मंगलवार, 3 मई 2016

हिन्दू धर्म में नारी के स्थान

हिन्दू धर्म में नारी के स्थान को लेकर बहुत सी बातें कही जाती हैं अनेक विरोधाभासों से सामना होता है और कभी कभी संशय की स्थिति भी निर्मित हो जाती है।
दरअसल हिन्दू धर्म सनातन धर्म है और विश्व का सबसे पुराना धर्म भी है। अफसोस की बात है कि इसकी बेहद खुली एवं उदारवादी नीतियाँ जो कि उन्नति का द्योतक बन सकती थीं वे ही उसके विरुद्ध इस्तेमाल की जा रही हैं।इस बात के समर्थन में कुछ तथ्य आगे प्रस्तुत किए जाएंगे जो निश्चित ही रोचक सिद्ध होंगे।



हमारे ग्रंथ ही हमारे पूर्वजों द्वारा कही बातों का एकमात्र विश्वसनीय स्रोत हैं हमारे वेद,उपनिषद हमारे ॠषियों द्वारा दिए गये वो आशीष है जो कालजयी बन कर आज तक हमारा पथ प्रदर्शन कर रहे हैं किन्तु हम समय के साथ उन्हें संभाल नहीं पाए।
मूल भूत समस्या यह है कि हमारे सभी धर्म ग्रंथ देवभाषा संस्कृत में लिखे गए हैं और हमारी शिक्षा की नीतियाँ इतने वर्षों में कुछ ऐसी रही कि जो बालक भविष्य के नागरिक हैं उन्हें संस्कृत का उचित ज्ञान न मिल पाने के कारण आज भारत के आम नागरिक का संस्कृत ज्ञान नगण्य है।
अफसोस की बात यह है कि देश की आजादी के बाद किसी भी सेकुलर एवं वामपंथी नीतियों पर चलने वाली सरकारों ने हमारे धर्म ग्रंथों की रक्षा और उनकी पुनः स्थापना को कोई नीति बनाकर काम करने योग्य विषय नहीं समझा।इतने सालों में हमारे देश में मुगलों और ब्रिटिश शासन के दौरान हिन्दू धर्म ग्रंथों को तोड़ मरोड़ कर अपने राजनैतिक उद्देश्यों की प्राप्ति का साधन बनाया गया।इसी का परिणाम है कि आज विश्व के सबसे सनातन,पुरातन एवं मौलिक धर्म के सिद्धांतों पर प्रश्न उठाकर हिन्दुओं का ही उपयोग एक दूसरे के विरुद्ध किया जा रहा है।
महिलाएं किसी भी समाज में संवेदनशील विषय रही हैं और आज इसी को मुद्दा बनाकर हिन्दुओं की धार्मिक आस्थाओं पर प्रश्नचिन्ह लगाए जा रहे हैं।
यह हम सब जानते हैं कि हमारे सबसे पुराने ग्रंथ मनुस्मृति में कहा गया है --"जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवताओं का वास होता है" यह हमारे धर्म में नारी की स्थिति बताने के लिए काफी है। 
जिस समय पश्चिमी सभ्यता पुरुष और नारी में समानता के अधिकार की बातें करता था उससे कहीं पहले भारतीय ग्रंथों में नारी को पुरुष के समान नहीं उससे ऊँचा दर्जा प्राप्त था।जहाँ पश्चिमी सभ्यता में स्त्री की पहचान एक माँ,बहन, बेटी तक ही सीमित थी,भारतीय संस्कृति में उसे देवी का स्थान प्राप्त था।मानव सभ्यता के तीन आधार स्तंभ --बुद्धि,शक्ति और धन तीनों की अधिष्ठात्री देवियाँ हैं ।यह गौर करने योग्य विषय है कि --
बुद्धि की देवी            सरस्वती
धन की देवी               लक्ष्मी
शक्ति की देवी           दुर्गा,काली समेत नौ रूप
वेदों की देवी              गायित्री

धरती के रूप में सम्पूर्ण विश्व का पालन करने वाली धरती भी माँ स्वरूपा हैं
 
जल के रूप में प्राणीमात्र का तर्पण करने वाली   गंगा,जमुना,सरस्वती तीनों माँ स्वरूप हैं
और सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इन सभी रूपों को पुरुषों द्वारा पूजा जाता है।
हिन्दू वैदिक संस्कृति में स्त्री को पुरुष की  अर्धांगिनी एवं सहधर्मिणी कहा जाता है अर्थात जिसके बिना पुरुष अधूरा हो तथा सहधर्मिणी अर्थात जो धर्म के मार्ग पर साथ चले।इस विषय में यहाँ पर इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाना आवश्यक है कि भारतीय संस्कृति में पुरुष बिना पत्नी के कोई भी धार्मिक अनुष्ठान नहीं कर सकते।रामायण में भी संदर्भ उल्लिखित है कि जब श्रीराम चन्द्र जी को अश्वमेध यज्ञ करना था और सीता माता वन में थीं तो अनुष्ठान में सपत्नीक विराजमान होने के लिए उन्हें सीता माता की स्वर्ण मूर्ति बनवाना पड़ी थी।

हिन्दू संस्कृति में पति पत्नी का मिलन दैहिक न होकर आध्यात्मिक होता है और शायद इसी कारण इसमें तलाक या डाइवोर्स नामक किसी स्थिति की कल्पना तक नहीं की गई और न ही ऐसी किसी स्थिति का आस्तित्व स्वीकार्य है अपितु विवाह के बन्धन को तो सात जन्मों का बन्धन माना जाता है।
स्त्री के धरती पर जन्म लेते ही उसके कन्या रूप को पूजा जाता है और नवदुर्गा महोत्सव में बेटियों को दुर्गा स्वरूपिनी मानकर उनके पैर छूकर उनसे  आशीर्वाद लिया जाता है किन्तु बेटों को कहीं भी राम अथवा कृष्ण स्वरूप मानने का उल्लेख नहीं मिलता है।
यही कन्या जब विवाह पश्चात् किसी घर में वधु बनकर जाती है तो उसे लक्ष्मी कहा जाता है।इस संदर्भ में हमारे वेदों से कुछ उद्धरण प्रस्तुत है --
                                     यजुर्वेद 20.9  
स्त्री और पुरुष दोनों को शासक चुने जाने का अधिकार है
                                     
यजुर्वेद 17.45   
 स्त्रियों की सेना हो और उन्हें  युद्ध में भाग लेने के लिए  प्रोत्साहित करें
                                    
अथर्ववेद 11.5.18  

बह्मचर्य सूक्त -इसमें कन्याओं को बह्मचर्य और विद्याग्रहण  के पश्चात् ही विवाह के लिए कहा गया है
                                     
अथर्ववेद    7.48.2   
 हे स्त्री! तुम हमें बुद्धि से धन दो।विदुषी ,सम्माननीय,विचारशील,प्रसन्नचित्त स्त्री सम्पत्ति की रक्षा और वृद्धि करके घर में सुख लाती है
                                    
अथर्ववेद 2.36.5. 
 हे वधु ऐश्वर्य की अटूट नाव पर चढ़ कर अपने पति को सफलता के तट पर  ले चलो
                                    अथर्ववेद 14.1.50 
  हे पत्नी अपने सौभाग्य के लिए मैं तुम्हारा हाथ पकड़ता हूँ।
                                    ॠग्वेद 3.31.1

   पुत्रों की भाँति पुत्रि भी अपने पिता की सम्पत्ति में समान रूप से उत्तराधिकारी है।
तो हमारे समाज में नारी का स्थान पुरुष से ऊँचा था किंतु दुर्भाग्यवश ग्यारहवीं शताब्दी में  मुग़लों के आक्रमण के बाद हमारे धर्म ग्रंथों से छेड़छाड़ हुई और नारी की स्थिति खराब होती गई।वो मुग़लों का शासन काल ही था जब युद्ध में हिन्दू राजाओं और सैनिकों को बन्दी बनाकर अथवा उनकी मृत्यु के पश्चात भारतीय नारियों ने मुगलों के हाथ अपना दुराचार कराने से पहले अपने पति की चिता के साथ ही मृत्यु का वरण कर अपने स्वाभिमान की रक्षा करना उचित समझा।यह हमारी स्त्रियों का साहस ही था जो उन्हें जलती अग्नि में स्वयं को समर्पित करने की शक्ति प्रदान करता था।यही प्रथा कालांतर में सती प्रथा के रूप में विकसित हुई यह भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं थी।
भारतीय समाज में स्त्रियों के स्थान की कल्पना इसी तथ्य से की जा सकती है कि उन्हें स्वयम्वर द्वारा अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार प्राप्त था।इसके अलावा हमारे इतिहास के दो महान युद्ध स्त्रियों के सम्मान की रक्षा के लिए किये गए थे -रावण वध सीता हरण के कारण हुआ था और महाभारत का युद्ध द्रौपदी के सम्मान की खातिर ।
हमारे धर्म ग्रंथों में स्त्रियों द्वारा कई जगह यज्ञ और पूजन का उल्लेख मिलता है जैसे रामायण में कौशल्या ने अपने पुत्र राम के लिए एवं तारा ने अपने पति बाली के लिए किया था किन्तु पुरुष बिना पत्नी के यज्ञ नहीं कर सकते थे
जिस पश्चिमी सभ्यता द्वारा भारतीय समाज में स्त्रियों के पिछड़ेपन का आक्षेप लगाया जाता है वहाँ आज भी अंगुलियों पर गिने जाने वाली प्रधानमंत्री अथवा मुख्यमंत्री  अथवा उच्च पदों पर आसीन महिलाओं का उल्लेख मिलता है ।इसी प्रकार प्रीस्ट (चर्च के पुजारी) अथवा पोप के पदों पर आज तक कोई महिला आसीन नहीं हुई पश्चिमी सभ्यता में सम्पूर्ण विश्व 8 मार्च को एक दिन महिला दिवस मना कर उसको सम्मान देने की बात करता है जबकि भारतीय संस्कृति में आदि काल से महिला स्वयं ईश्वरीय शक्तियों से युक्त जन्म से पूजनीय एवं सम्माननीय ही नही बताई गई है बल्कि उसे देवी का दर्जा भी प्राप्त है।

हमारी संस्कृति हमारे लिए गर्व का विषय है और यह हमारा दायित्व है कि इसका खोया गौरव लौटाने मे हम सभी जितना योगदान कर सकते हैं करें।
डॉ. नीलम महेंद्र

शनिवार, 30 अप्रैल 2016

ये मेआर

ये मेआर...

बेटियो से
मधु मिश्रित ध्वनि से पुछा

कहाँ से लाती हो, 
ये मेआर
नाशातो की सहर            
हुनरमंद तह.जीब,और तांजीम
सदाकत,शिद्दतो की मेआर,
जी..
मैने हँस कर कहाँ
मेरी माँ ने संवारा..
उसी ने बनाया है
स्वयं को कस कर
हर पलक्षिण में

इक नई कलेवर के लिए

शनैः शनैः पोशाक बदल कर

औरो को नहीं
बस..
खुदी को सवांरा...
इल्म इस बात की
कमर्जफ हम नहीं

हमी से जमाना है...
                © पम्मी 

रविवार, 24 अप्रैल 2016

'आइटम' कहते हुए लज्जा तो आनी चाहिए !

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कोख में ही क़त्ल होने से बची कलियाँ हैं हम  ,
खिल गयी हैं इस जगत में झेलकर ज़ुल्मो सितम ,
मांगती अधिकार  स्त्री भीख नहीं चाहिए ,
अपने हिस्से की हमें भी अब इमरती चाहिए !
..............................................................
पितृसत्ता ने इशारों पर नचाई  स्त्री ,
देह की ही कोठरी में बंद  कर दी  स्त्री ,
पितृसत्ता की नौटंकी  बंद होनी चाहिए ,
अपने हिस्से की हमें भी अब इमरती चाहिए !
....................................................
 है पुरुष को ये अहम नीच स्त्री उच्च हम ,
साथ साथ फिर भला कैसे बढ़ा सकती कदम ,
'आइटम' कहते हुए लज्जा तो आनी चाहिए ! 
अपने हिस्से की हमें भी अब इमरती चाहिए !
...................................................................
चौखटों को पार कर आई है जो भी स्त्री ,
पितृ सत्ता को नहीं भायी है ऐसी स्त्री ,
चीरहरण की भुजायें अब तो कटनी चाहिए !
अपने हिस्से की हमें भी अब इमरती चाहिए !
................................................................
तुम जलाकर देख लो सीता नहीं जलती कोई ,
न अहल्या न शकुंतला छल से ही  डरती कोई ,
स्त्री को चैन की अब श्वांस मिलनी चाहिए !
 अपने हिस्से की हमें भी अब इमरती चाहिए !


शिखा कौशिक 'नूतन' 




गुरुवार, 14 अप्रैल 2016

देवी के नौ रूप अर्थात – नारी के नौ रूप-भाव ---डा श्याम गुप्त

  देवी के नौ रूप अर्थात – नारी के नौ रूप-भाव 

                            नारी को सदा ही आदि-शक्ति का रूप माना जाता है | संसार की उत्पत्ति, स्थिति, संसार चक्र की व्यवस्था, व लय .... सभी आदि-शक्ति का ही कृतित्व होता है | इसी प्रकार समस्त संसार व जीवन-जगत एवं पुरुष जीवन –नारी के ही चारों ओर परिक्रमित होता है | आदि-शक्ति या देवी के ये नौ रूप एवं नौ -दिवस ---वस्तुतः नारी के विभिन्न रूपों व कृतित्वों के प्रतीक ही हैं |

१- शैलपुत्री --- वृषभ वाहिनी –अर्थात ..
---------.नारी बल का प्रतीक है...समस्त प्राणि-जगत व मानव की शक्ति प्रदायक ....पत्नी, माँ, पुत्री, भगिनी, मित्र ...प्रत्येक रूप में नारी- संसार व पुरुष के लिए शारीरिक, मानसिक व आत्मिक बल प्रदायक होती है |

२-ब्रह्मचारिणी --–अष्टकमल आरूढा, श्वेत वस्त्र धारिणी -----
--------- अर्थात नारी विद्या रूप है ---विद्या ही शालीनता, तप, त्याग, सदाचार, संयम समयोचित वैराज्ञ प्रदान करती है, ये सभी नारी-शक्ति के मूल गुण हैं | यह ब्रह्म-ज्ञान है | नारी ही अपने विविध रूपों में मानव को, पुरुष को अष्ट-कमल रूपी विविध ज्ञान से युक्त करके उसे संसार में प्रवृत्त भी करती है-----विरत भी कर सकती है |

३-चंद्रघंटा --- मष्तिस्क पर चन्द्र का घंटा रूप –तीन नेत्र व दस भुजाएं, बाघ के सवारी --- स्वर्ण शरीर ---अर्थात तीनों लोकों दशों दिशाओं में स्थित अपनी त्रिगुणमयी माया –सत्, तम, रज से नियमित संसार चक्र द्वारा-- बलशाली होते हुए भी शान्ति का उद्घोष ----

--------नारी ही समस्त संसार में, पुरुष के मन में, जीवन में शारीरिक, मानसिक व आत्मिक शांति स्थापना द्वारा –ज्ञान का तेज, आयुष्य, आरोग्य, सुख, सम्पन्नता व कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है |


४-कुष्मांडा ---बाघ पर सवार व अष्ट-भुजी --- दुर्गा ..

---------अर्थात ब्रह्माण्ड, ब्रह्म-अंड की सृष्टि --- नारी ही तो सृष्टि की सृष्टा है, जनक, जननी है | मानव व संसार की रक्षा-सुरक्षा हेतु विविध प्रकार के दुर्ग बनाने में सक्षम, समस्त रोग, शोक आदि निवारक होती है |

५-स्कन्द माता--- सवारी कमल एवं सिंह दोनों ....पद्मा व सिंह वाहिनी – समस्त प्रकार का कल्याण | है | ब्रह्म रूप सनत्कुमार को गोद में लिए एवं सूक्ष् रूप में छह सिर वाली देवी भी गोद में |

---------अर्थात नारी पुरुष व संसार के कल्याण हेतु कल्याण हेतु भयानक व दुर्दम्य निर्णय व रूप भी ले सकती है | नारी समस्त जगत व पुरुष की पालक धारक माता भी है | जीवन, जगत व शरीर के षट्चक्रों-विविध क्रियाओं( षटरसों या खटरस—दुनिया के प्रपंच , व्यावहारिक कला, ज्ञान, कर्म ) की नियामक भी है |
६-कात्यायिनी ---पापियों की नाशक –ऋषियों-मुनियों की सहायक, चार भुजा, सिंह सवारी –
---------नारी का सज्जनों व ज्ञानियों के प्रति सदा ही सम्मान, प्रेम-भाव रहता है व उन्हें दुष्ट जनों, पापियों से सदा ही सहायता व संरक्षण उनकी प्राथमिकता होती है |


७-कालरात्रि --- या शुभंकरी –काला शरीर, केश फैले हुए, विकट-स्वरुप, आँखों से अग्नि, अर्धनारीश्वर शिव की तांडव-मुद्रा ... काली रूप ... सदैव शत्रु व दुष्टों की संहारक ...संसार व मानव हेतु कल्याण कारक|

-------नारी का रूप सदैव ही पुरुष व संसार हेतु कल्याणकारी, शुभ कारी ही होता है परन्तु आवश्यकता पडने पर पुरुष, पिता, पुत्र, पति, भ्राता पर आपत्ति आने पर वही – दुष्ट जनों के लिए दुर्गा रूप, काली रूप रख सकती है.. | यही शक्ति का नारी का काली रूप है |

८-महागौरी –तपस्या से गौर वर्ण प्राप्ति, श्वेत बृषभ आरूढा , श्वेत वस्त्र,डमरू-त्रिशूल धारी, अन्नपूर्णा ---
----------अर्थात नारी पुरुष के लिए त्याग, तपस्या, तप सब कर सकती है...पुरुष की, समस्त संसार की पालक-पोषक शक्ति है जिसके लिए वह मान करतीहै , मनाती है , डमरू भी बजाती है और त्रिशूल का भय भी दिखाती है | पुरुष व मानव के हर वय के, जीवन के हर स्तर पर वही तो अन्नपूर्णा है जो हर प्रकार का धन, वैभव सुख, शान्ति प्राप्ति में सहायक है |

९-सिद्धिदात्री --- कमलासन पर,सुदर्शनचक्र, गदा, कमाल,शंख धारी , सरस्वती रूप श्वेत-वर्ण, महाज्ञान सहित सौम्य भाव , मधुर स्वर | विष्णु के ही अनुरूप संसार के समस्त चक्रीय-व्यवस्थाओं की नियामक.... |
---------अर्थात नारी ही तो पुरुष के, जगत के, संसार के समस्त व्यवस्थाओं की नियामक होती है ...वही तो पुरुष को ज्ञान, कर्म व भक्ति रूपी समस्त सिद्धि-प्रसिद्धियों को प्राप्त करने में सहायक होती है, सम्पूर्ण जीवन तत्व व सम्पूर्ण सिद्धि...मोक्ष में सहायक होती है|


---------यदि हम इन नवरात्र में नारी के हर वय-रूप की उपेक्षा, उस पर अन्याय, अनाचार, अत्याचार के विरुद्ध अपने सोच, विचार, समर्थन व यथासंभव कदम उठाने हेतु व प्रयत्न करने का निश्चय करें, यही देवी की सच्ची आराधना होगी |
चित्र---१.-महालक्ष्मी --एवं त्रिदेव -आदियुग  .......२.दुर्गा-नवरूप


शनिवार, 19 मार्च 2016

मैं तो खेलूंगी श्याम संग होरी...डा श्याम गुप्त

मैं तो खेलूंगी श्याम संग होरी...

 


                                  




मैं तो खेलूंगी श्याम संग होरी


मैं तो खेलूंगी श्याम संग होरी ...
खेलूंगी बरजोरी..बरजोरी....
मैं तो खेलूंगी श्याम संग होरी ...२ ..||
अब तक बहुत गगरियाँ फोरीं ...x २
छेड़ डगर में बहियाँ मरोरीं |
अब होरी मधु रंग रस छाये....x २ ..
श्याम सखा मोरे मन भाये
पागल तन मन भीगा जाए
चाहे चूनर ही रंग जाए ,
चाहे जले राधा भोरी ...x २ ....

ग्वाल बाल संग कान्हा आये ..x २
ढोल, मृदंग, मजीरे लाये |
बरसाने की डगर सुहाए,
रंग रसधार बहाते आये ...x २ ..
खेलन आये होरी ...
मैं तो खेलूंगी श्याम संग होरी...x २ ||
लकुटि लिए सब सखियाँ खडीं हैं ....x २ ..
सब मनमानी करने अड़ी हैं |
बरसाने की बीच डगर में ..x २ ..
अब न चले बरजोरी ..x २....
मैं तो खेलूंगी श्याम संग होरी ...x २ ...||

भर पिचकारी कान्हा मारे...x २ ..
तन मन के सब मैल उतारे ..x २...
अंतरमन तक भीजें सखियाँ ...x २ ..
भूल गईं सब लकुटि-लकुटियाँ |
भूल गयीं सब राह डगरियाँ,
भूल गयीं सब टूटी गगरियाँ ..x २
भूलीं माखन चोरी ..२
मैं तो खेलूंगी श्याम संग होरी ....x २ ||
माखन चोर रस-रंग बहाए ..x २
होगई मन की चोरी |
तन मन भीगें गोप-गोपिका...x २
भीगे राधा गोरी ...x २
होगई मन की चोरी |
मैं तो खेलूंगी श्याम संग होरी ..x २…
खेलूंगीबरजोरी..बरजोरी... मैं तो खेलूंगी श्याम संग होरी ..x २ ||

रविवार, 13 मार्च 2016

समीक्षक- आरिफा एविस




समीक्षक- आरिफा एविस
‘क्योंकि औरत कट्टर नहीं होती’ डॉ. शिखा कौशिक ‘नूतन’ द्वारा लिखा गया लघु कथा संग्रह है जिसमें स्त्री और पुरुष की गैर बराबरी के विभिन्न पहलुओं को छोटी-छोटी कहानियों के माध्यम से सशक्त रूप में उजागर किया है. इस संग्रह में हमारे समाज की सामंती सोच को बहुत ही सरल और सहज ढंग से प्रस्तुत किया है, खासकर महिला विमर्श के बहाने समाज में उनके प्रति सोच व दोयम दर्जे की स्थिति को बहुत ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है. फिर मामला चाहे अस्तित्व का हो या अस्मिता का ही क्यों न हो.
लेखिका डॉ. शिखा कौशिक ‘नूतन’ अपनी कथाओं के जरिये बताती हैं कि बेशक आज देश उन्नति के शिखरों को चूम रहा हो लेकिन असल में लोगों की सोच अभी भी पिछड़ी, दकियानूसी और सामंती है. इसी सोच का नतीजा है कि हमारे समाज में आज भी महिलाओं को हमेशा कमतर समझा जाता है. किसी भी किस्म की दुश्मनी का बदला औरत जात को अपनी हवस का शिकार बनाकर ही किया जाता है, फिर मामला चाहे सांप्रदायिक हो या जातिगत -“जिज्जी बाहर निकाल उस मुसलमानी को!! ...हरामजादों ने मेरी बहन की अस्मत रौंद डाली...मैं भी नहीं छोडूंगा इसको...!!!
लेखिका ने समान रूप से काम करने वाले बेटे-बेटी के बीच दोहरे व्यवहार को बखूबी दर्शाया है जो अक्सर ही हमारे परिवारों में देखने, सुनने या महसूस करने को मिल जाता है- “इतनी देर कहाँ हो गयी बेटा? एक फोन तो कर देते! तबियत तो ठीक है ना ? बेटा झुंझलाकर बोला- ओफ्फो... आप भी ना पापा... अब मैं जवान हो गया हूँ... बस ऐसे ही देर हो गयी. पिता ठहाका लगाकर हंस पड़े. अगले दिन बेटी को घर लौटने में देर हुई तो पिता का दिमाग सातवें आसमान पर पहुँच गया. बेटी के घर में घुसते ही पूछा ...घड़ी में टाइम देखा है! किसके साथ लौटी हो?...पापा वो ऐसे ही. बेटी के ये कहते ही उलके गाल पर पिता ने जोरदार तमाचा जड़ दिया.”
डॉ. शिखा ने भारतीय समाज में व्याप्त लिंगीय भेदभाव पर बहुत ही तीखा प्रहार किया है और उन मिथकों को तोड़ने की भरसक कोशिश की है जो एक स्त्री होने की वजह से हर दिन झेलती है. लेखिका इस बात पर शुरू से लेकर अंत तक अडिग है कि औरत ही औरत की दुशमन नहीं होती बल्कि सामाजिक तथा आर्थिक सरंचना से महिलायें सामन्ती एवं पुरुष प्रधान मानसिकता से ग्रसित हो जाती हैं - “ऐ... अदिति... कहाँ चली तू? ढंग से चला फिरा कर... बारवें साल में लग चुकी है तू... ये ढंग रहे तो तुझे ब्याहना मुश्किल हो जायेगा. कूदने-फादने की उम्र नहीं है तेरी. दादी के टोकते ही अदिति उदास होकर अंदर चली गयी. तभी अदिति की मम्मी उसके भाई सोनू के साथ बाजार से शोपिंग कर लौट आयीं. सोनू ने आते ही कांच का गिलास उठाया और हवा उछालने लगा. ...गिलास फर्श पर गिरा और चकनाचूर हो गया. सोनू पर नाराज होती हुई उसकी मम्मी बोली- “कितना बड़ा हो गया है अक्ल नहीं आई! ...अरे चुपकर बहु एक ही बेटा तो जना है तूने ...उसकी कदर कर लिया कर... अभी सत्रहवें ही में तो लगा है... खेलने-कूदने के दिन हैं इसके...”
प्रेम करना आज भी एक गुनाह है. अगर किसी लड़की ने अपनी मर्जी से अपना जीवन साथी चुना तो परिवार व समाज उसके इस फैसले को कतई मंजूरी नहीं देते बल्कि इज्जत और मर्यादा के नाम पर उसको मौत के घाट उतार दिया जाता है. प्रेम के प्रति लोगों की सोच को नूतन कुछ इस तरह व्यक्त करती हैं- “याद रख स्नेहा जो भाई तेरी इज्जत की बचाने के लिए किसी की जान ले सकता है वो परिवार की इज्जत बचाने की लिए तेरी जान ले सकता है. ...स्नेहा कुछ बोलती इससे पहले ही आदित्य रिवाल्वर का ट्रिगर दबा चुका था.”
हमारे समाज में आज भी लोगों के मन में जातिवाद घर बनाये हुए है. जातिवाद प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में हमारे सामने आ ही जाता है. स्कूल, कॉलेज, नौकरी-पेशा, शादी-विवाह या किसी भी कार्यक्रम के आयोजन ही क्यों न हो जाति कभी पीछा नहीं छोडती- “जातिवाद भारतीय समाज के लिए जहर है. इस विषय के संगोष्ठी के आयोजक महोदय ने अपने कार्यकर्ताओं को पास बुलाया और निर्देश देते हुए बोले- देख! वो सफाई वाला है ना. अरे वो चूड़ा. उससे धर्मशाला की सफाई ठीक से करवा लेना. वो चमार का लौंडा मिले. ...उससे कहना जेनरेटर की व्यवस्था ठीक-ठाक कर दे. बामन, बनियों, सुनारों, छिप्पियों इन सबके साइन तू करवा लियो... ठाकुर और जैन साहब से कहियो कुर्सियों का इंतजाम करने को.”
किसी भी स्त्री और पुरुष की ताकत, हुनर, पहलकदमी, तरक्की को देखने का नजरिया एकदम अलग-अलग होता है. लेकिन स्त्री जाति के विषय में बात एकदम अलग है क्योंकि किसी भी स्त्री को डर, धमकी या मार द्वारा उसके लक्ष्य से कोई भी डिगा नहीं सकता. सिर्फ पुरुषवादी सोच ही स्त्री को चरित्रहीन कहकर ही उसको अपमानित करती है. “रिया ने उत्साही स्वर में कहा जनाब मुझे भी प्रोमोशन मिल गया है. ‘अमर’ हाँ, भाई क्यों न होता तुम्हारा प्रोमोशन, तुम खूबसूरत ही इतनी हो.”
डॉ. शिखा कौशिक ने लगभग 117 लघु कथाओं की शिल्प शैली लघु जरूर है लेकिन उनकी विचार यात्रा बहुत ही गहरी और विस्तृत है. लेखिका ने ग्रामीण परिवेश और उसकी सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संरचना में रची बसी विकृतियों, समस्याओं और जटिलताओं को पाठकों तक पहुँचाने का काम करके स्त्री विमर्श के विभिन्न पहलुओं को चिन्हित किया है.

क्योंकि औरत कट्टर नहीं होती : डॉ.शिखा कौशिक ‘नूतन’ |
अंजुमन प्रकाशन | कीमत :120

मंगलवार, 8 मार्च 2016

मम्मी इमोशनल होगई हैं... महिला दिवस डा श्याम गुप्त की रचना---

महिला दिवस के उपलक्ष में एक कविता------

मम्मी इमोशनल होगई हैं...


पुत्रवधू का फोन आया -
बोली, पापा 'ढोक',
घर का फोन उठ नहीं रहा ,
कहाँ व कैसे हैं आप लोग ? 


खुश रहो बेटी, कैसी हो ...
ठीक हैं हम भी ,
ईश्वर की कृपा से मज़े में हैं , और-
इस समय तुम्हारे कमरे में हैं ।

क्या पापा ...?
हाँ बेटा, हम जयपुर में हैं ,
तुम्हारे पापा के आतिथ्य में ।
 हैं .... ! मम्मी कहाँ हैं , पापा ?
बैठी हैं तुम्हारे कमरे में,


तुम्हारे पलंग पर, सजल नयन ....
मम्मी इमोशनल होगई हैं, और-
बैठी विचार मग्न हैं -
सिर्फ यही नहीं कि,
कैसे तुम यहाँ की डोर छोड़कर
गयी हो वहां,
अज़नबी, अनजान लोगों के बीच ,
अनजान डगर ,
हमारे पास ।

अपितु - साथ ही साथ ,
अपने अतीत की यादों के डेरे में , कि-
कभी वह स्वयं भी अपना घर-कमरा-
छोड़कर आयी थी ;
इसी तरह और----
तुम्हारी ननद भी ,
गयी है , छोड़कर
अपना घर, कमरा, कुर्सी- मेज-
इसी प्रकार ..................
................................
और....और....और......।।