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शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

दर्द ( एक बेटी का )

अपना सबने कहा पर अपना कोई न सका
मुझे जाना सबने पर समझ कोई न सका

  मेरे चेहरे की मुस्कान सबने देखी पर
  मेरी आखों का दर्द कोई न देख सका

मेरी जरुरतो को तो पूरा किया पर
चाहतो को हमेशा अनदेखा किया

  मुझे सहारा तो सबने दिया पर
  अपने पैरो पर उठना किसी न सिखाया

मुझे सही गलत का फर्क तो बताया
पर गलत के खिलाफ लड़ना न सिखाया

  मुझे सपने देखने की इज़ाज़त तो दी पर
  उन्हें पूरा करने की शक्ति नहीं दी

मेरे रूप रंग को सबने निहारा पर
मेरे मन को कभी किसी का न मिला सहारा

      मुझे पंख तो मिले पर
      उड़ने की इज़ाज़त नही

मुझे बेटी होने का हक़ तो दिया पर
बेटी का सम्मान नहीं .............



  
  

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर रचना । बिलकुल सच है एक बेटी के दर्द को आपने बिलकुल सही तरीके से रचा है ।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (02-08-2015) को "आशाएँ विश्वास जगाती" {चर्चा अंक-2055} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बेटी के मन के भावों को उकेरती भावपूर्ण अभिव्यक्ति..

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  4. wah! ladkiyon ka dard uker kar rakh diya apki rachna ney .....badhai

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  5. ladiyon ke dard ko kitne khubsurat dhang se abhiwyakt kiya aapne...

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  6. मुझे सपने देखने की इज़ाज़त तो दी पर
    उन्हें पूरा करने की शक्ति नहीं दी
    you have written very right .THANKS TO JOIN THIS BLOG AND POSTED SUCH A RELEVANT BLOG POST .

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