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गुरुवार, 5 सितंबर 2013

अब दिल को मांजा जाये -लघु कथा

अब दिल को मांजा जाये -लघु कथा 
'संगीता  ये क्या  कर  रही  है ? अपना  गिलास क्यों दिया तूने ?अब घर  जाकर रख से मंजवाना ...जानती नहीं ये रेशमा मुसलमान है .....माँस  खाते हैं ये ....मुझे  तो उबकाई आती है इनसे बात करते हुए ..इनके पास बैठते हुए ..''सुषमा ने नौवी  कक्षा  के  एक कोने में ले जाकर संगीता से ये सब कहा तो संगीता सुषमा के कंधें पर हाथ रखते हुए बोली -'' सुषमा जानती हो ना रेशमा की तबियत कितनी ख़राब थी यदि मैं तुरंत अपने गिलास में पानी कर के उसे न पिलाती तो उसकी तबियत और ख़राब हो सकती थी .  जहाँ तक  बात राख से मंजवाने की तो बर्तन हमारे घर में सभी अच्छी तरह धोये जाते हैं ,झूठे बर्तन में कोई नहीं खाता पीता हमारे यहाँ ...अब चाहे ये तुम्हारा झूठा हो या रेशमा का . ये ठीक  है  कि तुम शाकाहारी  हो और रेशमा मांसाहारी पर इसमें   हिन्दू-मुसलमान का अंतर नहीं अब तो कितने ही हिन्दू -जैन समुदाय के लोग माँसाहार करते हैं .रही बात तुम्हे उबकाई आने की तो मेमसाब दिल पक्का कर लो साइंस की क्लास  में कल को मानव-शरीर के बारे में पढाया जायेगा .''   ये कहकर संगीता हँसी और सुषमा लज्जित सी होकर  इधर -उधर  देखने  लगी   .

शिखा  कौशिक  'नूतन '   

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर प्रस्तुति,आप को गणेश चतुर्थी पर मेरी हार्दिक शुभकामनायें ,श्री गणेश भगवान से मेरी प्रार्थना है कि वे आप के सम्पुर्ण दु;खों का नाश करें,और अपनी कृपा सदा आप पर बनाये रहें...

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