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बुधवार, 5 अक्टूबर 2016

चैनलों ने बिगाड़ी राजस्थानी महिला की छवि

- प्रेम प्रकाश  
सनसनी पैदा करने के चक्कर में मीडिया कई बार ऐसी हिमाकतों से गुजर जाता है, जिसका खामियाजा देश और समाज को आगे लंबे समय तक उठाना पड़ता है। बात करें महिला अपराध की तो यह एक ऐसा संवेदनशील मसला है, जिससे खबरिया आपाधापी में अकसर गंभीर चूक होती है। यह चूक कितनी बड़ी और घातक हो सकती है इसकी मिसाल हाल की जयपुर की एक घटना है। टीवी चैनलों पर आधे-आधे घंटे इस घटना पर विशेष शो दिखाए गए। बताया गया कि एक मां भी हत्यारी हो सकती है और वह भी अपने चार माह के दूधमुंहा बच्ची की। एंकर से लेकर रिपोर्टर इस घटना में एक मां की हिंसक जघन्यता को यह कहते हुए रेखांकित करने में लगे रहे कि कैसे एक मां की ममता इतनी कमजोर पड़ गई कि उसने अपनी गोद में खेलती बेटी की हत्या का फैसला ले लिया। जबकि जो खबर थी उसमें यह तथ्य भी शामिल था कि यह सब उस मां ने क्यों और किस दबाव में किया यह पूरी तरह साफ नहीं। क्योंकि एक अंदेशा यह भी जताया जा रहा कि संभव है कि वह मां ऐसा नहीं करना चाहती हो पर उसके ऊपर इसके लिए दबाव हो। पितृसत्तात्मक समाज में यह दबाव किस तरह पारिवारिक-सामाजिक स्तर पर स्त्री मन को तोड़ता-बदलता है, इसके तो अब कई चौंकाने वाले अध्ययन तक सामने आ चुके हैं। फिर बगैर मामले के पूरी तह में गए अगर किसी की छवि को निर्णायक तौर पर स्याह करार दे दिया जाए और वह भी किसी महिला की तो यह न सिर्फ एक गैरजिम्मेदार बल्कि खुद अपने में हिंसक रवैया है।  इस मामले में महिला मामलों में बरती जाने वाली संवेदनशीलता तो खैर नहीं ही दिखी, अव्वल ऐसी सोच जरूर हावी है कि अगर कोई महिला अपराध करती है तो वह पहली नजर में ही अक्षम्य है, नाकाबिले बर्दाश्त है। पलटकर यह सवाल अगर मीडिया के माननीयों से पूछा जाए कि एक ऐसे दौर में जब हर 18 मिनट में देश की कोई न कोई बेटी किसी पुरुष की हवस का शिकार बन रही है, अदालती हिदायतों और कानूनी सख्ती के बावजूद आधी दुनिया के चेहरे पर एसिड फेंकने की घटनाएं रुकी नहीं हैं, फिर एक महिला के अपराधी होने को लेकर इतनी दिलचस्पी आखिर क्यों? क्या यह दिलचस्पी उसी मानसिकता की देन नहीं है, जिससे महिलाएं घर-परिवार से लेकर कार्यस्थलों पर असुरक्षित हैं, शारीरिक से लेकर मानसिक उत्पीड़न का शिकार हैं।  जयपुर की जिस घटना को लेकर इतनी बातें हो रही हैं, वह घटना 26 अगस्त की है। पुलिस को उस दिन सूचना मिली कि शास्त्रीनगर इलाके मेंएक व्यक्ति की चार माह की बेटी घर में ही रखे हुये एसी कैबिनेट में मृत पायी गई है। मकान में रहने वाले एवं घटना के समय मौजूद लोगों से गहनता से पूछताछ की गयी तो बच्ची की मां की भूमिका पर संदेह हुआ। मृतका बच्ची अपनी मां नेहा के पास अपने बेडरूम में सोई थी। उसके बाद बच्ची लहुलुहान हालात में उसके बेडरूम से कुछ ही दूरी पर स्थित हॉल में रखे लोहे के एसी केबिनेट में मृत पायी गयी। लेकिन बच्ची के एसी केबिनेट में पहुंचने को लेकर मां कुछ भी नहीं बता सकी। अलबत्ता एफएसएल टीम द्बारा जुटाये गए सबूतों में पाया गया कि कि मृतका बच्ची की मां के नाखूनों में रक्त पाया गया व उसके बेडरूम से अटैच बाथरूम में भी रक्त पाया गया। इसमें कहीं दो मत नहीं कि इस दुर्भाग्यपूणã घटना की शुरुआती तफ्सील ही किसी को भी अंदर तक हिला देने वाली है। हर लिहाज से यह घटना पूरी तरह आपवादिक जान पड़ता है क्योंकि ऐसा किसी समान्य सामाजिक-पारिवारिक स्थिति में संभव ही नहीं।  पर दुर्भाग्य से इस आपवादिक खबर में सनसनी देखने वालों ने इस बहाने राजस्थान में बालिका भ्रूण हत्या से लेकर महिलाओं की असुरक्षित स्थिति तक कई नतीजे निकाल लिए। जबकि तथ्य और सच्चाई कुछ और है। राजस्थान में जहां वर्ष 2०11 की जनगणना में ० से 6 वर्ष तक का लिगानुपात महज 888 था, वह 2०15 आते-आते 37 अंक बढ़कर 925 हो गया है। दरअसल, प्रदेश में 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान के प्रभावी क्रियान्वयन के साथ ही, लिगानुपात बढ़ाने के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं। भामाशाह योजना, राजश्री योजना, आपणी बेटी योजना सहित अन्य कई योजनाएं प्रदेश में संचालित की गई हैं, जो महिला सशक्तीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण साबित हो रही हैं। साथ ही, जिन परिवारों में बेटी का जन्म होता है, उन्हें मुख्यमंत्री द्बारा हस्ताक्षरित बधाई पत्र भेजा जाता है। प्रदेश में लिगानुपात बढाने के लिये राज्य सरकार द्बारा प्रसव पूर्व लिग जांच की गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए अपनी तरह की पहली मुखबिर योजना और जीपीएस युक्त सोनोग्राफी मशीनों जैसे नवाचार किए गए हैं। इन सब योजनाओं के आशातीत परिणाम आए हैं। ऐसे में महज एक खबर की नोक पर राज्य में महिलाओं के लिए सरकार और समाज की सारी तत्परता और बड़ी पहलों को नकार देना कितना गलत और घातक है, समझा जा सकता है।  राजस्थान से निकलकर पूरे देश की बात करें खासतौर पर निर्भया मामले के बाद कई स्तरों पर जागरुकता बढ़ी है। इस दौरान बलात्कार सहित महिलाओं के खिलाफ अपराध को रोकने को लेकर कई वैधानिक सख्तियां भी सरकारें लेकर आई हैं। इससे आगे महिलाएं पूजास्थलों में प्रवेश से रोके जाने जैसी मध्यकालीन सोच को भी समाज से लेकर अदालतों तक चुनौती दे रही हैं। बात करें मौजूदा केंद्र सरकार की तो उसने तो बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ से लेकर स्तनपान को प्रश्रय तक कई बड़े अभिक्रम एक के बाद एक शुरू किए हैं। ऐसे में देश में महिला सम्मान और सुरक्षा की राह पर सरकार और समाज के साथ मीडिया को कदम आगे बढ़ाने की दरकार है। यह दरकार इस लिहाज से जरूरीअमल की मांग करता है क्योंकि आजादी के आंदोलन के लंबे दौर से बाद तक मीडिया देश में जागरूकता के एक बड़े स्रोत और उपकरण के तौर पर काम करता रहा है। श्रेय और उपलब्धि से यशस्वी होने का गौरव अगर पत्रकारिता जगत महज कुछ बाजारू तकाजों के आगे खोता है तो यह अविवेक आगे किसी बड़े और खतरनाक प्रवृति की भी शक्ल ले सकता है। 

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (07-10-2016) के चर्चा मंच "जुनून के पीछे भी झांकें" (चर्चा अंक-2488) पर भी होगी!
    शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. पूरी विस्तृत व वास्तविकता आने तक अमाचार देने की जो त्रुटि ( सदा की भाँति ) चेनल वालों ने की वही आपने यह पोस्ट देकर की है ---

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