है तो शैतान मगर बनता यही रसूल है ,
ये है दज्जाल बस ये नहीं रसूल है !
गैर वाजिब है उसका सलूक बीवी से ,
उसको परवाह कहाँ खुद में ही मशगूल है !
निकाह के वक्त जो कबूल है कबूल है ,
निकाह के बाद जिंदगी की वही भूल है !
रहे माशूक बनकर जां निसार उस पर है ,
बीवी बनते ही मुरझाया सा ही फूल है !
बिठाता था उसे अपने सिर आँखों पर ,
बन गई बीवी तो जूतों पे ठहरी धूल है !
पंख ख्वाबों के काट दो उड़ न पाए हरगिज़ ,
रखो काबू में बीवी शौहर का यही उसूल है !
बीवी कहती है क्या सुनने की फुर्सत ही कहाँ ,
उसकी हर बात होती ही फ़िज़ूल है !
कभी कहता है कुछ फिर पलट जाता 'नूतन '
बीवी की नज़रों में ऐसा शौहर कहीं मकबूल है !
शिखा कौशिक 'नूतन'
सच्ची और सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंआग्रह है मेरे ब्लॉग का अनुसरण करें
ओ मेरी सुबह--
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .पूर्णतया सहमत .आभार . कुपोषण और आमिर खान -बाँट रहे अधूरा ज्ञान
जवाब देंहटाएंसाथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN
सुन्दर और सार्थक रचना !!
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया
जवाब देंहटाएंbadiya rachna ..
जवाब देंहटाएंसभी शेर लाजवाब हैं ६&७ विवाद का कारण है
जवाब देंहटाएंअनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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सार्थक रचना....
जवाब देंहटाएंवाह...नज्म में व्यंग..खूब
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