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गुरुवार, 23 मई 2013

निकाह के वक्त जो कबूल है कबूल है !



है तो शैतान मगर बनता यही रसूल है ,
ये है दज्जाल बस ये नहीं रसूल है !



गैर वाजिब है उसका सलूक बीवी से ,
उसको परवाह कहाँ खुद में ही मशगूल है !



निकाह के वक्त जो कबूल है कबूल है ,
निकाह के बाद जिंदगी की वही भूल है !



रहे माशूक बनकर जां निसार उस पर है ,
बीवी बनते ही मुरझाया  सा ही फूल है !


बिठाता था उसे अपने सिर आँखों पर ,
बन गई बीवी तो जूतों पे ठहरी धूल है !



पंख ख्वाबों के काट दो उड़ न पाए हरगिज़ ,
रखो काबू में बीवी शौहर का यही उसूल है !

बीवी कहती है क्या सुनने की फुर्सत ही कहाँ ,
उसकी हर बात होती ही फ़िज़ूल है !



कभी कहता है कुछ फिर पलट जाता  'नूतन '
बीवी की नज़रों में ऐसा शौहर कहीं मकबूल है !



शिखा कौशिक 'नूतन'



8 टिप्‍पणियां:

  1. सच्ची और सार्थक रचना

    आग्रह है मेरे ब्लॉग का अनुसरण करें
    ओ मेरी सुबह--

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  2. बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .पूर्णतया सहमत .आभार . कुपोषण और आमिर खान -बाँट रहे अधूरा ज्ञान
    साथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN

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  3. सभी शेर लाजवाब हैं ६&७ विवाद का कारण है
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest post: बादल तू जल्दी आना रे!
    latest postअनुभूति : विविधा

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