराहो के भी सभी मूर्ति-कृत्य क्या व्यवहारिक जीवन में अपनाए जाते हैं ? अथवा क्या हम पुनः प्राचीन-युग में जाना चाहते हैं ?
                  लोग भूल जाते हैं कि ---
         १.इस कृत्य को कानूनी जामा पहनाने का अर्थ होगा कि हम अपने सेना, स्कूल, कालिज, केम्पों आदि संस्थाओं में जहां  समान-लिंग के अथवा  सभी व्यक्ति, बच्चे, युवा आदि समूह में रहते हैं उनमें अनुचित व गलत समाचार जाएगा और वे दुष्कृत्यों हेतु स्वतंत्र होंगे |( चुपचाप तो आज भी सबकुछ होता  है परन्तु उस गलत अप्राकृतिक  तथ्य को  सही करार देने की क्या आवश्यकता है| खुले में करने की क्या आवश्यकता है )

       २.क्या यह महिलाओं व पुरुषों के लिए बेईज्ज़ती की बात नहीं है |  महिला द्वारा महिला से सेक्स... महिला द्वारा पुरुष का, पौरुष का  अनादर है इसी  प्रकार पुरुष द्वारा स्त्रीत्व व स्त्री का भी अनादर है |

      ३.स्वयं प्रेम व सेक्स का तो यह अनादर है ही...प्रकृति का भी अनादर है अन्यथा प्रकृति क्यों स्त्री-पुरुष अलग अलग सृजित करती |

     ४. यह दुष्कृत्य मानवता व मानव-विकास का भी अनादर है ...... जीव जगत में कहीं  भी समान लिंग में सेक्स नहीं  देखा जाता ..... एक लिंगी जीव  अलिंगी-फ़रटिलाइज़शन करते हैं या अन्य लिंगी से ....अथवा वे जीव स्वयं द्विलिंगी( यथा केंचुआ आदि ) होते हैं जो आपस में निषेचन करते हैं|

9 टिप्‍पणियां:

  1. सटीक प्रस्तुति-
    आभार डाक्टर साहब -

    केंचुल कामी का चुवे, धरे केंचुवा यौनि |
    द्विलिंगी गुट *गेगले, गन्दी करते औनि |
    गन्दी करते औनि, बनाये तन मन रोगी |
    पशुचर्या पशु-काम, हुवे हैं पशुवत भोगी |
    सरेआम व्यवहार, गेंगटे रविकर गेंदुल |
    दन्त उरोज द्वि-पंख, गेगले छोड़ें केंचुल ||
    गेगले=*मूर्ख
    गेंदुल=चमगादड़
    गेंगटे=केकड़े

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  2. कुक्कुर के पीछे लगा, कुक्कुर कहाँ दिखाय |
    कुतिया भी देखी नहीं, कुतिया के मन भाय |
    कुतिया के मन भाय, नहीं पाठा को देखा |
    पढ़ते उलटा पाठ, बदल कुदरत का लेखा |
    पशु से ही कुछ सीख, पाय के विद्या वक्कुर |
    गुप्त कर्म रख गुप्त, अन्यथा सीखें कुक्कुर ||

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  3. इसी भरोसे चल पड़े, फैलाने कुविचार ।
    धर्म विरोधी पा गए, इक भोथर हथियार ।

    इक भोथर हथियार, कर्म हैं बड़े घिनौने ।
    इनसे तो वे ठीक, बने जो आधे पौने ।

    धर्म न्याय विज्ञान, आज जब इनको कोसे ।
    रविकर से हतबुद्धि, दीखते इसी भरोसे ॥

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  4. आपकी सभी प्रस्तावनाओं से सहमत भाई साहब सुप्रिय डॉक्टरजी।

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  5. धन्यवाद शिखा जी. वीरेन्द्र जी एवं रविकर....

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  6. बहुत सार्थक आलेख...विकृत मानसिकता को कानूनी जामा पहनाना कहाँ तक उचित होगा?

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