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बुधवार, 25 दिसंबर 2013

व्यास-गद्दी -लघु कथा

आरती और भारती तैयार होकर त्रिपाठी जी के यहाँ ''श्रीरामचरितमानस'' के अखंड पाठ में सम्मिलित होने के लिए पहुंची .अभी 'बालकाण्ड' का पाठ ही चल रहा था .आरती व् भारती को देखकर त्रिपाठी जी की बिटिया सुनयना मुस्कुराती हुई आई और उन्हें छेड़ते हुए बोली -'' दोनों भाभियाँ एक साथ ...आनंद आ गया देखकर !'' आइये बैठिये ना .'' आरती सुनयना के कंधे पर स्नेह से हाथ रखते हुए बोली -'' दीदी हम ज्यादा देर न बैठ पायेंगें ...हमें जल्दी जल्दी रामायण के पाठ का सुअवसर दिलवा दो .'' आरती की बात पर सुनयना आश्चर्य चकित होते हुए बोली -'' भाभी हमारे यहाँ व्यास-गद्दी पर महिलाएं नहीं बैठती ..आपको नहीं पता ?' ' आरती ने भारती की ओर देखा और भारती मुस्कुराती हुई सुनयना के पास आकर बोली -'' हमें जल्दी है दीदी ...शायद माता जी आरती के समय आएँगी .'' ये कहकर सुनयना के बहुत आग्रह पर भी वे नहीं रुकी .घर की ओर जाते समय आरती व् भारती के दिमाग में एक ही प्रश्न बार-बार घूम रहा था कि '' फिर ''रामायण पाठ '' के आरम्भ में आह्वान करते समय माता सीता को क्यों बुलाया जाता है ..व्यास-गद्दी पर बैठकर माता सीता का नाम ही क्यों लिया जाता है जबकि वे भी तो एक महिलां है ..हम अपवित्र हैं तो वे भी तो ....!!!''
शिखा कौशिक 'नूतन'

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (26-12-13) को चर्चा - 1473 ( वाह रे हिन्दुस्तानियों ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ----रामायण पाठ तो प्रायः महिलायें ही करती हैं ... अभी हाल तक भी विवाह हेतु लड़कियां देखते समय सदा लड़कियों से रामायण पाठ कराया जाता था और सस्वर पाठ एक गुण माना जाता था ....
    ---- हो सकता है किसी कारण बाद में यह कुप्रथा उनके परिवार में आगई हो... व्यास पीठ की उत्तराधिकारी बनना एक अलग बात है उसपर बैठकर पाठ करना एक पृथक बात....

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