श्याम स्मृति - पुरुषवादी मानसिकता ....
आजकल एक शब्द-समूह अधिकाँश सुना, कहा व लिखा जा रहा है वह है 'पुरुषवादी मानसिकता'.....प्राय: नारीवादी लेखिकाएं, सामाजिक कार्यकर्त्री , प्रगतिशील तेज तर्रार नारियां व समन्वयक पुरुष सभी के द्वारा , स्त्री सम्बंधित घटनाओं, दुर्घटनाओं, अनाचार, अत्याचार, यौन उत्प्रीणन आदि सभी के सन्दर्भ में पुरुषवादी सोच व मानसिकता का रोना रोया जाता है | यदि पुरुष में पुरुषवादी सोच व मानसिकता नहीं होगी तो और क्या होगी, तभी तो वह पुरुष है | क्या स्त्री अपनी स्त्रियोचित सोच व मानसिकता को बदल सकती है, त्याग सकती है ....नहीं , यह तो प्रकृत-प्रदत्त है ...अपरिवर्तनशील |
यह असंगत है, समस्या के मूल से भटकना... किसी दुश्चरित्र पुरुष के कार्यकलापों का ठीकरा समस्त आधी दुनिया ...सारे पुरुष वर्ग पर फोड़ना क्या उचित है !
वस्तुतः यह सोचहीनता का परिणाम है, कृत्य -दुष्कृत्य करते समय व्यक्ति यह नहीं सोच पाता कि वह स्त्री किसी की बहन, पुत्री, माँ, पत्नी है..ठीक अपनी स्वयं की माँ, बहन, पुत्री, पत्नी की भांति | निकृष्ट व आपराधिक व आचरण हीनता की विकृत मानसिकता युक्त व्यक्ति ऐसी सोचहीनता से ग्रस्त होता है एवं स्त्रियों को सिर्फ कामनापूर्ति, वासनापूर्ति , वासना की पुतली, सिर्फ यौन तुष्टि का हेतु समझता है| नारी का मान, सम्मान, स्वत्व का उसके लिए कोई मूल्य नहीं होता | यह चरित्रगत कमी व अक्षमता का विषय है जो विविध परिस्थितियों ,आलंबन व उद्दीपन ---निकटता, आसंगता, स्पर्श्मयता आसान उपलब्धता से उद्दीप्तता की ओर गमनीय होजाते हैं|
आज स्त्रियों में पुरुष-समान कार्यों में रत होने के कारण उनमें स्त्रेंण भाव कम होरहा है व पुरुष भाव की अधिकता है अतः उनमें पुरुष के ,पुरुष भाव की शमनकारी व स्वयं के स्त्रेंण भाव के उत्कर्ष का भाव नहीं रहा फलतः पुरुष में प्रतिद्वंद्विता भाव युत आक्रामकता बढ़ती जा रही है जिसे पुरुष मानासिकता से संबोधित किया जा रहा है |
आजकल एक शब्द-समूह अधिकाँश सुना, कहा व लिखा जा रहा है वह है 'पुरुषवादी मानसिकता'.....प्राय: नारीवादी लेखिकाएं, सामाजिक कार्यकर्त्री , प्रगतिशील तेज तर्रार नारियां व समन्वयक पुरुष सभी के द्वारा , स्त्री सम्बंधित घटनाओं, दुर्घटनाओं, अनाचार, अत्याचार, यौन उत्प्रीणन आदि सभी के सन्दर्भ में पुरुषवादी सोच व मानसिकता का रोना रोया जाता है | यदि पुरुष में पुरुषवादी सोच व मानसिकता नहीं होगी तो और क्या होगी, तभी तो वह पुरुष है | क्या स्त्री अपनी स्त्रियोचित सोच व मानसिकता को बदल सकती है, त्याग सकती है ....नहीं , यह तो प्रकृत-प्रदत्त है ...अपरिवर्तनशील |
यह असंगत है, समस्या के मूल से भटकना... किसी दुश्चरित्र पुरुष के कार्यकलापों का ठीकरा समस्त आधी दुनिया ...सारे पुरुष वर्ग पर फोड़ना क्या उचित है !
वस्तुतः यह सोचहीनता का परिणाम है, कृत्य -दुष्कृत्य करते समय व्यक्ति यह नहीं सोच पाता कि वह स्त्री किसी की बहन, पुत्री, माँ, पत्नी है..ठीक अपनी स्वयं की माँ, बहन, पुत्री, पत्नी की भांति | निकृष्ट व आपराधिक व आचरण हीनता की विकृत मानसिकता युक्त व्यक्ति ऐसी सोचहीनता से ग्रस्त होता है एवं स्त्रियों को सिर्फ कामनापूर्ति, वासनापूर्ति , वासना की पुतली, सिर्फ यौन तुष्टि का हेतु समझता है| नारी का मान, सम्मान, स्वत्व का उसके लिए कोई मूल्य नहीं होता | यह चरित्रगत कमी व अक्षमता का विषय है जो विविध परिस्थितियों ,आलंबन व उद्दीपन ---निकटता, आसंगता, स्पर्श्मयता आसान उपलब्धता से उद्दीप्तता की ओर गमनीय होजाते हैं|
आज स्त्रियों में पुरुष-समान कार्यों में रत होने के कारण उनमें स्त्रेंण भाव कम होरहा है व पुरुष भाव की अधिकता है अतः उनमें पुरुष के ,पुरुष भाव की शमनकारी व स्वयं के स्त्रेंण भाव के उत्कर्ष का भाव नहीं रहा फलतः पुरुष में प्रतिद्वंद्विता भाव युत आक्रामकता बढ़ती जा रही है जिसे पुरुष मानासिकता से संबोधित किया जा रहा है |
asahmat nahi hun aapke vicharon se par purush ko bhi aatamchintan kar apne me sudhar lana hoga .sathak prastuti .aabhar
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(25-5-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
यह असंगत है, समस्या के मूल से भटकना... किसी दुश्चरित्र पुरुष के कार्यकलापों का ठीकरा समस्त आधी दुनिया ...सारे पुरुष वर्ग पर फोड़ना क्या उचित है !
जवाब देंहटाएंiske liye jimmedar bhi aap jaisee mansikta vala purush varg hai kyonki vah bhi to ek -do nari ke dushcharitr ke aadhar par samast nari samaj ka aaklan karta hai .vaise aapki post vicharniy hai .aabhar .
ना एक पुरुष की गलती पूरा पुरुष वर्ग की गलती ममानी जा सकती है ना एक स्त्री की गलती पूरा स्त्री वर्ग की गलती मानी जा सकती है,ऐसा करने वाले पक्षपाती होते हैं
जवाब देंहटाएंअनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंएक बार अवश्य देखें- तौलिया और रूमाल
धन्यवाद शालिनी जी ....आपका कथन सही है... परन्तु पुरुषवर्ग स्त्री-मानसिकता का ढोल कहाँ पीट रहा है ,,,न वह सारी स्त्रियों को ही दोष दे रहा .... वह तो जो जैसा दिखाई देता है उसी से कहा जाता है ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद वन्दना जी ...आभार...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विश्नोई जी ..क्या बौलिंग -बेटिंग की है जी...
धन्यवाद शिखा जी...सही है आत्मचिंतन तो प्रत्येक वर्ग को करते ही रहना चाहिए......
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