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गुरुवार, 3 अप्रैल 2014

कानून : घरेलु हिंसा प्रकरणों को पुलिस और कोर्ट में ले जाना कितना प्रासंगिक?

एक हिंदी ब्लॉगर ने चिंता जताई है कि
आज घरेलु हिंसा कानूनन अपराध है। इसके बावजूद भी-
(1) घरेलु हिंसा की शिकार कितनी पत्नियां अपने पतियों के खिलाफ मुकदमे दर्ज कराती हैं?
(2) कितनी पत्नियां घरेलु हिंसा के प्रकरणों को पुलिस या कोर्ट में ले जाने के तत्काल बाद वापस लेने को विवश हो जाती हैं?
(3) घरेलु हिंसा की शिकार होने पर मुकदमा दर्ज कराने वाली स्त्रियों में से कितनी घरेलु हिंसा को कानून के समक्ष कोर्ट में साबित करके पतियों को सजा दिला पाती हैं?
(4) घरेलु हिंसा प्रकरणों को पुलिस और कोर्ट में ले जाने के बाद कितनी फीसदी स्त्रियॉं कोर्ट के निर्णय के बाद अपने परिवार या विवाह को बचा पाती हैं या कितनी स्त्रियां विवाह को बचा पाने की स्थिति में होती हैं? 
साभार :

‘वैवाहिक बलात्कार’ का कानून कितना प्रासंगिक?


4 टिप्‍पणियां:

  1. घरेलू हिंसा और वैवाहिक वलात्कार दो पृथक पृथक बातें हैं.....आपका तात्पर्य किससे है...

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  2. @ गुप्ता जी! हमने एक हिंदी ब्लॉगर के पूरे लेख की चन्द पंक्तियां जो घरेलू हिंसा से संबंधित हैं, पेश की हैं तो ज़ाहिर है कि हमारा तात्पर्य इन्हीं पंक्तियों से है।
    इसके बावुजूद औरत को पेश आने वाले सारे मसलों में पुरूष को अपने योगदान को तय करना चाहिए और उसे अदा भी करना चाहिए क्योंकि औरत की हालत बेहतर होगी तो उसके बच्चों की हालत भी बेहतर होगी और बच्चों में लड़के भी आते हैं जो कि बड़े होकर मर्द बनते हैं।

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  3. @ आदरणीय पुरुषोत्तम जी ! आप फ़ेसबुक पर लिखते और वहां आपके विचारों को बहुत से लोग शेयर करते हैं और कोई भी आपसे नहीं पूछता . फिर आप हमसे अनुमति न लेने की बात कहने क्यों चले आये बजाय शुक्रिया कहने के कि आपके विचार को हमने और आगे बढ़ाया है. किसी सार्वजनिक मंच पर व्यक्त किये गये विचार सभी पढ़ते हैं और बहुत से लोग उन्हें शेयर करते हैं और उसमें असल पोस्ट का लिंक होता है. इस पर किसी को ऐतराज़ करते हमने नहीं देखा है. ऐसे किसी ऐतराज़ की कोई अहमियत है भी नहीं. किसी की निजी वेबसाइट से कोई सामग्री ली जाये तो उसकी इजाज़त लेने की ज़रूरत पेश आ सकती है. यह बात सभी ब्लॉगर्स को समझ लेनी चाहिये.
    वैसे भी आप चन्द लाइनें किसी भी लेखक के लेख से उद्धृत कर सकते हैं बिना उस लेखक की परमिशन के, चाहे उस लेख के सर्वाधिकार सुरक्षित हों तब भी. यह हरेक पाठक का क़ानूनी अधिकार है.
    आप किसी भी मशहूर लेखक की पुस्तक को पढ लें उसमें आपको बहुत से लेखकों के विचार मिल जायेंगे जिन्हें उनकी कृतियों से लेकर पेश किया जाता है. उनसे बड़ा लेखक यहाँ कोई नहीं है कि वह अपना अलग क़ानून चलाये या बेवजह और बेकार ऐतराज़ करे.
    शुक्रिया.

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