पिछली एक पोस्ट
[समर -भूमि से वीर नहीं करते हैं कभी पलायन]
पर श्री दुली चंद करेल जी की ये टिप्पणी प्राप्त हुई -
बारम्बार बनावट ने सत्य को रौंदा है।
रावण नीच तो सीता पवित्र कैसे?
अब ऐसे कुत्सित -विचारों का क्या उत्तर दिया जाये ?माता सीता की पवित्रता पर इस प्रकार के लांछन लगाना कोई नयी बात नहीं .माता सीता ने क्यूँ लांघी लक्ष्मण -रेखा और १६ दिसंबर २०१२ को सामूहिक दुष्कर्म की शिकार दामिनी के रात्रि में घूमने पर पुरुष -वर्ग ऊँगली उठाता ही रहा है .मर्यादा का प्रहरी पुरुष वर्ग अपनी करनी पर जरा भी ध्यान देता तो न सिया-हरण होता न द्रौपदी का चीर-हरण पर दुःख की बात है पुरुष-वर्ग हर बार स्त्री को ही दोषी ठहरा देता है -
सीता पे लांछन था लगा ,रावण ने उनको क्यूँ हरा ?
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
.....................................
कामी ,लम्पट ,कापुरुष ने ; छल-युक्त कर्म था किया ,
महापुरुष श्री राम से प्रतिशोध इस भांति लिया ,
पाप था दशशीश का ; दंड सीता ने भरा !
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
........................................................
कट गए रावण के सिर ; हुई धर्म की स्थापना ,
पितृ-सत्ता से हुआ ; सियाराम का तब सामना ,
अग्नि-परीक्षा लेने का राम ने निर्णय करा !
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
..............................................................
सीता के एक स्पर्श से अग्नि भी पावन हो गयी ,
श्री राम की अर्द्धांगिनी सीता महारानी भयी ,
लेकिन सिया की शुद्धि पर संदेह -जलद फिर आ घिरा !
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
.............................................................
है यही अब प्रचलित श्री राम ने त्यागी सिया ,
पर बहुत सम्भव सिया ने अवध-त्याग स्वयं किया ,
स्वाभिमानी जानकी पर तर्क ये उतरे खरा !
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
.....................................................................
सीता को वापस लाने का पुनः खेल था रचा गया ,
शुद्धि -परीक्षा का पुनः आग्रह किया गया ,
सीता के प्राण ले लिए पर दम्भ नर का न मरा !
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
.............................................................
त्रेता हो या कलियुग ; धरा पर राज नर ही कर रहे ,
रावण-दुशासन रूप नर हर युग में छलकर धर रहे ,
अपने किये दुष्कर्म का आरोप नारी सिर धरा !
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
.....................................
कामी ,लम्पट ,कापुरुष ने ; छल-युक्त कर्म था किया ,
महापुरुष श्री राम से प्रतिशोध इस भांति लिया ,
पाप था दशशीश का ; दंड सीता ने भरा !
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
........................................................
कट गए रावण के सिर ; हुई धर्म की स्थापना ,
पितृ-सत्ता से हुआ ; सियाराम का तब सामना ,
अग्नि-परीक्षा लेने का राम ने निर्णय करा !
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
..............................................................
सीता के एक स्पर्श से अग्नि भी पावन हो गयी ,
श्री राम की अर्द्धांगिनी सीता महारानी भयी ,
लेकिन सिया की शुद्धि पर संदेह -जलद फिर आ घिरा !
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
.............................................................
है यही अब प्रचलित श्री राम ने त्यागी सिया ,
पर बहुत सम्भव सिया ने अवध-त्याग स्वयं किया ,
स्वाभिमानी जानकी पर तर्क ये उतरे खरा !
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
.....................................................................
सीता को वापस लाने का पुनः खेल था रचा गया ,
शुद्धि -परीक्षा का पुनः आग्रह किया गया ,
सीता के प्राण ले लिए पर दम्भ नर का न मरा !
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
.............................................................
त्रेता हो या कलियुग ; धरा पर राज नर ही कर रहे ,
रावण-दुशासन रूप नर हर युग में छलकर धर रहे ,
अपने किये दुष्कर्म का आरोप नारी सिर धरा !
बीते हज़ारो वर्ष पर ये घाव अब तक है हरा !
शिखा कौशिक 'नूतन
you have given right answer .
जवाब देंहटाएं