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सोमवार, 24 नवंबर 2014

ग़ज़ल---- उनके अश्कों को ...डा श्याम गुप्त...



              ग़ज़ल---- उनके अश्कों को


उन के अश्कों को पलकों से चुरा लाये हैं |

उनके गम को हम खुशियों से सजा आये हैं


आप मानें या न मानें यह तहरीर मेरी ,

उनके अशआर ही ग़ज़लों में उठा लाये हैं|



उस दिए ने ही जला डाला आशियाँ मेरा ,

जिसको बेदर्द हवाओं से बचा लाये हैं |



याद करने से भी दीदार न होता उनका,

इश्क में यूंही तड़पने की सजा पाए हैं|



प्यार में दर्द का अहसास कहाँ होता है,

प्यार में ज़ज्ब दिलों को ही जख्म भाये हैं|



प्रीति है भीनी सी बरसात क्या आलम कहिये,

रूह क्या अक्स भी आशिक का भीग जाए है|



श्याम' वो करते हैं शक मेरे ज़ज्वातों पे,

हम से ही दर्द के नगमे जहां में आये हैं||


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