मिटा सको तो मिटाने की तुम कोशिश कर लो !
मेरे वज़ूद से टकराने की कोशिश कर लो !
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मैं नहीं ताश के पत्तों का कोई शीशमहल ,
गिरा सको तो गिराने की भी कोशिश कर लो !
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नहीं तारीख़ जो दिन-रात में बदल जाऊँ ,
मुझे तारीख़ में दफ़नाने की कोशिश कर लो !
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दिलों की धड़कनें बन कर मैं ही धड़कती हूँ ,
दिलों को थामने की कर सको कोशिश कर लो !
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तुम्हारी बददुआ है बेअसर मुझ पर 'नूतन'
कभी फौलाद को पिघलाने की कोशिश कर लो !
शिखा कौशिक 'नूतन'
शिखा दीदी नारी का वजूद मिटने से पूर्व यह सृस्टि ही समाप्त हो जाएगी। क्या नारी के बिना भी कोई सृस्टि संभव है?
जवाब देंहटाएंअप्रतिम। सुन्दर रचना। बधाई शिखा जी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
लाज़वाब।
जवाब देंहटाएंलाज़वाब।
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