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मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

from -Ministry of Information & Broadcasting


Investigation Units on Crime against Women 
[Ministry of Information & Broadcasting]
In order to augment the capacity of States in the domain of investigation of heinous crimes against women viz. rape, acid attack, dowry death and human trafficking etc., the Ministry of Home Affairs has proposed to set up 150 Investigative Units for Crime against Women (IUCAW) in most crime prone districts of each State on a 50 : 50 cost sharing basis with the States. The objective of these units will be to assist the local police in investigation of heinous crimes against women. The total cost estimation is about Rs. 98 crore for the 12th Five Year Plan period. A copy of the advisory containing allocation of IUCAW units per State/UT, alongwith amount of funding for each unit, mode of disbursement etc. is available in http://mha.nic.in/sites/upload_files/mha/files/CrimesagainstWomen0601.PDF. The State/UT-wise status on setting up of IUCAW is not available.

Some suggestions regarding enhancement of monetary assistance, capacity building etc. has been received from the States/UTs. However, the Ministry of Home Affairs is of the opinion that ‘Police’ being a state subject, the States should take the primary responsibility in this regard.

This was stated by the Minister of State for Home Affairs, Shri Haribhai Parathibhai Chaudhary in a written reply to a question by Dr. Sanjay Jaiswal, Shri Kodikunnil Suresh and Smt. Vanaroja R. in the Lok Sabha today

शनिवार, 25 अप्रैल 2015

खोखली उदारवादिता -लघु कथा



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गौतम उदारतावादी स्वर में बोला -''लिव-इन कोई गलत व्यवस्था नहीं...आखिर कब तक वही पुराने..घिसे-पिटे सिस्टम पर समाज चलता रहेगा ..विवाह ....इससे भी क्या होता है ? गले में पट्टा डाल दिया बीवी के नाम का और मियां जी घूम रहे है इधर-उधर मुंह मारते हुए .'' सुरेश असहमति में सिर हिलाता हुआ बोला -'' भाई मुझे तो लिव-इन बकवास की व्यवस्था लगती है . दो दिन मौज मनाई और हो लिए अलग ....नॉनसेंस !'' गौतम उसकी हंसी उड़ाता हुआ बोला -'' ये.............ये ही है परंपरावादियों की कमजोरी ..साला आज कोई स्वीकार नहीं करेगा और बीस साल बाद कहेंगें ...लिव -इन ही ठीक व्यवस्था है .'' सुरेश कुछ कहना ही चाहता था कि अंदर से गौतम की पत्नी की आवाज़ आई -'' अजी सुनते हो ..जवान लड़की अब तक घर नहीं लौटी जरा देख कर तो आओ ...रात के नौ बजने आ गए !'' गौतम का चेहरा ये सुनते ही गुस्से से तमतमा उठा .वो भड़कता हुआ बोला -'' अब बता रही हो ..डूब कर मर जाओ ...अभी देखता हूँ ..क्या कहकर गयी थी वो ..कहाँ गयी है ?'' गौतम की पत्नी अंदर से ही बोली -'' कह रही थी शिवम के साथ थियेटर जाएगी ..कोई नाटक का मंचन है ...पर अब तक तो लौट आना चाहिए था !'' गौतम चीखता हुआ बोला -'' हद हो गयी ..मुझ से बिना पूछे ही किसी लड़के के साथ घूमने चल दी ...आज फिट करना ही होगा उसे .'' गौतम को भड़कते देख सुरेश उसे समझाते हुए बोला -'' थियेटर ही तो गयी है ..आ जाएगी ...ट्रैफिक का हाल तो तुम जानते ही हो ...अच्छा भाई मैं भी चलता हूँ !'' ये कहकर सुरेश गौतम के घर से निकल लिया और मन में  सोचने लगा -'' वाह भाई वाह ..लिव-इन ....लड़की का कुछ देर किसी लड़के साथ घूमना तक तो गंवारा नहीं और करते हैं लिव-इन की वकालत !!''

शिखा कौशिक 'नूतन'

बुधवार, 22 अप्रैल 2015

मेरे वज़ूद से टकराने की कोशिश कर लो !


मिटा सको तो मिटाने  की तुम कोशिश कर लो !
मेरे वज़ूद से टकराने की कोशिश कर लो !
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मैं नहीं ताश के पत्तों का कोई शीशमहल ,
गिरा सको तो गिराने की भी कोशिश कर लो !
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नहीं तारीख़ जो दिन-रात में बदल जाऊँ ,
मुझे तारीख़ में दफ़नाने की कोशिश कर लो !
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दिलों की धड़कनें बन कर मैं ही धड़कती हूँ ,
दिलों को थामने की कर सको कोशिश कर लो !
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तुम्हारी बददुआ है बेअसर मुझ पर 'नूतन'
कभी फौलाद को पिघलाने की कोशिश कर लो !

शिखा कौशिक 'नूतन'

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

''कॉलेज जाना है या शादी ब्याह में !''



indian Girls On Mahndi 



''माँ मैं कौन सी पोशाक पहनूं ?'' चिया ने चहकते हुए माँ से पूछा तो माँ ने उदासीन भाव से कहा -'' कुछ भी जो शालीन हो वो पहन लो . चिया ने आर्टिफिशल ज्वेलरी दिखाते हुए माँ से पूछा -'' माँ ये माला का सैट कैसा लगेगा मुझ पर ? माँ ने उड़ती-उड़ती नज़र चिया की ज्वेलरी पर डाली और सुस्त से स्वर में बोली -'' हां...............ठीक-ठाक ही है .'' चिया ने अपने लम्बे नाख़ून जो नेल पॉलिश से सजाये थे माँ की ओर करते हुए कहा - माँ देखो ना कैसे लग रहे हैं !'' माँ ने उखड़ते हुए कहा -'' क्या चिया ...कब से दिमाग खाए जा रही है ....पोशाक , ज्वैलरी ,नाखून ...बेटा एक बार कोर्स की किताबे भी देख ले ...कॉलेज जाना है तुझे कहीं शादी -ब्याह में नहीं ..समझी !'' चिया ने माँ की ओर चिढ़ते हुए देखा और आईने  के सामने के खड़ी  होकर बाल संवारने लगी .

शिखा  कौशिक  'नूतन '

सोमवार, 13 अप्रैल 2015

''कफ़न बांध सिर निकली औरत !''


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हाय बड़ा कोहराम मचा है दुनिया भर की गलियों में ,
कफ़न बांध सिर निकली औरत दुनिया भर की गलियों में !
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घूंघट को दो फाड़ किया चूल्हे में उसे जला डाला ,
मर्दों को दी खुली चुनौती ना कोई गड़बड़झाला ,
फौलादी दिल किया सभी ने हुआ आज ये सदियों में !
कफ़न बांध सिर निकली औरत दुनिया भर की गलियों में !
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नहीं कुचलने देंगी कलियाँ नहीं उजड़ने देंगी कोख ,
जग में आने से कन्या को मर्द नहीं सकता अब रोक ,
नहीं बधेंगी औरत हरगिज़ मर्दों की हथकड़ियों में !
कफ़न बांध सिर निकली औरत दुनिया भर की गलियों में !
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कमर से नीचे कमर से ऊपर देह हमारी यूँ ना बाँट ,
आओ हाथ लगाकर देखो हाथ तुम्हारे देंगी काट ,
प्रलय -लहर का मचा है तांडव भोली-भाली नदियों में !
कफ़न बांध सिर निकली औरत दुनिया भर की गलियों में !


शिखा कौशिक 'नूतन'

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

''और फूल बिखर गया ''

''और फूल बिखर गया ''
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उस कँटीले जंगल में वो अल्हड़ सी कली निर्भीक होकर मंद-मंद आती समीर के साथ झूल लेती और जब हंसती तो उसके चटकने की मधुर ध्वनि से हर काँटा ललचाई नज़रों से उसे देखने लगता .वो खुद को पत्तों में छिपा लेना चाहती पर कहाँ छिप पाती !! फिर वो कली खिलकर फूल बन गयी .काँटों ने उसे धमकाते हुए कहा -'' हम तुम्हारी रक्षा करेंगें वरना कोई  तुमको तोड़ कर ले जायेगा ...ज्यादा मत मुस्कुराया करो ....न इठलाया करो .न चंचल पवन के झोंको से मित्रता रखो ...तुम कोमल सा एक फूल भर हो ...तुम पर भँवरे भी मंडराने आयेंगें .जो तुम्हारा रस चूसकर निर्लज्जता के साथ तुम्हारा उपहास उड़ाते हुए तुम्हें छोड़कर चले जायेंगें .फूल बनी वो कली उनकी बातें सुनकर सोच में पड़ गयी . ...घबरा गयी . उसका सौंदर्य घटने लगा .सर्वप्रथम उसकी सुरभि नष्ट हो गयी फिर पंखुड़ियों के रंग फीके पड़ने लगे .कली बने फूल  की पंखुड़ियां स्वयं पर लगी पाबंदियों के दुःख के कारण बिखरने लगी . अपने अंतिम क्षणों में कली बने फूल ने देखा कि काँटों ने भी उससे मुंह फेर लिया था .

शिखा कौशिक 'नूतन'

सोमवार, 6 अप्रैल 2015

शायद इसे ही प्यार कहते हैं -लघु कथा

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     रमन आज अपने जीवन के साठ वें दशक में प्रवेश कर रहा था . उसकी जीवन संगिनी विभा को स्वर्गवासी हुए पांच वर्ष हो चुके थे .रमन आज तक नहीं समझ पाया कि एक नारी की प्राथमिकताएं जीवन के हर नए मोड़ पर कैसे बदलती जाती हैं . जब उसका और विभा का प्रेम-प्रसंग शुरू हुआ था तब विभा से मिलने जब भी वो जाता विभा उससे पूछती -'' आज मेरे लिए क्या खास लाये हो ?'' और मैं मुस्कुराकर एक खूबसूरत सा फूल उसके जूड़े में सजा देता .विवाह के पश्चात विभा ने कभी नहीं पूछा कि मैं उसके लिए क्या लाया हूँ बल्कि घर से चलने से पहले और घर पहुँचने पर बस उसके लबों पर होता -'' पिता जी की दवाई ले आना , माता जी का चश्मा टूट गया है ..ठीक करा लाना ,  और भी बहुत कुछ ..मानों मेरे माता-पिता मुझसे बढ़कर अब विभा के हो चुके थे . बच्चे हुए तो बस उनकी फरमाइश पूरी करवाना ही विभा का काम रह गया -''बिट्टू को साईकिल दिलवा  दीजिये ....मिनी को उसकी पसंद की गुड़िया दिलवा लाइए ...'' रमन ने मन में सोचा  -'' मैं चकित रह जाता आखिर एक प्रेमिका से पत्नी बनते ही कैसे विभा बदल गयी .अपने लिए कुछ नहीं और परिवार की छोटी-से छोटी जरूरत का ध्यान रखना . शायद इसे ही प्यार कहते हैं जिसमे अपना सब कुछ भुलाकर प्रियजन से जुड़े हर किसी को प्राथमिकता दी जाती है .'' रमन ने लम्बी साँस ली और विभा की यादों में खो गया क्योंकि यही उसके जीवन के साथ वे दशक में प्रवेश का सबसे प्यारा उपहार था .

शिखा कौशिक 'नूतन'

रविवार, 5 अप्रैल 2015

अहंकार और प्यार -लघु-कथा

अहंकार और प्यार -लघु-कथा
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बैंक अधिकारी रजत ने ज्वेलरी की दुकान से डायमंड रिंग खरीदी और इस भाव से भरकर उस पर एक नज़र डाली कि-''कोई भी पति अपनी पत्नी के लिए वेडिंग ऐनिवर्सरी का इससे ज्यादा महगा गिफ्ट नहीं ले सकता !'' रजत घर पहुँचा तो उसने पाया उसकी वाइफ पायल ने आज सब कुछ अपने हाथों से उसके पसंद का बनाया था खाने में . उसने पायल के समीप पहुँच कर कहा -'' हाथ आगे करो ..मैं तुम्हें कुछ गिफ्ट देना चाहता हूँ !' पायल ने सकुचाते हुए हाथ आगे किया तो रजत ने पाया उसकी रिंग फिंगर पर पट्टी बंधी थी .रजत ने उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए पूछा -'' ये चोट कैसे लगी ?'' पायल मुस्कुराते हुए -'' अरे कुछ नहीं ..ये तो खाना बनाते हुए लग गयी ..आज बहुत दिन बाद आपके लिए कुछ बना रही थी ना ...नौकरों के कारण आदत ही नहीं रही कोई काम करने की !'' रजत ने डायमंड रिंग सकुचाते हुए पायल के आगे करते हुए कहा -'' ये छोटा सा गिफ्ट तुम्हारे लिए .'' और मन में सोचा -''पायल ने चोट लगने के बावजूद मेरे लिए मेरी पसंद का खाना बनाया इसमें उसका प्यार झलकता है और मेरे गिफ्ट में मेरा अहंकार ..उस प्यार के आगे इस मंहगे गिफ्ट का कोई मूल्य नहीं !''


डॉ.शिखा कौशिक 'नूतन'

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

''भाव ही सबसे सुन्दर ''-लघु कथा


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''भाव ही सबसे सुन्दर ''-लघु कथा
लड़के ने कहा 'तुम्हारी आँखें बहुत सुन्दर हैं !'' लड़की मुस्कुराई और बोली -'' आँखें नहीं ...इनमें तुम्हारे प्रति झलकता प्यार का भाव सुन्दर है !'' लड़का बोला -'' तुम्हारे होंठ गुलाब की पंखुड़ियों के समान सुन्दर हैं !'' लड़की हँसी ,उसके गालो पर लाली छा गयी और वो बोली -''मेरे होंठ सुन्दर नहीं ..ये तुम्हारे कोमल भाव हैं मेरे प्रति जिसके कारण तुम्हें ये गुलाब की पंखुड़ियां लग रहे हैं ..नहीं तो ये बहुत साधारण हैं !'' लड़के ने कहा -'' तुम्हारे गालो पर आई ये लालिमा कितनी मादक है !'' लड़की ने कहा-''ये तो तुहारे द्वारा की जा रही प्रशंसा के कारण उत्पन्न लज्जा भाव का कमाल है !'' लड़का झुंझलाकर बोला -''ओफ्फो !!! मैं तुम्हारी सुंदरता की प्रशंसा कर रहा हूँ और तुम हो कि भाव ..भाव ...भाव लिए बैठी हो !'' लड़की ठहाका लगाकर बोली -'' जो जीवित है उसमे जो भी सुंदरता है वो भावों की है ..देह की नहीं ! तुम ऐसा करना जब मैं मर जाऊं तब इस देह के प्रशंसा करना तब तुम्हें पता चलेगा कि भावों से रहित सुन्दर देह कितनी वीभत्स होती है !!''


शिखा कौशिक 'नूतन'

इनसे कुछ नहीं होगा --डा श्याम गुप्त



इनसे कुछ नहीं होगा

-----आदिशक्ति...नारी सृष्टि का आधार है, परन्तु ‘एकोहं बहुस्यामि’ के सृष्टि-विचार का आधार तो ब्रह्म...पुरुष ही है |
---मनुस्मृति-पुरुष ही लिखता है, किसी भी नारी ने कोई महान कालजयी ग्रन्थ की रचना की है?..नहीं| इसमें पुरुष-प्रधान समाज का घिसा-पिटा गाना गाया जासकता है परन्तु उस समाज में तो नारी-पुरुष का समान अधिकार था | तभी तो लोपामुद्रा, घोषा, अपाला, यमी, भारती आदि ऋषिकाओं की उपस्थिति है |
----जब जब भी पुरुष निर्बल, असहाय होजाता है तब-तब नारी दुर्गा रूप लेकर युद्धरत होती है ..यह अवधारणा केवल भारत में ही है, अन्य कहीं है भी तो यहीं से गयी हुईं, फ़ैली हुई संस्कृतियों में व उनकी स्मृतियों/ कथाओं में हैं| परन्तु दुर्गा को बल ब्रह्मा, विष्णु, शिव व अन्य देवता, अर्थात पुरुष ही, अपनी शक्तियों के रूप में देते हैं  तब दुर्गा में शक्ति का अवतरण होता है | उस प्रचंड शक्ति के काली रूपमें  उद्दाम, असंयमित वेग को पुरुष (महादेव) ही रोकता है, नियमित करता है |
-----पुरुष-श्री कृष्ण के गुणों पर नारियां रीझती हैं, विष्णु को पति रूप में पाने हेतु, शिव के लिए भी तप करती हैं ..परन्तु कोइ एसा केंद्रीय नारी चरित्र नहीं है जिसके गुणों पर संसार भर के पुरुष रीझ जाएँ | हाँ शारीरिक रूप सौन्दर्य के दीवानों की गाथाएँ अवश्य मिलतीं हैं |
           अतः निश्चय ही सृष्टि की जनक नारी है परन्तु पुरुष की नियमन व्यवस्था के अनुसार | अतः आज के परिप्रेक्ष्य में ---
-----वे पुरुष के आचरण सुधार की बातें करती रहेंगी एवं स्वयं सलमान खान व शाहरुख के पीछे भागती रहेंगीं|
-----वे हीरोइनों के वस्त्राभूषणों की नक़ल करेंगीं, स्वतंत्र रूप से रात-विरात अकेली स्वच्छंदता का भी अनुसरण करेंगीं (जबकि हीरोइनें तो बोडीगार्ड के साथ रहती हैं)| हीरोइनों के पीछे भागने की वजाय सलमान, शाहरुख के पीछे भागेंगी | ( कुछ विद्वान नारियां हर काल की तरह अपवाद भी होती हैं )
------वे कहेंगीं कि समाज अपनी सोच बदले | समाज में तो स्त्री-पुरुष दोनों ही होते हैं अकेले पुरुष से कब समाज बनाता है अतः दोनों को ही सोच बदलनी चाहिए |
-----वे पुरुष को साधू-संत बनाने को कहेंगीं परन्तु स्वयं डायरेक्टर की इच्छा/आज्ञा पर /पैसे के लिए वस्त्र उतारती रहेंगीं |
------ वे देह –दर्शना वस्त्र पहनती रहेंगीं, उनका तर्क है की छोटी-छोटी बालिकाओं से, गाँव में पूरे वस्त्र पहने महिलाओं से भी वलात्कार होता है अतः वस्त्र कम पहनने से कुछ नहीं होता अपितु पुरुष व समाज को अपनी मानसिकता बदलनी होगी| वे भूल जाती हैं कि- कम वस्त्रों, अश्लील चित्रों, सिनेमा, विज्ञापन आदि से जाग्रत उद्दाम वासना से जो भी व्यक्ति की पहुँच में होगा वही प्रभावित होगा | आप तो बाडीगार्ड, परिवार आदि की सुरक्षा में हैं, कौन हाथ डालने की हिंम्मत करेगा| चोर किसी प्रधानमन्त्री या पुलिस वाले के घर चोरी करने थोड़े ही जायेगा, जहां सुरक्षा कम है वहीं दांव लगाएगा |
-------   इनसे कुछ नहीं होगा |

         अतः हे पुरुषो ! ब्रह्म रूप बनो, अपनी ज्ञान, विवेक व सदाचरण रूपी दैविक शक्तियां जाग्रत करो...उदाहरण बनो और अपनी जाग्रत शक्तियों को प्रदान करो नारी को ताकि वह पुनः दुर्गा का दुष्ट दलन रूप बनकर समाज में पूज्य बने | और आप सच में ही---“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” के महामंत्र के गान के योग्य बनें |

गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

''माँ' पूरी कायनात है !


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जो कलम लिख देती माँ ,
हो जाती वो तो पाक है ,
क्या लिखूं माँ के लिए ?
''माँ' पूरी कायनात है !
...................................
मैं हूँ क़तरा ; माँ समंदर ,
मैं कली वो है चमन ,
माँ के चरणों में है जन्नत ,
माँ ज़मी माँ ही गगन !
कामयाबी हर मेरी
''माँ'' का आशीर्वाद है !
क्या लिखूं माँ के लिए ?
''माँ' पूरी कायनात है !
................................
हम से पहले माँ ये जाने ,
क्या हमें कब चाहिए ?
माँ का दिल ममता भरा
और कुछ न पाइए ,
एक आह हमने भरी
माँ जागती दिन-रात है !
क्या लिखूं माँ के लिए ?
''माँ' पूरी कायनात है !
.........................................
हम हँसे तो माँ हंसी ,
रोने पर पुचकारती ,
डांट देती भूल पर ;
पल में फिर दुलारती !
माँ दुआ बनकर सदा
रहती हमारे साथ है !
क्या लिखूं माँ के लिए ?
''माँ' पूरी कायनात है !

शिखा कौशिक 'नूतन'