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शनिवार, 15 मार्च 2014

बरसाने वाली छोरी , ब्रज आई खेलन होली

होली पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !

होली पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !



बरसाने  वाली छोरी , ब्रज आई खेलन होली   ,
ब्रज का छोरा छिप-छिप कर खेले है आँख-मिचौली !
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घर-घर में ढूंढें राधा कान्हां है छिपा कहाँ पर ,
फिर जमुना तट पर खोजा पाया ना उसे वहाँ पर ,
वो जगत -खिलावन वाला करता है खूब ठिठौली !
बरसाने  वाली छोरी , ब्रज आई खेलन होली   !
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कान्हां के मित्र-सखागण हँसते हैं राधा-दल पर ,
कुढ़ती-चिढ़ती रह जाती हाथों को मल-मल-मल कर ,
तभी पड़ी कदम्ब पर दृष्टि और देखि छवि सलोनी !
बरसाने  वाली छोरी , ब्रज आई खेलन होली   !
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कान्हां के मुख-दर्शन से झुलसी कलियाँ मुस्काई ,
राधा के मनमोहन ने फिर मुरली मधुर बजाई ,
पिचकारी लेकर राधा कान्हां को रंगने दौड़ी !
बरसाने  वाली छोरी , ब्रज आई खेलन होली   !
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कान्हां को रंग दिया हाय मल -मल कर लाल गुलाल ,
फिर कान्हां ने रंग डाले राधा के गोरे गाल ,
अजी होरी है जी होरी ; होरी में कैसी चोरी !
बरसाने  वाली छोरी , ब्रज आई खेलन होली   !

शिखा कौशिक 'नूतन' 

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति... 'होली खेले तो आ जईयो बरसाने रसिया' बरसाने से ही होली की विशेष उमंग जागृत होती है. राधा-कान्हा और ब्रज को याद किये बिना क्या होली....

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  2. रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ...

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  3. रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ...

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  4. आपको भी सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं ।

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  5. अच्छी कविता ---आभार होली की शुभ....

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  6. आदरणीया!
    होली, राधा, कृष्ण और ब्रज..............चारो एक-दुसरे के पूरक है....और जिस गीत में ये चारो हो उस रचना में चार चाँद लगना स्वाभाविक है.............मनमोहक गीत !

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