क्या साहित्य समाज का दर्पण नहीं श्याम गुप्त जी ?
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अभी हाल ही में भारतीय नारी ब्लॉग पर शिखा कौशिक जी का एक व्यंग्य आलेख प्रकाशित हुआ शीर्षक था
व्यंग्य आलेख गुजरात के माननीय मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जी की इस टिपण्णी पर था -''कि मध्यवर्गीय लड़कियों को सेहत से ज्यादा सुन्दरता की फ़िक्र होती है .''
शिखा जी ने व्यंग्य आलेख बहुत ही रोचकता के साथ प्रस्तुत किया और साथ ही प्रस्तुत किये वे भाव जो उस तबके के थे जिनके बारे में नरेंद्र मोदी जी ने नासमझी से टिप्पणी की थी
चलिए ये तो रही पोस्ट की बात इस पोस्ट को सम्मान देते हुए माननीय रूपचंद शास्त्री जी ने इसे रविवार के चर्चा मंच पर लेने के लिए ये टिप्पणी कर दी -
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज रविवार (02-09-2012) के चर्चा मंच पर भी की गयी है!
सूचनार्थ!
-जो कि सामान्य तौर पर वे ब्लॉग जगत किसी भी उत्कृष्ट प्रविष्टि के लिए करते हैं किन्तु आश्चर्य तब हुआ जब साहित्य सृजन में लगे डॉ.श्याम गुप्त जी ने पोस्ट को लेकर ऐसी टिप्पणी कर दी जिसे ब्लॉग जगत में तो कोई स्वीकार नहीं करेगा
---और शास्त्रीजी ...इस भाषा में या कथ्य में कौन सा शास्त्र है, सुंदरता है जो इसे चर्चामंच पर सजाया जाए....
क्या वे नहीं जानते कि ''साहित्य समाज का दर्पण है ''.समाज में जिस स्थिति को लेकर सामान्य जन के जो भाव होते हैं सफल साहित्यकार वाही माना जाता है जो उन भावों को उसी रूप में प्रस्तुत करता है .कुछ साहित्यकारों के साहित्य अंश निम्नवत हैं -
१-अपने उपन्यास ''कर्मभूमि '' में मुंशी प्रेमचंद की प्रस्तुति -
''अमर ''ने पीछे फिरकर कहा -''जब यहाँ मुझे लोग शोहदा और कमीना न समझेंगे.''
-सुखदा कहती है -''उन्होंने मेरे साथ विश्वास घात किया है मैं ऐसे कमीने आदमी की खुशामद नहीं कर सकती .''
२-''कृष्णकली ''में शिवानी की प्रस्तुति -
''जरा कान लगा कर सुनना तो कालोचांद ,तेरी हरामखोर आया किस मूंडी कटे से बाते कर रही है .''
जया अम्मा से -''पहले उस खबीस चोट्टे स्वामीं को कहीं से पकड़ लायी ......''
३''आदमी की निगाह में औरत'' में राजेन्द्र यादव की प्रस्तुति -
''चूड़ियाँ या साड़ियाँ पहनने के ताने देने वाली औरत जब धड़ल्ले से ;;गाली ''''गाली ''जैसी गलियों का इस्तेमाल करती है तो उसे सपने में भी ध्यान नहीं होता कि वह अपना ही अपमान कर रही है ''
अब यदि उपरोक्त प्रस्तुतियों के बारे में भी डॉ.श्याम गुप्त जी के वाही विचार हैं जो उन्होंने शिखा जी की पोस्ट पर टिप्पणी रूप में किये हैं तो उन्हें नहीं पता कि ''साहित्य समाज का दर्पण होता है .''और डॉ.रूपचंद शास्त्री जी यही समझते हैं और इसे महत्व देते हैं .इसलिए पहले डॉ.श्याम गुप्त जी को चाहिए कि वे इस ओर ध्यान दें और फिर यदि ऐसे कटु उद्गार व्यक्त करने ही हैं तो नरेंद्र मोदी जी जैसों के गलत कथनों पर कीजिये न कि उन्हें आईना दिखाने वाले सत्य कथनों पर.
शालिनी कौशिक
चलिए गुप्त श्याम जी का अपना अभिमत है .एक मर्तबा उन्होंने कहीं लिखा -ये लडकियाँ कोलिज में पढने जाती हैं या फैशन परेड में हिस्सा लेने जातीं हैं (ड्रेस इनकी कैट वाक् वाली होती है ,शैली मेरी है भाव गुप्त श्याम जी का है ,वीरुभाई ),पता नहीं कब कहाँ इनका मन अटक जाए ,मोदी स्तुति में या नारी देहयष्टि में .वैसे उल्लेखित पोस्ट हमने भी न सिर्फ पढ़ी थी टिपण्णी भी की थी उस पर .मोदी जी को हम भी इस देश के भावी प्रधान मंत्रियों में से एक के रूप में देखतें हैं ,नीतीशजी ,नवीन पटनायक जी ,किरण बेदी जी ,सुषमा स्वराज जी ....तो शालिनी जी पसंद आपनी अपनी ख्याल अपना अपना . गुप्त श्याम जी को अपने चश्मे
जवाब देंहटाएंसे देखने का ब्लोगिया अधिकार है .
सोमवार, 3 सितम्बर 2012
स्त्री -पुरुष दोनों के लिए ही ज़रूरी है हाइपरटेंशन को जानना
स्त्री -पुरुष दोनों के लिए ही ज़रूरी है हाइपरटेंशन को जानना
What both women and men need to know about hypertension
सेंटर्स फार डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के एक अनुमान के अनुसार छ :करोड़ अस्सी लाख अमरीकी उच्च रक्त चाप या हाइपरटेंशन की गिरिफ्त में हैं और २० फीसद को इसका इल्म भी नहीं है .
क्योंकि इलाज़ न मिलने पर (शिनाख्त या रोग निदान ही नहीं हुआ है तब इलाज़ कहाँ से हो )हाइपरटेंशन अनेक स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं खड़ी कर सकता है ,दिल और दिमाग के दौरे के खतरे के वजन को बढा सकता है .दबे पाँव आतीं हैं ये आफत बारास्ता हाइपरटेंशन इसीलिए इस मारक अवस्था (खुद में रोग नहीं है जो उस हाइपरटेंशन )को "सायलेंट किलर "कहा जाता है .
माहिरों के अनुसार बिना लक्षणों के प्रगटीकरण के आप इस मारक रोग के साथ सालों साल बने रह सकतें हैं .इसीलिए इसकी(रक्त चाप की ) नियमित जांच करवाते रहना चाहिए .
चर्चा मंच पे आइन्दा जो भी प्रकाशित किया जाए उसकी गुप्त जी श्याम जी से अनुमति ले ली जाए .शास्त्री जी आइन्दा ध्यान रखें .शेष चर्चा -कार/चर्चाकारा भी .
जवाब देंहटाएंसाहित्य को समाज का दर्पण सिर्फ कहने भर से पहले साहित्य को समझना अधिक आवश्यक है ...
जवाब देंहटाएं---यहाँ जो भी उद्दरण दिए गए हैं वे पात्रों के उद्दरण है न कि सीधे-सीधे लेखक द्वारा एक विशिष्ट व्यक्ति के विरुद्ध गाली है... दोनों बातों में अंतर है ..अतः इससे कुछ भी सिद्ध नहीं होता कि किसको साहित्य के बारे में अधिक ज्ञान है अथवा तथाकथित पोस्ट में असभ्य भाषा का प्रयोग नहीं है...निश्चय ही एसी भाषा से बचना चाहिए ....
--- सिर्फ किसी का कथन आईना या सत्य नहीं हो सकता ..वह भी असभ्य भाषा सहित... मोदी उम्र, अनुभव ,ज्ञान व पद में आपसे बहुत ऊपर हैं....
-- वैसे वीरेंद्र शर्मा जी का सुझाव बहुत ही जोरदार है...
जवाब देंहटाएंश्याम जी -व्यंग्य लेख में भी मैं नहीं एक लड़की की अम्मा ही यह सब बोल रही है .आप मोदी के समर्थक हैं इसलिए शायद आलेख से व्यथित हैं .आलेख की अम्मा भी मोदी से परेशान है इसलिए यह सब कह रही है .अम्मा की भावभूमि पर उतर कर पढ़िए तब कुछ कहिये .
जवाब देंहटाएंयह कहानी नहीं है अपितु एक जीवित पात्र-- के प्रति कमेन्ट है ....अतः निश्चय ही असम्मानजनक भाषा है ...असाहित्यिक भाषा है...मोदी के समर्थक भी हो सकते हैं विरोधी भी ...यह तो समाज है सभी को अपना-अपना मत रखने का हक है ....परन्तु अन्पार्लियामेंट्री भाषा बोलने का किसी को अधिकार नहीं है....व्यंग्य लेख में भी इस प्रकार की भाषा को असाहित्यिक माना जाता है और व्यंग्य को निरर्थक....
जवाब देंहटाएंto is vyangy ko nirarthak hi maan len .aabhar
जवाब देंहटाएंसहे परन्तु...गालियाँ या अभद्र भाषा कहाँ निरर्थक होती हैं....
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